ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के चौदहवें पड़ाव और इक्यासीवें सोपान पर मिलते हैं पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-
बालाघाट में नक्सली ट्रेनिंग
विदिशा जिले के लटेरी थाने के दिलचस्प अनुभवों से गुजरने के बाद दो माह की नक्सलाईट ट्रेनिंग हुई...इसके लिए हमें बालाघाट जिले में भेजा गया! ये पार्ट मेरी ट्रेनिंग का सबसे रोमांचक था! इसमें हमें अपने सामान और हथियारों के साथ जंगल में रहना पड़ा ! हम लोगों को ६-६ के ग्रुप में बाँट दिया गया था! एक बार रात को जंगल में सोते समय तेज़ बारिश शुरू हो गयी थी! हम लोगों के पास बरसात से बचने के लिए कोई इंतजाम नहीं था! जिस चटाई को बिछाकर सोये थे....उसी को सर पर ओढ़ लिया! लेकिन आधे घंटे में ही हम चटाई सहित पानी में तर बतर हो चुके थे! चारों तरफ कीचड ही कीचड! पानी में भीगकर हमारा सामान भी भारी हो गया था!और अब हमारे पास बदलकर पहनने को सूखे कपडे भी नहीं थे! और वहाँ से हमारा रेस्ट हाउस करीब पचास किलोमीटर दूर था...और जाने के लिए कोई साधन नहीं! हम सभी पैदल ही चल रहे थे! भीगे हुए हम सब आगे एक गाँव में पहुंचे! वहाँ आग जलाकर अपने कपडे सुखाये!इसके बाद गाँव के ही सरपंच ने गरम गरम मोटी रोटियाँ और आलू की सब्जी खिलाई! हम इतने भूखे थे की न जाने कितनी रोटियाँ खा गए! अब तक शाम हो चुकी थी!
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है...
दोबारा चलना शुरू किया! इस बार रास्ता बहुत खूबसूरत था....छोटे छोटे झरने, जानवर और चारों तरफ हरियाली ! पिछली रात के सारे कष्ट हम भूल चुके थे! तीन घंटे चलने के बाद अँधेरा हो गया और ये रात हमने एक किसान के भूसे से भरे हुए कमरे में काटी! हम इतने थके हुए थे कि भूसे पर लेटते ही कब नींद आई पता ही नहीं चला! कभी कभी सोचती हूँ कि हम लोग इतने आराम तलब हो गए हैं कि घर पर रहते हुए छोटी छोटी परेशानियों से खीजने लगते हैं! बिजली चली जाए या एक दिन आरामदायक बिस्तर न मिले तो नींद नहीं आती! लेकिन जंगल के इस अनुभव से मुझे समझ में आ गया कि एक मजदूर दिन भर थकने के बाद फूटपाथ पर इतनी गहरी नींद कैसे सो लेता है! अब मैंने इन छोटी छोटी बातों से परेशान होना छोड़ दिया है! वैसे सच कहूं तो इस ट्रिप से मुझे थकने के बहुत सारे फायदे समझ में आये! पहला तो ये कि जब आप कड़ी मेहनत करके थक जाते हो तो बिना किसी शिकवा शिकायत के कहीं भी सो सकते हो! क्योंकि उस वक्त सोना ही पहली ज़रुरत होती है! दूसरा ये कि थकान के बाद आप कभी तनाव में नहीं रह सकते , निरर्थक बातें सोचने के लिए आपके पास दिमागी ताकत भी नहीं बचती है! मैं आज भी जब कभी बोर होती हूँ या जल्दी सोना चाहती हूँ उस दिन लम्बी वाक पर निकल जाती हूँ!
अफ़सरी शुरू...पहली पोस्टिंग घर पर...
अब ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी! इसके बाद पहली पोस्टिंग मेरी शिवपुरी की बटालियन में हुई! चूंकि शिवपुरी मेरा घर भी है तो मुझे तो मज़ा आ गया! एक साल तक घर में रहकर नौकरी की! ड्रायविंग मैंने यहीं रहकर सीखी! और ड्रायविंग सीखने के दौरान ही मैं इतने उत्साह में आ गयी थी कि शिवपुरी से भोपाल मुझे किसी काम से जाना था ! तो पूरे तीन सौ किलोमीटर गाडी मैंने अकेले चलाई! और मेरी स्पीड ८० से कम नहीं थी! यहाँ तक की टर्निंग पर भी मैं स्पीड कम नहीं करती थी! ड्रायवर बेचारा पीछे बैठा भगवान् को याद कर रहा था! बाद में जब गाडी अच्छे से चलाना आ गया तो मुझे महसूस हुआ कि उस दिन मैंने कितनी खतरनाक ड्रायविंग की थी! और शायद ड्रायवर के भगवान को याद करने से ही हम बचे थे! सचमुच अति उत्साह भी कोई अच्छी चीज़ नहीं है!
लटेरी थाने में ट्रेनिंग के बाद अगला पड़ाव था बालाघाट जिले में नक्सली इलाके में ट्रेनिंग का। नीचे चित्र में साथियों के साथ जंगल कैम्प के दौरान कुछ हल्के फुल्के क्षण ट्रेनिंग के दौरान ही हमने कान्हा-कीसली नेशनल पार्क घूमने का मौका भी नहीं छोड़ा
ग्वालियर में जिंदगी के तजुर्बातएक साल घर पर रहकर नौकरी करने के बाद मेरा ट्रांसफर ग्वालियर हो गया! अब असली फील्ड का काम था! वहाँ जाकर मुझे एस.डी.ओ.पी. बेहट पोस्टिंग मिली! बेहट ग्वालियर का एक सब डिविज़न है! और तानसेन का जन्मस्थान भी! वहाँ की सबसे अच्छी बात ये थी की मेरा हैड क्वार्टर ग्वालियर ही था! इसलिए देहात की नौकरी होने के बाद भी शहर में ही रहने को मिल गया था! यहाँ मैं चार देहात के थाने देखने के साथ शहर का महिला थाना भी देख रही थी! एक साल बाद मेरा ट्रांसफर सी.एस.पी. ग्वालियर के रूप में हो गया! ग्वालियर की साढ़े तीन साल की नौकरी के दौरान दुनिया के बारे में इतना कुछ जानने को मिला कि शायद जीवन के इतने रंग तो मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखे थे! मुझे महसूस हुआ कि दुनिया न तो इतनी खूबसूरत है जितना हम सोचते हैं और न ही इतनी बदसूरत कि हम इससे नफरत करें! जहां एक और अच्छाई बिखरी पड़ी है वहीं बुराई की दलदल भी दूर दूर तक दिखाई देती है! जहां एक ओर मैंने अपने भाई को सजा से बचाने के लिए खुद पर अपराध की जिम्मेदारी लेते हुए एक इंसान को देखा तो वहीं दूसरी और पिता को अपनी सात साल की बेटी का बलात्कार करते भी देखा!जहां एक ओर देखा कि एक माँ खुद पुलिस के पास चलकर आती है और अपने चोर बच्चे को आंसू भरी आँखों से पुलिस के हवाले करती है वहीं देखा कि एक पत्नी अपने पति की हत्या करके अपने ही घर में गाड़ देती है और बिना किसी अपराध बोध के उसी घर में रहती है! ऐसे कई अनुभव हैं जिन्हें पूरा का पूरा तो लिख पाना संभव नहीं है लेकिन फिर भी कुछ ख़ास अनुभव तो मैं सभी के साथ शेयर करना ही चाहूंगी!
चांटे से बुद्धि की शुद्धिकरण !!
मैं महिला थाना देखने के साथ ग्वालियर के तीन परिवार परामर्श केन्द्रों का सुपरविज़न करती थी! इसके पहले तक मैं सोचती थी की गरीब और अशिक्षित तबके की औरतें ही घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं लेकिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा की ये समस्या पढ़े लिखे और अमीर परिवारों में भी उतनी ही है! नौकरीपेशा महिलायें भी दहेज़ और ससुराल वालों के अत्याचार जैसी दिक्कतों का सामना कर रही हैं! एक बार मेरे पास एक पति पत्नी आये! पत्नी ने रोते हुए बताया की उसका पति उसे रोज़ पीटता है!पति ने भी गर्व से स्वीकार किया कि वह उसे पीटता है! पति का कहना था कि पत्नी अगर गलती करे तो पति को पीटने का अधिकार है! पत्नी उससे अलग होना चाहती थी! उसने थाने में खड़े होकर डरते डरते मुझसे एक फेवर माँगा! वह एक बार अपने पति को एक चांटा मारना चाहती थी! सालों से जो वो रोज़ पिटती चली आ रही थी...अलग होने के पहले वह पति को भी उस जिल्लत का एहसास दिलाना चाहती थी! मैंने उसे इजाज़त दे दी...! उसने पूरी ताकत से अपने पति को ज़ोरदार तमाचा रसीद किया! पति अपमानित होकर हक्का बक्का देखता रह गया! चूंकि थाने में खडा था इसलिए कुछ कह नहीं सकता था! खैर उस वक्त दोनों चले गए! एक महीने बाद दोनों एक साथ ख़ुशी ख़ुशी मेरे पास आये! पति ने पत्नी को मारना बंद कर दिया था! चांटा खाकर उसकी बुद्धि शुद्ध हो गयी थी! कभी कभी व्यक्ति को अपने किये गए जुल्म का एहसास नहीं होता, जब तक कि उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाए!
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28 कमेंट्स:
पल्लवी,
जीवन के हर पहलू के साथ आपका सकारात्मक दृष्टिकोण रखना हमें बहुत भा रहा है। खास बात यह कि हर नए अनुभव से गुज़रने के बाद उसका व्यापक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करना। अधिकांश लोग लम्हों को यूं ही बीत जाने देते हैं मगर उन्हें अगर मथा जाए तो जो हासिल होता है वो हमेशा साथ रहता है। इस तरह गुज़रे क्षण कभी फिसलते नहीं। वक्त की कसौटी पर खरा उतरना इसी को कहते हैं।
यूं ही बनी रहें। आमीन।
शुभकामनाओं सहित,
अजित
बहुत खूब !चाँटा खाकर सुधरा तो क्या सुधरा ! उसे पहले ही सुधर जाना था !
छोटी-छोटी बातें, जीवन में कितने बडे अर्थ रखती हैं, यह ऐसे संस्मरणों से उजागर होता है।
वाक्य रचना पर ध्यान न देने पर अर्थ का अनर्थ कैसे होता है, इसका रोचक उदाहरण यहां देखा जा सकता है। इस वाक्य पर ध्यान दीजिए - 'ये रात एक किसान के भूसे से भरे कमरे में काटी।' कोई पुलिसवाला/वाली जब ऐसा कहता/कहती है तो अनायास ही विश्वास हो जाता है कि पहले 'पुलिस' ने किसान का भूसा बना दिया और फिर रात काटी। है न मजेदार?
'चांटे से बुध्दि का शुध्दिकरण' और कुछ कहिलाओं को पुरुषों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने का मार्ग दिखाए।
बहुत खूब !!!!
हम तो थप्पड़ की सुनकर चले आये, ये लड़की तो वो लगती ही नही जो उस ब्लोग में संवेदनशील पोस्ट लिखती है। बड़ी जीवट बाला है भई ये
वास्तव में जीवन बहुत जटिल है। लेकिन नफरत के लायक शायद कभी भी नहीं। हाँ कभी क्रोध तो कभी दया उपजाता है। दुनिया भर में स्त्री-पुरुष समानता शायद अभी बहुत दूर की चीज है। उस के पहले दुनिया को बहुत कुछ बदलना पड़ेगा। पल्लवी जी ने जिस तरह अपने अनुभवों को सामने रखा है वह बहुत ही उपयोगी हैं। बकलम का दायरा उन्हें शायद छोटा लग रहा हो लेकिन उपयोगी भी है। उन के प्रोफेशन में फुरसत नहीं होती लेकिन उन का बकलम ही कभी उन के अनुभवों पर आधारित पुस्तकों की पहला मील का पत्थर बनेगा।
वाह! सारी कुण्ठा, सारी समस्या एक चांटे से दूर! यह समाधान पेटेण्ट करा लेना चाहिये!
बहुत खूब ..आपका अनुभव बहुत अच्छा लग रहा है हमें ..इसी तरह लिखते रहे
अजित जी और द्विवेदी जी ने
बहुत पते की बात कही है.
मैं उनसे सहमत हूँ....आपके
तल्ख़ तजुर्बात...बात से बात
पैदा करने में सफल हैं....यह
आपबीती जीती-जागती जिंदगी की
सुलझी हुई दास्तान है...
समझ से सँवरने
की राह सुझाती दास्तान.
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शुभकामनाएँ
डॉ. चन्द्रकुमार जैन
हर लम्हा कुछ नई सीख दे जाता है.. आप जैसी सख्शियत के बारे में जाना सुकुनदायक रहा.. अजीत जी को हार्दिक धन्यवाद् आपसे मिलवाने के लिए..
पल्लवी और पुलिस में(!), अस्वाभाविक योग.
त्थपङ-व्वपङ ठीक है, ठीक हो जाते लोग.
ठीक हो जाते लोग, मगर पल्लवी बतायें.
कैसे सुधरे पुलिस, हमें यह भेद बतायें.
कह साधक कवि, सुन्दर लिखती आप पल्लवी.
अस्वाभाविक कर्म, पुलिस में क्यों हैं पल्लवी?
पल्लवी शीर्षक देख कर कुछ अजीब लगा था पर जब पढ़ा तो असली अर्थ समझ आया । :)
काफ़ी दिलचस्प अंदाज मे लिखा है ।
चलिए सुधरे तो ...अच्छा लग रहा है आपका यह सफर
वाह, तुम पूर्णकालिक लेखिका क्यों न हुई, पल्लवी ?
आपके अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है हमें..शुक्रिया
पल्लवी जी, बहुत मुशिकल से ये टिप्पणी लिख पाया. अजित जी के माध्यम से आपको पढ पा रहा हू..इसलिये उनको भी धन्यवाद. उन्ही के मध्यम से आप तक टिप्पणी भेज पा रहा हू..उनको पुन: धन्यवाद.
आपका लिखा प्रत्येक शब्द अनुभव आधारित है, इसलिये सटीक और प्रभावी है. बहुत कुछ सीखने को मिलता है. अगर आपका लिखा छोटा हो तो उसे पढना और् उसके बारे मे लिखना सहज हो सकेगा. आपको पहले भी पढा था, लेकिन आज कुछ लिखने का मन हुआ, सो लिख गया. आशा है.. आपका लिखना और हमारे जैसो का पढना व टिप्पणी देना जारी रहेगा.
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है...सही कहा है आपने. गाँव में बड़े बूढ़ों से सुना था- 'नींद न जानै टूटी खाट, भूख न देखै जूठा भात.'
वैसे यह चांटे वाला आइडिया तो देशहित में है :(
खासा रोचक और अनुभवसंपन्न लगता है आपका अबतक का सफर.
मुझे महसूस हुआ कि दुनिया न तो इतनी खूबसूरत है जितना हम सोचते हैं और न ही इतनी बदसूरत कि हम इससे नफरत करें!
जिंदगी को आपके नजरिये से देखना ऐसा लग रहा है जैसे हकीकत से रुबरु हो रहे हैं. आपके उपरोक्त वाक्य ने इस पूरे लेख मे चार चांद लगा दिये और असलियत दिखादी जिंदगी की.
बेहद शानदार संसमरण है आपके.
रामराम.
ऐसा लग रहा हैं मानो आपके पास एक संदूक है अनुभवों की। अच्छा लगा पढकर।
मुझे महसूस हुआ कि दुनिया न तो इतनी खूबसूरत है जितना हम सोचते हैं और न ही इतनी बदसूरत कि हम इससे नफरत करें! जहां एक और अच्छाई बिखरी पड़ी है वहीं बुराई की दलदल भी दूर दूर तक दिखाई देती है!
सच।
हम तो शीर्षक पढ़कर कंफुजिया गये थे.. सोचने लग गये थे कि पल्लवी जी कि शादी भी नहीं हुयी फिर वो भला किसे चांटे का डर दिखा रही हैं? अंत में पता चला कि यह सब अजित जी कि करामात है.. :)
आपका बकलमखुद अनुकरणीय बनता जा रहा है..
बहुत कुछ समझने-सीखने मिल रहा है आपके सफर को पढ़कर!
शुक्रिया!
एक ही चांटे में काम हो गया ! बड़ा शरीफ आदमी था बेचारा, ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं आजकल :-)
काश सारे भारत की पुलिस को आपका रोग लग जाये ये सुधर जाये तो भारत १०० साल आगे होगा . अगर आप जैसे लोग पुलिस बल मे होगे तो यहा अपराध शायद एक चौथाई ही रह जाये. न्यायालय खाली दिखने लगे .
अच्छा बहुत अच्छा पर क्या कभी पुलिस वालों ने खुद थप्पड़ खा कर देखे हैं कैसे लगते हैं ? मार पिटाई से प्रेम नहीं बढ़ता बल्कि वो पति दहशत में पत्नि से प्रेम का दिखावा कर रहा है. पत्नियों के त्रिया चरित्र पर कभी कभार बात हो जाया करे, पुलिस जज न बने, इसका ख़याल रखना ज़रूरी है. शराब पी कर पति मारता है ये बात होती है क्यों पीता है ये बात क्यों नहीं होती. बन्द कीजिये शराब और नहीं तो पीना सरकारी काम घोषित हो क्योंके रेवेन्यू देती है. खैर जाने दें. लम्बी बहर की ग़ज़ल है ये.
पल्लवी जी,
"दोबारा चलना शुरू किया!
इस बार रास्ता बहुत खूबसूरत था....
छोटे छोटे झरने, जानवर और चारों तरफ हरियाली ! "
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छोटे छोटे झरनोँ और हरियाली से लदे
वन प्राँत और भारत के गाँव
कभी देखे ही नहीँ !!
आज आपके अनुभव से
वहीँ से गुजरना हुआ है ....
जिसके लिये शुक्रिया
और
जो पति, पत्नी की सुलहवाला मामला
आप जैसी चतुर सुजान पुलिसबाला ने सुलझाया
उस पर तो हम खूब खुलकर हँसे !!
ऐसे उपहार का आभार जी :-)
और अजित भाई से पुन: अनुरोध है कि,
अब आप भी "बकलमखुद " पर
तशरीफ ले आयेँ
:-)-
स -स्नेह,
- लावण्या
you are so sweet......wow
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