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Sunday, October 18, 2009
सूत्रपात, रेशम और धागा [रेखा-5]
क तार या रेखा के लिए जितने भी शब्द हैं उनका संबंध या तो बिन्दु से है अथवा तन्तु से। ध्यान रहे निर्माण कार्य से लेकर गणनाओं तक बड़े पैमाने पर सीमांकन और रेखांकन का कार्य भूमि पर लकीर खींच कर नहीं किया जाता बल्कि इसके लिए रस्सी या डोर काम में लाई जाती है। सूत्र भी एक ऐसा ही शब्द है जिसमें रेशा, तन्तु या रेखा का भाव है। सूत यानी रूई से बुना हुआ धागा। इस धागे से बुने हुए कपड़े को सूती कपड़ा कहा जाता है। सूत शब्द बना है संस्कृत के सूत्र से जिसका मतलब होता है बांधना, कसना, लपेटना वगैरह। जाहिर है रूई अथवा रेशम को बटने की क्रिया में ये शामिल हैं। इससे बने सूत्रम् शब्द का अर्थ हुआ धागा, डोरा, रेशा, तंतु, यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ आदि। सूत्र का अर्थ रेखा भी होता है। एक सूत्र में पिरोना, पंक्तिबद्ध करना, एक प्रणाली अपनाना, ठीक पद्धति में रखना जैसे भाव इसमें निहित हैं। जनेऊ को ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। गौरतलब है कि संस्कृत के सूत्रम का अर्थ केवल कपास से बना रेशा नहीं है बल्कि रेशमी धागे को भी सूत ही कहा जाता है। हालांकि संस्कृत में कपास के लिए सूत्रपुष्पः शब्द भी है। सूत्र का एक अर्थ गुर, संक्षिप्त विधि अथवा तरीका भी है। मोटे धागे को हिन्दी में सुतली कहा जाता है। इसी तरह पिटाई या खिंचाई के अर्थ में मालवी में सूतना शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह इसी मूल से आ रहा है। कपास को बटने से सूत बनता है सो अंगों को मरोड़ने की क्रिया में प्रताड़ना स्पष्ट हो रही है। किसी की सुताई करना में उसकी प्रताड़ना या मरम्मत का भाव ही है।
सूत्र से ही बना है सूत्रधार। सामान्य तौर पर किसी घटना या कार्य का श्रीगणेश करने वाले को सूत्रधार कहते हैं। यूं सूत्रधार रंगमंच का वह प्रमुख व्यक्ति होता है जिसके हाथ में पर्दे की डोरी यानी सूत्र होता है और जब वह डोरी खींचता है तभी नाटक का श्रीगणेश होता है। यह सूत्रधार नाटक की प्रस्तावना में भी प्रमुख भूमिका अदा करता है। पुराणों में रंगमंच प्रबंधक के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा बढ़ई व दस्तकार को भी सूत्रधार कहते है। आज अपराध, राजनीति, कला या अन्य किसी भी क्षेत्र में शुरूआत करने वाले या अगुआ रहने वाले के लिए इस शब्द का प्रयोग हो जाता है। इसी तरह किसी कार्य के आरम्भ के लिए सूत्रपात शब्द भी है। सूत्र यानी डोरा और पात् यानी गिरना या गिराना। यानी डोरी गिराना। वैसे यह कर्म संस्कृति से जुड़ा शब्द है और निर्माण यानी भवन निर्माणकार्य में प्रयुक्त होता है। गौरतलब है कि पुराने ज़माने से आज तक भवन निर्माण अथवा भूमि की नाप-जोख के लिए एक किस्म के धागे या डोरी का प्रयोग ही होता रहा है। प्राचीनकाल में एक डोरी या धागा जिसके सिरे पर लकड़ी का गुटका बंधा होता था, ज़मीन की पैमाइश के काम आता था। निर्माण कार्य शुरू करने से पहले की नापजोख के लिए इस गुटके को हाथ से नीचे गिराया जाता था जिसके साथ डोरी भी ज़मीन पर गिरती थी, इस पैमाइश की इस क्रिया को ही सूत्रपात कहते थे । बाद में किसी भी बड़े काम की शुरूआत के लिए सूत्रपात शब्द चल पड़ा।
संस्कृत में ऋष या रिष् धातु का अर्थ है कुरेदना, खुरचना, जख्मी करना आदि। संस्कृत के ऋष् शब्द में कुरेदना, खंरोचना, काटना, छीलना आदि भाव समाहित हैं। ऋष् का अपभ्रंश रूप होता है रिख जिसका मतलब होता है पंक्ति। हिन्दी का रेखा इससे ही बना है। मराठी में रेखा को रेषा कहते हैं। प्राचीनकाल में अंकन का काम सबसे पहले पत्थर पर शुरू हुआ था। गौर करें अंग्रेजी के रो rowऔर रेखा की समानता पर। बसाहट के अर्थ में भी कतार, पंक्ति का भाव आता है। रो हाऊसिंग भी इसी तरह का प्रयोग है। या सरल रेखा के अर्थ में ही राह की पहचान होती है जिसका संबंध ऋ धातु से है। फारसी में रिश्ता तन्तु, सूत्र या धागा को कहते हैं जिसे रेखा के अर्थ में समझा जाता है और जिसका अर्थ विस्तार संबंध में होता है। संस्कृत, मराठी का रेषा और हिन्दी का रेशा एक ही धागे से बंधे हैं जिससे रेशम, रेशमी जैसे शब्द भी बने हैं। रेशम मूलतः एक नर्म, मुलायम और अत्यंत पतला तन्तु होता है जो एक कीट से मिलता है। रिश्ता भी एक धागा है जो दो लोगों में रिश्तेदारी अर्थात संबंध बनाता है। कुरेदने, खरोचने की क्रिया के जरिये ही प्राचीन मानव ने चिह्नांकन सीखा। यही रेखांकन है। रेखा, क्रम का विस्तार ही पदानुक्रम में आता है जिसके लिए अंग्रेजी में रैंक शब्द प्रचलित है और हिन्दी में भी यह आम बोलचाल में प्रचलित है। आर्डर व्यवस्था से जुड़ा शब्द है जिसमें आदेश और क्रम दोनों ही भाव हैं। यह इसी सिलसिले की कड़ी है। व्यवस्था तभी बनती है जब उसकी कोई प्रणाली हो। यही रीति कहलाती है जो ऋत् धातु से बनती है। ऋत् में भी क्रम निहित है।
डोरी या रस्सी के लिए हिन्दी में धागा शब्द बेहद लोकप्रिय है। धागा शब्द काफी पुराना है। रहीम भी रिश्तों की बाबत जब कहते हैं तो धागा शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं-रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न जुड़े, जुडे़ गांठ पड़ जाए।। धागा शब्द बना है संस्कृत के तन्तु से। कहीं कहीं इसे तागा भी कहा जाता है। दरअसल धागा शब्द तागा का बिगड़ा हुआ रूप है। यह बना है तन्तु+अग्र के मेल से पहले यह ताग्गअ हुआ , फिर तागा और अगले क्रम में धागा बन गया। सुई में पिरोने से पहले धागे के अग्र भाग को ही छेद में डाला जाता है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:59 AM
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11 कमेंट्स:
बहुत अच्छी लगी यह जानकारी.....
सादर,
महफूज़.
ज्ञानवर्धन के लिए आभार।
सुंदर आलेख। शब्दों का सूत्र बंधन!
बढिया जानकारी,बस ये सूत्रधार यानी गूरूघंटाल समझ मे नही आया।गुरुघंटाल तो चालू चीज़ को कहा जाता है।दीवाली की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ भाऊ।
बहुत अच्छा लगा कि एक ही शव्द के कितने रुप कितने प्रयोग, आप का धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये
अच्छा रहा यह जानना और एक सूत्र में पिरोना.
धागा और सुताई की व्याख्या बहुत जमीं।
नींद से सम्बन्धित 'सुताई' और पानी के स्रोत 'सोते' को भी स्थान दे दिए रहते।
आपके इस भागीरथ प्रयास पर नतमस्तक हूँ, श्रीमान...रोचक सफ़र ....
धागा तो लगभग किसी न किसी रूप मे रोज़ काम आने वाली चीज़ है आभार इस जानकारी के लिये
किसी भी बड़े काम की शुरूआत के लिए सूत्रपात शब्द चल पड़ा
आभार एक और अच्छे सफर के लिए
इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला
ष को ख क्यों कहा जाता है ? हमारे यहाँ भी पुराने लोग ख ही कहते है। भोजपुरी में तागा-धागा दोनों प्रचलित हैं। तागा अक्सर गाँव के या पुराने लोग कहते हैं।
शब्दों का सफर जैसी कुछ यात्रा 'शब्द-संस्कृति' की याद हमेशा दिलाती है, जो प्रकाशन विभाग से प्रकाशित है।
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