पिछली कड़ी-काश लीलावती पहले मिल जाती…से आगे>
दिनेशराय द्विवेदी सुपरिचित ब्लागर हैं। इनके दो ब्लाग है तीसरा खम्भा जिसके जरिये ये अपनी व्यस्तता के बीच हमें कानून की जानकारियां सरल तरीके से देते हैं और अनवरत जिसमें समसामयिक घटनाक्रम, आप-बीती, जग-रीति के दायरे में आने वाली सब बातें बताते चलते हैं। शब्दों का सफर के लिए हमने उन्हें कोई साल भर पहले न्योता दिया था जिसे उन्होंने सहर्ष कबूल कर लिया था। लगातार व्यस्ततावश यह अब सामने आ रहा है। तो जानते हैं वकील साब की अब तक अनकही बकलमखुद के सोलहवें पड़ाव और तिरानवे सोपान पर... शब्दों का सफर में अनिताकुमार, विमल वर्मा, लावण्या शाह, काकेश, मीनाक्षी धन्वन्तरि, शिवकुमार मिश्र, अफ़लातून, बेजी, अरुण अरोरा, हर्षवर्धन त्रिपाठी, प्रभाकर पाण्डेय, अभिषेक ओझा, रंजना भाटिया, और पल्लवी त्रिवेदी अब तक बकलमखुद लिख चुके हैं।
ट्रे न जैसे ही बाराँ स्टेशन के आउटर पर पहुँची दिल तेजी से धड़कने लगा। पता नहीं रिजल्ट का क्या हुआ होगा? आखिर बोर्ड की पहली परीक्षा थी। अब तक वह दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण होता रहा था। रिजल्ट आए भी सप्ताह भर हो जाने पर भी उसे उस का पता न था। सरदार ट्रेन से उतर कर सीधा मंदिर पहुँचा। यज्ञोपवीत हो जाने के बाद से वह घर के स्थान पर मंदिर में ही रहने लगा था। आधे घंटे तक परिवार के किसी सदस्य ने उस से रिजल्ट का कोई जिक्र नहीं किया। उस के मन में अनेक आशंकाएँ भरने लगीं। उस दिन का अखबार तो अवश्य ही कहीं रखा होगा। वह अखबार तलाशने लगा। बहुत तलाशने पर मंदिर में जरूरी कागजात रखने के स्थान पर अखबार मिल गया। सरदार ने पहले दूसरी श्रेणी, फिर तीसरी श्रेणी, फिर पूरक और रुके हुए परीक्षा परिणामों को देख डाला। उस का रोल नंबर तमाम स्थानों से गायब था।
उस का दिल बैठ गया। वह जरूर फैल हो गया है, इसी कारण कोई उसे बता नहीं रहा है। अब एक-दो घंटे बाद जरूर कोर्ट मार्शल और नसीहतों की क्लास शुरू होने वाली है। इस से बचने को एक ही रास्ता था कि यह सब आरंभ होने के पहले ही वह खिसक ले। रसोई में जा कर देखा, भोजन तैयार हो चुका था, मंदिर में भोग लगाने की तैयारी थी। उस ने तुरत-फुरत स्नान किया और भोजन करने बैठ गया। पहली रोटी आधी ही खाई थी कि सामने से विमला, अन्नू ..... आते दिखाई दिए। यह जोधपुर वाली बुआजी की पूरी कबड्डी टीम थी और अवकाश में बाराँ में ही होती थी। वे कुछ दिन हमारे साथ, कुछ दिन अपने चाचा के साथ रहते। विमला ने तपाक से कहा –सरदार मिठाई खिला। सरदार ने आश्चर्य से पूछा -किस बात की मिठाई? -अरे¡ तुम फर्स्ट डिवीजन पास हुए हो, मिठाई नहीं खिलाओगे? सरदार का रोटी का ग्रास हाथ का हाथ में रह गया। वह तुरंत बिना हाथ धोये वहां से भागा, अखबार फिर से देखा। प्रथम श्रेणी की सूची में उस के रोल नंबर पर लाल स्याही से खूबसूरती से एक गोला बनाया हुआ था। क्षण भर में सरदार की दुनिया बदल गई थी। वह प्रथम श्रेणी का हो गया था। कोर्ट-मार्शल का अहसास हवा हो चुका था। कहाँ तो वह तुरत-फुरत भोजन कर दोस्तों के बीच गुम होने का कार्यक्रम बना रहा था और कहाँ यह खुशी। उस ने पहले हाथ धोए, दाज्जी को बताया, विमला मिठाई मांग रही है। दाज्जी ने पैसे दिए, वह मिठाई लाया। पहले मंदिर में भोग लगाया गया, फिर सब को मिठाई दी गई। नगर में पहली बार कुल सात विद्यार्थी प्रथम श्रेणी मे पास हुए थे, उन में वह भी था।
इसी साल एक घटना और हुई थी जिस ने सरदार की समाज में सार्थक हस्तक्षेप करने की आदत की नींव डाली। जिस मंदिर में रहते थे, उस के सामने जैन मंदिर था और बीच में एक बड़ा चौक। चौक के कोने में एक बड़ा कुआँ था। दोनों मंदिर पूजा के पानी के लिए और दो सौ से अधिक परिवार इस कुएँ के पानी पर निर्भर थे। कुएँ पर वैष्णव मंदिर और जैन मंदिर दोनों की पंचायतें अपना अपना स्वामित्व जमाती थीं। एक दिन कुएँ में बिल्ली गिर गई। दोनों पंचायतें एक दूसरे से कहती रहीं कि चूंकि वे स्वामित्व जमाते हैं इसलिए वे बिल्ली के शव को निकलवा कर कुआँ झड़वाएँ। बिल्ली का शव दो दिन कुएँ में पड़ा रहा। उस कुएँ से पानी निकालना बंद हो गया। मंदिर-पुजारी और दो सौ परिवार इधर-उधर के कुओं से पानी लाते रहे। तीसरे दिन जैन पंचायत ने पहल की और बिल्ली निकलवा कर एक आदमी को
अपने बकलखुद की आखिरी कड़ी में बेजी... यह स्तंभ अपने आप में निराला है....यहाँ महान लोगों की कहानी तो नहीं ही लिखी जा रही....पर आम लोगों के जीवन, जीवनी ,संघर्ष और हर्ष के पलों को लफ्ज़ों में समेटा जा रहा है। सफर रोचक है और जारी रहना चाहिये...ना जाने कितनी पहचान -दोस्ती और स्नेह के रिश्तों में बदल जायेगी...यह वो पुल हो सकता है जिसके छोर पर मनचाहा दोस्त मिले...बेजी का बकलमखुद पढ़ने के लिए साईडबार के लिंक पर जाइये।
बाल्टी से खींच-खींच कर पानी निकालने के लिए लगाया। एक आदमी कितना पानी उस कुएँ से निकाल सकता था, जिस पर सुबह चार बजे से रात सात बजे तक पानी भरने वालों को स्थान न मिलता हो। जब कि एक साथ आठ लोगों के पानी खींचने के लिए घिरनियाँ वहाँ लगी थीं।
सरदार जीव विज्ञान पढ़ रहा था। उसे लगा कि तीन दिनों में तो संक्रमण पूरे कुएँ के पानी में फैल चुका होगा। लोगों ने इसे पीना शुरू कर दिया तो रोग भी फैल सकता है। नगर के सब से बड़े अफसर उपखंड अधिकारी का कार्यालय सरदार के स्कूल के रास्ते में पड़ता था। यही अफसर नगरपालिका का प्रशासक भी था। सरदार ने अपनी कॉपी से एक पन्ना निकाला और अफसर के नाम प्रार्थना पत्र लिखा कि कुएँ के मालिक बने लोग कर्तव्य को ठीक से निबाह नहीं रहे हैं, संक्रामक रोग फैल सकता है। आप कुछ करें, अन्यथा रोग फैलने पर जिम्मेदारी आप की होगी। सरदार स्कूल के लिए जल्दी निकला और अफसर के दफ्तर में घुस गया। अफसर यकायक निक्कर बुश्शर्ट पहने एक किशोर को अपने दफ्तर में देख कर चौंक कर पूछा-कैसे आए? सरदार ने तुरंत प्रार्थना पत्र आगे कर दिया। अफसर ने उसे पढ़ कर पूछा- मेरी जिम्मेदारी कैसे होगी? सरदार ने कहा-आप नगरपालिका के प्रशासक हैं, बीमारी फैली तो आप को ही सब से अधिक दौड़-भाग करनी होगी। अफसर ने सरदार को बैठने को कहा और तुरंत नगरपालिका से एक स्वास्थ्य निरीक्षक को बुलाया जो कुछ ही मिनटों में वहाँ आ गया। उसे आदेश दिया गया कि तुरंत पर्याप्त मात्रा में पोटेशियम परमैंगनेट कुएँ में डाला जाए और दोनों पंचायतों को नोटिस दे दिया जाए कि वे कुएँ को झड़वा कर खाली करवाएँ जिस से नया आने वाला पानी ही रह जाए। वे न करवाएँगे तो नगरपालिका खुद कुएँ की सफाई करवा कर खर्चे का बिल उन्हें भेज देगी। सरदार स्कूल चला गया। शाम को जब वह मंदिर पहुँचा तो लाल दवा कुएँ में डाली जा चुकी थी। एक चड़स वाला कुएँ पर चड़स फिट कर रहा था। जिस की व्यवस्था वैष्णव पंचायत ने की थी। अगले दिन सुबह सफाई आरंभ हो गई। दुपहर तक कुएं में कीचड़ आने लगा। आदमी उतारे गए कीचड़ को भी निकाला गया। अनेक डूबे हुए बरतन उस में निकले, टनों कचरा निकाला गया। इस का एक लाभ यह भी हुआ कि कुएँ का पानी जो पहले कुछ खारा लगता था, इस झड़ाई के बाद मीठा हो गया था। कुएँ से कीचड़ निकल जाने से मीठे पानी का कोई सोता कुएँ में खुल गया था।
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9 कमेंट्स:
संस्मरण रोचक और प्रेरणादायी भी है।
निश्चय ही अत्यन्त रोचक और ईमानदार अभिव्यक्ति से रुबरू हो रहे हैं हम । आभार ।
बहुत रोचक. शुभकामनाएं.
रामराम.
रोचक और प्रेरक संस्मरण |
शुभकामनाये |
पूत के पाँव पलने में ...दिखने लग गए हैं
किशोर आयु ही आगे की दिशा तय करती है . सरदार ने भी प्रार्थना पत्र लिखकर अपना भविष्य तय कर ही लिया होगा .
समाज सेवा के ये भाव बचपन में ही पढ़ना अच्छा लगा
अरे वाह, पहले प्रथम श्रेणी और फिर कुँए की सफाई. यहाँ से सरदार सचमुच असरदार हो गया.
मीठेपन के लिये कीचड़ हटानी पड़ती है! सही।
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