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Friday, July 9, 2010
दण्डीस्वामी, देहयष्टि और लाठीचार्ज
डं डे की महिमा सब जानते हैं। इससे बने मुहावरे डंडा परेड से सभी परिचित हैं। डंडा यानी बांस या लकड़ी का लंबा टुकड़ा, छड़ी या सोंटा। डण्डे का एक नाम सोंटा है तो दूसरा लाठी। यह लफ्ज बना है संस्कृत के दण्ड: से जिसकी उत्पत्ति दण्ड् धातु से हुई है। दण्ड् का मतलब है सज़ा देना। बाद में सजा देने वाले उपकरण यानी छड़ी के लिए ही दण्ड शब्द प्रचलित हो गया जिसने डंडे का रूप ले लिया। यह डंड या दंड शब्द सजा और जुर्माने के लिए भी प्रयुक्त होता है तथा भुजदंड भी एक प्रयोग है। प्रणाम के अर्थ में भी 'दंडवत' शब्द का प्रयोग होता है। गौरतलब है कि प्राचीनकाल से ही तिलक साफा-पगड़ी और दण्ड यानी छड़ी वगैरह समाज के प्रभावशाली लोगों का पसंदीदा प्रतीक चिह्न थे। राजा के हाथ में हमेशा दण्ड रहता था जो उसके न्याय करने और सजा देने के अधिकारी होने का प्रतीक था। आज भी जिलों व तहसीलों के प्रशासकों के लिए दंड़ाधिकारी शब्द चलता है। पौराणिक ग्रंथों में यम, शिव और विष्णु का यह भी एक नाम है। डंडे से बना डंड बैठक शब्द व्यायाम के अर्थ में प्रयुक्त होता है उसी तरह उत्साह, खुशी आदि के प्रदर्शन के लिए बांसों उछलना या बल्लियों उछलना जैसे मुहावरा भी आम है। इसी तरह मेहनत करने के संदर्भ में डंड पेलना भी मुहावरा है।
प्रणाम अथवा अभिवादन करने का एक तरीका है दण्डवत नमस्कार। यह भूमि के समानान्तर सरल रेखा में लेट कर किया जाता है। दण्डवत अथात डंडे के समान। जिस तरह डंडा भूमि पर पड़ा रहता है , आराध्य के सामने अपने शरीर की वैसी ही मुद्रा बनाकर नमन करने को ही दण्डवत कहा जाता है। इस मुद्रा का एक अन्य नाम साष्टांग नमस्कार भी है। गौरतलब है कि दण्डवत मुद्रा में शरीर के आठों अंग आराध्य अथवा गुरू के सम्मान में भूमि को स्पर्श करते हैं ये हैं-छाती, मस्तक, नेत्र,मन , वचन,पैर, जंघा और हाथ। इसी मुद्रा को साष्टांग प्रणिपात कहा जाता है जिसके तहत मन और वचन के अलावा सभी अंगों का स्पर्श भूमि से होता है। मन से आराध्य का स्मरण किया जाता है और मुंह नमस्कार या प्रणाम शब्द का उच्चार किया जाता है। दंड धारण करने वाले सन्यासी को दंडीस्वामी कहा जाता है। दंड धारण करने की परंपरा प्रायः दशनामी सन्यासियों में प्रचलित है। शंकराचार्य परंपरा के ध्वजवाहक मठाधीश भी दंडधारण करते है। प्राचीन धर्मशास्त्र मे दंड का महत्व इतना अधिक था कि मनुस्मृति में तो दंड को देवता के रूप में बताया गया है। एक श्लोक है- दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति। दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः।। ( दंड ही शासन करता है। दंड ही रक्षा करता है। जब सब सोते रहते हैं तो दंड ही जागता है। बुद्धिमानों ने दंड को ही धर्म कहा है।) राजनीतिशास्त्र का ही दूसरा नाम दंडनीति भी है। पुराणों में उल्लेख है कि अराजकतापूर्ण काल मे ही देवताओं के आग्रह पर ब्रह्मा ने एक लाख अध्यायों वाला दंडनीति शास्त्र रच डाला था।
दंड और डंडे की तरह ही लाठी शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है लाठी का मतलब है बांस की लंबी लकड़ी जो चलने के लिए सहारे का काम करे या हथियार के रूप में काम आए। मुहावरा भी है कि बुढ़ापे की लाठी होना। गौर करें की दण्ड का निर्माण प्राचीनकाल से आज तक ज्यादातर बांस से ही किया जाता रहा है। साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे मुहावरा भी खूब मशहूर है। यही लाठी शब्द बना है संस्कृत के यष्टिः या यष्टी से जिसका मतलब होता है झंडे का डंडा, सोटा, गदा, शाखा या टहनी आदि। इससे बने यष्टिका का प्राकृत रूप हुआ लट्ठिआ जो लाठी में बदल गया । लाठी के यष्टि रूप से बना एक शब्द हम खूब परिचित हैं वह है देहयष्टि। य वर्ण के ल में तब्दील होने का यह विरल उदाहरण है। कदकाठी के अर्थ में देहयष्टि शब्द प्रयोग में भी लाया जाता है। संस्कृत मूल से जन्मे लाठी शब्द से अंग्रेजी राज में एक नया शब्द जन्मा लाठीचार्ज। यह आज भी पुलिसिया जुल्म के तौर पर ही जब-तब सामने आता है। यष्टि बना है यज् धातु से जिसमें पूजा, आहुति, सुभाषित, सम्मान या आदर प्रकट करना जैसे भाव हैं। यष्ट यानी पूजा या हवन करानेवाला ब्राह्मण। गौरतलब है कि यज्ञ में पवित्र वनस्पतियों की सूखी टहनियां अग्नि को समर्पित की जाती हैं। संभव है हवि सामग्री के तौर पर यज् से यष्टि का निर्माण हुआ हो।
देसी बोलियों और फिल्मी गीतों संवादों में बम्बू का प्रयोग साबित करता हैं कि बांस का यह अंग्रेजी विकल्प भी हिन्दी का घरबारी बन चुका है। दरअसल कुछ लोग बैम्बू का रिश्ता वंश से ही जोड़ते हैं। यह शब्द अंग्रेजी में आया डच भाषा के bamboe से जहां इसकी आमद पुर्तगाली जबान के mambu से हुई। पुर्तगाली ज़बान में यह मलय या दक्षिण भारत की किसी बोली से शामिल हुआ होगा। वंश की मूल धातु पर गौर करें तो यह पहेली कुछ सुलझती नज़र आती है। वंश का धातु मूल है वम् जिसके मायने हैं बाहर निकालना, वमन करना, बाहर भेजना , उडेलना, उत्सर्जन करना आदि। इससे ही बना है वंश जिसके कुलवृद्धि के भावार्थ में उक्त तमाम अर्थों की व्याख्या सहज ही खोजी जा सकती है। इस वम् की मलय भाषा के मैम्बू से समानता काबिलेगौर है। इसी तरह सोंटा शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है जिसका अर्थ है मोटा डंडा। लाठी, डंडी, डंडा आदि पतले भी हो सकते हैं पर सोंटा वही दण्ड हो सकता है जिसकी मोटाई असामान्य हो। यह बना है शुण्ड से जिसका अर्थ है हाथी की सूण्ड। हिन्दी का सूंड शब्द इसी शुण्ड का रूपांतर है। शुण्ड> शुण्डअ> सुंडओ> सोंटा के क्रम में सोंटा का विकास हुआ होगा। सूंड के आकार की कल्पना करें तो लाठी के सोंटा रूप के लिए इससे बेहतर शब्द और क्या होता।
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10 कमेंट्स:
जानकारी का आभार .. सोंटा हमारे यहां लचीले डंडे को कहा जाता है !!
डंडे से ही बना है दण्ड। जिस का एक अर्थ सजा भी है।
ये भी अच्छी जानकारी है। धन्यवाद।
बढ़िया जानकारी। आभार।
घुघूती बासूती
डंडा/दंड
=======
चल जाए तो होश उड़ा देता,
'लाठी' बन आसरा ये देता,
शासन,रक्षा भी ये करता,
सोते सब तब भी ये जगता,
बैठक भी ये लगवा देता,
सांपो से निपट के बच रहता.
'डंडे' की महिमा न्यारी है,
''दंडा-स्वामी'' से यारी है.
"[जिसकी लाठी उसी की...]"
डंडी
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'डंडी' तो 'मारी' जाती है,
'पंसारी' को खूबही भाती है,
कम तौलके मौल भी कम लेना,
शोहरत 'डंडी' दिलवाती है.
दण्ड की महिमा अपरम्पार ।
दण्डीस्वामी शब्द का पहला प्रयोग बचपन में सत्यनारायण की कथा में सुना था । दंड देना अर्थात सज़ा देना भी सम्भवत: दंड से ही उपजा होगा ।
बहुत अच्छी जानकारी.वैसे आजकल डंडे का उपयोग झंडे लगाने के लिये भी हो रहा है.
आपके द्वारा जो नित्य जानकारी प्राप्त होती उसके लिये दंडवत प्रणाम
अद्भुत!
हाथी की सूँड़ से सोटा रोचक जानकारी है ।
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