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Wednesday, June 30, 2010
छाई पच्छिम की बदरिया…[मेघ-1]
बा रिश हो या न हो, तेज धूप में बादल का एक टुकड़ा सूरज की तपिश से राहत दिलाने को काफी है। बादल एक परदा है सूरज और धरती के बीच। नन्हें जलकणों का वितान हैं मेघ यानी बादल। हिन्दी का बादल शब्द संस्कृत के वारिद का रूपांतर है। यहां वर्ण विपर्यय भी भी हुआ है। व की जगह ब ने ली और द के स्थान पर र आया। संस्कृत में वार् का अर्थ होता है पानी, जल। वारि बना है वृ से जो अनेकार्थक धातु है। इसमें व्याप्ति, विस्तार और आवृत्ति का भाव है। आवृत्ति में वृ शब्द में निहित दोहराव, व्याप्ति, चक्रगति के भाव शामिल हैं।जल से जुड़ी प्राकृतिक स्थितियों में ये अर्थ स्पष्ट हैं। जल सब तरफ व्याप्त है। आर्यभाषा बोलनेवाले भाषाई समूह उस क्षेत्र के निवासी थे जहां भरपूर पानी था। आर्यजन समुद्र से लेकर हिमक्षेत्र तक पसरे हुए थे इसीलिए समुद्र के लिए भी इसी मूल से उपजा वारिधिः शब्द मिलता है। विकासक्रम में उन्हें जल की जीवनतत्व से रिश्तेदारी भी ज्ञात हुई। जल की विभिन्न अवस्थाओं में आवृत्ति का भाव है। वर्षा में भी यही वार् या आवृत्ति झलक रही है। गरमी से जल का वाष्प बनना और फिर बारिश की बूंदों में पृथ्वी पर लौटना एक आवृत्ति या चक्र का पूरा होना ही है।
बादल का मूलार्थ समझने के लिए वारिद का अन्वय जरूरी है। वारि + द =वारिद। वारि यानी जल। संस्कृत की द धातु में देने का भाव है। यह प्राचीन भारोपीय भाषा की लोकप्रिय ध्वनि है और इससे कई शब्द बने हैं जैसे संस्कृत हिन्दी का दानम्, दान, अंग्रेजी का डोनेशन आदि। सो वारि में द जुड़ने से अर्थ निकला जल प्रदान करनेवाला। स्पष्ट है वारिद का निहितार्थ बादल से है। पृथ्वी के समस्त जलस्रोतों से उठी वाष्प जब आकाश में जलकणों के रूप में घनीभूत होती है तब वारिद कहलाती है। यही जलकण जब अनुकूल समय पर गिरते हैं तो बारिश कहलाते हैं। बारिश शब्द वर्षा से व्युत्पन्न है। बरसात भी वर्षात का देशज रूप है। बरखा शब्द यहीं से आ रहा है और बरसना भी इसी मूल का है। साल के अर्थ में वर्ष शब्द की इसी वर्षा से रिश्तेदारी है क्योंकि प्राचीनकाल में काल गणना में मनुष्य का ऋतुबोध ही सहायक हुआ। एक वर्षा से दूसरे वर्षाकाल तक का समय ही सभी ऋतुचक्रों के पूर्ण होने का द्योतक था। सभी ऋतुओं का गुजर चुकना ही एक वर्ष पूरा होने का प्रमाण है। इस तरह वर्ष बना वर्षा से। मगर बात वारिद की हो रही है। वारिद का रूपांतर बादर हुआ जिससे बादल बना। बदरिया, बदरी, बदली, बदरा जैसे इसके अन्य लोकप्रिय रूप हैं जो हिन्दी की कई बोलियों में हैं जिनमें लोकसंस्कृति की महक रचीबसी है। इनका प्रयोग बोलचाल और लोकसाहित्य में खूब होता है।
इसी कड़ी में आता है वरुण जो वार् से ही बना है। वरुण को पुराणों में जल का देवता माना गया है। इसे पश्चिम दिशा से संबंधित या पश्चिम का देवता भी कहा जाता है। गौर करें भारत में मानसून लानेवाली पछुआ हवाएं हैं। यूं पूर्वी हवाएं भी बरसनेवाले बादलों को आर्यावर्त में धकेलती थीं पर बादलों की राह पश्चिम की ओर ही ताकी जाती थी। जाहिर है पछुआ हवाएं उधर से ही आती हैं। पछुआ शब्द पश्चिम का ही देशज रूप है। पश्चिम से पच्छिम, पच्छिअ फिर पछुआ। वरुण से ही बना वारुणि जिसका अर्थ ही पश्चिम दिशा है। भाव स्पष्ट है जल की दिशा। जहां पानी है। भारत के पड़ोस में, पूर्व में स्थित एक द्वीपराष्ट्र ब्रुनेई का नाम भी इसी वरुण से जुड़ा है जो किसी ज़माने में मलेशिया का हिस्सा था जहां प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति का प्रसार प्रचार होता रहा है। मलेशियाई भाषा में वरूण ने बरूनाह का रूप अपना लिया जिसका अर्थ निकलता है बसने लायक जगह। करीब एक हजार साल पहले जब मलेशियाई यहां बसने आए तो यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से प्रभावित होकर उन्होने इस जगह को यही नाम दिया। तेरहवीं सदी तक यहां हिन्दू धर्म था। चौदहवी सदी में यहां राजा ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और पंद्रहवीं सदी में यहां के दूसरे सुल्तान ने अपने देश का नया नाम बरूनाह की जगह रखा ब्रुनेई। इस तरह हिन्दी का वरुण हो गया ब्रुनेई।
आदिवासी गोंड समाज में बादल को बिदरी कहा जाता है। आदिवासी समाज में बिदरी पूजा एक प्रमुख अनुष्ठान है जो कृषि संस्कृति का एक अनिवार्य अंग है। बिदरी पूजा दरअसल वर्षा के अधिष्ठाता इन्द्रदेव को प्रसन्न करने का अनुष्ठान है जो जेठ या आषाढ़ में के महीने में पहली बारिश होने के बाद सोमवार या गुरुवार को किया जाता है। भूमिपुत्र बैगा इसके अधिकारी हैं। डॉ त्रिलोचन पाण्डेय के गोंडी-हिन्दी शब्दकोश के मुताबिक गोंडी सयाने अर्थात झाड़फूंक करनेवाले को बैगा कहते हैं। मेरे विचार में यह शब्द भी आर्य भाषा परिवार से गोंडी बोली में गया होगा। मूल रूप में यह शब्द है विज्ञ अर्थात् विद्वान, बुद्धिमान, चतुर, चालाक, जिसका रूपांतर विज्ञ > बिग्य > बिग्ग > बैगा के क्रम में हुआ। आदिवासी गोंड समाज में बैगा का बहुत मान सम्मान है। बैगा शब्द झाड़फूंक करनेवाले के अर्थ में रूढ़ हो गया मगर मूल रूप में समाज के सर्वाधिक अक्लमंद, बुद्धिमान और विचारवान व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता रहा होगा। कालांतर में आदिवासी समाज के कर्मकांड करानेवाले के लिए बैगा शब्द प्रयोग हुआ क्योंकि साधारण व्यक्ति को रीति-संस्कारों की जानकारी नहीं होती इसीलिए पुरोहित का सम्मान होता है। आदिवासियों में एक जाति का नाम ही बैगा है जो मूलतः पुरोहित ही होते हैं। बिदरी पूजा भी बैगा ही कराते हैं क्योंकि वे पुरोहित हैं और मेघनाथ को प्रसन्न करने की विधि सिर्फ वे ही जानते हैं। इस पूजा में मूर्गे की बलि प्रमुख है। खास बात यह कि आदिवासी अंचल में अच्छी फसल के लिए बिदरी पूजा बहुत जरूरी है और यह सिर्फ बैगा ही सम्पन्न कराता है इसलिए हर आबादी में एक बैगा को अनिवार्य रूप से बसाया ही जाता है।
संबंधित कड़ियां-1.नववर्ष-1 / बारिश में स्वयंवर और बैल2.नववर्ष-2 / साल-दर-साल, बारम्बार
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9 कमेंट्स:
आपकी हिन्दी सेवा और ग्यान को सलाम हओ। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
आज बरसे शब्दों के बादल
बहुत देखे थे बादल। आज परिचय हुआ।
सामयिक विवेचना । आज अर्थ जान वारिद निहारेंगे ।
वारिद और बरसात का रिश्ता तो ज्ञात था,पर विज्ञ से बैगा...ज्ञानवर्धन हुआ....
बहुत बहुत आभार...
वृ से वरुण का अच्छा रिश्ता निकला!
अति सुन्दर।
वारुणि का एक अर्थ शराब भी है। इस अर्थ पर भी प्रकाश डालिए न।
ज्ञानपरक आलेख !
अज आयी हूँ कल नही पढ पाई। बहुत ग्यानवर्द्धक है। धन्यवाद।
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