ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के चौदहवें पड़ाव और तिरासीवें सोपान पर मिलते है पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-
सीखा है ज़िंदगी से बहुत कुछ....
कहते हैं न की जिंदगी हर कदम पर कुछ न कुछ सिखाती है!मेरे लिए तो ये बात एकदम खरी साबित हुई! जीवन के अच्छे बुरे अनुभवों से जितना मैंने सीखा ,उतना कोई टेक्स्ट बुक और टीचर नहीं सिखा पाए!और खासकर कड़वे अनुभव तो कुछ ज्यादा ही सिखा गए!बचपन से ही कुछ वाकये ऐसे हुए जिनसे मैंने एक बात गाँठ बाँध ली कि किसी भी रिश्ते में कभी किसी को बाँध के नहीं रखना है! जब मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ती थी तब मेरी एक बहुत पक्की सहेली हुआ करती थी! सही पूछो तो दोस्ती का मतलब ही उससे दोस्ती होने के बाद पता चला! पूरे स्कूल में हमारी दोस्ती मशहूर थी! तीन साल तक हम गहरे दोस्त रहे लेकिन आठवी क्लास के बाद स्कूल बदला और हम सरकारी स्कूल में पढने चले गए! वहाँ बहुत सारी नयी लड़कियों से पहचान हुई!पता नहीं क्यों मेरी दोस्त को मेरा किसी और लड़की से बात करना बुरा लगने लगा! मैंने उसे कई बार कहा कि मेरी बेस्ट फ्रेंड वही है लेकिन उसने शर्त रख दी कि यदि मैं किसी और से बात करुँगी तो वो दोस्ती ख़तम कर देगी! मेरे लिए उसकि बात मानना संभव नहीं था! फाइनली हमारी दोस्ती सिर्फ हाय हेलो तक सीमित होकर रह गयी! तब से मैंने सोच लिया कि कभी किसी पर खुद का लादना नहीं चाहिए!अनिच्छा से व्यक्ति दो चार बार तो आपकी बात मान लेगा फिर कब आपसे दूर होता जायेगा ,पता भी नहीं चलेगा! लेकिन आज भी जब दोस्तों कि बात चलती है तो सबसे पहले वही याद आती है!
कम से कम अपेक्षाएं..
वक्त जैसे जैसे बीतता गया खुद में बहुत सारे बदलाव आते गए! इस सीखने के क्रम में एक और जो बहुत महत्वपूर्ण चीज़ मैंने सीखी वो ये कि अपनी अपेक्षाओं को कम ही रखना चाहिए! पहले अगर मैं किसी के लिए कुछ करती थी तो बदले कि चाह रहती थी और जब कभी वो व्यक्ति मेरे लिए कुछ नहीं करता था तो बहुत दुःख होता था ! यहाँ तक कि बहुत दिन तक मैं उसके व्यवहार से दुखी रहती थी!फिर धीरे धीरे मैंने इस बारे में सोचा और चूंकि अपेक्षाएं पूरी तरह ख़त्म तो नहीं की जा सकती लेकिन जितनी कम की जा सकती हैं उतना मैं कर चुकी हूँ! अब कोई कुछ करे या न करे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता! क्योकी मैं ना सुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार हूँ!
थोडा सैलानीपन...थोड़ी आवारगी...
मुझे बचपन से ही घूमने और नयी नयी जगह देखने का बहुत शौक था लेकिन पढाई के कारण ज्यादा घूमने का मौका नहीं मिला!फिर नौकरी में आकर और ज्यादा व्यस्तता बढ़ गयी तो शुरुआत के तीन चार साल तो कहीं जा ही नहीं सकी! लेकिन चार साल पहले एक जनवरी को नए साल के रेजोल्यूशन के रूप में मैंने सोच लिया , चाहे जो हो साल में एक बार छुट्टी लेकर कहीं न कहीं घूमने ज़रूर जाउंगी! और उसके बाद से कश्मीर, गोवा, मसूरी, वैष्णोदेवी जा चुकी हूँ और आज राजस्थान जाने की तैयारी कर रही हूँ!आज शाम की ही ट्रेन है!सोचती हूँ अपने मतलब के संकल्प इंसान कितनी जल्दी पूरे करता है...यूं तो बरसों से कोई न कोई रेजोल्यूशन रहता ही था मसलन सुबह जल्दी उठकर पढाई करना, स्कूल में टॉप करना, कोई नयी भाषा सीखना वगैरह वगैरह...लेकिन इन सबमे मेहनत की ज़रुरत थी लिहाजा कोई भी पूरा न हो सका! पर मुझे उम्मीद है ये घूमने वाला ज़रूर ताजिंदगी चलता रहेगा!
शुक्रिया दोस्तों...बनें रहें साथ
यूं तो लिखने को बहुत कुछ है लेकिन यहाँ हर चीज़ को नहीं समेटा जा सकता है! इसलिए अब अपनी गाथा यही ख़त्म करुँगी! अजित जी का दिल से आभार मानती हूँ क्योंकि उनके कहने पर लिखना शुरू किया तो ऐसा लगा जैसे पूरी लाइफ रीवाइंड हो गयी है! बकलमखुद लिखते लिखते अपने बचपन से लेकर आज तक की सारी जिंदगी मानो फिर से जी ली! साथ ही अजित जी के धैर्य से भी मैं खासी प्रभावित हूँ क्योंकि लगातार लिखकर देते रहने के वायदे के बावजूद व्यस्तताओं के कारण मैं कई कई दिनों तक उन्हें लिख कर न दे सकी लेकिन उन्होंने एक भी बार खीझ व्यक्त नहीं की! न ही जल्दी लिखकर देने को कहा! मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानती हूँ की मेरी जिंदगी में दोस्तों की कोई कमी नहीं! हर जगह मुझे हमेशा बहुत अच्छे लोग मिलते रहे हैं! मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी मम्मी हैं और रोज़ सुबह उनसे फोन पर बात करके ही मेरा दिन शुरू होता है! ब्लॉगिंग में कदम रखने के बाद भी कई अच्छे लोगों से परिचय हुआ और नए दोस्त बने! अनुराग, कुश, सुजाता अच्छे दोस्त बन गए! अजित जी ,समीर जी, रवि रतलामी जी से मुलाकात का अवसर भी मिला ! इसके साथ ही आप सभी ने मुझे पढ़ा और मेरे बारे में आपकी टिप्पणियों ने आत्म विश्लेषण का एक और अवसर दिया है! सभी का बहुत बहुत शुक्रिया....
[समाप्त]
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21 कमेंट्स:
पल्लवी जी आप राजस्थान यात्रा पर भी अवश्य लिखियेगा
हमेँ आपका ये सफरनामा बहुत पसँद आया :)
शुभकामना व स्नेह सहित,
- लावण्या
बहुत अच्छा रहा यह सफर, अजित जी को इस प्रयास के लिए बधाई!
पल्लवी जी
कब पहुंच रही हैं
दिल्ली जी।
यादों का सफ़र बहुत अच्छा लगा। राजस्थान यात्रा के लिये शुभकामनायें।
आप सचमुच में भाग्यशाली हैं जो इतनी कम उम्र में जिन्दगी की किताब के महत्वपूर्ण सबक आपको मिल गए।
आपको पढना रोचक भी रहा और सुखद भी।
'बकलम खुद' से अब आप मुक्त हो गई हैं। याद रखिएगा कि लोग आपको आपके ब्लाग पर भी पढना चाहते हैं।
अजित भाई! पल्लवीजी का 'बकलम खुद' पढवाने के लिए विशेष धन्यवाद।
ब्लाग जगत में आने के बाद मेरे लिए यह पहला ही 'बकलम खुद' था। निस्सन्देह इसका प्रभाव यही हुआ है कि मैं इस सफरनामे की अगली कडी की प्रतीक्षा अभी से ही करने लगा हूं।
फिर से धन्यवाद।
बहुत दिनों से पल्लवी जी का बकलम पढ़ रहे थे। लगता जीवन एक नदी की तरह बह रहा है्। बिलकुल नहीं लगता था कि यह सफर आज यूँ अचानक रुक जाएगा।
पल्लवी ने बहुत ही खुलेपन से खुद को अभिव्यक्त किया।
वडनेरकर जी को बधाई! कि उन्हों ने ब्लागरों को समझने के लिए एक मंच दे दिया है।
तुमसे मुलाकात कर लगा ही नहीं जैसे पहली बार मुलाकात हो रही है. यह तुम्हारी खासियत ही कहलाई वरना हमसे तो कोई दसवीं बार भी मिले तो नया ही लगे (हर बार शरीर का साईज जो बदल जाता है :))
बहुत बढ़िया रहा बकलम सुद पर तुम्हें और अधिक जानना.
सुबह जल्दी उठकर पढाई करना, स्कूल में टॉप करना, कोई नयी भाषा सीखना वगैरह वगैरह...लेकिन इन सबमे मेहनत की ज़रुरत थी लिहाजा कोई भी पूरा न हो सका! ...बहुत हंसे यह पढ़कर. चलो, घूमने वाला संकल्प ही पूरा हो ले, शुभकामनाऐं.
यादे हमारे लिये खुश रहने का सबसे अच्छा उपाय है। अच्छा लगा आपको पढकर,जानकर्।
बकलम खुद मे आपके द्वारा लिखे गये बिते पलों को पढना बहुत बढिया लग रहा है, कहीं ना कही हम सब की दास्तान एक जैसी लगने लगती हैं. कई जगह लगता है जैसे खुद की यादें ही ताजा हो रही हैं.
बहुत सुन्दर. रामराम.
pallavi जी baklam ख़ुद को kafi दिनों से पड़ रहा hun और अगर इस column को padne के bad सबसे jyada इंतज़ार रहता था to vo apki next post ka ,शुक्र है bhagwan का, इंतज़ार कभी bekar नही गया.vakai आपकी bhavabhivayakti और भाषा पर पकड़ lajwab है ,shubhkamnaye sweekare.
एक prathana Ajit जी से की Bakalam ख़ुद me agli बार Ajit जी ख़ुद क्यो नहीं?
आपका लिखा पढ़ना बहुत अच्छा लगा. आपकी यात्रा नये अनुभव लेकर आवे. आपके सन्स्मरण रोचक रहेंगे. आभार.
रोचक संस्मरण और रोचक प्रस्तुति रही!
धन्यवाद।
हमारी शुभकामनाएँ.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अच्छा रहा यह सफर। आपके अनुभव से कुछ सीखने को भी मिला। आपके आगे के सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं। साथ ही अजित जी का भी शुक्रिया।
श्रंखला निस्संदेह अनूठी है | ज्यों कोई पारखी आनंदविभोर हो रत्नों का परिचय दे रहा हो ! हमें तो जैसे बिन मांगे ही खजाना मिल रहा है | बडनेरकर जी को धन्यवाद न दें तो कृतध्न कहलाएंगे |
' पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि ' परिचय का यह अंश दो विपरीत ध्रुवों के समीकरण को स्पष्ट करता सा प्रतीत होता है | पल्लवी त्रिवेदी जी के 'अहसास' को समझा तो जाना कि श्याम बेनेगल और किरण बेदी की विशिष्टताएं एकमेक हो गयी हैं | बड़ी आस बंधती है | एक संवेदनाओं से भरा व्यक्तित्व, अपनी यात्राओं से बहुगुणित हो जाए और पुलिस के नीरस जगत में उसे उन्ढेल दे, भविष्य की इससे बेहतर आस कोई हो ही नहीं सकती |
पल्लवी त्रिवेदी ने अपने एक लेख में बाल अपराध को जिस संवेदनशीलता से अनुभूत किया है भरोसा हुआ कि उसे निर्मूल करने में प्रभावकारी रहेंगी |
असीम शुभकामनाएं !!
- आर डी सक्सेना
गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं
http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्ट और मेरा उत्साहवर्धन करें
सबसे पहले अजित सर को इस कॉलम के लिए बधाई और अंत में पल्लवी जी को पढ़कर अच्छा लगा। पल्लवी जी कभी आपके सिपाही पकड़ लें तो छोड़ तो दिजीएगा...
अच्छा लगा आपकी इस गाथा में साथ साथ बने रहना...
अब राजस्थान जाने के लिए तो क्या बधाई दू? आप तो लौट आई है वापस.. पर अगले सफर के लिए अभी से शुभकामनाये.. आख़िर रेजोलुशन लिया है तो निभाना तो पड़ेगा ही..
बकलमखुद में अब तक की सबसे बढ़िया श्रृंख्ला रही ये.. (मेरे लिए)
शुक्रिया अजीत जी.. एक जिंदादिल इंसान से मिलवाने के लिए..
यूँ रोचकता बनी रही की आज लगा अचानक ही ख़त्म हो गया. लाजवाब रही ये प्रस्तुति !
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