Wednesday, January 21, 2009

नोट करें, नोट लें, नोट दें...[सिक्का-14]

शासन की ओर से एक काग़ज़ का खरीता जारी किया जाता था जिस पर उसके बदले भुगतान की जानेवाली राशि दर्ज होती थी। इस राजकीय प्रमाण पत्र को मुद्रा के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता था। आवश्यकता पड़ने पर राजधानी आकर इसके मूल्य के बराबर राशि का भुगतान भी प्राप्त किया जा सकता था।
का गज़ के आविष्कार का श्रेय अगर चीन को दिया जाता है तो कागज़ी मुद्रा की शुरुआत भी चीन में ही हुई। काग़ज का उत्पादन सीखने की नौ सदियों बाद ही चीन को धातु मुद्रा के इस्तेमाल में आ रही व्यावहारिक दिक्कतों का निदान भी काग़ज़ में ही सूझा। तांग वंश के शासनकाल में सरकार को यह महसूस होने लगा कि विशाल राज्य में धातु के सिक्कों को एक जगह से दूसरी जगह भेजना बहुत श्रमसाध्य और जोखिम का काम था। हो ये रहा था की विभिन्न टकसालों से सुदूर क्षेत्रों में कारोबारी गतिविधियों को जारी रखने के लिए भारी मात्रा में मुद्रा भेजने की व्यवस्था लगातार करना मुश्किल हो रहा था। यह कहना मुश्किल है कि काग़ज़ी मुद्रा के पीछे किसकी सूझ थी मगर तांग वंश (618-907) के शासनकाल में इसकी शुरुआत का उल्लेख है जिनका साम्राज्य चीन की पूर्वी सीमा से शुरू होकर सुदूर पश्चिमी सीमा तक पसरा था। काग़ज़ी नोट के विकास में सुंग वंश (907-1127) का युग भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

काग़ज़ी मुद्रा की तत्कालीन व्यवस्था बहुत कुछ आज की व्यवस्था जैसी ही थी। शासन की ओर से एक काग़ज़ का खरीता जारी किया जाता था जिस पर उसके बदले भुगतान की जानेवाली राशि दर्ज होती थी। इस राजकीय प्रमाण पत्र को मुद्रा के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता था। आवश्यकता पड़ने पर राजधानी आकर इसके मूल्य के बराबर राशि का भुगतान भी प्राप्त किया जा सकता था। याद करें भारतीय नोट पर रिजर्व बैंक के गवर्नर का लिखा वह वचन- ‘मैं धारक को सौ रुपए अदा करने का वचन देता हूं।’ मुद्रा-भुगतान की यह प्रणाली चीन में बहुत कारगर साबित हुई । यूरोपीय यात्री मार्कोपोलो(1254-1324) ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में चीन की आश्चर्यजनक काग़ज़ी मुद्रा का उल्लेख किया है। शुरुआती दौर में इसे वहां फ्लाइंग-करंसी या उड़न-मुद्रा कहा गया क्योंकि तेज हवाओं से यह अक्सर हाथ से उड़ जाती थी। संयोग नहीं कि बेहिसाब खर्च के लिए रुपए उड़ाना जैसा मुहावरा काग़ज़ी मुद्रा की वजह से पैदा हुआ हो। उड़ने के साथ मुद्रा में बहने का स्वभाव भी है। अर्थशास्त्र का विकास होने पर इसमें तरलता(लिक्विडिटी) के गुण का भी पता चला। इसे आसान भाषा में समझना चाहें तो मौद्रिक तरलता से अभिप्राय किसी भी व्यवस्था में नकदी की उपलब्धता या उसके प्रसार में बने रहने से ही है।

ज हम जिस काग़ज़ी मुद्रा को नोट के रुप में जानते हैं उसका चलन यूरोप से शुरु हुआ है। चीन में काग़ज़ी मुद्रा का प्रचलन आम होने की कई सदियों बाद यूरोप ने काग़ज़ी मुद्रा को अपनाया।

यूरोपीय यात्री मार्कोपोलो(1254-1324) ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में चीन की आश्चर्यजनक काग़ज़ी मुद्रा का उल्लेख किया है। शुरुआती दौर में इसे वहां फ्लाइंग-करंसी या उड़न-मुद्रा कहा गया क्योंकि तेज हवाओं से यह अक्सर हाथ से उड़ जाती थी।

रोजमर्रा के अन्य क्षेत्रों में धातु का बढ़ता प्रयोग, धातु की उपलब्धता में कमी, सिक्कों की ढलाई में बढ़ता लागत खर्च और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने की परेशानी के चलते आखिरकार यूरोप ने भी काग़ज़ी मुद्रा को अपना लियाजिसकी शुरुआत 1660 में स्टाकहोम बैंक ने की। शुरुआती दौर में सीमित दायरे में इन बैंक नोट्स का प्रसार हुआ। ये बैंक नोट काफी हद तक चीन में प्रचलित नोटों जैसे ही थे अलबत्ता इनमेंइस्तेमाल होने वाली सामग्री में यूरोप की औद्योगिक क्रांति के दौरान लगातार बदलाव आता रहा और काग़ज़ी मुद्रा को लगातार टिकाऊ बनाए रखने पर आज भी निरंतर प्रयोग चल रहे हैं।

दुनिया भर में जिस पेपर करंसी को आज नोट के नाम से जाना जाता है वह दरअसल अधूरा शब्द है। इसका पूरा नाम है बैंक-नोट जो एक तरह का हवाला-पत्र, वचन-पत्र था एक निर्धारित मूल्य के भुगतान हेतु। इसे खरीदा-बेचा भी जा सकता था। अपने कई गुणों की वजह से धीरे धीरे पूरी दुनिया में बैंक नोट अर्थात काग़ज़ी मुद्रा ही चलन में आ गई। हर देश में वहां का प्रमुख बैंक ही सरकार की तरफ से मुद्रा जारी करता है। सिक्कों का चलन अब सिर्फ फुटकर मुद्रा के तौर पर होता है। नोट शब्द मूलतः इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द है। नोट(note) का मतलब होता है परीक्षण, गौर करना, ध्यान देना, चिह्न, जानकारी आदि। गौरतलब है कि नोट उसी gno धातु से बना है जिससे अंग्रेजी का know और संस्कृत का ज्ञान gnjyan शब्द बना है। इन दोनों में ही निरीक्षण, परीक्षण, अवगत होना, कराना, जानकारी रखन, देखना-समझना आदि भाव हैं। मूल रूप से प्राचीन लैटिन के gnoscere से gnata का रूप लेते हुए अंग्रेजी का नोट अस्तित्व में आया । लैटिन के notare से यह फ्रैंच मेदाखिल हुआ। जहां इसका रूप बना noter जिसका अर्थ है चिट्ठी, ध्यानार्थ आदि। इसी धातु मूल से अंग्रेजी का नोटिस शब्द भी बना। गौरतलब है कि नोट और नोटिस दोनों ही शब्द हिन्दी-उर्दू में बहुत ज्यादा प्रचलित शब्दों में हैं। नोट और नोटिस दोनों ही वस्तुएं ली और दी जा सकती है। नोट करना अर्थात लिखना तो खैर एक महत्वपूर्ण क्रिया है ही।

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15 कमेंट्स:

Anonymous said...

'नोट' अधूरा है, यह पहली बार मालूम हुआ। आपने ज्ञानवर्ध्‍दन किया।

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह! बैंक नोटों से ज्ञान का भी रिश्ता है! तब तो भौतिक समृद्धि की कुछ आशा की जा सकती है।

Himanshu Pandey said...

अत्यन्त समृद्ध ज्ञानवर्धक प्रविष्टि.
रोचक रही नोट की शब्द-व्युत्पत्ति. धन्यवाद.

ताऊ रामपुरिया said...

एक और लाजवाब ज्ञानवर्धक जानकारी मुहैया करवाई आपने . धन्यवाद.

रामराम.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पोस्ट क्या करंसी ही है यह !
========================
हर रोज़ कुछ...बहुत कुछ
नगद की तरह दे जाते हैं आप !
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Udan Tashtari said...

गजब भाई..कितनी कितनी दूर तक हर शब्द के तार जुड़े हैं अन्यथा तो सोच पाना भी मुश्किल है. आपका बहुत आभार.

Vinay said...

आपके चिट्ठे पर आये बिना रहा नहीं जाता, अभी पुराना बहुत पढ़ने को पड़ा है और नया इतना मज़ेदार आ गया है


---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

Anonymous said...

नोट के बारे में ये जानकारी भी अपनी स्मृति में "नोट" कर ली..

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! असल में मौके की बात तो यह है कि नोट लें, वोट दें।
नोट और वोट का रिश्ता भी भाषा के सफर में आता है या नहीं!

Anonymous said...

नोट के लिए बिल भी इस्तेमाल करते हैं हैं कहीं कहीं

डॉ .अनुराग said...

कहाँ कहाँ से लाते है ये अनमोल खजाने आप ?

RDS said...

नोटशीट पर लिखा जाने वाला 'नोट' ही सरकारी काम की रफ़्तार की कुंजी है | हर दृष्टि से यह तय सा है कि सरकारी दफ्तरों में कोई काम बिना 'नोट' के नहीं होता | करेंसी नोट के लिए हाल के वर्षों तक प्रयुक्त होने वाला शब्द 'रुक्का' भी शायद लिख कर दिए जाने वाले 'नोट' को ही ध्वनित करता प्रतीत होता है |

हम बैंक वालों के लिए तो आपने ज्ञान का खजाना खोल दिया है | हमारा खजाना माया का , सो तुच्छ ! खजाना हो तो ज्ञान का, आप सा !

वैसे इस दौर में हर कोई आपको 'रुपये उडाने' में माहिर कर देना चाहता है | देखते हैं, 'प्लास्टिक मनी' का चलन बढ़ते बढ़ते नोट शब्द का सफ़र हमें किस मुकाम पर पहुंचाता है |

- आर डी सक्सेना भोपाल

Abhishek Ojha said...

नोट से 'फ्लोटिंग रेट नोट' भी याद आया एक वित्तीय इंस्ट्रूमेंट है... कुछ दिनों पहले इस पर काम करना पड़ा था. gno धातु को जानना रोचक रहा.

Sanju dabla said...

Q. नोट किस भाषा का शब्द है

Sanju dabla said...

नोट किस भाषा का शब्द है

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