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Tuesday, May 11, 2010
नकदी, नकबजन और नक्कारा
लो गों की भाव-भंगिमाओं को हाव-भाव के साथ प्रस्तुत करने को नकल करना या नकल उतारना कहते हैं। ऐसा करनेवाला व्यक्ति नक़लची या नक्काल कहलाता है। नकलची में ची तुर्की-फारसी का प्रत्यय है और नक्काल में आल प्रत्यय हिन्दी का लगा है। कुछ बदले हुए अर्थों में इसे मसखरा भी कहते हैं। हिन्दी में ऐसा व्यक्ति भांड कहलाता है। भांड दरअसल एक सरकारी पद था अर्थात हास्याभिनय करनेवाला ऐसा कलाकार जिसका काम ही राजा और सदन का मनोरंजन करना था। इसे ही दरबारी विदूषक कहते थे। नक़ल शब्द अरबी मूल का है और सेमिटिक भाषा परिवार की धातु नक़्क n-q-q से इसकी रिश्तेदारी है। यह हैरान करनेवाली बात है कि हिन्दी और उसकी बोलियों में इस धातुमूल से निकले इतने शब्द रोजमर्रा की भाषा में प्रचलित है कि यह आभास ही नहीं होता कि उनका रिश्ता किसी अन्य भाषा परिवार से है।
नक़्क में कुछ करने, रचने का भाव है। इसके नक़्र, नक़्ल जैसे रूप भी नज़र आते हैं। भाषा के आविष्कार के बाद जिन मूलभूत ध्वनि-संकेतों का जन्म हुआ था उनमें क या क़ ऐसी ध्वनियां है जिनमें काटने-छांटने, आघात पहुंचाने का भाव था। गौरतलब है कि ईश्वर की रची इस दुनिया को निखारने-तराशने में मनुष्य को बहुत कुछ श्रम करना पड़ा है जिसके तहत काटना, पीटना, ठोकना, खोदना जैसी क्रियाएं शामिल हैं। इन्हीं क्रियाओं के लिए प्राचीनकाल से ही प्राय इंडो-यूरोपीय और सेमिटिक भाषा परिवारों में किसी न किसी रूप में क या क़ ध्वनियों का रिश्ता रहा है। इन्हीं भावों का विस्तार होता है निर्माण, संगीत, अनुकरण, चित्रण, अनुलेखन, उत्कीर्णन आदि क्रियाओ में जिनके जरिये मानव ने विकास की कई मंजिलें तय की हैं।
अरबी नक्क से जुड़ी नक्र धातु का मतलब होता है खोदना, पीटना, आघात करना आदि। गौरतलब है, इससे ही बना है नक्कारा शब्द जिसका मतलब होता है एक बड़ा ढोल जिसे बजा कर किसी के आगमन की सूचना या हर्षध्वनि की जाए। नक्कारा का ही देशी रूप नगाड़ा है। पुराने ज़माने में राजाओं की ड्योढ़ी के बाहर या मंदिरों में नक्कारखाना भी होता था। तब पहरों के हिसाब से लोगों को वक्त बताने या किसी विशिष्ट अवसरों की सूचना नगाड़ा बजा कर दी जाती थी। उर्दू-फारसी में एक शब्द होता है नक्क़ाद जो अरबी से आया है और इसी कड़ी का हिस्सा है जिसका अर्थ होता है टकसाल में खरे और खोटे सिक्कों की जांच करनेवाला। ध्यान रहे टकसाल वह जगह है जहां राज्य की मुद्रा यानी सिक्के ढाले जाते हैं। स्पष्ट है कि वहां ठुकाई-पिटाई-कटाई का काम होता है। नक्र में समाए पीटने का भाव ढोल पर डंडे की चोट से भी साफ हो रहा है। हिन्दी मे तत्काल या हाथोहाथ भुगतान के लिए आपको कितने प्रचलित शब्द याद आते हैं? जाहिर है सबसे पहले हमें नक़द शब्द याद आएगा और फिर हम कैश पेमेंट जैसा विकल्प बताने लगेंगे। यह नकद शब्द भी इसी मूल का है जिसका शुद्ध अरबी रूप नक्द है। हि्न्दी में इसका नगद रूप भी चलता है। नक़्द शब्द बना है N-q-d धातु से जिसमें छंटाई, बीनाई का भाव शामिल है। नक़दी यानी कैश रक़म जाहिर है हमारे हाथों में होगी तभी तो उसे गिना जाएगा। इस तरह गिन कर दी जाने वाली रक़म के बतौर नक्द में निहित छंटाई के भाव का अर्थविस्तार नगद राशि के रूप में हुआ। आज नक़द माल, नक़दी रकम जैसे मुहावरेदार प्रयोग हिन्दी में खूब होते हैं।
अब जहां नकद रकम यानी मालमत्ता होगा वहां तो निश्चित ही चोरी-लूट जैसी वारदात का भी अंदेसा बना रहता है। चोर एक शांतिप्रिय जीव है और उसे शोरगुल पसंद नहीं आता। जिस स्थान पर धन होता है, वह उस जगह पर सेंध लगाता है। सेंध यानी उस स्थान को धीरे धीरे, महीन अंदाज़ में खोदना। अरबी में इसे नक़ब कहते हैं जो इसी मूल से बना है। सेंधमार को नक़बज़न कहते हैं और सेंधमारी की वारदात को नक़बज़नी। नक़्द की तरह नकब का शुद्ध रूप भी नक़्ब है। अरबी में अगुआ को नक़ीब कहते हैं। पुराने ज़माने में शाही सवारी के सबसे आगे जो व्यक्ति आवाज़ लगाता चलता था उसे नक़ीब कहते थे। इसे चौबदार भी कहा जाता था। नक़ीब ही वह व्यक्ति होता था जो बादशाह के मुलाकातियों के नाम की हांक लगाता हुआ उन्हें बादशाह के सामने पेश करता था। [-जारी]
संबंधित कडियां-1.मसखरे की मसखरी सिर-माथे 2.भांडाफोड़, भड़ैती और भिनभिनाना
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5 कमेंट्स:
बहुत रोचक जानकारी प्रस्तुत की आपने.
क्क ध्वनि हड़काने में प्रयुक्त हो सकती है ।
सार्थक मेहनत कर रहे है भाई, आप. बधाई.हर बार रोचक जानकारी. मेरे- और दूसरों के भी-बड़े काम आ रही है. ज्ञान बढ़ रहा है.
पंजाब में नकलची को नकलिया कहा जाता है और यह पेशावर भी होते हैं, खास तौर पर विवाह शादिओं में यह अपनी कला दिखाते है. आम तौर पर मिरासी और भंड(भांड) जाति के लोग नकलें लगाते हैं. मिरासी जजमानों के कुर्सीनामे कविता में लिखा करते थे. कई लोगों का विचार है कि नक्लिये अनार्या थे और आर्या लोग इनको शूद्र कह कर अनादर करते थे. तभी से यह लोग उच्च जाति लोगों की नक़ल लगाकर उनका मखौल उड़ाते(भंडते) रहे हैं. पंजाबी में 'भंडणा' का मतलब निंदा करना, होता है.
एक भूला-बिसरा शे'र याद दिल दिया आज की पोस्ट ने:-
"जूए तनकीद तलब है मैरी शीरी सुखनी,
शक्ले 'फरहाद' में नक्काद नज़र आते है."
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