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Monday, June 29, 2009
क़िस्मत क़िसिम-क़िसिम की
क र्म की महिमा का चाहे जितना बखान किया जाए, दुनिया में भाग्यवादियों की संख्या ज्यादा है। व्यावहारिक तौर पर भी आए दिन यही देखने में आता है कि लगन, मेहनत, प्रतिभा का संयोग होने के बाद भी किन्ही लोगों के लिए समृद्धि-सफलता की राह प्रशस्त नहीं होती। इसके विपरीत पात्रता, योग्यता और क्षमता न होने के बावजूद कई लोगों के जीवन में अप्रत्याशित सफलता आती है। भाग्य, किस्मत, लक, तकदीर, नसीब आदि ऐसे अनेक शब्द है जिनके मायने लगभग समान हैं और नियति अथवा प्रारब्ध के अर्थ में इनका आए दिन खूब इस्तेमाल होता है।
इन तमाम शब्दों के मूल में जाएं तो एक बात स्पष्ट होती है वह है हिस्सा, बंटवारा, भाग, काट-छांट या अंश जैसे अर्थों के साथ प्रभाव, शक्ति और महिमा जैसे भावों से इन शब्दों की रिश्तेदारी। भाग्य शब्द बना है संस्कृत धातु भज् से जिसमें हिस्से करना, बांटना, अंश करना, वितरित करना, आराधना-पूजा करना आदि भाव शामिल हैं। भज् से ही बना है भक्त जिसका अर्थ भी विभक्त, बंटा हुआ, खण्ड-खण्ड आदि है। इस भक्त (विभक्त) की फारसी के वक़्त से तुलना करें। समय या वक़्त क्या है? सैकेन्ड्स, मिनट, घंटा, दिन-रात और साल में विभाजित काल ही तो है न!! फारसी का यह वक्त और संस्कृत का भक्त दोनों ही इंडो-ईरानी भाषा परिवार के शब्द हैं और एक ही मूल से बने हैं जिसमें अंश, बंटवारा या विभाजन के भाव हैं। काल या वक्त ही भाग्य है जो भज् धातु से बना है। वक़्त का अगला रूप होता है बख़्त जिसका अर्थ भी भाग्य ही होता है। बख्तावर का मतलब होता है भाग्यवान या सिकंदरबंख्त का अर्थ हुआ सिकंदर जैसी तकदीरवाला। कुल मिलाकर जो भाव उभर रहा है वह यह कि ईश्वर की तरफ से मनुष्य को जो जीवन-काल मिला है, वही उसके हिस्से का भाग्य है। यह समय ही ईश्वर का अंश है जिसके जरिये वह इस सृष्टि में अपना जन्म सार्थक कर सकता है। मोटे तौर पर भाग्य का अर्थ अच्छे वक़्त या सौभाग्य से ही है पर यदि मनुष्य अपने कर्मों से अपने जीवन को अर्थात अपना समय अच्छे ढंग से व्यतीत नहीं करता है तो यही उसका दुर्भाग्य है। ये अलग बात है कि अच्छी और बुरी प्रवृत्तियोंवाले लोगों के लिए भी भाग्य और दुर्भाग्य की परिभाषाएं अलग-अलग होती हैं। एक चोर लगातार चोरी के अवसर मिलने को ही सौभाग्य समझता है।
अरबी का क़िस्मत भी ऐसा ही एक शब्द है जो हिन्दी के अलावा भी भारत की कई बोलियों में रच-बस चुका है। क़िस्मत बना है अरबी धातु क़सामा (q-s-m) से। भाग्य की तरह ही क़सामा में भी अंश, हिस्सा, भाग अथवा विभाजन जैसे भाव हैं। इसकी व्याख्या भी समय अथवा काल के संदर्भ में ही की जाती है। समय कई छोटे-छोटे हिस्सों में बंटा है। आयु के विभिन्न कालखंडों में हमारा जीवनानुभव अलग अलग होता है। उम्र के इन हिस्सों में सुख के क्षण भी हैं और दुख के भी। जीवन के यही हिस्से भाग्य अथवा क़िस्मत हैं। विभिन्नता, प्रकार, श्रेणी या वर्ग के अर्थ में अरबी का क़िस्म भी q-s-m धातु से ही निकला है। किस्म को पूर्वी क्षेत्रों में किसिम भी बोला जाता है। आजकल वैचित्र्य पैदा करने के लिए खड़ी बोली में भी ‘किसिम-किसिम’ का मुहावरा इस्तेमाल होता है। एक अन्य शब्द है क़सम जिसका अर्थ है शपथ। गौर करें कि शपथ तभी दिलाई जाती है जब किन्हीं दो विकल्पों में से किसी एक को चुनने की नैतिकता का पालन करना हो। आमतौर पर यह भी विभाजन है जो अच्छे और बुरे के बीच ही होता है। इसीलिए किसी तथ्य की स्वीकारोक्ति के लिए शपथ दिलायी जाती है या क़सम दी जाती है। हिन्दी में शपथ से ज्यादा क़सम शब्द का इस्तेमाल होता है। मराठी में शपथ शब्द ही बोला जाता है मगर इसे जिस ढंग से उच्चरित किया जाता है, यह शप्पथ सुनाई पड़ता है। दुर्भाग्य के लिए क़िस्मत के आगे बद् उपसर्ग लगा कर बदकिस्मत शब्द बनाया गया।
इसी कड़ी का हिस्सा है क़ासिम जिसका अर्थ होता है बहुतों में से बेहतर और अच्छे लोगों को चुननेवाला। यहां भी अंश, विभाजन जैसे भाव स्पष्ट हो रहे हैं। मुसलमानो में क़ासिम भी एक नाम होता है जिसका मतलब हुआ बहुतों के बीच से अच्छे लोगों को चुनना। भले मानुसों को चुननेवाला। यूं क़ासिम का शाब्दिक अर्थ बांटनेवाला या वितरक से लगाया जा सकता है किन्तु इसमें सर्वोच्च, शक्तिमान और प्रभुता का ही भाव है। ताकतवर ही बंटवारा कर सकता है। सृष्टि में सबको बांटने-वितरित करने का काम ईश्वर के सिवाय दूसरा कोई नहीं करता। अच्छे-बुरे लोगों के बीच से भले लोगों को चुनकर वही उन्हें नवाज़ता है। किस्म-किस्म के लोगों में से सिर्फ बेहतर को चुननेवाला ही क़ासिम हो सकता है। वह पथ-प्रदर्शक होगा, धर्मगुरू होगा, न्यायाधीश होगा और सबसे बढ़कर ईश्वर होगा।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:21 AM
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22 कमेंट्स:
कर्म किसिम किसिम के!! धन्य हुए आपके सानिध्य में आकर.
कर्म के विविध रूप -अच्छा लगा .
जानकारी के लिए आभार।
आज की चर्चा बहुत सुन्दर रही. जब सन्दर्भ आ ही गया है तो शप्पथ की भी व्यख्या कर डालिए (यदि पहले हो चुकी है तो कृपया लिंक दे दें)
आज तो भाग्य और किस्मत के परदे खुले हैं शब्दों के सफर पर। सुंदर ज्ञान वर्धक आलेख। जिन दिनों यह ब्लाग नहीं आया अजीब सा लगता रहा।
आई शप्पथ!किस्मत खुल गई आज तो किसिम किसिम के शब्द पढने को मिले!
बहुत ही रोचक एवं दिलचस्प लगी यह शब्द चर्चा.अभार.
बहुत ठीक कहा आपने आयु के अनुसार अलग अलग अनुभव , और दुख -सुख तो परम सत्य है ..
ज्ञानवर्धक लेख का शुक्रिया
bahut badhiya
महत्वपूर्ण और उपयोगी आलेख । धन्यवाद ।
पर भाग्य का अर्थ अच्छे वक़्त या सौभाग्य से ही है पर यदि मनुष्य अपने कर्मों से अपने जीवन को अर्थात अपना समय अच्छे ढंग से व्यतीत नहीं करता है तो यही उसका दुर्भाग्य है। ये अलग बात है कि अच्छी और बुरी प्रवृत्तियोंवाले लोगों के लिए भी भाग्य और दुर्भाग्य की परिभाषाएं अलग-अलग होती हैं। एक चोर लगातार चोरी के अवसर मिलने को ही सौभाग्य समझता है।
जानकारी रोचक लगी ...आपकी पिछली कुछ पोस्ट दुर्भाग्य वश नहीं देख पाई ..शेष पर टिप्पणी भी नहीं लेकिन सहेज ली है ..मेरे तो बड़े काम की है, आपके शब्दों के सफर में हम पीछे जरूर हें ..लेकिन रह गुजर में हें ...आमीन
@स्मार्ट इंडियन
ज़रूर अनुराग भाई, आपका आग्रह सिर माथे। अभी इस कड़ी के कुछ शब्दों को समेट लिया जाए, फिर शपथ भी लेते हैं:)
मैने आप जैसा नायाब हीरा चुना तो क्या मैं कासिम कहलाऊंगा ?
किस किस क ज़िक्र आ गया किस्मत की बात में.
निकला यही नतीजा कि मालिक के हाथ में.
[BEST OF LUCK TO AJITBHAI]
-मंसूर अली हाश्मी.
@धीरूसिंह
भाई, ऊपरवाले की यही मर्जी है कि आपक क़ासिम बनें। हमें तो आप जैसे सफर के साथियों का साथ पाकर आनंद मिलता है।
निकला यही नतीजा कि मालिक के हाथ में.
क्या खूब बात कही है हाशमी साहब....शुक्रिया बहुत बहुत
अजित भाई,
न-अज्म ने आपके दिल को छुआ, यह जानकर प्रसन्नता हुयी। आपके ब्लॉग पर 'शब्दों का सफर' कर आया। प्रीतिकर लगा यह सफर! एक अशार आपकी नज़्र करता हूँ--
शब्दों के सफर में निकले थे हम भी,
भाव घनीभूत हुए तो शब्द फिसल गए।
शब्द सघन हुए तो भावों का आभाव हो गया॥
ईश्वर की तरफ से मनुष्य को जो जीवन-काल मिला है, वही उसके हिस्से का भाग्य है। यह समय ही ईश्वर का अंश है जिसके जरिये वह इस सृष्टि में अपना जन्म सार्थक कर सकता है।
इस कोट को मैंने सम्हाल कर रख लिया है......यह पड़ाव केवल शब्द विवेचन भर न रहा बल्कि विषय परिचर्चा भी बना,जो बड़ा ही सुखकर लगा....
बहुत बहुत आभार इस सुन्दर आलेख के लिए...
भाग्य पर विश्वास अगर हमें विश्वास और सब्र से भरता है तो ठीक , साथ ही साथ कर्म का अहम रोल हमें नहीं भूलना चाहिए कि आज हम जो बो रहे हैं कल वही हम काटेंगे |
भक्त को भगवान से जोड़ने में भाग्य काम आता है या पुरुषार्थ?!
@ ज्ञानदत्त पाण्डेय:
भक्ति
१.किस्मत शब्द के अर्थ उघाडता यह शेअर सुनिए :
किस्मत कीया किसाने-अजर ने , जो शख्स कि जिस चीज के काबिल नजर आया.
बुलबुल को दिया नाला, परवाने को जलना; गम हम को दिया,
जो सब से मुश्किल नजर आया.
२. पंजाबी में वख्त का अर्थ दुर्भाग्य है; 'वख्त पड़ना' का मतलब बुरे दिन आना है.
३. भगवान का मतलब भी शायद भाग्य देने वाला ही हो. स्लाविक बौग और रुसी बोगात्स्त्वो भी सुजाति शब्द हैं.
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