Friday, January 30, 2009
रंग लाएगी फ़ाक़ामस्ती एक दिन [संत-1]…
"मन लागो मेरो यार फकीरी में। जो सुख पावौं राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में।"
क बीर के यहां इसी किस्म का फ़क़ीराना ठाठ देखने को मिलता है। यूं सभी निर्गुण संतों और सूफियों का यही मूलमंत्र भी रहा है कि माया मोह को त्याग कर आत्मज्ञान की जोत जलाने से ही प्रभु मिलते हैं। और यह रास्ता वह यूं ही नहीं चुनता है। पैग़म्बर साहब के मुताबिक फ़क़ीरी पर उन्हें फ़ख़्र है (फ़क़ीरी फ़ख़्री) समूचे भारत में फ़क़ीर शब्द का मतलब साधु, सन्यासी, संत ही होता है। फ़क़ीर मूलतः ऐसे साधक को कहते हैं जिसने सांसारिक चोला त्याग कर आत्मज्ञान की राह पर कदम बढ़ा दिए हैं। न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति वह मांग कर करता है इसीलिए फ़क़ीर को भी मंगतों की श्रेणी में रख दिया गया। फ़क़ीर के लिए फ़ाक़ा की व्यवस्था की गई है। सामान्य व्यक्ति दो वक्त की रोटी के लिए आठ घंटे खटता है। बिना काम धंधा किए दोनो वक्त मुफ्त की रोटी पर गुज़र करना मंगताई है मगर सिर्फ एक वक्त मांग कर खाना और एक वक्त निराहार रहना फ़ाक़ा है। फ़ाक़ा बना है अरबी के फ़ाक़ः से जिसका अर्थ होता है उपवास, अनशन, निराहार रहना आदि। अर्थ संकोच के चलते फ़ाकः का मतलब सिर्फ भूखों मरने तक सीमित हो गया।
कर्ज की पीते थे मय और समझते थे कि हां
रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन
मशहूर शायर गालिब का हाथ हमेशा तंग रहता था। कह सकते हैं कि मुफलिसी उन्हें घेरे रहती थी। फाका करने की नौबत कभी आई या नहीं , यह तो नहीं पता मगर मुहावरे के तौर पर उनकी शायरी में फ़ाक़ा शब्द का इस्तेमाल हुआ है। फ़ाक़ा शब्द का सामान्य अर्थ तंगी में गुज़र होना, भुखमरी में जीना है। इसीलिए फाकाकशी जैसा शब्द भी उर्दू-हिन्दी-फारसी में प्रचलित है। मगर ये सूफियों की शैली ही थी जिसने फ़ाक़ा शब्द के साथ मस्ती जोड़ कर फ़ाक़ामस्ती जैसा नया लफ्ज ईजाद किया जिसने तंगी की गुज़र बसर को अघाए हुए लोगों की जमात में ईर्ष्या के लायक बना दिया। तंगहाली में संघर्ष का माद्दा हो, आंतरिक ऊर्जा , भविष्य पर भरोसा हो और सच्चाई की दिव्यता हो तभी फाफामस्ती उभर कर सामने आती है। फ़ाक़ों में भी चैन से गुज़र-बसर करना ही फ़ाक़ामस्ती है। फ़क़ीराना-ठाठ भी यही है।
बुल्लेशाह का कलाम आबिदा परवीन की आवाज़ में
फ़ाक़ा में भूखों मरने का भाव कहीं नहीं है अलबत्ता उपवास, तंगी, गरीबी आदि। भाव उसमें हैं। दरअसल फाका शब्द में मूल रूप से अभाव परिलक्षित होता है। विद्वान इसकी दार्शनिक व्याख्या करते हैं जिसे फ़कीर, फ़कीरी के आईने में समझा जा सकता है जो बना है फक्र से। फक्र में निहित अभाव का अर्थ विपन्नता या गरीबी से लगाया जाए तो फकीर वह व्यक्ति हुआ जो गरीब है। मगर भारत समेत तमाम एशियाई मुल्कों में फकीर शब्द का अर्थ सूफी संत से लगाया जाता है। फकीर वह है जो सांसारिक मोहमाया से दूर है और ईश भक्ति में लीन है। सूफियाना व्याख्या के मुताबिक फकीर वह नहीं है जिसकी झोली खाली है बल्कि फकीर वह है जिसके मन में इच्छाओं, तृष्णाओं का अभाव है। अर्थात जो संतुष्ट है। फक्र (fqr) की व्याख्या अरबी वर्ण-विग्रह से भी की जाती है। फे से फाका अर्थात उपवास, क़ाफ़ से किनाअत अर्थात संतोष और रे से रियाज़त अर्थात समर्पण। फ़कीर में यही गुण सर्वोपरि हैं। फकीर के पास अध्यात्म की पूंजी होती है। जो आत्मज्ञानी है वही फकीर है। फ़क़्र में अभाव का जो भाव है उसका अभिप्राय यही है कि आपके पास जब तक ईश्वर नहीं है तब तक फ़क्र है। जब आपको ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तो तब आप फ़क़ीर कहलाते हैं जो फ़ख्र के काबिल है।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:34 AM लेबल: god and saints
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22 कमेंट्स:
आज तक हम भिखारी को फ़कीर कहते रहे लेकिन आज पता चला इश्वर की प्राप्ति के बाद ही व्यक्ति फ़कीर बनता है . फाका को गरीबी से जोड़ते रहे लेकिन यह तो अमीरी से ऊपर की चीज है
फ़ाकामस्ती गजब की पोस्ट।
राहत इंदौरी का शेर है:
वो खरीदना चाहता था कासा(भिक्षापात्र) मेरा,
मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया।
'गुरु', 'दादा' की तरह ही 'फाका' का अर्थान्तर जानना रोचक रहा।
फ़ाकामस्ति अच्छी रही... और बुल्लेशाल तो है ही गजब..
सचमुच फक्र के काबिल है
यह शब्द-सफर !
और प्रस्तुति का यह नया अंदाज़ !...वाह !!
....और...और आपकी ये निराली तस्वीर !!!
अब क्या कहें...!....बहुत खूब !
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
फाकामस्ती का कोई जवाब नहीं।
सत् का अभाव कहीं विद्यमान नहीं,असत् का अस्तित्व (भाव) स्वयं ही मिथ्या है। यह जान लेना आसान तो है, पर मान लेना बहुत कठिन।
जब व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है तो उस के पास मस्ती के सिवा करने को कुछ नहीं होता।
आज का यह आलेख इसे और स्पष्ट कर रहा है।
छोटी मगर हमेशा की तरह रोचक पोस्ट.
भाऊ आपको पढो तो कुच्छ-न-कुछ सीखने को ज़रूर मिलता है।आज-तक़ किसी को भी फ़कीर कह देते थे अब इस बात का खयाल रखना पडेगा की फ़कीर का मतलब मांगने वाला नही होता। और हां ये टोपी का क्या चक्कर है। कभी हैट,कैप और टोप पर भी कुछ हो जाए।
बहुत लाजवाब जी.
फ़कीर यानी..फ़ाका फ़ख्र फ़कीरा.जिसने फ़ख्र यानि अहंकार को फ़ांक लिया.
रामराम.
bahut rochak post
gagar me sagar
सच कहा ..फाके में भी जो फक्र से जिए,वही सच्चा फकीर है.....
एक और लाजवाब पोस्ट.....वाह !!
वाह !
अनशन और फकीर से मुझे तो चर्चिल का हाफ नेकेड फ़कीर याद आया.
@अभिषेक ओझा
सही कहा अभिषेक...और हमारे भाइयों ने इस नेकेड फ़क़ीर टर्म से भी अश्लील लतीफ़े बना लिए थे:(
@अनिल पुसदकर
शुक्रिया अनिल भाई...हैट, कैप, टोप भी हमारी सूची में हैं...बने रहिए सफर में...
@अनूप शुक्ल
राहत इंदौरी साहब के जांनिसार शेर के लिए शुक्रिया अनूप जी ...
फ़क़ीरानः आए सदा कर चले
मियां ख़ुश रहो तुम दुआ कर चले ...
मरहूम बाबा मीर तक़ी का शेर याद आ गया इसे पढ़कर ... उत्तम!
sangeetmay post..
fakir -shbd bhi khuub samjha diya aap ne!
post rochak lagi.
नमस्कार अजित भाई... कई दिनों के बाद टिप्पणी करने आए लेकिन हमारे मन की बात तो रंजनाजी ने ही कह दी... सो आबिदा की आवाज़ में बुल्लेशाह के कलाम का लुत्फ़ ले रहे है...बहुत बहुत शुक्रिया..
बैगलूरू से गौरव ताटके लिखते हैं
ये सफ़र मुझे अच्छा लगा. ये बतायें "फ़क्र" शब्द को "गर्व" के लिये भी इस्तेमाल किया जाता है. क्या ये वही "फ़क्र" है जिसके बारे में ये सफ़र है. मैंने ये भी गौर किया कि कई जगह आपने "फ" के साथ नुक़्ते का इस्तेमाल किया है और कई जगह नहीं. सही शब्द क्या हुआ "फक्र" या "फ़क्र", "फकीर", "फक़ीर" या "फ़क़ीर"? उस गर्व वाले "फ़क्र" में नुक़्ता लगाते है या नहीं ?
ये सब तो ठीक है.. समझ में आ गया लेकिन ये टोपी वाला मामला क्या है?
" करना " फकीरी " फिर क्या दीलगिरी .
चाहूँ मगन मैँ रहना जी "
तभी तो 'फख्र' से मीराँ जी भी गाया था !
- बुल्ले शाह - लाजवाब !!
आबिदा जी - कमाल हैँ कमाल !
स्नेह,
- लावण्या
इधर आभासी दुनिया से नाता टूटा हुआ है लेकिन जब भी आपको पढ़ने का मौका मिलता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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