Wednesday, July 8, 2009

इश्क से ईश्वर और ईंट तक

पिछली कड़ी> प्रेमलता और इश्क के पेचो-ख़म...से आगे>

...भारतीय-ईरानी परिवार की धातु इष् में चलना, फिरना, प्राप्त करना, लक्ष्य पाना, अनुसरण करना, तलाश करना, ढूंढना आदि भाव हैं। इश्क शब्द में ये तमाम क्रियाएं और अवस्थाएं साफ नज़र आती हैं…Shahnameh-2

श्क शब्द के मायने होते हैं प्रेम। यह शब्द अरबी में भी है और फारसी में भी। कुछ भाषाशास्त्री इसे सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द न मानते हुए इंडो-ईरानी परिवार का मानते हैं। देखा जाए तो यह शब्द सिर्फ सेमेटिक भाषा परिवार का कम और इंडो-ईरानी परिवार का ज्यादा है। शब्द की व्युत्पत्ति पर आमराय नहीं है। ईरानी मूल के प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी और भाषाशास्त्री मोहम्मद हैदरी मल्येरी ने इश्क शब्द के इंडो-ईरानी होने के महत्वपूर्ण कारण गिनाए हैं।
इंडो-ईरानी परिवार की भाषाओं में एश, इश, जैसे शब्द हैं जिनका ताल्लुक इच्छा, कामना अथवा चाहने से है। प्राचीन ईरान की प्रमुख भाषा अवेस्ता जो वेदों जितनी ही पुरातन है, में इष शब्द है जिसका अर्थ है इच्छा, कामना, खोज आदि। इसके कुछ अन्य रूपों पर गौर करें। इशति यानी वह चाहता है, इश्त यानी जिसे चाहा जाए अर्थात आराध्य, इश्ती यानी प्रेरणा, उद्धेश्य आदि है। इसका ही एक रूप है इश्क जिसमें प्रेम, समर्पण, कामना के भाव हैं। गौरतलब है कि एश, इश के करीब-करीब यही सारे रूप संस्कृत में भी उपस्थित हैं जैसे एष, एषा, एषणा, इष आदि में कामना, इच्छा, चयन, प्रयास, चाह आदि भाव हैं। इसी क्रम में आते हैं इष्ट अर्थात इच्छित, चाहा गया, जिसकी कामना की जाए, वर, प्यारा, प्रेमी आदि। इसी मूल से उपजा है ईश्वर शब्द जिसमें परमशक्तिवान, ताकतवर, गुरू, भगवान, प्रेमी आदि भाव हैं। यह भी साफ है कि प्रेम ही ईश्वर है या इश्क खुदा है जैसी बातें महज़ दार्शनिक नहीं हैं। इश्क खुदा है कि बजाय ईश्वर ही इश्क कहने में भाषावैज्ञानिक आधार भी है।
हैदरी का मानना है कि अरबी मूल का इश्क मूलतः फारसी से ही गया है इसलिए यह सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द नहीं हैं। भारतीय-ईरानी परिवार की धातु इष् में चलना, फिरना, प्राप्त करना, लक्ष्य पाना, अनुसरण करना, तलाश करना, ढूंढना आदि भाव हैं। इश्क शब्द में ये तमाम क्रियाएं और अवस्थाएं साफ नज़र आती हैं। इसीलिए फारसी में एक प्रसिद्ध वल्लरी के लिए इश्क-पेचाँ अर्थात प्रेमलता या प्रेमवल्लरी जैसा शब्द सामने आया क्योंकि यह किसी वृक्ष का सहारा लेकर, उसके इर्दगिर्द वलयगति से आगे बढ़ती है और शीर्ष तक पहुंचती है। जिस वृक्ष को इश्क-पेचाँ आधार बनाती है, वह कुछ समय बाद सूख जाता है। अर्थात उसका अस्तित्व सिर्फ उस बेल के लिए ही सुरक्षित हो जाता है। भाव यही कि प्रेम में किसी एक को समर्पण करना ही होता है। लिपटने, चाहने, समर्पित करने का यह दर्शन ही अरबी समाज में भी लोकप्रिय हुआ और इस तरह अवेस्ता का इश्क चला आया अरबी में।
हैदरी के पास इश्क शब्द के भारतीय-ईरानी मूल का होने के पीछे इसकी संस्कृत से रिश्तेदारी है और दूसरा महान फारसी कवि फिरदौसी द्वारा इस शब्द का इस्तेमाल करना है। फ़िरदौसी (935-1020ई) ईरान के प्रखर राष्ट्रवादी कवि थे। इनकी कृति शाहनामा ईरान पर अरबों के आक्रमण से पहले के काल से जुड़ी है। शाहनामा Shahnameh को ईरान की आत्मा भी कहा जा सकता है। यह वह महत्वपूर्ण कृति है जिसने भाषाविज्ञानियों, साहित्यकारों, इतिहासकारों को हमेशा प्राचीन सभ्यताओं को समझने के संदर्भ में सहायक सामग्री प्रदान की है।
 ferdowsi-sized ..फ़िरदौसी जानते थे कि इश्क शब्द ईरानी मूल का है और इसीलिए इश्क का , प्रयोग उनके काव्य में है ...
शाहनामा के जरिये ही रुस्तम-सोहराब जैसे पात्र दुनियाभर में मशहूर हुए। हैदरी का मानना है कि चूंकि फिरदौसी ईरानी संस्कृति को प्यार करते थे और अरब के बढ़ते प्रभाव को ईरानी संस्कृति के लिए खतरा मानते थे। फिरदौसी की भाषा पर अरबी प्रभाव नहीं है। शाहनामा में उन्होंने इश्क शब्द और उसके अन्य रूपों का खूब इस्तेमाल किया है। अरबी विरोधी छवि देखते हुए यह मानना मुश्किल है कि उन्होंने इश्क जैसे अरबी शब्द का इस्तेमाल किया होगा। दूसरी बात यह कि अरबी साहित्य में और बोलचाल में भी इश्क़ शब्द से ज्यादा मुहब्बत शब्द का प्रयोग होता है। जाहिर है, फिरदौसी इश्क शब्द को ईरानी मूल का ही मानते थे। यह बहुत बड़ा साक्ष्य है। हैदरी तर्क देते हैं कि फारसी का क(k) वर्ण अरबी में जाकर क़(q) में बदल जाता है। इस तरह फारसी का इश्क (isk) अरबी में इश्क़ (isq) हो जाता है।
हिन्दी का इच्छा शब्द भी इष् धातु से ही बना है। ईश्वर, ऐश्वर्य, इष्ट जैसे शब्दों के मूल में भी यही धातु है। वैदिककाल में इष्ट का अर्थ यज्ञ भी होता था। सीधी सी बात है, आर्यजन अग्निपूजक थे और ईश्वर-आराधना के लिए, इच्छापूर्ति की कामना में यज्ञ का आयोजन करते थे। चूंकि यज्ञों का संबंध ईष् यानी कामना से जुड़ा है इसलिए इसे भी इष्ट कहा जाने लगा। भवन निर्माण की प्रमुख इकाई को ईंट कहते हैं जो इष्ट से ही बना है। इसका संस्कृत रूप था इष्टिका या इष्टका। यज्ञवेदी का निर्माण मिट्टी से होता था। यज्ञाग्नि से तपकर यह वेदिका काफी मज़बूत हो जाती थी। यहीं से आर्यजनों ने मिट्टी पकाने की तकनीक जानी और कालांतर में मिट्टी के पिंडों को आग पर तपा-पका कर उससे भवन निर्माण शुरू किया जिसे इष्टका या इष्टिका नाम दिया। पौराणिक संदर्भों में तीन प्रमुख आर्य-एषणाओं अर्थात इच्छाओं में लोकैषणा (ख्याति की चाह), वित्तैषणा (धन की चाह) और पुत्रैषणा (पुत्र की चाह) का उल्लेख है। आधुनिक युग की तीन प्रमुख इच्छाओं में रोटी-कपड़ा और मकान हैं(बाकी तीन खत्म नहीं हुईं हैं बल्कि और भी विकराल होकर हमारे मन-मस्तिष्क में जम गई हैं) इनमें मकान के बारे में सोचें तो ईष्ट शब्द में निहित एषणा अर्थात कामना, इच्छा इसमें भी नज़र आती है क्योंकि ईंट का प्रयोग हुए बिना भवन बन नहीं सकता।

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

14 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

एषणा अर्थात कामना- बहुत बढ़िया जानकारी. ज्ञानबर्धन का आभार.

Vinay said...

आप तो सदैव ही हमारा ज्ञानवर्धन करते रहे हैं, शुक्रिया

---
नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित

Himanshu Pandey said...

इश्क़ शब्द का इतना सर्वांगीण विवेचन दुर्लभ है । बहुत कुछ इकट्ठा पढ़ने को मिल जाता है यहाँ । आभार ।

gazalkbahane said...

आप भाषा के अनेकानेक रूपों से-शब्द भंगिमाओं के माध्यम से हम सब के ज्ञान को संवृधित करते रह्ते हैं -साधुवाद के पात्र हैं
श्याम सखा

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर विवेचन किया है आपने.

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इनमें मकान के बारे में सोचें तो ईष्ट शब्द में निहित एषणा अर्थात कामना, इच्छा इसमें भी नज़र आती है क्योंकि बिना ईंट का प्रयोग हुए बिना भवन बन नहीं सकता।

जानकारी के लिए आभार!

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

अजित भाई, आप तो हर बार चमत्कृत कर देते हैं. अद्भुत जानकारियां दी हैं आपने इस बार भी. बहुत बहुत धन्यवाद!

Anonymous said...

इस बार भी अद्भुत जानकारियां
बहुत बहुत धन्यवाद!

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख! इश्क करने के काबिल!

Unknown said...

मंत्रमुग्ध कर देते हो भाई अजीतजी,
आपको पढ़ना मानो ट्यूशन पढ़ने जैसा है ...........
आँखें खोल देते हो.............

जियो जियो जियो

बहुत उम्दा कर रहे हो
आपसे बहुत आशाएं हैं

हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
-अलबेला खत्री

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! इश्क इच्छा से जुड़ा है! यह ट्यूब लाइट अब जली!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इश्क ,मोहब्बत में कमी रह जाए तो ईंट ही तो पड़ती है सर पर

Abhishek Ojha said...

इश्क का मूल जानना सुखद रहा.

Asha Joglekar said...

बहुत दिनों बाद अब फिर से ब्लॉग पर आई और इच्छा से उपजे ईश्वर और इश्क से मुलाकात हो गई । हमेशा की तरह उम्दा पोस्ट ।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin