गौरतलब है कि सूफी परंपरा के कलंदर और मदारी जैसे शब्दों का प्रचलित अर्थ हिन्दी में बाजीगर या बंदर-भालू का तमाशा दिखानेवाला ज्यादा प्रचलित हुआ। | | |
नि र्गुण निराकार के साधक सूफियों की एक की एक धारा का नाम मदारी madari भी है। मदार madar या मदारी शब्द के बारे में हिन्दी उर्दू के संदर्भ ज्यादा जानकारी नहीं देते हैं। इसका अर्थ तो मिलता है मगर व्युत्पत्ति नहीं। शब्दकोशों में इसका मतलब बाजीगर, तमाशाबाज, कलाबाज बताया जाता है। मगर मदारी का सबसे लोकप्रिय अर्थ है भालू बंदर को नचानेवाला बाजीगर। इन अर्थो में मदारी का आध्यात्मिक पुरुष या सूफी संत के तौर पर परिचय नहीं मिलता है। सूफियों के मदार पंथ को सीधे सीधे हज़रत सैय्यद बदीउद्दीन ज़िंदा शाह मदार से जोड़ा जाता है सीरिया में जन्मे और कई जगह घूमते-घामते उत्तर प्रदेश में कानपुर के पास मकनपुर makanpur में आ टिके जहां उनकी दरगाह है और दुनियाभर से इस पंथ के अनुयायियों का यहां मेला जुटता है।
एक बात तो तय है कि मदारी शब्द सीधे सीधे बाजीगर से जुड़ा हुआ नहीं है। संत-सन्यासी के चरित्र से मेल खाने वाली कोई भी बात अगर इस शब्द से जुड़ी है तो वह है काला लंबा चोगा जिसे मदारी पंथ के संत भी धारण करते हैं और बाजीगर मदारी भी। संत के चरित्र की सबसे बड़ी खूबी पथ प्रदर्शक और गुरु की ही होती है जिसका काम अपने अनुयायियों को सच्चाई की राह दिखाना और सिखाना है। मदारी शब्द का रिश्ता अरबी शब्द मदार से जुड़ता है जिसके मायने होते हैं केन्द्र, वृत्त, घेरा, गोलाकार स्थान। मदार शब्द बना है सेमेटिक धातु
द-र-स से अरबी में कुछ शब्द बने है
दिरस या
दरासा जिसका अर्थ होता है शिक्षा, ज्ञान, पढ़ाई। दर्रासा का अर्थ होता है पढ़ाना।
दरिस या
दुर्रुस का मतलब होता है कक्षा, पाठ्यक्रम, सबक, पाठ आदि। इस शब्द समूह के साथ अरबी का एक उपसर्ग
‘म’ भी जुड़ता है जिससे कुछ अन्य शब्द भी बनते हैं जैसे
मुदर्रिस mudarris यानी अध्यापक। यह शब्द फारसी उर्दू के जरिये हिन्दी में भी कभी कभी इस्तेमाल होता है।
शिक्षा से जुडे इस शब्द समूह का सबसे महत्वपूर्ण शब्द है मदरसा madrasa जिससे हिन्दी भाषी सर्वाधिक परिचित हैं। मदरसा यानी पाठशाला, शिक्षास्थल, स्कूल, शाला, विद्यालय अथवा गुरुकुल आदि। प्रायः हर सभ्यता में गुरुकुल की परंपरा रही है। पूर्व में चीन, जापान, भारत से लेकर पश्चिचम में ग्रीक और रोमन सभ्यता तक इसके साक्ष्य मिलते हैं। गुरुकुल का अर्थ ही गुरु के साथ रहकर विद्यार्जन करना है। प्राचीन ऋषि-मुनि अपने दोनो और शिष्यों को घेरा बांधकर बैठाते थे और फिर शिक्षा देते थे। दिरस से मदरसा तक पूरी शब्द श्रंखला में मूल भाव शिक्षा ही है। इसकी अगली कड़ी है मदार जो इसी धातु से जन्मा है जिसका अर्थ होता है फकीरों के एक सम्प्रदाय का प्रमुख या संरक्षक। केन्द्र अथवा घेरे हुए स्थान के रूप में मदार के अंदर गुरुकुल का ही भाव समाया हुआ है। सूफी पंथ में समाए ध्यान, चिन्तन, मनन जैसी क्रियाओं के मद्देनजर मदार पर विचार करने के लिए सेमेटिक धातु द-र-स (d r s) की व्याप्ति अरबी के अलावा सबसे महत्वपूर्ण सेमेटिक भाषा हिब्रू में भी देखनी चाहिए। हिब्रू hebrew में इसका रूप होता है drsh अर्थात द्रश जिसमें गुरु की सोहबत में प्रभु भक्ति करने अथवा ईश्वरीय ज्ञान की खोज का भाव है। पुराने ज़माने में शिक्षा का स्वरूप मूलतः धार्मिक व ईश्वरीय ज्ञान ही था। मदार शब्द में न सिर्फ चिंतन, मनन का स्थान, बल्कि विद्या केन्द्र का भाव भी है। ध्यानकेन्द्र गोल, मंडलाकार होते हैं। इसे किसी भी धर्म के आराधना स्थलों में देखा जा सकता है जो मुख्यतः गुम्बदनुमा कक्ष ही होते हैं। स्पष्ट है कि मदारी पंथ का रिश्ता मदार शब्द से ही जुड़ता है।
मोहम्मद ताहिर संपादित एन्साइक्लोपेडिक सर्वे आफ इस्लामिक कल्चर में सूफी मत पर चीन के के ताओवादी प्रभाव की चर्चा करते हुए अहमद अनानी ने मलंग की व्युत्पत्ति पर चर्चा की है। अनान साहब के उक्त आलेख से ही मदार के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। वे इस संदर्भ में दो चीनी शब्दों दाओ रह् और दाहो शी का उल्लेख करते हैं। दाओ शी ताओवादी शब्दावली में आता है जिसका मतलब है ताओ पंथ का गुरु, शिक्षक। दाओ-रह् का अर्थ भी करीब-करीब यही है फर्क सिर्फ अंतिम पद का है। रह् का अर्थ होता है अनुयायी यानी ताओपंथ का अनुयायी। इस तरह इस तरह मांग-दाओ-रह mang-dao-erh से बना मा-दा-र जिसने मदार का रूप लिया जिसमें गुरू, शिक्षक, मार्गदर्शक जैसे भाव समाहित हुए।
यह गौरतलब समानता है कि मध्यएशिया में पनपे धार्मिक आंदोलन से उपजे कलंदर, फकीर, मलंग और मदारी जैसे शब्दों का हिन्दुस्तान आने पर आध्यात्मिक गरिमा के साथ साथ जादूगर, बाजीगर और भालू-बंदरों का तमाशा दिखानेवाले समुदायों के रूप में भी अर्थ विस्तार हुआ
हिब्रू और अरबी arabic के क्रमशः द्रश दिरस के मूल में ज्ञान की खोज अथवा शिक्षा जैसे भाव यूं ही नहीं है। मेरे विचार में यह इंडो-ईरानी प्रभाव है जिसकी व्याप्ति सेमेटिक भाषा परिवार से लेकर सिनो-तिब्बती परिवार की चीनी भाषा पर भी पडा। गौर करें संस्कृत धातु ‘ऋ’ या ‘र’ पर जिसमें जाने और पाने का भाव है। इसमें रास्ते का भाव है जिसे ज्ञानमार्ग से जोड़ा जाता है। इससे बने संस्कृत के ऋषि शब्द का अर्थ गुरू ही है जो ज्ञान की राह बताता है। ऋषि शब्द रिष् से बना है। रिष् और द्रिश की समानता गौरतलब है। फारसी में इसी धातु मूल से राह, राहगीर, राही, रहबर जैसे शब्द बने हैं वहीं ऋषि के समतुल्य मुर्शिद, राशिद जैसे शब्द भी बने हैं। मदार के चीनी भाषा से व्युत्पत्ति का आधार ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य है। हालांकि चीनी मूल के दाओ रह् शब्द में भी वैदिक ‘ऋ’ का असर ही मानना चाहिए। सेमेटिक परिवार में इंडो-ईरानी प्रभाव के बावजूद द-र-स धातु का स्वतंत्र रूप बना जिसने ‘र’ अथवा ‘ऋ’ के भावों को खुद में समोए रखा।
गौरतलब है कि सूफी परंपरा के कलंदर और मदारी जैसे शब्दों का प्रचलित अर्थ हिन्दी में बाजीगर या बंदर-भालू का तमाशा दिखानेवाला ज्यादा प्रचलित हुआ। तमाशेबाज मदारी शब्द संभवतः इसलिए चल पड़ा क्योंकि ये लोग भी अपने पशुओं को कलाबाजी सिखाते हैं, उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। अब इन बाजीगरों के लिए समाज ने फकीरों के अलग-अलग समुदायों से ही पहचान क्यों तलाशी गई, अथवा कलंदरों और मदारियों के साथ भालू-बंदर कैसे जुड़े यह अलग शोध का विषय है। अनानी कहते हैं कि नूर उल लुगात के मुताबिक मलंग शाह मदार के अनुयायियों को कहा जाता है। शाह मदार सूफी मत के मदारी सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। यह गौरतलब समानता है कि मध्यएशिया में पनपे धार्मिक आंदोलन से उपजे कलंदर, फकीर, मलंग और मदारी जैसे शब्दों का हिन्दुस्तान आने पर आध्यात्मिक गरिमा के साथ साथ जादूगर, बाजीगर और भालू-बंदरों का तमाशा दिखानेवाले समुदायों के रूप में भी अर्थ विस्तार हुआ।
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