Wednesday, March 18, 2009

क़िस्सा चावड़ी बाज़ार का [आश्रय-7]…

2667573250_7e35557867... पुराने ज़माने में सम्पन्न लोग पालकियों-बैलगाड़ियों में ही सफर करते थे। लबे सफर के बाद मुसाफिरों के लिए शहर के बीचों-बीच प्रशस्त स्थान पर ही सराय या धर्मशालानुमा व्यवस्था को चावड़ी कहा गया। 
भारत के कई शहरों में एक खास नाम का मौहल्ला, बाजार या बसाहट ज़रूर होती है जिसे चावड़ी या चावड़ी बाजार कहा जाता है। ग्वालियर और दिल्ली के चावड़ी बाजार का नाम इस संदर्भ में लिया जा सकता है। यूं भी चावड़ी chawdi शब्द अलग-अलग रूपों में हिन्दी में इस्तेमाल होता है। आखिर इस चावड़ी का मतलब क्या है ? पुराने समय से चली आ रही घनी आबादी के बीच चावड़ी बाजार नाम की बसाहट में तवायफों और नृत्यांगनाओं के डेरे भी होते रहे है। मुगल काल में दिल्ली के चावड़ी बाजार की एक खासियत यहां की तवायफें भी हुआ करती थीं। यहां की सघन गलियों में इनके ठिकाने हैं।
चावड़ी शब्द मूलतः दक्षिण भारतीय भाषाओं में विभिन्न रूपों में प्रचलित है। हिन्दी क्षेत्रों में इसका प्रयोग मराठों के उत्कर्षकाल में बढ़ा है मगर दक्षिणी भाषाओ में यह बहुत प्राचीनकाल से व्यवहृत होता रहा है। चावड़ी शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में ठोस जानकारी नहीं मिलती है। मलयालम में इसका रूप चावटी, तेलुगू और तमिल में यह चावडी है। उत्तर भारत में इसका चावड़ी रूप प्रचलित है। मोटे तौर पर चावड़ी शब्द का अर्थ है एक ऐसा सार्वजनिक स्थान जहां व्यापार-व्यवसाय के लिए लोगों की आमदरफ्त हो। गांव-देहात के विभिन्न मेलों-ठेलों से भी यह शब्द जुड़ा हुआ है। बहुप्रतीक्षित मेले के लिए जब भूमिपूजन होता है और पहले दौर की दुकाने आ जाती हैं उसे भी चावड़ी लगना कहते हैं। चावड़ी खुलना भी एक व्यापारिक टर्म है जो आमतौर पर पशु मेलों के समापन पर इस्तेमाल होती है। मेले  में व्यापारी पशुओं के सौदे करते हैं, उन्हें देखते-भालते और पसंद करते हैं। पेशगी रकम देकर सौदा पक्का किया जाता है मगर खरीद नहीं होती है। मेले के अंतिम दिन सौदे का पूरा भुगतान किया जाता है। सरकारी दस्तावेजों में जब इन सौदों का इन्द्राज शुरू होता है उसे कहते हैं चावड़ी खुलना। इस रूप में देखा जाए तो चावड़ी उस सरकारी दफ्तर को भी कहा जा रहा है जहां व्यापारिक सौदे पक्के हो रहे हैं।

चावड़ी में मूलतः अस्थायी मण्डप, छतरी, शामियाना या टैंट का भाव है । चावड़ी बाजार यानी जहाँ मण्डप, छाजन आदि डालकर दुकाने डाल ली गई हों । ऐसा वहीं होता है जहाँ काफिले, कारवाँ आकर रुकते हैं अथवा जहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं । चावड़ी खुलना का अर्थ यहाँ मेले का समापन भी है और दूसरे अर्थ में रजिस्ट्री के लिए उस पंडाल में कामकाज का शुरू होना भी है जहाँ सरकारी कारिंदा सौदों को दर्ज करता है ।
विभिन्न संदर्भों में चावड़ी का एक ऐसे स्थान के तौर पर उल्लेख है जहां लोगों का जमघट है। चावड़ी का एक अर्थ अदालत, पंचायत या कचहरी भी है। शहर के व्यस्ततम क्षेत्र में लोगों का जमाव ज्यादा होता है और ऐसा स्थान शहर का प्रमुख चौराहा होता है जहां चारों और से रास्ते मिलते हैं। हॉब्सन-जॉब्सन के प्रसिद्ध कोश में चावड़ी की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द चतुर+वाट से बताई गई है। चतुर का अर्थ चार की संख्या से है। संस्कृत की चत् धातु से यह बना है। चार या चौथा हिस्सा के लिए इस्तेमाल होने वाला चतुर्थ शब्द भी इसी मूल का है। चौकी, चौराहा, चौका जैसे आमफहम शब्द इससे ही निकले हैं। संस्कृत में वाट शब्द का अर्थ घिरा हुआ स्थान होता है। इसका एक अर्थ मार्ग या रास्ता भी है। इस तरह चातुर्वाट का अर्थ चारों और से घिरा हुआ स्थान या चौराहा हुआ। दक्षिणी बोलियों में प्रचलित इस शब्द का अपभ्रंश रूप चावटी-चावडी हुआ। एक ऐसा स्थान जहां लोगों के झगड़े सुलझाए जाते। एक तरह से अदालत। उपनिवेशकालीन एंग्लो-इंडियन शब्दावली में इसके लिए चौल्ट्री जस्टिस/चौल्ट्री कोर्ट्स शब्द खूब आया है। एक ऐसी इमारत जहां न्याय होता हो। इस इमारत के आस पास शहर के प्रमुख व्यक्तियों के निवास होते थे। पुराने ज़माने में सार्वजनिक स्थलों पर ही झगड़े सुलझाए जाते थे ताकि आबादी के बड़े हिस्से को इसकी जानकारी हो सके।
चावडी शब्द पहले दक्कनी हिन्दी में चावरी हुआ और फिर उत्तर भारतीय क्षेत्रों में कुछ और बदले हुए रूप और अर्थ में चावड़ी बनकर पहुंचा। यहां इसका मतलब हुआ चारों और से घिरा हुआ ऐसा आश्रय,


chawri
ठिकाना जहां पद यात्रियों को आराम मिल सके।अलायड चैम्बर्स डिक्शनरी (p138) में भी इसका अर्थ कारवांसराय caravansary या राहगीरों के रुकने की जगह ही बताया गया है। कुछ संदर्भों में इसे पालकियों-गाड़ियों के रुकने की जगह भी कहा गया है।  जाहिर है पुराने ज़माने में सम्पन्न लोग पालकियों में ही सफर करते थे। लबे सफर के बाद मुसाफिरों के लिए शहर के बीचों-बीच प्रशस्त स्थान पर ही सराय या धर्मशालानुमा व्यवस्था को चावड़ी कहा गया। दूरदेश के मुसाफिर, जिनमें ज्यादातर व्यापारी ही होते थे, लंबे समय तक यहां मुकाम करते। यह क्षेत्र व्यस्त कारोबार की जगह बन जाते थे क्योंकि यात्रियों का आना-जाना लगा रहता था। इन्हें ही चावड़ी बाजार chawri bazar कहा गया। धनिकों के मनोरंजन के लिए ऐसे ठिकानों पर रूपजीवाओं के डेरे भी जुटने लगते हैं। इसीलिए चावड़ी बाजार शब्द के साथ तवायफों का ठिकाना भी जुड़ा है। ग्वालियर के चावड़ी बाजार की भी इसी अर्थ में किसी ज़माने में ख्याति थी।
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11 कमेंट्स:

Smart Indian said...

चावडी बाज़ार का नाम इतनी बार पढा है मगर उसके बारे में जानकारी पहली बार ही पढने को मिली, आभार.

डॉ. मनोज मिश्र said...

दरअसल हम लोग स्थलों का नाम जान तो लेते है परन्तु उसकी ऐतिहासिकता पता करने की कोशिश न के बराबर करते हैं | इतनी तथ्य परक जानकारी के लिए धन्यवाद .

इरशाद अली said...

वाह जी वाह

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पुष्ट और दुरुस्त जानकारी.
अजित जी,
शब्दों का सफ़र तो
गुमराह को अक्षर राह बता रहा है,
राहगीरों का ये आश्रय और मंजिल भी है.
===============================
साभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

अनिल कान्त said...

आपने वाकई इस स्थल के बारे में बहुत ही काम की जानकारी दी

आलोक सिंह said...

चावडी बाज़ार का नाम सुना था अर्थ आज मालूम पड़ा .
धन्यवाद

रंजना said...

इतने लम्बे समय से सुनते और प्रयुक्त करते शब्द का अर्थ आज ज्ञात हुआ....आभार.

Shiv said...

बहुत बढ़िया जानकारी. यहाँ आकर आपकी पोस्ट पढ़ना बहुत गजब का अनुभव होता है.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

चावडी बाज़ार का श्रंगार रूप ,निश्चित ही आज से कुछ लोग चावडी बाज़ार मे कुछ ख़ास खोजेंगे

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत दिलचस्प जानका्री मिली जी.

रामराम.

Baljit Basi said...

I have never heard or seen any Chavdi bazar in Punjab.However there is one Chaura Bazar in Ludhiana which is in fact the most crowded and narrowist bazar I have seen in Punjab.But it used to be and still is commercial hub of the city and has many government headquarters.It was very wide in old days and was said to be modelled on Anarkali Bazar of Lahore.Can this 'Chaura' be corruption of 'Chavdi'?Any idea?

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