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Monday, December 6, 2010
क़िबला की क़ाबिलियत और क़बीला
हि न्दी चाहे भारोपीय भाषा परिवार की भाषा हो पर इसमें दीगर भाषा परिवारों के शब्दों की आमद भी भारी तादाद में हुई है। द्रविड़ भाषा परिवार हालाँकि भारत में बोली जाने वाली बोलियों से संबंधित ही है फिर भी हिन्दी में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ अथवा मलयालम भाषा की तुलना में सेमिटिक भाषा परिवार की अरबी भाषा से आए शब्दों की तादाद कहीं ज्यादा है। हिन्दी का क़ाबिल शब्द भी ऐसा ही एक शब्द है जो बोलचाल की भाषा में बीती कई सदियों से हिन्दी का अपना शब्द बन चुका है। क़ाबिल यानी योग्य, कुशल, दक्ष, विद्वान, होशियार, बुद्धिमान और समझदार। हिन्दी में नुक़तों का चलन नहीं है मगर अरबी क़ाबिल में नुक़ता लगता है। क़ाबिल से ही बनता है क़ाबिलियत जिसका अर्थ विद्वत्ता, बुद्धिमानी, योग्यता, समझदारी है। इसी तरह स्वीकार, मंजर या किसी बात की अनुमति मिलने के संबंध में हिन्दी में क़बूल शब्द भी हिन्दी में प्रचलित है। इसका क़ुबूल रूप भी चलता है। क़ाबिल और क़ुबूल में रिश्तेदारी है और ये दोनों सेमिटिक धातु क़-ब-ल q-b-l से जन्में हैं।
क़-ब-ल q-b-l में मूलतः स्वीकार का भाव है। अरबी में इससे क़बूलियत भी बना है जिसका अर्थ है स्वीकृति अथवा मंज़ूरी मगर यह हिन्दी में कम चलता है। हिन्दी ने कबूल से कबूलना जैसा शब्द भी बना लिया है। स्वीकार के अलावा इस धातु में निकटता, सामीप्य, विनम्रतापूर्वक लेना या पाना जैसे भाव भी हैं। इन भावों का विस्तार क़ाबिल में नज़र आता है। बिना ज्ञानार्जन के योग्यता नहीं आती। ज्ञान को सविनय हासिल करना पड़ता है। जिसे मन, वचन और कर्म से सिद्ध कर लिया जाए, वही विद्या सार्थक होती है। सो क़ाबिल में क-ब-ल धातु के सभी भाव निहित हैं। क़ाबिलियत के लिए क़बूलियत ज़रूरी है। जो योग्य है वही समर्थ है। सामर्थ्यवान व्यक्ति का समाज में मान-सम्मान होता है। क़ाबिल आदमी का यश होता है। इस धातु से कुछ अन्य शब्द भी निकले हैं जैसे इक़्बाल जिसे हिन्दी में इकबाल कहा जाता है जिसे हिन्दी-उर्दू में दो तरह से बरता जाता है। इकबाल का एक अर्थ है प्रसिद्धि, तेजस्विता, समृद्धि, प्रताप आदि। हुज़ूर का इकबाल बुलंद हो जैसी मुहावरेदार अभिव्यक्ति में इसे हम सबने जाना-समझा है। इसी तरह इकबाल का एक अर्थ स्वीकृति, मंजूरी भी है जिसे भारतीय अदालतों के प्रसिद्ध वाक्य इकबाल ऐ जुर्म के जरिए समझा जा सकता है जिसका मतलब है दोष या अपराध की स्वीकारोक्ति। इकबालिया बयान भी ऐसा ही पद है जिसका अर्थ भी स्वीकारोक्ति ही है।
क़बीला भी इसी कड़ी का शब्द है और सभी हिन्दी भाषी इससे परिचित हैं और इसका इस्तेमाल करते हैं। क़बीला यानी जनजातीय समूह। इसका अर्थ वंश, कुल या जाति भी होता है। कबीला के तौर पर जो कल्पना उभरती है वह आदिम संस्कृति वाले सामाजिक समूह या जंगली समुदायों की होती है। मगर ऐसा नहीं है। कबीला दरअसल एक जनजातीय समूह है। प्राचीन अरब में इसका यही अर्थ था जब सुदूर रेगिस्तानी अंचलों में बेदुइनों के समूह अपने मवेशियों के साथ विचरण करते थे। अपनी विशिष्ट जातीय और सांस्कृतिक पहचानों के साथ इधर से इधर घूमनेवाले समूहों को क़बीला कहा जाता था। क़बीला का बहुवचन है क़बाइल। इसी से बना है क़बायली या क़बाइली। भारत में आमतौर पर पश्चिमोत्तर पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को क़बायली कहा जाता रहा। ये इलाके अब पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में आते हैं। भाषा विज्ञानी क़बीला शब्द की व्युत्पत्ति भी क-ब-ल धातु से मानते हैं मगर वे क़बीला मे निहित समूहवाची भाव की तार्किकता इस धातु में निहित मूलार्थ अर्थात स्वीकार में नहीं देखते। मुझे लगता है यह कठिन नहीं है।
क़बीला शब्द में भी क़-ब-ल q-b-l धातु में निहित स्वीकार्यता के भाव का विस्तार हुआ है। एक ऐसा समूह जहाँ सब एक दूसरे से रक्त संबंध, आचार-व्यवहार और रिश्तों से जुड़े हैं वहाँ वास्तव में एक दूसरे के प्रति व्यापक स्वीकार्यता का भाव सहज ही विकसित होता है। व्यापक स्वीकार्यता के बिना मनुष्य में सामाजिक प्राणी होने का गुण विकसित नहीं हो सकता था। समूह का अस्तित्व ही स्वीकार्यता पर निर्भर है। शब्दकोशों में भी जनजातीय मनुष्यों के ऐसे समूह को क़बीला कहा गया है जहाँ एक व्यक्ति को अपना सरदार मानते हों। यहाँ भी स्वीकार्यता का भाव है। मगर समूह के तौर पर क़बीला का अर्थ है ऐसा समूह जहाँ आचार-विचार और विशिष्ट सांस्कृतिक बंधन में सब बंधे हों अर्थात जनजातीय नियमों की स्वीकार्यता पर टिका समूह ही क़बीला है।
इसी मूल से जन्मा एक और शब्द है किबला जो अरबी में किब्लः है। अरबी किबला का प्रयोग हिन्दी उपन्यासों, कहानियों, नाटकों और फिल्मों में आदरणीय व्यक्ति के प्रति नाटकीय अभिव्यक्ति करने के सिलसिले में हमने इसका इस्तेमाल खूब देखा है। किबला में क़ाबा का भाव है अर्थात वह स्थान जिस ओर मुँह करके इस्लाम को माननेवाले अल्लाहताला की आराधना करते हैं। अरबी में इसे किबलाह भी लिखा जाता है। q-b-l धातु से जन्में क़िबला के मूल भाव को समझने के लिए भी q-b-l के स्वीकार वाले भाव को याद रखना होगा। अरब के क़बीलों में इस्लाम के जन्म से पहले भी ईश्वर की मौजूदगी थी जिसे अरबी में ही अल्लाहताला कहा जाता था। पहले ये तमाम क़बीले मूर्तिपूजक थे और सबके अपने अपने, विशिष्ट मुखाकृति वाले देवी-देवता थे। इसके बावजूद इस समाज में एक सर्वोच्च देवता की भी कल्पना थी जिसे ये अल्लाहताला कहते थे। अरबी क़बीलों में साल में एक बार मक्का स्थित काबा जाना ज़रूरी था। दरअसल यह तीर्थयात्रा थी। यह क़ाबा उसी सर्वोच्च शक्ति का प्रतीक था। मुहम्मद साहब ने नया मज़हब चलाने के बावजूद, इस्लाम क़बूल कर चुके अरबी क़बीलों की आस्था का ख्याल करते हुए क़ाबा जाने की रिवायत को ख़त्म नहीं किया और खुद भी वहाँ की यात्राएँ कीं।
क़बीरबानी में किबला का उल्लेख आया है। कबीर ने कहा है- मन करि मका कबिला करि देही… अर्थात अपने मन को मक्का और शरीर को किबला मानने में ही भलाई है। क़-ब-ल में निहित स्वीकार्यता का भाव किबला में स्पष्ट होता है। किबला वह जिसे सब स्वीकार करें। सर्वशक्तिमान, स्वामी, सर्वोच्च और स्वयंभू। क़ाबा का पत्थर भी किबला है और काबा की दिशा भी क़िबला। दुनियाभर में मुस्लिम जिस स्थान पर मक्का की ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ते हैं, उसे किबला कहते हैं। मस्ज़िद के भीतर वह मेहराब जिसकी ओर मुँह करके अल्लाह को याद किया जाता है, किबला कहलाती है। समाज का हर वह व्यक्ति जो बुजुर्ग है, जिसका मान है, वह व्यक्ति जो अधिकारसम्पन्न है किबला सम्बोधन के लायक़ है। पहले मुस्लिमों और यहूदियों में मधुर संबंध थे। यहूदियों के आदरणीय रब्बी इब्राहीम को ही काबा का संस्थापक माना जाता है। प्राचीन काबा मे लात-मनात- सुवाअ-उज्जा, यउक-यगुस-नस्र जैसे देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं जिन्हें बुतपरस्त बेदुइन क़बीलों में पूजा जाता था। इसके अलावा हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत इस्माइल, हज़रत मूसा, ईसा मसीह और मरियम के चित्र भी काबा में थे। बाद में इन्हें वहाँ से हटा दिया गया।
कहते हैं कि शुरुआत में जब इस्लाम और यहूदियों के बीच विवाद नहीं थे, तब मुहम्मद ने यहूदी परम्परा से यरुशलम को किबला बताया मगर बाद में क़िबला की दिशा बदल कर मक्का की ओर कर दी। हालाँकि कुरआन में यह स्पष्ट किया है कि इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि नमाज़ पढ़ते वक़्त आपका मुँह पूरब की तरफ़ है या पच्छिम की ओर। महत्वपूर्ण ये है कि आप अल्लाह को सर्वोपरि मानें। पश्चिम दिशा की ओर संकेत करनेवाले एक उपकरण को किब्लानुमा भी कहते हैं। कुल मिलाकर स्वीकार्यता के मूल भाव वाली धातु क-ब-ल ने जितने भी शब्द अरबी को दिए हैं, उनमें से ज्यादातर हिन्दुस्तानी में भी कमोबेश मिलते-जुलते अर्थों में प्रचलित हैं। यही है शब्दों का सफर।
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9 कमेंट्स:
सब कुछ समझ लिया यहाँ आकर ...अपने प्रयास को यूँ ही जारी रखिये, ताकि हम कुछ सीख सकें...बहुत - बहुत शुक्रिया
अजित भाई, काबा में नुक़्ता नहीं है।
क़िब्ल में एक अर्थ आगे या सामने का भी है। फ़ारसी में 'क़िब्ल अज़' का पद भी इस्तेमाल होता है जिसका अर्थ है इससे पूर्व। अरबी में क़िब्ल का एक अर्थ गुप्तांग (आगे के अंग) भी है।
पिछली कुछ पोस्ट पडःाने से रह गयी आज देखती हूँ। इस ग्यानवर्द्धक पोस्ट के लिये आभार।
'शब्दों' का हर सफ़र काबिले क़बूल है, लोगों में बहुत 'मकबूल' है.
वर्तमान की एक घटना पर ४ लाईने:-
# 'क़ब्ल' इसके 'क़बूल' हो जाती,
दहेज़ पर बात रुक गयी आकर,
यूं तो 'वो' घुड़सवार 'मुंसिफ'* थे, *जज
लौट आये जो जूतियां खा कर.
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चचा ग़ालिब ने 'किब्ले' के मुताल्लिक कुछ यूं फ़रमाया है:
" है परे सरहदे इदराक से मैरा मस्जूद* *ईश्वर
किब्ले को अहले नज़र किब्लानुमा कहते है."
mansoorali hashmi
ध्यान दिलाने का शुक्रिया अभय भाई:)
कई जगहों पर जो स्वीकार कर ले वही काबिल।
गज़ब है भाईजान...क्या लाते हो...
बढ़िया जानकारी
bahoot hi sunder hai mai ne app se pucha ekbal ka wajan kitna hota hai ekbal jiska warna apane kiya aur ek bal jo kesh hai bal bhi kahte hai aap ko 1 ball ka wajan batana hai
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