सम्बन्धित शब्द- नीलाम, विपणन, पण्य, क्रय-विक्रय, गल्ला, हाट,
रो ज़मर्रा की भाषा में ऐसे कितने ही शब्द हैं जिनका आसान पर्याय मिलना मुश्किल है। हिन्दी का दुकान ऐसा ही शब्द है जिसका विकल्प ढूंढना मुश्किल है। उपभोक्ता सेवा केन्द्र और विपणन केन्द्र के साथ दुकान लगता है जैसे नाई की दुकान, किराने की दुकान, पान की दुकान, किताब की दुकान, गल्ले की दुकान, राशन की दुकान, परचून की दुकान, थोक की दुकान, फुटकर की दुकान वगैरह। संस्कृत मूल के हट्टः से रूपान्तरित हट्टी एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ दुकान होता है, मगर यह हिन्दी में प्रचलित नहीं है। इसी तरह पेठ, पीठा जैसे शब्द भी हैं जिनका दुकान कम बाज़ार के अर्थ में ज़्यादा प्रयोग होता है। पेठ मराठी का शब्द है और पीठा पश्चिमी हिन्दी क्षेत्रों में बोला जाता है। हट्टी पंजाबी का शब्द है। संस्कृत में हट्टः शब्द बाज़ार, मेला, मंडी के अर्थ में ही है। दुकाँ की व्याप्ति कई भाषाओं में हुई है जैसे बुल्गारी में यह द्जुकाँ है तो अज़रबैजानी में दूकाँ, अल्बानी में इसे दिकाँ कहते हैं और फ़ारसी में दोकाँ / दोकान। स्वाहिली में इसका रूप दुका है, सीरियक में यह दुचान है, ताजिक में दुकोन तो तुर्की में दूक्काँ, उज़्बेकी में यह दोकोन और स्पेनी में यह एडोक्विन है। दुकान के साथ दार शब्द लगने से फ़ारसी ने विक्रेता के अर्थ वाला दुकानदार शब्द बनाया। यह हिन्दी का आम शब्द है। दुकानदारी यानी बेचने का काम। आज शब्द की अर्थवत्ता बढ़ गई है। दुकानदारी करना यानी वैध, अवैध तरीके से कमाई करना, अपनी तरक्की के रास्ते अपनाना, मार्केटिंग करना आदि।
मोटे तौर पर दुकान दरअसल सेमिटिक मूल का शब्द है और अरबी ज़बान से बरास्ता फ़ारसी, उर्दू होते हुए हिन्दी में दाखिल हुआ है, मगर इसके आदिसूत्र ग्रीको-रोमन शब्दावली से जुड़ते हैं। अरबी में दुकान का रूप दुक्काँ है। सेमिटिक धातु d-k-k से इसका रिश्ता है। जिसमें समतल करने का भाव है। इससे दुक्का dukka, दक्क dakk जैसे शब्द बनते हैं जिनमें कुचलने, तोड़ने, एक समान करने, हमवार करने, समतल करने, बराबर करने का भाव है। अरबी का दुक्काँ, दरअसल इसी दक्का से बना है। दुक्काँ में थोड़ा अर्थ विस्तार होता है और इसमें चबूतरा, बेन्च, तख़्त, चिकनी सतह या समतल उठे हुए चौबारे का भाव उभरता है। यह एक ऐसा स्थान जिसे प्रयत्नपूर्वक किसी कार्य के लिए तैयार किया गया हो। सेमिटिक अर्थों में यह पूजा की वेदी भी हो सकती है, सम्भाषण स्थल भी हो सकता है। इसे दीक्षा-मंच या वाक्-पीठ कहा जा सकता है। अल सईद एम बदावी और एमए अब्देल हलीम की कुरानिक डिक्शनरी के अनुसार सेमिटिक धातु दक्न ( d-k-n ) से दुकाँ शब्द बनता है मगर यह दुक्का dukka, दक्क dakk का परवर्ती विकास है। इराकी अरबी में इसका रूप दुखाँ है और इसका मूल है दख्न (d-kh-n) जिसमें मंच, धर्मासन, वेदिका, मचान, बेन्च, तख़्त, प्लेटफार्म, चबूतरे का आशय है। हालाँकि अब यह माना जाने लगा है कि यहुदियों की प्राचीन बोली यिडिश में एक क्रिया है दुख्नेन dukhnen जिसमें खड़े रह कर सम्बोधित करने का भाव है। यिडिश के साथ ही हिब्रू में भी दुख्नेन है जिसका तात्पर्य ऐसे मंच से है जहाँ से अधिष्ठाता, गुरू या नेता लोगों के सम्मुख होता है, कुछ कहता है। हिब्रू ज़बान में दुखाँ dukhan का रूपान्तर दुखाँ होता है जिसमें दुकाँ वाला प्राचीन अभिप्राय ही निहित है। इसी तरह सीरियाई / इराकी अरबी (आरमेइक) में भी दुखाँ शब्द इन्हीं अर्थों में है।
ध्यान रहे, हिब्रू के दुखाँ और अरबी के दुकाँ शब्दों में शामिल दीक्षा-मंच या वाक्-पीठ के आशय का अर्थविस्तार दुकान में हुआ। हालाँकि मूल सेमिटिक भाव तो पत्थर की शिला या चबूतरा ही था। कुछ सन्दर्भों में इसे पत्थर का आसन बताया गया है। एक दिलचस्प बात और। सीरियक अरबी यानी आरमेइक ज़बान में एक मुहावरा है दुख़-दुख्नेन (dukh dukhnaen) जिसका अर्थ है नायक-सेनानायक। इसे लैटिन पद दुख़-दुचेम ( dux ducem) का रूपान्तर माना जाता है जिसका अर्थ है नायकों का नायक। ऐसा भी अनुमान लगाया जाता है कि हिब्रू या आरमेइक दुखाँ या दुख्नेन के मूल में लैटिन का यही मुहावरा है। इसके समर्थन में अंग्रेजी के ड्यूक duke और इतालवी के duce शब्दों का हवाला दिया जाता है जिनका अर्थ शासक, राजा या राजकुमार होता है। मगर यह बात गले नहीं उतरती, अलबत्ता इन शब्दों में रिश्तेदारी सम्भव है। सेमिटिक भाषाओं के सन्दर्भ में हिब्रू ज्यादा प्राचीन है या अरबी, यह बहस पुरानी है। लिपि के नज़रिए से देखें तो पुरातात्विक साक्ष्य हैं हिब्रू की पुरातनता के पक्ष में हैं, मगर शब्द भण्डार और व्याकरण के नज़रिए से देखा जाए तो हिब्रू कि विकासावस्था के प्राथमिक चिह्न अरबी में ही नज़र आते हैं। सो अरबी ज्यादा पुरानी है। इस तरह अरबी लैटिन से भी पुरानी भाषा है। लैटिन का ईसापूर्व पहली-दूसरी सदी का इतिहास मिलता है जबकि हिब्रू का लिखित इतिहास आठ से दस सदी पुराना है जबकि सेमिटिक भाषाओं में अरबी के वाचिक स्वरूप वाले साक्ष्य इससे भी पुराने हैं। अरबी के लिखित साक्ष्य भी सातवीं आठवीं सदी से मिलते हैं।
स्पष्ट है कि सेमिटिक धातु d-k-k में निहित आसन, वाक्-पीठ या प्रस्तर-शिला का भाव आगे चल कर d-k-n धातु से बने दुक्काँ में पीठा, दुकान, क्रय-विक्रय केन्द्र, कार्यालय आदि में व्यक्त हुआ। हिब्रू ज़बान में दुखाँ dukhan शब्द का अर्थ है हाट-बाज़ार में खरीदी-बिक्री करने की जगह, बेंच, स्टॉल या ऊँचा चबूतरा। पुरानी अरबी में दुक्काँ में प्रस्तर शिला का भाव था। अरबी के दुक्काँ शब्द में अर्थविस्तार हुआ और इसमें शॉप का आशय भी आ गया। अपने सेमिटिक रूप में दुकान में एक सीमा तक धार्मिक आशय भी था, मगर इसकी वजह भी सामुदायिक ही थी। सेमिटिक अर्थों में दुक्काँ में एक ऊँचे चबूतरे का भाव रूढ़ है जहाँ खड़े होकर पंथप्रमुख या धर्मगुरु लोगों को प्रवचन, आशीर्वचन देता है। यूँ भी नेतृत्व के साथ सबसे आगे, सबसे ऊँचे और सबसे पहले जैसे आशय भी जुड़े हुए हैं। दूर तक देखने के लिए भी ऊँचाई पर खड़ा होना पड़ता है, समूह के समक्ष बोलने के लिए भी ऊँचाई ज़रूरी है। नेतृत्व से जुड़े पदों के साथ अक्सर उच्चताबोध जुड़ा ही रहता है। हिब्रू के दुखाँ शब्द से आशय है यहूदियों के उपासनागृह सिनेगॉग के अहाते में स्थित उस मंच से है जहाँ से रब्बी सम्बोधित करता है।
कोई आश्चर्य नहीं कि बरास्ता अरबी, हिब्रू, दुखाँ, दुकाँ में निहित इन तमाम भावों का विस्तार आरमेइक के दुख़-दुख्नेन (dukh dukhnaen) मुहावरे में नायक-सेनानायक के रूप में व्यक्त हुआ। वह व्यक्ति जो ऊँचाई से सम्बोधित करे, निर्देशित करे। बाद में इसकी अभिव्यक्ति लैटिन के दुख़-दुचेम ( dux ducem) में हुई। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सेमिटिक अर्थों में दुकाँ या दुखाँ में शिला, प्लेटफार्म और वाक-पीठ का भाव है और लैटिन में इस शृंखला का इससे मिलता-जुलता और इस के किसी शब्द का सन्दर्भ नहीं मिलता। यह सम्भव नहीं कि दुख़-डुचेन के ड्यूक ( ऊँचे आसन वाला) की अर्थवत्ता सेमिटिक भाषाओं में सिमट कर आसन भर रह गई। दुकाँ के दुकान वाले सन्दर्भों पर लौटते हैं। गौरतलब है कि दुकानदार चाहे आज के ज़माने का हो या पुराने ज़माने का, अपना माल बेचने के लिए ऊँचे चबूतरे पर खड़े रह कर बोली लगाना ही उसका काम था। नीलामी भी खरीद-बिक्री की महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी। “ए मेडिटरेनियन सोसाइटी” में एसडी गोइटी d-k-k धातु से बने दिक्का का उल्लेख करते हुए इसे पुश्त लगा हुआ तख़्त या सेटीनुमा रचना बताते हैं। यह तख्त जैसा बॉक्स होता है जिसमें सामान रखने के तीन खण्ड भी होते हैं। इसमें ऐसे सन्दूक का भाव है जिसका प्रयोग आसन की तरह भी होता है। गोइटी दुकाँ में का अर्थ कार्यस्थल, वर्कशॉप, ऑफिस, स्टोर आदि बताते हैं। दुकाँ के सबसे प्रारम्भिक स्वरूप पर अगर ध्यान दें तो गोइटी द्वारा बताए आशयों से मेल खाता है। आज भी सब्ज़ी मण्डी में ऐसे चबूतरे या बॉक्सनुमा आसन वाली व्यवस्था होती है। लकड़ी या धातु से बनी इस संरचना में दुकानदार अपना सामान रखता है और बॉक्स के ऊपर वह बिक्री की सामग्री रखता है। भारतीय सन्दर्भों में सेठों की पीढ़ी का उल्लेख होता है। बड़े सेठ की दुकान गद्दी कहलाती थी जो दरअसल पुश्तवाली सेटी ही होती थी। सेठजी इस पर बैठ कर कारोबार करते थे। बाद में गद्दी आज के कार्पोरेट अर्थों में सेठजी के कारोबार की पीठ बन गई। दुकान भी उस गद्दी का एक हिस्सा थी। आढ़त को भी इसी अर्थ में देख सकते हैं।
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4 कमेंट्स:
एक शब्द पर कौन अधिक जोर डाले, उसकी जगह न लगा देते हैं...
हम तो अपने आफ़िस को भी दुकान कहते हैं। दुकान पर बैठे हैं दुकान जा रहे हैं। दुकान जाना है। :)
दुकान सही है या दूकान
मुझे दूकान सही शब्द लगता है। वही ढूँढते हुए यहाँ आया हूँ।
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