Tuesday, January 3, 2012

बजरिया में बाजारू बातें

सन्दर्भः नीलाम, विपणन, पण्य, क्रय-विक्रय, गल्ला, हाट, दुकान, पट्टण, पोर्ट, पंसारी  bazar
ह स्थापित तथ्य है कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न भाषाओं में अन्तर्सम्बन्ध की बड़ी वजह मानव समूहों का आप्रवासन रहा है। इन समूहों में भी व्यापारियों-कारोबारियों के जत्थे खास थे। इनकी वजह से जिन्सी कारोबार के साथ-साथ अनजाने में शब्दों की सौदागरी भी होने लगी। यानी बाज़ार की वजह से भाषाएँ समृद्ध हुईं। खुद बाज़ार शब्द इसकी मिसाल है। यूरोप, पश्चिमएशिया, मध्यएशिया से लेकर सुदूर पूर्व तक बाज़ार की व्याप्ति है। भारतीय उपमहाद्वीप के धुर उत्तर में श्रीनगर से श्रीलंका तक बाज़ार बसता है। इंडो-ईरानी मूल से निकले कुछ शब्दों नें दुनियाभर की भाषाओं में जबर्दस्त जगह बनाई है, जिनमें बाज़ार शब्द सबसे महत्वपूर्ण है। बाज़ार की व्याप्ति का यह आलम है कि चौदहवीं सदी के यूरोपीय व्यापारी फ्रान्सिस्को बाल्दुच्ची पेगोलोती (1310-1347) के दस्तावेज़ों में बाज़ार- Bazarra शब्द का उल्लेख मिलता है। गौरतलब है कि इटली के जिनोआ में इसका अर्थ उस दौर में भी मार्केट-प्लेस ही था। प्रसिद्ध नाविक कोलम्बस भी जिनोआ का ही रहनेवाला था। पन्द्रहवीं सदी में अगर यह शब्द कबीरवानी में दर्ज़ हो रहा था-कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर । ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।। उसी वक्त सुदूर यूरोप में इटली के घुमक्कड़ नक्शानवीस गियोवानी रेम्युज़ियो अपने यात्रावृत्त में इस शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। सुदूर पूर्व की थाई भाषा में इसका पासार रूप प्रचलित है। ज़ाहिर है इससे भी सदियों पहले से यह शब्द दुनियाभर में प्रचलित हो गया होगा।
ज भारतीय भाषाओं में खास कर हिन्दी में बाज़ार का आसान विकल्प मिलना नामुमकिन है। हम दरअसल बाज़ार में ही रहते हैं। हमारे इर्दगिर्द बाज़ार है। उसकी वजह भी है। मनुष्य जहाँ गया, वहाँ आवास के बाद जो दूसरी व्यवस्था उसने बनाई, वह बाज़ार ही थी। दुनियाभर में ऐसी बस्तियाँ मिल जाएँगी जिनके नामों के साथ व्यापारिक गतिविधि जुड़ी रही है। मण्डी, पत्तन, पल्ली, पट्टणम्, पाटण, बन्दर जैसे शब्द दरअसल जिन शहरों के नामों से जुड़े हैं, उनकी पहचान कारोबारी ठिकाने के तौर पर ही रही है जैसे भवानीमण्डी, मछलीपत्तन, त्रिचनापल्ली, बोरीबन्दर, विशाखापट्टणम् आदि। इसी कड़ी में बाज़ार शब्द भी है। क़ासिमबाज़ार, मीनाबाज़ार, पटनाबाज़ार, आगराबाज़ार वगैरह। बाजार वाली बस्तियाँ इलाके के लिए बजरिया शब्द भी प्रचलित है। अक्सर ये बस्तियाँ यातायात स्थानकों के आसपास बनती थीं।
बाज़ार की अर्थवत्ता का इतना विस्तार हुआ कि शोरशराबे वाले जमघट को भी बाज़ार की संज्ञा दी जाने लगी। इससे ही बाज़ारू शब्द बना जिससे गुणवत्ता में गिरावट का आशय लगाया जाने लगा। अशिष्ट, अशालीन व्यवहार को बाज़ारू हरकत कहा जाता है।बाज़ारू बातें, बाज़ारू चीज़, बाज़ारू आदमी, बाज़ारू लोग, बाज़ारू औरत जैसे प्रयोग आए दिन हम सुनते हैं। बाज़ार शब्द में हलचल है, गतिशीलता है। बाज़ार में ज़िदगी की रौनक है। मगर यह रौनक, यह हलचल ज़िंदगी में ख़लल भी डालती है। इसीलिए लोगों के जमघट से उत्पन्न अव्यवस्था के सन्दर्भ में अक्सर सुना जाता है-“क्या बाज़ार लगा रखा है ?” मछली बाज़ार में सर्वाधिक अस्तव्यस्तता, गंदगी होती है इसीलिए यह पद भी प्रसिद्ध है। दक्षिण का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह है मछलीपट्टणम्, ज़ाहिर है यह पत्तन बाजार ही है। ग़ालिब लिखते हैं-फिर खुला है दरे-अदलते-नाज़, गर्म बाज़ारे-फौजदारी है । बाज़ार मूलतः घूमने-फिरने की जगह ही होते हैं, फिर चाहे यह घूमना, खरीदी का बहाना ही क्यों न हो। अक्सर हम बाज़ार कुछ खरीदने नहीं, महज़ घूमने टहलने जाते हैं और लुट कर आते हैं। विचरण करते हुए, भटकते हुए खरीदारी करने की जगह ही है बाज़ार। दुनियाभर की भाषाओं में बाज़ार शब्द फ़ारसी से गया है। अवेस्ता में एक शब्द है चर या चार जिसका अर्थ है गति करना,
baazaarअक्सर हम बाज़ार कुछ खरीदने नहीं, महज़ घूमने टहलने जाते हैं और लुट कर आते हैं। विचरण करते हुए, भटकते हुए खरीदारी करने की जगह ही है बाज़ार। दुनियाभर की भाषाओं में बाज़ार शब्द फ़ारसी से गया है।
घूमना, जाना अथवा घास, चारा। याद रहे संस्कृत में चर् धातु से बने चर, चारा जैसे शब्द हैं जिनमें घूमने, फिरने, चलने के अलावा घास का भाव भी है। दर असल घूमते फिरते जिसे खाया जाए, अर्थात चर क्रिया करते हुए जो खाया जाए, वही चारा है। जिससे चलने की क्रिया पूरी हो वे चरण हैं। अवेस्ता के चर में भी चलने और चरने का यही भाव है। चर् का ही अगला रूप चल् होता है। र का रूपान्तर ल में होना इंडो-इरानी भाषाओं का स्वभाव है ।
पुरानी फ़ारसी अर्थात पहलवी में एक शब्द है वचार जिसमें मिलने-जुलने की जगह का भाव है। वचार दरअसल अवेस्ता के विचार ( विचार-संस्कृत, हिन्दी वाला नहीं ) का रूपान्तर है। ऐसा स्थान जहाँ घूमते फिरते लोग मिलें। विचरण का भाव ही विचार में है। मध्यकालीन फ़ारसी में इसका वज़ार रूप मिलता है। आर्मीनियाई में यह वचार ही है, सोग्दियन में बाज़ारगान शब्द होता है जिसका अर्थ है दुकानदार। आर्मीनियाई में इसका रूप वाछारकान है। बाज़ार की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मत यह है कि पूर्वी ईरानी में वज़ार का पूर्व रूप बहा-चार था जिसका अर्थ था वह जगह जहाँ कीमतें होती हैं अर्थात बाज़ार । बहा में मूल्य या कीमत का भाव है और चार में चलने की जगह यानी स्थान। फ़ारसी के बहा का एक रूप रूसी का बेहो है जिसका अर्थ है दहेज, दुल्हन के लिए दिया जाने वाला मूल्य।
भाषा विज्ञानी इस बेहो, बहा का विकास अवेस्ता के वस्न vasna में देखते हैं। गौरतलब है कि संस्कृत में वस्न का अर्थ होता है धन, दौलत, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, मूल्य, दाम, कीमत आदि । यह भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और वस्न का ग्रीक रूप वोस्नोस होता है। इन्साइक्लोपीडिया इरानिका में बहोयश्न और वहा-वज़ना vaha-vazana भी बाज़ार या हाट के लिए प्रयुक्त होते थे। सवाल उठता है कि इसके पहले चरण में जो बहा क्रिया है उसे संस्कृत की वह् क्रिया से जोड़ा जा सकता है या नहीं जिसमें जाना, चुकाना, भुगतान करना, बहना, चलना,टहलना, बंद करना जैसी वैविध्यपूर्ण अर्थवत्ता है। क्योंकि दूसरा पद वज़ना तो निश्चित ही अवेस्ता में जो वस्न् रूप है जिसमें मूल्य, कीमत आदि का भाव है और इसका फारसी में में  तब्दील होकर का लोप हुोना मुमकिन है।  वह् क्रिया में भी भुगतान का भाव है। बहा-चारना ( vaha-carana) पद भी मिलता है जिसमें बहा का अर्थ मूल्य ही बताया गया है। जो भी हो, चर, चार जैसे शब्दों का बहा-चार में स्थानवाची अर्थ ही निकलता है। इस तरह पहलवी के बहा-चार से आधुनिक फ़ारसी का बाज़ार bazaar / bazaar रूप हाथ लगता जिसकी घुसपैठ दुनियाभर की भाषाओं में है।
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3 कमेंट्स:

RDS said...

"अक्सर हम बाज़ार कुछ खरीदने नहीं, महज़ घूमने टहलने जाते हैं और लुट कर आते हैं।" बात इतनी सटीक है कि दुनिया भी एक बडा सा बाज़ार लगती है । निष्प्रयोजन भटकन .. और अंत में लुट जाने का अहसास ! अब तो युग ने भी पंख ले लिये हैं । हर कोई खुद को ही बेच रहा है । एक प्रोडक्ट की मानिन्द अपनी खूबियाँ लिये इंसान खुद बाज़ार में खडा है । हम है मता-ए-कूचा-ओ'-बाज़ार की तरह ... !!

अजित वडनेरकर said...

@शुक्रिया आरडी भाई,
दुनिया एक बाज़ार ही है। मदनमोहन जी के संगीत से सजी क्या खूब चीज़ याद दिलाई आपने....हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह...अपना भी पसंदीदा नग़मा है ये....

प्रवीण पाण्डेय said...

वहा आचार में धन का व्यापार..

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