Friday, July 23, 2010

गाता जाए बंजारा…

banjara-musician

यायावरी, डगर-डगर घूमना, आवारगी आदि भावों को प्रकट करने के लिए हिन्दी-उर्दू में बंजारा शब्द है। इसकी रिश्तेदारी भी पण् से है। प्राचीनकाल में व्यापार व्यवसाय के लिए पण् शब्द का चलन था। पण् का मतलब था। लेन-देन, क्रय-विक्रय, मोल लेना, सौदा करना, आदि। शर्त लगाना जैसे भाव भी इसमें शामिल थे। इसी से बना एक अन्य शब्द पणः जिसका मतलब हुआ पांसों दांव लगाकर या शर्त लगाकर जुआ खेलना। चूंकि व्यापार व्यवसाय में शर्त, संविदा अथवा वादा बहुत आम बात है इसलिए इस शब्द में ये तमाम अर्थ भी शामिल हो गए। पण् से ही पणः नाम की एक मुद्रा भी चली जो अस्सी कौड़ियों के मूल्य का सिक्का था। इसी वजह से धनदौलत या संपत्ति के अर्थ में भी यह शब्द चल पड़ा। मकान, मंडी, दुकान या पेठ जैसे अर्थ भी इसमें शामिल हो गए। पण्य शब्द का एक अर्थ वस्तु, सौदा या शर्त के बदले दी जाने वाली वस्तु भी हुआ। इससे बना पण्य जिसका मतलब हुआ बिकाऊ या बेचने योग्य। व्यापार व्यवसाय के स्थान के लिए इससे ही बना एक अन्य शब्द पण्यशाला अर्थात् जहां व्यापार किया जाए। जाहिर है यह स्थान दुकान का पर्याय ही हुआ। कालांतर में पण्यशाला बनी पण्यसार। इसका स्वामी कहलाया पण्यसारिन्। हिन्दी में इसका रूप बना पंसारी या पंसार। पनवेल - मुंबई के उपनगर पनवेल के पीछे भी यही पण्य छुपा है। पण्य अर्थात् बिक्री योग्य और वेल् का अर्थ हुआ किनारा यानी बेचने योग्य किनारा। जाहिर सी बात है यहां बंदरगाह से मतलब है। पश्चिमीतट के एक कस्बे का किनारा अगर व्यापार के काबिल है तो उसे पण्यवेला नाम दिया जा सकता है। यही घिसते घिसते अब पनवेल हो गया है। क्रय-विक्रय के अर्थ में विपणन शब्द खूब प्रचलित है।  गौर करें इसमें झांक रहे पण् शब्द पर।
ण् से बना वाणिज्य अर्थात व्यापार। इस तरह व्यापार करनेवाले के अर्थ में वणिक के अलावा एक नया शब्द और बना वाणिज्यकारक। भाषाविदों के मुताबिक इस शब्द के बंजारा में ढलने का क्रम कुछ यूं रहा - वाणिज्यकारक > वाणिजारक > वाणिजारा > बणिजारा > बंजारा। प्राचीनकाल में इन वाणिज्यकारकों की भूमिका वणिको से भिन्न थी। वणिक श्रेष्ठिवर्ग में आते थे और वाणिज्यकारक मूलत फुटकर या खेरची कारोबारी थे। रिटेलर की तरह। वाणिज्यकारक भी घूम घूम कर लोगों को उनकी ज़रूरतों का सामान उपलब्ध कराते थे। स्वभाव की भटकन को व्यक्त करने के लिए बंजारापन जैसा शब्द हिन्दी को इसी घुमक्कड़ी वृत्ति ने दिया है। यह परंपरा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में फेरीवालों के रूप में प्रचलित है। सामाजिक परिवर्तनों के तहत धीरे धीरे वाणिज्यकारकों की हैसियत में बदलाव आया। क्रय-विक्रय से हटकर उन्होंने कुछ विशिष्ट कुटीर-कर्मों और कलाओं को अपनाया मगर शैली वही रही घुमक्कड़ी की। इस रूप में बंजारा शब्द को जातिसूचक दर्जा मिल गया। ये बंजारे घूम-घूम कर जादूगरी, नट-नटी के तमाशे(नट-बंजारा), antique-banjara जड़ी-बूटी, झाड-फूंक आदि के कामों लग गए। कहीं कहीं रोज़गार की उपलब्धता में कमी के चलते बंजारों का नैतिक पतन भी हुआ। कुल मिलाकर किसी ज़माने में क्रय-विक्रय के काम में लगा एक आत्मनिर्भर समुदाय आज बंजारा कहलाता है और खानाबदोश विमुक्त जाति का दर्जा पाकर सरकारी रहमोकरम की राह देख रहा है। जिप्सी लोगों की हैसियत आज  यूरोप के बंजारा समाज की ही है। ये लोग भी सैकड़ों साल पहले भारत से पश्चिम की ओर कूच कर गए थे। बंजारा समाज में संगीत की परम्परा भी महत्वपूर्ण है। ये लोग पैदाइशी सौदागर, संगीतकार और शिल्पी होते हैं।
वियोगी हरि संपादित हमारी परंपरा पुस्तक में शौरिराजन द्रविड़ इतिहास के संदर्भ में पणिज समुदाय की दक्षिण भारत मे उपस्थिति का उल्लेख करते हैं और इस संबंध में क्रय-विक्रय, व्यापारिक वस्तु और एक मुद्रा के लिए पणि, पणम, फणम जैसे शब्दों का हवाला भी देते हैं। तमिल में बिक्री की वस्तु को पण्णियम् कहा जाता है। तमिल, मलयालम और मराठी में प्राचीनकाल में वैश्यों को वाणिकर, वणिकर या वाणि कहा जाता था। पणिकर भी इसी क्रम में आता है। इस उपनाम के लोग मराठी, तमिल और मलयालम भाषी भी होते हैं। पणिकर को पणिक्कर भी लिखा जाता है। प्रख्यात विद्वान डॉ सम्पूर्णानंद पणियों(फिनीशी/प्यूनिक) को पूर्वी भारत का एक जाति समूह बताते हैं जो बाद में पश्चिम के सागर तट से होता हुआ ईरान तक फैल गया। शशिशेखर और शैलजा देवगांवकर की पुस्तक द बंजारा में इस शब्द की कुछ और व्युत्पत्तियों पर भी चर्चा की गई है। बंजारा शब्द की जातीय पहचान को प्रमुख माना जाए तो इसकी व्युत्पत्ति वनचर से भी मानी जा सकती है। वनचर यानी वे लोग जो जंगलों में भटकते हैं उन्हें वनचर कहा जा सकता है। वनचर> बंजर> बंजार > बंजारा के क्रम में वनचर का रूपान्तर माना जा सकता है। इस व्युत्पत्ति में बंजारा समाज में प्रचलित वाणिज्य-व्यापार की परम्परा की व्याख्या खोजने पर भी नहीं मिलती।
सी तरह एक अन्य शब्द है बिरंजर। यह फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है चावल का व्यवसाय करनेवाले। गौरतलब है कि फारसी में चावल को बिरंज कहते हैं। मूलतः यह इंडो-ईरानी मूल का शब्द है। संस्कृत में व्रीहि शब्द है जिसका अर्थ है चावल। अवेस्ता में यह ब्रिहि हो जाता है और फारसी में इसका रूप बिरंज होता है। उत्तम किस्म के चावल से बने एक विशिष्ट किस्म के पुलाव के लिए बिरयानी नाम के मूल में यही व्रीहि, बिरंज हैं। बंजारा समाज के लोग जहां गृहोपयोगी छोटी बड़ी अनेक वस्तुओं का व्यवसाय करते हैं वहीं बंजारा शब्द को सिर्फ चावल तक समेट देना, बंजारा की व्यापक अर्थवत्ता के साथ न्याय नही होगा। बंजारा की एक अन्य व्युत्पत्ति भाषाविद् ऊबड़-खाबड़, अनुपजाऊ भूमि के लिए प्रयुक्त बंजर शब्द से भी लगाते हैं। वह समूदाय जो बंजर भूमि पर बसा हो, बंजारा कहलाता है। यह व्युत्पत्ति भी मुख सुख आधारित लोकप्रिय व्युत्पत्ति जान पड़ती है। बंजर शब्द के जन्मसूत्र जॉन प्लैट्स की हिन्दुस्तानी-उर्दू-इंग्लिश डिक्शनरी के मुताबिक बन्ध्या+धरा =बन्ध्याधरा से बना होगा। बन्ध्याधरा> बंझरा > बंझार> बंजर> बंजारा के क्रम में इस रूपान्तर की कल्पना की जा सकती है किन्तु इसे सिर्फ दिलचस्प कल्पना ही मानना चाहिए। [संशोधित पुनर्पाठ]

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9 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

बिरयानी नाम के मूल को जानना गजब रहा...आभार.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

शब्द-शब्द से जड़ की खोज..
यह विषय तो पढ़ना चाहिए था.

Mansoor ali Hashmi said...

'सार' ये कि 'पण्य' भी व्यापार ही का रूप है,
पाठशाळा, 'पण्यशाला' ही का अब स्वरूप है,
खा रहा चालाक 'पंसारी' यहाँ 'बिरयान' है,
यूं तो बंजारों की किस्मत में सदा ही धूप* है. [*कष्ट]

लाद कर संसद चले, 'बंजारे' किस्मत देश की,
साथ में 'बिरयानी' के अब, पा रहे वो सूप है.


-मंसूर अली हाश्मी

प्रवीण पाण्डेय said...

हम भी वाणिज्य से सम्बन्ध रखते हैं। मन से भी बंजारा हैं।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

वाणिज्य पढ़ा और अब बंजारा सा जीवन बिता रहे है . आज यहाँ कल वहां

ab inconvinienti said...

अच्छी यात्रा रही बंजारे की.

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कुछ बुजुर्ग व्यायाम के लिए वर्जिश शब्द का प्रयोग करते हैं. मैं इसे अंग्रेजी का शब्द समझता था. पर यह शब्द मैंने आज तक किसी भी शब्दकोष या पुस्तक में नहीं पाया. 'वर्जिश' शब्द पर भी प्रकश डालिए?

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जानकारी मिली, आभार.

रामराम.

अजित वडनेरकर said...

@ab inconvinienti
शुक्रिया टिप्पणी के लिए। आपके कहे अनुसार कुछ कोशिश करता हूं, तलाशता हूं।
फिर आभार...

शरद कोकास said...

बंजारा शब्द की उत्पत्ति के इन दो पाठों की वज़ह से कुछ कंफ्यूज़न सा हो रहा है दोनो ही सही लग रहे है लेकिन होगा तो कोई एक ही ?

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