Tuesday, October 21, 2008

कातिबे-तक़दीर कुछ तो बता दे...

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हते है कि पुस्तक से अच्छा कोई मित्र नहीं होता। पुस्तक यानी पोथी-पत्रा, ग्रंथ आदि। मगर इतने विकल्प होने के बावजूद पुस्तक के अर्थ में हिन्दी में ज्यादातर किताब शब्द का चलन है। पुस्तक भी प्रचलित शब्द है मगर इसका इस्तेमाल लिखने में ज्यादा होता है बोलचाल में किताब शब्द ही अधिक प्रयोग में आता है। क़िताब मूलतः अरबी का शब्द है और फ़ारसी–उर्दू में भी प्रचलित है।
रबी की धातु है कतब जिसमें लिखने का भाव निहित है। कतब से बने अनेक शब्द अरबी, फ़ारसी, उर्दू में प्रचलित हैं और हिन्दी समेत अनेक बोलियों में प्रचलित हैं। किसी इमारत या स्मारक जिसमें क़ब्र भी शामिल है में अक़्सर एक पत्थर लगाया जाता है जिस पर उस स्थान और उससे जुड़े व्यक्ति के बारे में विवरण होता है जिसे हिन्दी में शिलालेख अथवा अभिलेख कहते हैं। अरबी में इसे कत्बः या कत्बा कहते हैं। कतब में निहित लिखने के भाव यहां स्पष्ट हैं। इसी का एक रूपांतर है खुत्बः या खुत्बा जिसका मतलब होता है प्राक्कथन, पुस्तक की भूमिका। खुत्बा धर्मोपदेश भी होता है और नमाज़ या निकाह के वक़्त भी पढ़ा जाता है।
सी श्रंखला में आता है ख़त जिसे जिसका अर्थ होता है आड़ी टेड़ी रेखाएं बनाना, चिह्नांकन करना, चिह्न, निशान, चिट्ठी-पत्री, परवाना, तहरीर आदि। इस कड़ी का सबसे महत्वपूर्ण शब्द है किताब जिसका मतलब होता है पुस्तक, ग्रंथ, पोथी, पन्ना, कॉपी आदि। उर्दू में सुलेखन बहुत विशिष्ट कला विधा रही है। सुलेखन का काम किताबत कहलाता है। पुस्कालय या लाइब्रेरी को किताबखाना या किताबिस्तान कहते हैं। किताबी चेहरा एक मुहावरा है जिसका अर्थ है चित्रोपम या कल्पना के अनुकूल। भाव है ऐसा चेहरा जो किताबों में वर्णन रहता है।
सी मूल का एक अन्य महत्वपूर्ण शब्द है कातिब अर्थात लिखनेवाला। कातिब उर्दू में बाबू , क्लर्क या लिपिक को भी कहते हैं। वैसे हर लिपिक कातिब हो सकता है मगर हर बाबू या क्लर्क कातिब नहीं होते। जिस कर्मचारी के पास कार्यालय संबंधी पत्रों के लिखने, दर्ज करने आदि का काम हो वहीं कातिब कहलाता है। उर्दू के अखबार में कम्पोजिटरों को कातिब ही कहा जाता है क्योंकि वहां अभी भी मशीनी लिखाई की जगह हाथ से लिखने का काम होता है। चूंकि सबके भाग्य का लेखा ईश्वर के पास है इसलिए तकदीर लिखनेवाला ईश्वर ही हुआ । उर्दू में इसे कातिबे-तकदीर कहा जाता है।
bt दफ्तरों के कातिब यानी बाबू के पास कई लोगों की तकदीर की फाइलें रहती है  पर कातिबे-तकदीर तो कोई और ही है..
तब से ही कई अन्य शब्द भी बने हैं जैसे सरकारी दफ्तर जहां लिखा-पढ़ी का काम ही होता है मकतब कहलाता है। कुतुब यानी जहां शिक्षणकार्य किया जाए । मकतब और कुतुब दोनों का इस्तेमाल पाठशाला के अर्थ में भी किया जाता है। कुतुब का अर्थ किताब का बहुवचन भी होता है। कुतुबी, कुतुबफ़रोश पुस्तक विक्रेता को कहते हैं। लाइब्रेरी के लिए भी कुतुबखाना शब्द चलता है। कुछ लोग इसे अशुद्ध बताते हैं । कुतब अपने आप में बहुवचन है इसलिए उसके साथा खाना शब्द लगाना गलत है।  अरबी के कतब से बने ये तमाम शब्द विभिन्न रूपों में अन्य
कई भाषाओं में भी मौजूद हैं जैसे तुर्की में किताब को किताप कहेंगे, स्वाहिली में इसका रूप किताबू है। फारसी में कुतुब का उच्चारण कोतोब की तरह होता है। इसी तरह कुतुब का तुर्की रूप कुतुप ही होगा।
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11 कमेंट्स:

PD said...

वाह.. एक और बहुत खूब वाला पोस्ट.. अभी कुछ ही दिन पहले मैं अपने किसी पोस्ट में खत कि खूबियों को गिना रहा था और आपने उसका पूरा चिट्ठा-खाता खोल कर रख दिया..

अरे वाह हम तो अलंकार से भी अलंकॄत हैं.. मुझे पता ही नहीं था.. :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह! क्या किताबी पोस्ट है।

Gyan Dutt Pandey said...

कातिब कब कालान्तर में कातिल से जुड़ा, उसका कोई आख्यान है। या वह मेरे मन की शुद्ध उड़ान है अरब सागर पर।

Anonymous said...

हम तो कुतुब मीनार से ज्‍यादा कुछ नहीं जानते थे लेकिन आपके कुतुबखाने से बहुत कुछ जाना।

अविनाश वाचस्पति said...

कुतुब पर खाना

बैठकर

चढ़कर

उसके उपर

अब दिल्‍ली वालों का

भी नसीब कहां ?

वैसे पुस्‍तक मेले को

किताबखाना भी तो

कह सकते हैं ?
बात दीगर है

कि पुस्‍तक
से
आंखों और मन
के माध्‍यम से

दिमाग की आग

बुझाई जाती है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

किताब और पुस्तक और ख़त सारे ही पसंदीदा हैं !

डॉ .अनुराग said...

वाकई ....शब्दों के रखवाले है आप !शब्दों के संग्रहकर्ता कहूँ तो ज्यादा फिट बैठेगा

Anita kumar said...

सुलेखन का काम किताबत कहलाता है। क्या किताबत से ही अग्रेंजी का शब्द कैलिग्राफ़ी आया, वो भी तो शब्दों को सुन्दर शैली में लिखने की कला के लिए है।

Abhishek Ojha said...

खुत्बा और ख़त सुना था लेकिन इस रास्ते किताब तक कहाँ जा पाये थे. कुतुब को तो कुतुबद्दीन ऐबक और कुतुबमीनार तक ही सुना था.

समीर यादव said...

शब्दों के सफर के सल्तनत के आप हो गए हैं सुलतान ... कुतुब-उद्दीन और आपने इस सफर को कुतुब-मीनार की ऊंचाई देने का प्रयास किया है. सुभान अल्लाह....!!! आमीन.

विष्णु बैरागी said...

परिश्रम आपका, फायदा हमारा । सलाम ।

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