Tuesday, September 30, 2008
प्रेमगली से खाला के घर तक...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 11 कमेंट्स पर 2:05 AM
Monday, September 29, 2008
आप भले, जग भला...[बकलमखुद-74]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 16 कमेंट्स पर 12:52 AM लेबल: बकलमखुद
Sunday, September 28, 2008
जुए का अड्डा या कुश्ती का अखाड़ा !
Friday, September 26, 2008
धिन ! क्यूं खलोती है ? [बकलमखुद-73]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 24 कमेंट्स पर 9:28 PM लेबल: बकलमखुद
पकौड़ियां, पठान और कुकर
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 11 कमेंट्स पर 2:18 AM
Thursday, September 25, 2008
फर्स्ट क्रश- कपिलदेव [बकलमखुद-72]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 21 कमेंट्स पर 12:05 AM लेबल: बकलमखुद
Wednesday, September 24, 2008
फ़िरंगी का फ़ीका रंग गाढ़े पर भारी...
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
दिल्ली की गलियों में 1857 की क्रांति के दौरान यह आम नज़ारा था। इतिहास की किताबों में इसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है फोटो सौजन्य-http://www.superstock.com/
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 10 कमेंट्स पर 1:55 AM
Tuesday, September 23, 2008
नींबू, अमरूद का पेड़ और मुर्गियां...[बकलमखुद71]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 28 कमेंट्स पर 12:14 AM लेबल: बकलमखुद
Monday, September 22, 2008
बालटी किसकी ? हिन्दी या पुर्तगाली की .[बरतन-1]..
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 15 कमेंट्स पर 3:03 AM
Sunday, September 21, 2008
डॉक्टर हर्षदेव की कलम और कैंची
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 11:08 PM
सुनें रंजना भाटिया की...[बकलमखुद-70]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 41 कमेंट्स पर 12:27 AM लेबल: बकलमखुद
Saturday, September 20, 2008
बहीखातों का अंबार यानी दफ्तर
आपकी चिट्ठियां सफर के पिछले पड़ावों- समूह से समझदारी की उम्मीदें...,आबादी को अब्रे-मेहरबां की तलाश...[चमक-ऊष्मा-प्रकाश... ,एक मातृभाषा की मौत और विधवा-बेवा-विडो पर कई साथियों की चिट्ठियां मिलीं । आप सबका आभार...सर्वश्री Anil Pusadkar Shastri ई-गुरु राजीव chandrashekhar hada डॉ .अनुरग सचिन मिश्रा manisha bhalla अनामदास Gyandutt Pandey सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी Mrs. Asha Joglekar सोनू डॉ .अनुराग रंजना [रंजू भाटिया] Udan Tashtari डा. अमर कुमार sidheshwer Sanjay अनूप शुक्ल प्रेमचंद गांधी Prem Chand Gandhi pallavi trivedi Arvind Mishra Swati डा. अमर कुमार अनूप शुक्ल प्रेमचंद गांधी Prem Chand GandhiDr. Chandra Kumar Jain दिनेशराय द्विवेदी pallavi trivedi Arvind Mishra अभिषेक ओझा Swati लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`बने रहें सफर में । |
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 11 कमेंट्स पर 2:17 AM
Friday, September 19, 2008
विधवा-बेवा-विडो
Wednesday, September 17, 2008
एक मातृभाषा की मौत
इस साल की शुरुआत में अमेरिका के सुदूर अलास्का प्रांत में एक भाषा की मौत हो गई। उस अमेरिका में जो खुद को दुनियाभर में मानवाधिकारों का सबसे बड़ा पैरोकार समझता है, वहां घुटती-सिमटती और काल के गाल में समाती भाषा को बचाने की फिक्र कहीं नज़र नहीं आई। भाषा , जो मनुश्य के होने का सुबूत है...एक समूदाय के अस्तित्व का पुख्ता सुबूत...मगर जिसे खत्म हो जाने दिया गया....इस दुखद घटना पर कादम्बिनी की संपादक मृणाल पांडे ने पत्रिका के अप्रैल माह के अंक में एक विचारोत्तेजक संपादकीय लिखा। हालांकि यह खबर उससे भी काफी पहले समाचार एजेंसियों पर आ चुकी थी। मैने भी उसे पढ़ा और शायद छापा भी। मृणालजी का यह लेख आप तक पहुंचाने की इच्छा थी , सो कम्प्यूटर में सहेज लिया । ये अलग बात है कि ऐसा करने के बाद मैं इसे भूल भी गया। आज अचानक उस फाइल पर नज़र पड़ी । पेश है शब्दशः वह संपादकीय- |
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 13 कमेंट्स पर 2:28 AM
Tuesday, September 16, 2008
आबादी को अब्रे-मेहरबां की तलाश...[चमक-ऊष्मा-प्रकाश]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 9 कमेंट्स पर 12:15 AM लेबल: god and saints
Sunday, September 14, 2008
समूह से समझदारी की उम्मीदें...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 2:57 AM
Saturday, September 13, 2008
रुआबदार अफसर था कभी जमादार...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 9 कमेंट्स पर 1:54 PM लेबल: government