Monday, July 20, 2009

चसका चूसने और चखने का...

चू सना एक बहुत आम शब्द है और दिनभर में हमें कई बार इसके भाषायी और व्यावहारिक क्रियारूप देखने को मिलते है। कहने का तात्पर्य यह कि आए दिन चूसने की क्रिया देखने में भी आती है और सुनने-बोलने में भी। यही बात चखना शब्द के बारे में भी सही बैठती है। ये दोनो लफ्ज भारतीय ईरानी मूल के शब्द समूह का हिस्सा हैं और संस्कृत के अलावा फारसी , हिन्दी और उर्दू के साथ ज्यादातर भारतीय भाषाओं में बोले-समझे जाते हैं। चूसना शब्द बना है संस्कृत की चुष् या चूष् धातु से जिसका क्रम कुछ यूं रहा- चूष् > चूषणीयं > चूषणअं > चूसना। इस धातु का अर्थ है पीना, चूसना। चुष् से ही बना है चोष्यम् जिसके मायने भी चूसना ही होते हैं। मूलत: चूसने की क्रिया में रस प्रमुख है। अर्थात जिस चीज को चूसा जाता वह रसदार होती है। जाहिर है होठ और जीभ के सहयोग से उस वस्तु का सार ग्रहण करना ही चूसना हुआ।
ष् सके कई रूप हिन्दी में प्रचलित हैं मसलन चस्का या चसका। गौरतलब है कि किसी चीज का मजा लेने , उसे बार-बार करने की तीव्र इच्छा अथवा लत को भी चस्का ही कहते हैं और यह बना है चूसने अथवा स्वाद लेने की क्रिया से। बर्फ के गोले और चूसने वाली गोली के लिए आमतौर पर चुस्की शब्द प्रचलित है। बच्चों के मुंह में डाली जाने वाली शहद से भरी रबर की पोटली भी चुसनी कहलाती है। इसके अलावा चुसवाना, चुसाई, चुसाना जैसे शब्द रूप भी इससे बने हैं। इससे ही बना है चषक शब्द जिसका मतलब होता है प्याला, कप, मदिरा-पात्र, सुरा-पात्र अथवा गिलास। एक खास किस्म की शराब के तौर पर भी चषक का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा मधु अथवा शहद के लिए भी चषक शब्द है। इसी शब्द समूह का हिस्सा है चष् जिसका मतलब होता है खाना। हिन्दी में प्रचलित चखना इससे ही बना है जिसका अभिप्राय है स्वाद लेना। इसके अन्य अर्थों में है चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना अथवा मार डालना। अब इस अर्थ और क्रिया पर गौर करें तो इस लफ्ज के कुछ अन्य मायने भी साफ होते हैं और कुछ मुहावरे नजर आने लगते हैं जैसे कंजूस मक्खीचूस अथवा खून चूसना वगैरह। किसी का शोषण करना, उसे खोखला कर देना, जमा-पूंजी निचोड़ लेना जैसी बातें भी चूसने के अर्थ में आ जाती हैं। यही चुष् फारसी में भी अलग अलग रूपों में मौजूद है मसलन चोशीद: या चोशीदा अर्थात चूसा हुआ। इससे ही बना है चोशीदगी यानी चूसने का भाव और चोशीदनी यानी चूसने के योग्य। अगर चूसने पर आ जाएं तो सारे ही आम चूसे जा सकते हैं मगर आम की एक खास किस्म के चौसा नामकरण के पीछे क्या इसी शब्द की रिश्तेदारी है?

षक की बात चली है तो कप का जिक्र आना स्वाभाविक है। हिन्दी में चषक शब्द तो अब प्रयोग नहीं होता, इसकी जगह प्याला या कप शब्द ही सबसे ज्यादा प्रचलित हैं जो दोनों ही विदेशी भाषाओं से हिन्दी में दाखिल हुए हैं। कप अंग्रेजी से और प्याला फारसी से। ये अलग बात है कि दोनों ही शब्दों की रिश्तेदारी हिन्दी से है। कप जहां प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द है वहीं प्याला इंडो-ईरानी परिवार का है। प्राचीन भारतीय-यूरोपीय भाषा परिवार में एक धातु खोजी गई है क्यूप keup जिसमें खोखल, गहरा, पोला, छिद्र जैसे भाव हैं। इससे लैटिन में कपे cupa बना जिसका मतलब था चौड़े पेंदे वाला पात्र जैसे टब। इसका ही रूप बना cuppe जिसने बाद में अंग्रेजी में कप cup का रूप लिया जिसका मतलब होता है प्याला, चषक या छोटा पात्र। गौरतलब है कि इसी धातु का संबंध संस्कृत के कूपः से है। हिन्दी में कूप का मतलब होता है कूआँ, गहरा खड्डा, छिद्र, गर्त आदि। एक पात्र से किसी छोटे पात्र में तरल पदार्थ भरने के लिए आमतौर पर शंकु के आकार का एक उपकरण काम में लिया जाता है जिसका ऊपरी हिस्सा चौड़ा होता है और निचला हिस्सा संकरा। इसे कुप्पी कहते हैं। यह इसी कूप से बनी हैं। एक मुहावरा है फूल कर कुप्पा होना जिसका मतलब होता है सूजन आना, खुश होना या रुष्ट होना क्योंकि दोनों ही अवस्थाओं में मुँह फूल जाता है। पुराने ज़माने में कुप्पी या कुप्पा धातु से न बनकर चमड़े से बनाए जाते थे। ठीक उसी तरह जैसे पानी भरने की मशक बनती थी। कुप्पे में तरल भरते ही उसका फूलना नज़र आता था जबकि धातु की कुप्पी तो पहले से ही चौड़े पेट की होती है।

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9 कमेंट्स:

Himanshu Pandey said...

कप और कूप की रिश्तेदारी भी पता चली । आभार ।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हम तो फूल कर कुप्पा हो गए हैं कि हिन्दी ब्लॉगरी में इतना समर्थ विश्लेषक विद्यमान है। आभार ।

चूसते चूसते आप जिस तरह कूप में जा गिरे, उस पर तो हम बलिहारी हो गए। प्राचीन भारत में चूसने की कला इतनी विकसित हो चुकी थी कि भोजन का एक प्रकार समूह ही था 'चोष्य'- वह जिसका चूस कर 'भक्षण' किया जाय।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

ज्ञानवर्धन से मैं तो फूल कर कुप्पा हो गया

Arvind Mishra said...

और चुम्मा चाटी कहाँ गया ?इसकी व्युत्पत्ति चुसनी से मेल नहीं खाती क्या ?
इन दिनों तो हम आम्र -चूसन से ही संतोष कर रहे हैं !

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर शब्द यात्रा। इस के बाद चाटना, चट कर जाना का क्रम है।

Mansoor ali Hashmi said...

# ''आम'' को खासो ने ही चूसा है,
मशगला है ये उनका चस्का है.

# ''कूप'' पश्चिम जो जा के लौट आया,
पा के ''कप'' हम तो फूल कुप्पा है.

शब्दों का वाक्यों में ठीक प्रयोग किया मास्साब?

-म. हाशमी

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छा विश्लेषण है.

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी जानकारी.

RDS said...

वडनेरकर जी

मुझे अक्सर भ्रम होता है कि चूमना भी चूसने के चस्के से ही पैदा हुई चाह है । मनोवैज्ञानिक तौर पर, मनुष्य परम स्वार्थी और अहं वादी है । हर प्रिय सी लगने वाली वस्तु को अपनी झोली में डाल लेना चाहता है । इसी गरज़ से किसी मनोरम वस्तु या व्यक्ति को निगल जाने के अनजाने भाव से मुख मार्ग से निगलने का सद्_प्रयास (?) करता है । निगलने के स्थान पर चूसना और चूसने के बज़ाय चूमना इसी व्यवहार का नतीज़ा लगता है ।

इस अनुमान में कुछ सार भी है या यूं ही सिर्फ ख्याली जुगाली ?

- RDS

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