जहां तक सोलह आना सच वाले मुहावरे का सवाल है, यह सौ फीसद खरी सचाई की बात ही करता है। विभिन्न मुद्राओं के मूल्य के आधार पर भाषा मुहावरों से समृद्ध होती रही है, यह मुहावरा भी उनमेंसे एक है। इसका रिश्ता भी आना नाम की एक प्राचीन मुद्रा से है जो मुगल काल और अंग्रेजीकाल में भी जारी रही। आना शब्द बना है संस्कृत के अणकः या आणव से जिसका अर्थ होता है तांबे का एक छोटा सिक्का। इसी का अपभ्रंश रूप है आना। अणकः का जन्म हुआ संस्कृत के अण् धातु से जिसका अर्थ होता है अत्यंत तुच्छ, सूक्ष्म, नगण्य छोटा इत्यादि। सृष्टि के सर्वाधिक सूक्ष्म पदार्थ के लिए अणु शब्द भी इसी मूल से जन्मा है जिसके मायने हैं सबसे छोटा अंश, विभाग, कालांश। अणु से भी छोटे कण के लिए परम उपसर्ग लगा कर परमाणु शब्द बनाया गया। सूई की नोक के लिए अनी शब्द भी संस्कृत केअणिः से बना है जो इसी कड़ी का हिस्सा है और सूक्ष्मता दर्शाता है। पृथ्वी पर अंतरिक्ष से निरंतर धूलकणों की वर्षा हो रही है। यह धूल एस्टीरायड्स अर्थात क्षुद्रग्रहों के वायुमंडल में प्रवेश के बाद घर्षण की वजह से जलने से उत्पन्न होती है। धूलकणों के लिए अत्यंत प्राचीन शब्द है रेणु । यह बना है री+अणु से। अर्थात निरंतर गिरते रहनेवाले कण। रेणु का एक अन्य अर्थ होता है
...छोटी मुद्रा के लिए आना शब्द संस्कृत की अण् धातु से जन्मा है जिसका अर्थ होता है अत्यंत तुच्छ, सूक्ष्म, नगण्य और छोटा...अणु इसी मूल से जन्मा है...
पुष्पकण , परागकण, पुष्परज अथवा पुष्पधुलि। जमदग्नि ऋषि की पत्नी और परशुराम की माता का नाम रेणुका था जो इसी मूल का है। यह बना है रेणुकः से । विभिन्न स्रोत रेणुका के कई अर्थ बताते हैं जिसके मुताबिक इसका अर्थ है पृथ्वी, धुलिकण, एक जीवनरक्षक ओषधि और मटर की फली । अण् से बने आना शब्द की रिश्तेदारियां काफी महत्वपूर्ण हैं।एक आना का मूल्य चार पैसों के बराबर होता था। इस तरह से मुगलों और अंग्रेजी शासन में भी इकन्नी, दुअन्नी जैसी मुद्राएं प्रचलित थीं। चार आने अर्थात पच्चीस पैसे का सिक्का हाल के वर्षों तक प्रचलित रहा है। इसे चवन्नी कहा जाता था। इस चवन्नी ने भी मुहावरे में अपनी पैठ बनाई और निकृष्टता, निम्नता, घटियापन के रूप में चवन्नीछाप, चवन्ना, चवन्निया जैसे शब्द बन गए जो मुहावरे की अर्थवत्ता रखते हैं। लोग लंपट,बदमाश आदि को भी इसी रुतबे से नवाज़ने लगे है। चवन्नीछाप को आजकल अंग्रेजी में बतौर चवन्नीचैप दाखिला मिल चुका है। हिन्दी का छाप शब्द चवन्नी के साथ जुड़कर जो प्रभाव पैदा कर रहा है वहीं अंग्रेजी का चैप भी कर रहा है। यह मुहावरे में रचनात्मक बदलाव है मगर अर्थवत्ता वही है। अंग्रेजी का चैप शब्द बना है चीप से जिसे हिन्दी में सस्ता, निकृष्ट, घटिया,तुच्छ, साधारण या निकम्मा के अर्थ में समझा जाता है। यूं इस शब्द में ग्राहक, मोल-भाव करना, तोल- मोल करना, ऊंच-नीच आदि भाव हैं। उचित मू्ल्य पर खरीदारी के अर्थ में प्रचलित हुए इस शब्द के साथ सौदेबाजी के रूप में साथ जुड़ा नकारात्मक भाव ही चीप शब्द को ले बैठा।
चवन्नी की तरह अठन्नी शब्द भी प्रचलित हुआ। यह बना आठआना से। गौरतलब है कि पुराने जमाने में चौंसठ पैसे का रुपया होता था। इस तरह सोलह आने अर्थात एक रूपया यानी चांदी का सिक्का बनता। सच के संदर्भ में सोलह आने का सौ फीसद सच का भाव यहां पूरी तरह स्पष्ट हो रहा है। अंग्रेजी राज में बाद जब मौद्रिक व्यवस्था में दाशमिक प्रणाली को अपनाया गया तो आना छह पैसे का हो गया और सोलह आने तब भी एक रूपया ही बने रहे और चवन्नी-अठन्नी का महत्व बना रहा। आजादी के बाद आना-पाई की व्यवस्था समाप्त हुई और आना का चलन भी खत्म हुआ मगर सच की चमक सोलह आना वाले मुहावरे में आज भी नजर आ रही है।
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8 कमेंट्स:
स्कूल जाने लगे तो इकन्नी मिलती थी। जिस में एक कचौड़ी और पांच छह बम्बई की मिठाई (मीठी गोलियां)खरीदी जा सकती थीं। या फिर छटांक भर सेव और दो कलाकंद के टुकड़े। खूब याद दिलाया सफर ने अपने सफर का एक मुकाम।
इनका सफर कहाँ से कहाँ तक आ गया है, अब तो एक रूपया दिखना भी दुभर हो गया है। शायद अगले कुछ वर्षों में १० रूपया सबसे छोटी इकाई हो वही इकन्नी की तरह।
एकन्नी दुअन्नी आना सुना है जाना आज . हम तो ५ पैसे इस्तेमाल करने वाली नस्ल से है . हमारे समय मे एक ,दो ,तीन पैसे के सिक्के चलन से बाहर हो गए थे लेकिन दीखते थे .
सिक्कों का ये सफर काफी रोचक है.. आगे का इन्तजार रहेगा..
लाजवाब सफ़र रहा ये तो. बहुत पुराने जमाने की यानि बचपन की यादें ताजा करवा दी ! यहा मैं एक बात जोडना चाहुंगा कि १९६५ के पाकिस्तान युद्ध के आसपास ये इकन्नी बंद हो चली थी चलन से। इसका नाम ही खोटी इकन्नी पड गया था। गांव मे बर्फ़ की कुल्फ़ी बेचने वाले आया करते थे वो इस इकन्नी की एक या दो बर्फ़ देते थे।
बहुत बढिया सफ़र करवाया आपने।
रामराम।
आपके पास आकर वास्तव में ज्ञान मिलता है . शुक्रिया !
अणु से आना. दिलचस्प जानकारी. वैसे पैसे, अदन्नी (दो पैसे), दुअन्नी(दो आना),चवन्नी और अठन्नी आजादी के अनेक वर्षों बाद, नए पैसे आने के बाद तक चलते रहे.
इस 'आने' ने कइयों की इज्जत की इकन्नी कर दी और कइयों ने अपनी चवन्नी को रुपये में चला दिया ।
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