संबंधित कड़ियां-1.कमबख्त को बख्श दो भगवान.2.सबका भाग्यविधाता कौन?.3.सुख भी भोगो, दुख भी भोगो.4.क़िस्मत क़िसिम-क़िसिम की
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:01 AM
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
15 कमेंट्स:
सुन्दर व्याख्या।
धन्यवाद!
बेहतरीन विश्लेषण!!!
सुन्दर विश्लेषण.आभार .
हम कुदरत से बनाते हैं कुदरती, अर्थात खुद-ब-खुद। जिस का अर्थ खुदा भी है। इस तरह कुदरत और खुदा में कोई भिन्नता नहीं रह जाती। ये अर्थ स्वयं लोगों के व्यवहार ने ही उत्पन्न किए हैं। जो अवचेतन में उन का अपना दर्शन भी है।
bahut hi sundar post .........................prakriti me hi sabkuchh samahit hai
शबे-कद्र को बचपने से देखते-सुनते आ रहे हैं उसका अर्थ पहली बार समझ मे आ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण व्याख्या । बहुत कुछ स्पष्ट हो गया । आभार ।
उम्दा विश्लेषण है. हम भी इसकी क़द्र करते हैं.
shabe -kadra ke vishay me pahli baat vistaar me janne ka awsar mila....
sadaiv ki bhanti atisundar yatra...aabhar.
...खुदा की क़ुदरत की क़द्र अगर इनसान नहीं करेंगे तो खुदा अपने बंदों की क़द्र कैसे करेगा...
मनमाफिक बात कही तो तालियाँ बजाने से न रहा गया, यह भी तकदीर का ही खेल है की विचार में समानता मिले.
सुन्दर शोध परक और ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुति का हार्दिक शुक्रिया.
चन्द्र मोहन गुप्त
कदारा धातु से बने शब्दों और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक झांकी सी हमारे सामने धीरे धीरे गुज़रती रही. आभार.
तक़दीर में लिखा होगा तभी तो कद्र होगी .
शबे-कद्र के बारे में पहले कभी सुना नहीं था -- कुदरत तो हज़ार तोहफे देती है हम इंसानों को
today i opened this site first time it is wonderful
वाह बहुत अछे. अद्भुत जानकारी .
प्रेम सिंह
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