Thursday, May 20, 2010

अंदरखाने की बात और भितरघात

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बोलचाल में अंदरखाना शब्द का खूब प्रयोग होता है जिसका अर्थ है भीतरी कक्ष। हालांकि इस अर्थ में इसका इस्तेमाल नहीं होता बल्कि सिर्फ भीतरी या आंतरिक या अंदर की जैसे भाव ही अंदरखाना में निहित हैं। अंदरखाना में मुहावरे की अर्थवत्ता है जैसे अंदरखाने की बात। अंदर या अंदरखाना जैसे शब्द इंडो-ईरानी भाषा परिवार के हैं और हिन्दी में फारसी से आए हैं। इसी कड़ी का एक अन्य शब्द है अन्दरूनी जिसका इस्तेमाल हिन्दी में खूब होता है। इसका संक्षिप्त रूप अंदरूँ भी होता है। इसका अर्थ है भीतरी या आन्तरिक, मानसिक अथवा रूहानी। अन्दरखाने की बात या अन्दरूनी बात का भावार्थ एक ही है। इन तमाम शब्दों की रिश्तेदारी संस्कृत के अन्तः शब्द से है। संस्कृत में इससे ही अंतर जिसमें भीतरी का भाव है। अवेस्ता में भी इसका यही रूप है। इसका फारसी रूप अंदर हुआ।
गौर करें भीतर, भीतरी जैसे शब्दों पर जिनका जन्म भी इसी मूल से हुआ है। भीतर बना है संस्कृत के अभि+अंतर से बना है भ्यंतर जिससे भीतर बनने का क्रम कुछ यूं रहा-अभ्यंतर >अभंतर >भीतर। अभ्यंतर का मतलब होता है आन्तरिक, अंदर का, ढका हुआ क्षेत्र आदि। इसमें हृदय का भाव भी है। अन्तर्गत होना, किसी समूह या शरीर का एक हिस्सा होना भी इसकी अर्थवत्ता में निहित है। दीक्षित, परिचित, कुशल अथवा दक्ष के अर्थ में भी अभ्यन्तर का प्रयोफारसी के अंदरून का अर्थ भीतर, अंदर के साथ ही पेट भी होता है। पूर्वी बोली में भीतर का एक रूप भितर भी होता है। भितरिया का मतलब हुआ अंतरंग या जिसकी खूब पैठ हो। वल्लभ सम्प्रदाय में मंदिरों के अंदर ही निवास करनेवाले पुजारी को भितरिया कहा जाता है। षड्यंत्र या धोखे का शिकार होने के लिए भितरघात शब्द भी इसी शृंखला में आता है। यह बना है। भीतर की बात का अर्थ जहां ढकी-छुपी, गोपनीय बात होता है वहीं इसका एक अर्थ दिल की बात या inner हृदय की बात भी होता है। भीतर की आवाज में यह भाव और भी उजागर है। बाहर भीतर एक समाना जैसी उक्ति में पारदर्शिता का भाव है यानी ऐसा व्यक्ति जो दिल का साफ है। अंतर से बने अंदर में भी मुहावरेदार अर्थवत्ता है। अंदर की बात यानी गुप्त तथ्य या चोरी-छिपे का भाव है वहीं अंदर होना या अंदर करना में हवालात में बंद करने का भाव है।
कुश्ती में अक्सर पैंतरा शब्द का प्रयोग होता है। कुश्ती या पटेबाजी में प्रतिद्वन्द्वी को  पछाड़ने के लिए सावधानी के साथ घूम घूम कर अपनी स्थिति और मुद्रा बदलना ही पैंतरा कहलाता है। पहलवान जब कोई नया दांव आजमाता है तो वह अपने खड़े होने की स्थिति में बदलाव लाता है। उसकी यही शारीरिक हरकत पैंतरा कहलाती है। पैंतरा बना है पाद + अंतर + कः से जिससे पैंतरा बनने का क्रम कुछ यूं रहा – पादान्तर >पायांतर >पांतरा >पैंतरा। आमतौर पर तलवारबाजी या कुश्ती में योद्धा या पहलवान अपनी अपनी स्थितियां बदलते हैं, जिसे चाल कहते हैं। गौर करें चाल बना है चलने से जिसका रिश्ता भी पैर से ही है। पैंतरा और चाल एक ही है। इसका अभिप्राय चतुराईपूर्ण ऐसा कदम उठाना है जिससे प्रतिद्वन्द्वी को हराया जा सके। पैंतरा बदलना, पैंतरा दिखना जैसे मुहावरे इसी मूल से निकले हैं। चालबाजी, धोखेबाजी या झांसा देने के संदर्भ में पैंतरेबाजी मुहावरे का भी हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है। पैंतरा भांपना यानी प्रतिपक्षी की चाल का पता चलना होता है। –जारी

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9 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

खाना गया और बात सिर्फ अंदर की बात रह गई।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आज अपने अन्दरखाने की बात भी बाहर उजागर कर दी .लेकिन यह हमारे फ़ायदे की है और कोई भीतरघात भी नही

Udan Tashtari said...

अन्दरखाने की बात..यही सही आज!!

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर अंदर की बात! जय हो!

प्रवीण पाण्डेय said...

अभ्यंतर अब जगत को प्रस्तुत है ।

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बढ़िया जानकारी

उम्मतें said...

अगली कड़ी का इंतजार !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अन्दरखाने की पैंतरेबाज पोस्ट...
हें हें हें भाऊ, कोशिश कर रहे थे, आप के शीर्षकों जैसा टिपियाने की।

Baljit Basi said...

फिर तो 'भेत' भी इतनी दूर नहीं रहना चाहए?

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