कतार शब्द हिन्दी में अरबी से आया है मगर मूलतः यह इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द है। यह शब्द भारोपीय और सेमिटिक भाषा परिवारो कें बीच संबंधों का भी उदाहरण है। मानव के विकासक्रम का असर भाषा पर भी नज़र आता है। पशुपालन संस्कृति से शुरुआत कर मनुष्य ने समूह में स्थायी निवास बनाया। कृषिकर्म और वाणिज्य-व्यवसाय का श्रीगणेश हुआ। फिर हुआ नागर संस्कृति का विकास। इस समूचे दौर में शब्द लगातार अपना चोला बदलते रहे। क़तार का मूल इंडो-यूरोपीय रूप प्रकृति के अवलोकन से उपजा ज्ञान है, वहीं जब यह सेमिटिक भाषा वृक्ष के लिए संस्कृत में द्रुम शब्द है। इसी मूल से उपजा है देवदारु । अंग्रेजी के ट्री की द्रुम से समानता पर गौर करें। |
परिवार में दाखिल हुआ तब यह पशुपालन-कृषि संस्कृति से जुड़ गया। हिन्दी के कतार शब्द का अरबी रूप क़तार या क़तारा है जिसमें बूंद, बिंदु, टपकना या गिरने का भाव है। गौर करें कि कोई रेखा या लकीर विभिन्न बिंदुओं का समुच्चय ही होती है। कई बिंदु जब एक ही दिशा में क्रमबद्ध रूप में बने हों तो उसे सरल रेखा कहा जाता है। इसी तरह कई वस्तुएं अवस्थित हों तो उस रचना या फार्मेशन को क़तार कहते हैं। इस रूप में क़तार की लोकप्रिय व्युत्पत्ति रेगिस्तान के जहाज ऊंट से जुड़ती है। रेगिस्तान में ऊंटो के पथ-संचलन को क़तार कहा जाता है। ऊंट एक समूह में रहनेवाला प्राणी है और दुर्गम इलाकों के अधिकांश पशुओं की तरह इसमें भी स्वतंत्र या बिखरे रहने की बजाय समूह मे रहने की वृत्ति होती है। ये एक के पीछे एक चलते हैं। इस रेगिस्तानी पशु के साहचर्य के बिना बेदुइन् यानी अरबी बद्दुओं का जीवन मुश्किल था। सभ्यता के पहले चरण में बद्दुओं को यही रेगिस्तानी देवदूत मार्गदर्शक के रूप में मिला। अरबों ने ऊंटों के बल पर दुनिया जीत ली। ऐसे में अगर एक क्षेत्र विशेष को अगर क़तर नाम ऊंटों के सामाजिक चरित्र [क़तार में चलना ] से मिल गया तो आश्चर्य क्या !! मगर बात इतनी आसान नहीं है। खाड़ी का एक प्रमुख देश है क़तर या क़तार जिसका नामकरण इसी शब्द मूल से हुआ है। सेमिटिक भाषा परिवार की दो धातुओं से इसकी रिश्तेदारी मानी जाती है Qutr या Qutra जिनका अर्थ है क्रमशः प्रदेश या प्रांत और बूंद, बिंदु। Qutr के भावार्थ पर गौर करते हुए ध्यान रखना होगा कि बिंदु-बिंदु से ही रेखा बनती है जो सीमांकन या दायरा बनाने के काम आती है। किसी क्षेत्र का सीमांकन रेखा खींच कर ही किया जाता है। इसी तरह Qutra का अर्थ तो एकदम स्पष्ट ही है। खाड़ी का एक छोटा सा मगर पेट्रो-डॉलर के बूते अमीर बना एक देश है क़तर या क़तार जो इसी मूल का शब्द है। क़तर की व्युत्पत्ति अभी तक जिन संदर्भों पर यहां चर्चा हो चुकी है उसके अलावा कत्रन qatran या कत्रुन qatrun से भी बताई जाती है। ये दोनों अरबी शब्द है जिनमें रेज़िन, राल, चिपचिपा द्रव, अवलेह जैसे भाव है। मूलतः राल एक वानस्पतिक उत्सर्जन को कहते हैं जो पौधों या वृक्षों के तनों से निकलता है। इसका एक रूप टार भी होता है जिसका अभिप्राय जीवाश्म तेल भी है। डामर के लिए प्रचलित कोलतार शब्द का रिश्ता इसी टार tar से है। कोलतार एक किस्म का रेज़िन या राल ही होता है। गौरतलब है कि qa-tar-an शब्द में tar भी छुपा हुआ है। क़तर दजला-फरात नदियों के उपजाऊ मुहाने पर बसा एक द्वीप है जहां खनिज तेल और गैस का अकूत भंडार है। प्राचीन काल में धरती से निकलनेवाले कच्चे तेल का औद्योगिक प्रयोग नहीं था। यह सिर्फ ओषधीय या दीया-बाती करने के काम आता था। टॉलेमी ने क़तर शब्द का प्रयोग अरब क्षेत्र के लिए किया था इससे स्पष्ट है कि खाड़ी के इस इलाके में टार की मौजूदगी की ख्याति सुदूर ग्रीस और रोम तक थी।
अब आते हैं कत्र, कुत्र, कुत्रन या क़तर आदि शब्दों की भारोपीय यानी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से रिश्तेदारी पर जिससे इसके तमाम अर्थों का रहस्य साफ हो जाएगा। संस्कृत में एक धातु है द्रु जिसमें वृक्ष का भाव है। मूलतः यह गतिवाचक धातु है। इससे बने द्रुत का मतलब है तीव्रगामी, फुर्तीला, आशु गामी आदि होता है। वृक्ष के अर्थ में द्रु धातु का अभिप्राय भी तीव्र गति से वृद्धि से ही है। गौरतलब है कि पहाड़ी वृक्षों के बढ़ने की रफ्तार मैदानी वृक्षों की तुलना में अधिक होती है क्योंकि इनकी गति ऊर्ध्वाधर होती है, ये पतले होते हैं जबकि मैदानी वृक्ष चौड़े तनेवाले और जटा-जूटधारी होते हैं। इससे ही बना है द्रुमः शब्द जिसका अर्थ भी पेड़ ही होता है और द्रुम के रूप में यह परिनिष्ठित हिन्दी में भी प्रचलित है। कल्पद्रुम शब्द साहित्यिक भाषा में कल्पवृक्ष के लिए प्रचिलत है। द्रु से ही बना है दारुकः शब्द जो एक प्रसिद्ध पहाड़ी वृक्ष है जिसका प्रचलित नाम देवदारु है। द्रु से ही बना है द्रव जिसका मतलब हुआ घोड़े की भांति भागना, पिघलना, तरल, चाल, वेग आदि। द्रु के तरल धारा वाले रूप में जब शत् शब्द जुड़ता है तो बनता है शतद्रु अर्थात् सौ धाराएं। पंजाब की प्रमुख नदी का सतलज नाम इसी शतद्रु का अपभ्रंश है। अंग्रेजी का ट्री और फारसी का दरख्त इसी मूल से जन्में हैं।
| | क़तर में राल या रेज़िन की अर्थवत्ता ने एक मुल्क को पहचान दिलाई |
स्पष्ट है कि द्रव शब्द के निर्माण में द्रुत गति महत्वपूर्ण है। गति अंततः वृद्धि का प्रतीक है। द्रुम शब्द में जब वृक्ष का भाव आया तो उससे टपकनेवाला जल या तरल पदार्थ जो गोंद, रेजिन, राल कुछ भी हो सकता था, उसके लिए भी द्रव शब्द का प्रयोग हुआ। यही द्रव भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में भी अलग रूपों में प्रचलित हुआ। गौर करें अंग्रेजी में वृक्ष के लिए ट्री शब्द है जो द्रु से ही आ रहा है। बूंद के अर्थ में ड़्रॉप शब्द का उद्गम भी यही है। अश्रुजल के लिए अंग्रेजी में टियर शब्द की रिश्तेदारी आसानी से इस मूल से जोड़ी जा सकती है। स्पष्ट है कि यहां जिस क़तार, क़तर की चर्चा पंक्ति, लकीर या रेखा के तौर पर की जा रही है वह भारोपीय मूल से ही जुड़ रहा है। आर्यों की घुमक्कड़ी इस शब्द में खूब नजर आ रही है। आर्यों के जो जत्थे पश्चिम की ओर गए उनके साथ द्रु, द्रुम जैसे शब्दों का रूपांतर ट्री, टियर, टार जैसे शब्दों में हुआ। रूसी में द्रेवो drevo का मतलब होता है पेड़। दक्षिण-पूर्वी यूरोप के दर्जनों शब्द हैं जो इस मूल से निकले हैं और जिनमें पानी, बहाव, गति, पेड़, बूंद, तरल आदि भाव समाए हैं जैसे जर्मन का थीर theer, लिथुआनी का darwa, derwa जैसे तमाम शब्दों में मूलतः राल वाले वृक्षों का ही भाव है। टार tar भी जर्मनिक के प्राचीनतम रूप ट्यूटानिक के terwo का ही रूपांतर है जिसका अर्थ है वृक्षद्रव। जाहिर है कि सेमिटिक शब्द क़-तारा में निहित टपकने, गिरने का भाव यहां स्पष्ट हो रहा है।
स्पष्ट है कि चिपचिपे द्रव या राल का यह भाव ही टार में समाहित रहा। इससे अरबी के कत्रन या कत्रुन जैसे शब्द बने जिसमें अभिप्राय था भूमि से निकलनेवाले चिपचिपे पदार्थ का। वृक्षों से बूंद बूंद टपकते द्वव में अरबी बद्दुओं को सरल रेखा नज़र आई जिसे उन्होने क़तारा कहा और तरल के अर्थ में, बूंद के अर्थ में भारोपीय द्रव, ड्रॉप जैसे शब्द अरबी का क़तरा बन गए। क़तरा–क़तरा यानी बूंद-बूंद। बूंद ही बिंदु है जिससे रेखा बनती है। यही है क़तार। बिंदु-बिंदु में व्याप्त अंश की अर्थवत्ता पर गौर करें तो मामला कतरनी तक पहुंचता है।
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18 कमेंट्स:
क्षमा चाहते हुए कहना चाहूँगा एक बार में कई शब्दों से परिचय न करवाइए क्योकि मोटी बुद्दि है मेरी समझने में समय लगता है . और हर शब्द समझना जरुरी है . क्योकि ऊंटों की कतार जब कोलतार पर चलती है तो धीमे ही चलती है
जानदार बगुलों की पंक्ति का उल्लेख नहीं आता है ?
आपने अरबी शब्द क़तार और क़तारा में बूँद , बिन्दू ,टपकना और गिरने का भाव है । मैं उम्मीद कर रहा था कि आगे - पीछे क़तरा भी आएगा ।
पोस्ट पढ़कर सुक़ून मिला । मेहरबानी ।
"स्पष्ट है कि चिपचिपे द्रव या राल का यह भाव ही टार में समाहित रहा। इससे अरबी के कत्रन या कत्रुन जैसे शब्द बने जिसमें अभिप्राय था भूमि से निकलनेवाले चिपचिपे पदार्थ का। वृक्षों से बूंद बूंद टपकते द्वव में अरबी बद्दुओं को सरल रेखा नज़र आई जिसे उन्होने क़तारा कहा और तरल के अर्थ में, बूंद के अर्थ में भारोपीय द्रव, ड्रॉप जैसे शब्द अरबी का क़तरा बन गए। क़तरा–क़तरा यानी बूंद-बूंद। बूंद ही बिंदु है जिससे रेखा बनती है। यही है क़तार। बिंदु में व्याप्तत अंश की अर्थवत्ता पर गौर करें तो मामला कतरनी तक पहुंचता है।"
सुन्दर विवेचना रही!
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
धीरे धीरे उतार रहे हैं ज्ञान मानस में..
बिंदु, उनकी कतार और रेखा। सारी दुनिया ही एक और एक की कतार से बनी है। इसी तरह इस शब्द-मूल का विस्तार बहुत है।
Bhai Ajit
Kabhee Kabhee Galat yaa kharaab bhee likhaa karen, par vo aap kabhee naheen karte! Aap kee Hindi kee ye sewa atyant mahatwapoorna aayojan hai. Hardik Badhai aur dhnyawad.....
@धीरुसिंह
भाई, आप सफर के नियमित और गंभीर साथी हैं, हिचक वाली कोई बात ही नहीं। कहना सिर्फ यही है कि यूं तो इस श्रंखला के सभी शब्दों को एक ही पोस्ट में होना था, पर हमने इसकी सीरीज़ बनाई। क़तार को भी अगर किस्तों में तोड़ते तो बात क़तरा-क़तरा तक न पहुंच पाती। इन सभी संदर्भों का एक कड़ी में आना ज़रूरी था। यूं मेरे लिए तो एक लम्बी पोस्ट लिखने की बजाय कई हिस्सों में तोड़ना ज्यादा सुविधाजनक होगा। पर शब्दों का सफर सिर्फ ब्लाग-कर्म नहीं है। ये मूलतः आलेख हैं जिन्हें उसी तरह लिखा जा रहा है जिस तरह ये पुस्तक में होंगे।
kataar ko tar-tar kar ke kholne ke liye saadhuwad.
आपके ब्लॉग से मेरा ज्ञान भंडार बढ़ रहा है......
इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए आपका आभारी हूँ......
आदरणीय अजित जी...... ज़रा मुझे MANDATORY की सही हिंदी बता दीजिये प्लीज़..... आपका बहुत आभारी रहूँगा......
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी.
रामराम.
@हेमन्त शेष
शुक्रिया हेमन्त जी। सचाई यही है कि मैं मुग़ालते में नहीं हूं अलबत्ता शब्दों का सफर के आप जैसे सुधि-सचेत साथियों की परवाह हमेशा रहती है। ग़लती वर्तनी में ज़रूर रह जाती है...जिसे कई बार दुरुस्त करता हूं::) व्याख्या-विवेचना में आपको अभी तक कोई ग़लती नज़र नहीं आई, ये मेरा सौभाग्य है। आपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी। बरसों हो गए आपसे मिले हुए। जयपुर, नवभारत टाइम्स में जब था, तब जवाहर कला केंद्र में आपसे मुलाकात हो जाती थी।
लकीर, कतार, कतरा, कोलतार, कत्रन, कतरनी तक ,थोडा वक्त लगा पर समझ गई । बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी, वाली बात आपकी पोस्ट में उतर आयी है । आभार ।
वाकई ये सफ़र किसी मोड़ पर बरसों पहले मिले को फिर मिलाता है.कतार वाली इस पोस्ट पर राजस्थान से परिचित मिल रहें है,लगता है ऊंटों की कतार इस भूगोल से भी जुड़ती है:)
क़तर के अमीर के अकेले के पैसे ने एक बड़े बैंक को बचा लिए पिछले साल. ये केस स्टडी कितनो को सुनाई अब क़तर नाम कहाँ से आया ये भी बता दिया करूँगा :)
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें
अब समझ में आया - कतरीना चक्रवात कितना कतर गया था सब को एक कतार में! :-)
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी.
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