Sunday, May 23, 2010

अजगर करे न चाकरी…

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जगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।  इस दोहे में अजगर निरीह जंतुओं को भकोसने की वजह से नहीं बल्कि अपने निकम्मेपन की वजह से बदनाम हो रहा है। सर्प प्रजाति के इस विशालकाय जंतु का अजगर नाम हिन्दी में खूब लोकप्रिय है। मलूकदास ने चाहे अजगर के काम धाम न करने के दुर्गुण को नसीहत देने का जरिया बनाया हो मगर अजगर का यह नाम उसे भकोसने की खासियत के चलते ही मिला है। हालांकि बोलचाल में अजगर वृत्ति ( सब कुछ हड़पना ) और अजगर की तरह पसरना ( दबंगई और निकम्मापन ) जैसे मुहावरे भी प्रचलित हैं। अजगर संस्कृत का शब्द है और यह बना है अज + गरः से। वैदिक शब्दावली में भी इसका उल्लेख है।

संस्कृत में अज का अर्थ है जो जन्मा न हो। यह अ + ज से मिलकर बना है। संस्कृत की धातु में जन्म, जीवन, जीव आदि का भाव है। संस्कृत हिन्दी के उपसर्ग में नकार या निषेध का भाव है सो अज का अर्थ अजन्मा के अर्थ में अज का निहितार्थ स्पष्ट है। ईश्वर को अज कहा जाता है क्यों कि वे अनादि-अनंत हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश को अज कहा जाता है। इस कड़ी में कामदेव भी आते हैं। चन्द्रमा को चूंकि काम का प्रतीक माना जाता है इसलिए चांद का एक नाम अज भी है। हिन्दू मान्यताओं में आत्मा अनश्वर होती है अतः जीव, आत्मा को भी अज कहते हैं। कालांतर में अज या अजा में जीव का स्थूल भाव प्रमुख होकर इसके मायने बकरा, बकरी, मेढ़ा, मेढ़ी आदि हुए। अनुमान लगाया जा सकता है कि दार्शनिक धरातल से उठे इस शब्द की अभिव्यक्ति कालांतर में कर्मकाण्डों अर्थात दान और बलि जैसी प्रथाओं के विकसित होने से बकरे या मेढ़े के अर्थ मे सीमित हुई होगी। डॉ राजबली पाण्डेय के हिन्दू  धर्मकोश के अनुसार यह नाम अथर्ववेद में अश्वमेध यज्ञ के संदर्भ में दी गई पशुओं की तालिका में आता है। यह भी उल्लेख है कि अथर्ववेद में शवक्रिया के अंतर्गत अ के महत्व की बात कही गई है और उसे प्रेत का मार्गदर्शक माना गया है। यह दान या बलि की सामग्री तभी बन चुका होगा।
snर्प परिवार के एक विशालकाय जीव को अजगर नाम तभी मिला होगा जब इसमें निहित अज में बकरा या मेढ़े का भाव समा चुका था। अजगर का गर बना है गृ धातु से जिसमें गीला करने या तर करने का भाव है। गृ से बने गर का अर्थ हुआ निगलना, पीना, ओषधि, गटकना आदि। गौर करें कुछ निगलने के लिए जिव्हा उसे तर या गीला जरूर करती है। यूं भी सीधे निगले जाने वाले पदार्थ रसीले होते हैं। दवाइयां भी निगली जाती हैं क्योंकि उनके सेवन का उद्धेश्य जायका लेना नहीं होता। सो अज यानी बकरा या मेढ़ा और गर यानी निगलना, भकोसना से मिलकर बने अजगर का जो अर्थ निकलता है उसकी कल्पना सृरीसृप परिवार के विशालकाय अजगर के रूप में की जा सकती है जो देखते ही देखते भेढ़, बकरी को निगलने के लिए कुख्यात था और आज भी है। दबंगई के साथ बहुत कुछ हड़पने के बाद एक किस्म की निष्क्रियता आनी स्वाभाविक है। हालांकि अजगरी निष्क्रियता में दानिशमंदों को बेवकूफी भी नजर आती है जिसके चलते कई अजगर अपने सुखोपभोग से ही नहीं, जान से भी जाते रहे हैं। इतिहास गवाह है। [कुछ अन्य दिलचस्प रिश्तेदारियां अगली कड़ी में ]
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10 कमेंट्स:

Satish Chandra Satyarthi said...

वाह! बड़ी लिंग्विस्टिकल पोस्ट......

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!

Arvind Mishra said...

लाजवाब ! एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू छूट गया है जिसका सम्बन्ध दार्शनिकता या यूं कहें कि जीवन जीने के दर्शन से है -दास मलूक सनातन चिंतन की उस धारा को इंगित कर रहे हैं जो भाग्यवाद को प्रश्रय देती है कर्मवाद को नहीं ....होयिहैं वही जो राम रचि राखा ......गीता के अवतरण ने इन विचारों पर लगाम तो लगाई लेकिन कर्ता के करने के दंभ को उसने भी यह कहकर नकार दिया कि तुम केवल निमित्त मात्र हो ....भारतीय मनीषा की ये दोनों चिंतन धाराएं -कर्मवाद और भाग्यवाद आज भी बराबरी से सीना चौड़ा किये लोकमानस को अनुप्राणित किये हुए हैं ...मैं कभी इस चर्चा को समग्रता में इस ब्लॉग पर देखने का आकांक्षी हूँ !

दिनेशराय द्विवेदी said...

अजगरी निष्क्रीयता उस की दैहिक विवशता है।

वाणी गीत said...

दबंगई के साथ बहुत कुछ हड़पने के बाद एक किस्म की निष्क्रियता आनी स्वाभाविक है। हालांकि अजगरी निष्क्रियता में दानिशमंदों को बेवकूफी भी नजर आती है जिसके चलते कई अजगर अपने सुखोपभोग से ही नहीं, जान से भी जाते रहे हैं....
अजगर का सन्दर्भ देते हुए दार्शनिक चिंतन ....अगली रिश्तेदारियों को जानने की उत्सुकता हो गयी है ..!!

ZEAL said...

dunno why after reading the post, a thought flashed in my mind.

"ajgar kare na..." suits well on 50 % govt. employees

Mansoor ali Hashmi said...

चाकरी कर रहे है अब अजगर,
छोड़ देते है अब, सिर्फ डसकर,
'तहलका' का शिकार है वे भी,
अब हड़पते नहीं है वो खुलकर.

-मंसूर अली हाश्मी

अजित वडनेरकर said...

@अरविंद मिश्र
सार रूप में आपने जितने सुंदर ढंग से दोनों चिंतन धाराओं का मूलार्थ संदर्भ समेत समझा दिया, अब और क्या समग्रता से उल्ले!!! अब मुझे यही करना है कि इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करूं और अगले संशोधन के वक्त इसे पोस्ट में सजा दूं....:)
बहुत आभार....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत शानदार विश्लेषण, और क्या?

टिप्पणियाँ चेंपने के मामले में अजगरी आलस्य का शिकार हो गया हूँ। :)

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मै अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम से ही प्रेरित हूँ . दबंगई और निक्कमापन भी हावी है .

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