कलश स्थापना दरअसल वरुण की पूजा है। कलश का महत्व इसी बात से आँका जात सकता है कि इसके मुख में विष्णु, ग्रीवा में शंकर, मूल में ब्रह्मा और मध्य में मातृगणों की स्थिति मानी गई है। कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्रळ समाश्रित:, मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:। यह भी कहा गया है कि सभी वेद, नक्षत्रगण, सभी दिक्पाल अर्थात दिग्गजों की व्याप्ति में कलश में होती है। कलश में उच्चता, पराकाष्ठा और शिखर का भाव भी है। यहां भी जलतत्व का संकेत ही है जो आकाश से बरसता है। जिसे बादल धारण करते हैं। पर्वतशिखर हिम से वेष्टित होते हैं जो उसका कलश है। जल ही पृथ्वी पर समृद्धि और जीवन का कारक है इसीलिए प्रायः सभी मंदिरों-देवालयों के शिखर पर कलश स्थापित होता है जो सुख, समृद्धि और मंगल का प्रतीक होता है।
गूगल के शब्दचर्चा समूह में पिछले दिनों अमेरिका प्रवासी पंजाबी के कोशकार बलजीत बासी ने एक चर्चा के दौरान संभावना जताई की ईसाई प्रार्थनास्थल के लिए उर्दू में प्रचलित कलीसा शब्द का कलश से रिश्ता हो सकता है। इस पर विचार करने से पहले जानते हैं कलीसा शब्द के बारे में जो उर्दू में फ़ारसी से आया है। मूलतः कलीसा को अरबी लफ़्ज़ माना जाता है। भाषाविज्ञानी इसे सेमिटिक भाषा परिवार का नहीं मानते और सामी परिवार की भाषाओं में इसकी आमद प्राचीन ग्रीक के इक्कलेसिया ekklesia से मानते हैं। ग्रीक में इक्लेसिया का प्रचलित अर्थ है चर्च, ईसाइयों का पूजास्थल। द न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट के लेखक कोलिन ब्राऊन के अनुसार अंग्रेजी का चर्च शब्द दरअसल ग्रीक इक्लेसिया का अनुवाद है और यह धार्मिक शब्द न होकर राजनीतिक शब्दावली से जुड़ता है। ग्रीक इक्लेसिया दो शब्दों से मिलकर बना है एक ek यानी बाहर और कलेओ यानी kaleo यानी पुकारना। भाव हुआ लोगों का आह्वान करना, उन्हें बुलाना। ये कलेओ उसी शब्द शृंखला का हिस्सा है जिससे हिन्दी का कलपना, कलकल, कोलाहल, अंग्रेजी का कैलेंडर और पंजाबी का गल जैसे शब्द बने हैं। ग्रीक इक्लेसिया दरअसल एक सामूहिक पंचायत होती थी जिसमें लोगों को मिल बैठकर किसी मुद्दे पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया जाता था। ईसा खुद अपनी कौम के प्रमुख थे और उनकी सभाओं के लिए, इक्लेसिया शब्द का प्रयोग हुआ है। बाद में बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में इसका अनुवाद बतौर चर्च हुआ। ईसा के बाद यह शब्द पूजास्थल के रूप में रूढ़ होता चला गया। इसका अरबीकरण हुआ कुछ यूं हुआ- इक्लेसिया > कलीसिया > कलीसा। हालाँकि कई विद्वानों का यह भी कहना है कि शुद्ध अरबी में कलीसा जैसा कोई शब्द नहीं मिलता। अरबी में ईसाई आराधनास्थल के लिए जो लफ़्ज़ है वह कनीसः है जिसका मूल स्त्रोत आरमेइक ज़बान है न कि ग्रीक। इसकी पुष्टि मद्दाह साहब के उर्दूकोश से भी होती है जिसमें कलीसा के नाम से कोई प्रविष्टि दर्ज़ नहीं है अलबत्ता कनीसः या किनीस ज़रूर दिया हुआ है ... कलश में स्पष्ट चिंतन है, दर्शन है, अध्यात्म है और अलग अलग संदर्भों में इसकी अर्थवत्ता और गहरी होती जाती है, जबकि चर्च, गिरजा या कलीसा सिर्फ़ आराधना स्थलों के नाम भर हैं...
जिसका अर्थ ईसाई उपासनाघर बताया गया है। कनीसिया इसका बहुवचन होता है। ईजे ब्रिल्स के फर्स्ट इन्साइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम में भी कलीसा का उल्लेख न होकर कनीसः का ही ज़िक्र है। भारत में ईसाई पूजास्थल के लिए गिरजा या गिरजाघर शब्द खूब प्रचलित है जिसकी आमद हिन्दी में बरास्ता पुर्तगाली हुई। गिरजा का मूल भी इक्लेसिया ही है। ग्रीक से इसका स्पैनिश रूप हुआ इग्लेजिया iglelsia जहाँ से पुर्तगाली में यह हुआ इगरेजा igreja. पुर्तगाली जब भारत आए तो इसका एक नया रूपांतर हुआ गिरजा। अंग्रेजी का चर्च इस मूल से नहीं निकला है। एटिमऑनलाईन के अनुसार यह प्राचीन भारोपीय मूल की धातु क्यू से निकला है। मूलतः ग्रीक में इसके लिए किरीयोस kyrios शब्द है जो राजा, श्रीमंत या प्रभावी व्यक्तियों के लिए प्रयोग होता है। इससे बना kyriakon doma अर्थात शाही महल या प्रासाद। विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में इसके मिलते जुलते रूपांतर हुए जिसमें जर्मन रूप था Kirche किर्चे और इसका ही अंग्रेजी रूपांतर है चर्च। जर्मन किर्चे इक्लेसिया की कड़ी में नहीं आता और न ही iglelsia का रूपांतर है, जैसा कि बलजीत बासी बता रहे हैं।
ईसाई गिरजाघरों के शिखर या तो नुकीले होते हैं या फिर वहाँ क्रॉस लगा होता है। कलश लगाने जैसी कोई परिपाटी गोथिक स्थापत्य में नहीं मिलती। घट या कलश का जैसा महत्व भारतीय संस्कृति में है वैसा यूरोपीय संस्कृति में नहीं है। दूसरी सबसे खास बात कलश में जल और उच्चता के भावों का उद्घाटन होना। इक्लेसिया या कलीसा से कलश की उत्पत्ति तार्किक रूप से स्वीकार तभी की जा सकती है जब इक्लेसिया के मूल में भी उच्चता और जल जैसे निहितार्थ हों, पर वहां ऐसा नहीं है। इक्लेसिया स्थानवाची, समूहवाची शब्द है। इसका स्पष्ट अर्थ जनसमूह की गोष्ठी है। यही बात चर्च में भी है जिसका व्युत्पत्तिमूलक अर्थ श्रीमंत का आवास है। यहां भी स्थानवाचक भाव प्रमुख है। इसलिए कलीसा शब्द की कलश से तुलना सिर्फ ध्वनिसाम्य का मामला है बाकी अर्थगत और भावगत कोई भी रिश्ता दोनों शब्दों में नहीं है। कलश में स्पष्ट चिंतन है, दर्शन है, अध्यात्म है और अलग अलग संदर्भों में इसकी अर्थवत्ता और गहरी होती जाती है, जबकि चर्च, गिरजा या कलीसा सिर्फ़ आराधना स्थलों के नाम भर हैं। -जारी
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10 कमेंट्स:
जब से मरहूम जनाब अयाज़ झांसवी सा'ब की लिखी हुई और जगजीत सिंह सा'ब की गाई हुई ग़ज़ल 'न शिवाले, न कलीसे न हरम झूठे हैं... सच ये है की तुम झूठे हो की हम झूठे हैं' सुनी थी तब से मन में यह लगता तो था की कलीसे या तो गुरुद्वारे को कहते हैं या चर्च को.. पर कुछ स्पष्ट न था. लेकिन आज आपने सालों पुराना ये संदेह दूर कर दिया सर... :)
हालंकि बीच में २००१ में अयाज़ सा'ब के इंतकाल से पहले उनके घर पर ही मिलना हुआ था तब पूछना भी चाहा था लेकिन डर था की वो ये न कहें की 'कैसे-कैसे लोग लिखने का शौक़ रखते हैं.. कुछ पता भी नहीं होता..' :)
कलसी भी शायद कलश को ही कहते हैं ..
हर बार की तरह अच्छी जानकारी ..
आभार !
कलश व कलीसा में कोई सम्बन्ध दिखता नहीं है।
अच्छी पोस्ट ! आते है जारी के बाद !
जितना कुछ आज तक पढ़ा जाना है, उसने इस धारणा को मजबूती दी है कि हिन्दू धर्म सबसे पुराना है और सभ्यता के विकास और विस्तार के साथ इसके ही कुछेक सिद्धांतो के साथ जो अन्य कई शाखाएं निकली,समूह बने वे आज विभिन्न रूपों में विभिन्न धर्मो पंथों के नाम से जाने जाते हैं..
आपकी इस सुन्दर व्याख्या ने ज्ञानवर्धन करने के साथ साथ आनादित भी क्या...
बहुत बहुत आभार आपका..
कलश कलश के माध्यम से कलीसा भी जान लिया। धन्यवाद।
शब्दों के समंदर में गोता लगाना हमेशा अच्छा लगता है।
सुंदर सार्थक और सारगर्भित पोस्ट आगे के क्रम का इन्तजार रहेगा
शुभकामनायें
वडनेरकर जी,
हिन्दू पूजा पद्धति में जल, अग्नि और सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना है व साक्षी का अधिकारी भी । जल से भरा कलश हमारी आराधना का नमन भाव का साक्षी है । हवि के लिये प्रयुक्त अग्नि भी । सूर्य हमारे मानसिक पाप पुण्य का साक्षी भी है और आराध्य भी ।
यह भावना इतना अभिभूत कर देती है कि श्रद्धा स्वमेव ही जागृत हो जाती है ।
कलश पर इतना गहन और विस्तार पूर्ण आलेख नमनीय है ।
- RDS
मैं करीब दो हफ्ते के लिए घर से बहुत दूर सियाटल में हूँ . हवाई सफ़र ही सात घंटे का है. कम्प्युटर का साथ कम ही होता है, इस लिए इन दिनों शब्द चर्चा में भी भाग नहीं ले रहा.
बहुत साल पहले अंग्रेज़ी-पंजाबी कोष बनाते समय जब हम ecclesiastic शब्द पर आए थे तो सोचा था कि शायद इस का संबंध कलश से हो .शब्दों की व्युत्पति में तब हमारी रुची ना थी और ना ही ज़रुरत पड़ती थी. उस दिन गिरजाघर शब्द का ज़िक्र करते हुए यह बात दिमाग में आ गई और चलती कलम में ऐसा लिखा गया . यह मेरी भूल थी जिस का मुझे जल्दी अहसास हो गया जब मैं ने इस शब्द की व्युत्पति की पड़ताल की, लेकिन तब तक चर्चा ख़तम हो गई थी.फिर यह काम बाद के लिए छोड़ दिया . वैसे भी कलश शब्द की व्युत्पति जानना मेरे वश की बात न थी , यह काम तो अजीत जी ही कुशलता से कर पाते हैं और ऐसा किया भी है. मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ, उन्होंने मेरे मन का बोझ उतार दिया.
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