Friday, August 14, 2009

जोड़तोड़ में लगा जुगाड़ी

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गातार किसी न किसी तरकीब से आगे बढ़ने, अपना काम निकालने में लगे इन्सान के बारे में कहा जाता है कि जोड़-तोड़ वाला है। कुछ इसी किस्म के इन्सान के लिए बीसवीं सदी में एक शब्द प्रचलित हुआ जुगाड़ू या जुगाड़ी। यह बना है जुगाड़ से जिसका अर्थ हुआ तरकीब, युक्ति। इससे मिलता-जुलता एक शब्दयुग्म और बना लिया गया जिसे क्रियारूप में प्रयोग किया जाता है यह है जोड़-जुगाड़ अर्थात लगातार काम आसान करने का प्रयास करते रहना। येन केन प्रकारेण राह तलाशने का भाव इसमें है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जुगाड़ नाम के एक वाहन ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश की सड़कों से अपना सफर शुरु करते हुए देशभर के ग्रामीण अंचल में परिवहन और सस्ते भारवाहक के तौर पर क्रांति ला दी।
जोड़-तोड़, जुगाड़ और जोड़-जुगाड़ में बहुत गहरी रिश्तेदारी है। मगर ये दोनों अलग-अलग धातु मूल से उपजे मगर एक जैसी अर्थवत्ता वाले शब्द हैं। इस पर बात करने से पहले जानते हैं इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की एक ऐसी धातु के बारे में जिससे बने शब्दों की जितनी तादाद सुदूर पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैली है उतनी शायद ही किसी अन्य धातु से निकले शब्दों की होगी। यह धातु है युग अर्थात yeug. संस्कृत में इससे मिलती जुलती धातु है युज्। इन दोनों ही धातुओं के yogaमूल में संयुक्त होना, मिलना, जोड़ना, मिलाना जैसे भाव हैं। इनके मूल में जो ध्वनि है वह है ‘यु’ जिसे संस्कृत में पृथक धातु का दर्जा मिला हुआ है। पाश्चात्य भाषाशास्त्रियों ने युग अथवा युज् से बने शब्दों की व्युत्पत्ति खोजते हुए भारोपीय भाषा परिवार में इससे जुड़े शब्दो का मूल ‘यु’ को क्यों नहीं माना, यह बात समझ में नहीं आती।
संस्कृत की ‘यु’ धातु का जैसा विस्तार भारतीय भाषाओं में हुआ, वैसा अर्थगर्भित विस्तार यूरोपीय भाषाओं में नहीं हुआ, पर जितना भी हुआ वह भी कम नहीं है। किन्हीं दो चीज़ों को मिलाने से अक्सर काम बन जाता है। एक से भले दो। यानी जो काम अकेला नहीं कर सकता उसे दो लोग मिलकर कर सकते हैं। अब दो लोगों के मिलने का भाव पैदा हो रहा है युगल शब्द में। यु अथवा युज् में समाहित अर्थ यहां स्पष्ट हो रहा हैं। कुछ और शब्द देखें। हिन्दी का योग शब्द अपने आप में सिर्फ एक शब्द भर नहीं बल्कि एक दर्शन है। इसकी उत्पत्ति हुई संस्कृत के युज् से जिसमें सम्मिलित होना, जुड़ना, प्रयुक्त होना, काम में लगना आदि शामिल हैं। युज् बना है ‘यु’ धातु से जिसके भी यही सारे अर्थ हैं। युज् से बने योगः में इन सारे अर्थों के अलावा जो भाव महत्वपूर्ण है वह है संपर्क, युक्ति, शारीरिक व्यायाम, मन का संकेन्द्रीकरण, परमात्मचिंतन आदि। संयोग, प्रयोग, नियोग, हठयोग, दुर्योग, सहयोग, जोग, बिजोग, जोगड़ा, जोगी, संजोग जैसे शब्द इसी कड़ी का हिस्सा हैं। जब किसी समस्या पर एक से अधिक लोग मिलकर दिमाग लगाते हैं तो समाधान निकल आता है। इसी तरह किसी वस्तु के साथ दूसरी वस्तु को जोड़ने से भी कुछ तरकीब निकल आती है। कई उपकरणों का आविष्कार ऐसे ही हुआ है। तरकीब के लिए हिन्दी का युक्ति शब्द इसी मूल से पैदा हुआ है।
गौर करें कि जुआ ही वह उपकरण है जो दोनों बैलों को जोड़ता है, मिलाता है। जुआ लगने के बाद ही खेत की जुताई होती है। जुताई, जोतना जैसे शब्दों के मूल में भी यु धातु है। युक्त से ही बना है जुत्त शब्द जिससे जुतना, जुताई जैसे क्रियारूप बने।19323 250px-Bullock_yokes
यह बना है युक्त से। संयुक्त, प्रयुक्त, नियुक्त जैसे शब्द इसी कड़ी में आते हैं। युक्त का ही देसी रूप हुआ जुगत जिसमें तरकीब, युक्ति, उपाय, चतुराई जैसे भाव हैं। जुगत लगानेवाला कहलाता है जुगती अर्थात जुगाड़ी।
ये तमाम शब्द बने हैं संस्कृत धातु ‘यु’ से जिसका मतलब होता है जोड़ना, सम्मिलित होना, बांधना, जकड़ना वगैरह। तरुणाई को युवावस्था कहा जाता है। इसे वयःसंधि के तौर पर देखा जाता है। यह बना है संस्कृत के युवन् से। गौर करें इससे बने युवा, युवक, जवान जैसे शब्दों पर। युवन् से बना है फारसी का जवां, जवांमर्द, जवानी आदि शब्द। अंग्रेजी के यूथ और यंग जैसे शब्द कहीं न कहीं ‘यु’ से संबंधित हैं क्योंकि ये सभी शब्द वयःसंधि की तरफ इशारा कर रहे हैं। युवावस्था कुलमिलाकर जीवन के दो विभिन्नकालों का मिलन ही है। अंग्रेजी में जॉइंट, जंक्शन या जॉइन जैसे शब्दों में बंधन, जोड़, मिलना या युक्त होने के ही भाव है जो इसी मूल से बने हैं।
ब बात जुगाड़ की। जुगाड़ शब्द की व्युत्पत्ति हिन्दी कोशों में नहीं मिलती। इसके मूल में आज भी शब्दकोशों में हिन्दी की पूर्वी शैली में प्रचलित आंचलिक शब्दों को ही स्थान दिया जाना है। जुगाड़ आज की हिन्दी में नया है मगर इसका जन्म हिन्दी की पश्चिमी शैली की कोख से हुआ। हरियाणवी या बांगरू बोली में जुगाड़ शब्द प्रचलित है। यह इसी मूल का है और युज् से जन्मा है। युज् से बने योगः से ही बना है जुआ (योक yoke) यानी लकड़ी का वह उपकरण जिसे बैल के गले में डाला जाता है और जिसके एक सिरे पर हल लगाया जाता है। यह बैलगाड़ी में भी लगाया जाता है। गौर करें कि जुआ ही वह उपकरण है जो दोनों बैलों को जोड़ता है, मिलाता है। जुआ लगने के बाद ही खेत की जुताई होती है। जुताई, जोतना जैसे शब्दों के मूल में भी यु धातु है। युक्त से ही बना है जुत्त शब्द जिससे जुतना, जुताई जैसे क्रियारूप बने। बांगरु में जुआ से ही जुआड़ हुआ जिसने जुगाड़ का रूप ले लिया। आज की तारीख में जुगाड़ का अर्थ यही है कि कोशिश की जाए कि दो और दो पांच हो जाएं अगर नहीं तो यह प्रयास तो होना ही चाहिए कि चार होने में भी उतनी मेहनत न लगे जितनी लगती है। यही है जुगाड़। ऐसा करनेवाला जुगाड़ी। भारतीय महान जुगाड़ी होते हैं।
जुगाड़ के बाद जोड़ की बारी आती है क्योंकि जुगाड़ के लिए किन्हीं चीज़ों को जोड़ना पड़ता है। जोड़ पर विचार करने से पहले याद रखें कि भारोपीय भाषा परिवार की भाषाओं में और ध्वनियों में अदला बदली होती है। संस्कृत का यज्ञअवेस्ता में यश्न बन जाता है और फारसी में जश्न मनने लगता है। जोड़ शब्द बना है संस्कृत की जट् धातु से जिसमें आपस में मिलना, संयुक्त होना, घनत्व, गुत्था होने के भाव हैं। इस जट् और यु में कहीं न कहीं ध्वन्यात्मक परिवर्तन की रिश्तेदारी है। निश्चित ही युत् अर्थात मेल और जुट् में समानता है। युत् का की विकास जुट् में हुआ होगा, ऐसा लगता है। यु निश्चित ही पूर्ववैदिक ध्वनि रही होगी जिसमें जोड़, मेल, युक्त के भाव थे।  जुट् से बना है जोट्य जिसमें भी यही भाव निहित हैं। हिन्दी में प्रचलित जुटना, जुटाना, एकजुट, जटाजूट जैसे शब्द इससे ही बने हैं। गौर करें जटा यानी ऋषि-मुनियों की विशाल केशराशि पर। एक-दूसरे से मिले हुए, गुंथे हुए बालों को ही जटा कहा जाता है। एक अन्य रेशेदार वनस्पति के लिए जूट नाम भी इसी जट् से आ रहा है। इससे ही बना है जड़ शब्द जिसका मतलब होता है वृक्षमूल। पेड़ों को आधार देने का काम वृक्ष करते हैं क्योंकि वे भूमि को बांध लेते हैं जिससे वृक्ष स्थिर रहता है। मूर्ख को भी इसीलिए जड़बुद्धि कहते हैं क्योंकि उसका विकास भी स्थिर हो जाता है। बोलचाल की हिन्दी में सर्वाधिक प्रयुक्त जुड़ना, जोड़ना, जुड़वाना, जुड़ाव जैसे शब्दों के पीछे जट् ही है। जोट्य>जोड्य>जोड> क्रम में बना है जोड़ शब्द जिसमें युक्त करने, मिलाने जोड़ने का भाव ही है।

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16 कमेंट्स:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हम तो आज इस पोस्ट की एक फोटो पर ही मीमांसा कर रहे हैं। ;)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Himanshu Pandey said...

यह चिट्ठा भी हमें हमारी शब्द संपदा से बखूबी जोड़ रहा है, परिचित करा रहा है । हर बार हतप्रभ ।

Unknown said...

jugaad zindaabad !
judaav zindaabad !
jutaav zindaabad !
______________aapka manobhaav zindaabad !

jai shri krishna
jai hind !

दिनेशराय द्विवेदी said...

युक्ति ही जुगत है, उसी से जुगाड़। इस के आगे जुगाड़ी है। जो हरदम कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेता है।

रंजना said...

आपने हमें जिस प्रकार शब्द विज्ञान से जोड़ रखा है,उसके लिए आपके ह्रदय से आभारी हैं....

अतिसुन्दर शब्द विवेचना....

विजय गौड़ said...

सच फ़ोटो तो अच्छा जुगाडा है अजीत जी। विश्लेषण भी खूब।

Vinay said...

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...
This comment has been removed by the author.
डॉ महेन्द्रसिंह लालस, जोधपुर से said...

ajeet bhai
dr sita ram lalas was my grandfather's younger brother
so somehow have a quest for words in subconscious
when i read you i feel great
i salute you
my regards and pranam for you
mahendra singh lalas

अजित वडनेरकर said...

@महेन्द्रसिंह लालस
सम्मान्य डॉक्टरसाब,
शुक्रिया कि आप भी सफर के सहयात्री बनें।
हमारा प्रयास आपको पसंद आया, इससे अभिभूत हूं।
आपका नाम सुना है। मैं जयपुर में 1985 से 1995 तक नवभारत टाइम्स में रहा हूं।
लालस जी के कोश के बारे में खूब सुना है, उसे पाने का जतन भी कर चुका हूं, पर सफल नहीं रहा।
बनें रहें सफर के साथ

हेमन्त कुमार said...

अभिनव...।आभार।

Anonymous said...

पेड़ो को आधार देना का काम वृक्ष करते हैं क्योंकि...। यहाँ वृक्ष की जगह वृक्षमूल कर लीजिए

RAJ SINH said...

अजीत भाई ,
वैसे तो पूरा सफ़र ही बेजोड़ रहा है हमेशा , पर मेरे लिए यह पोस्ट खास है. आपने मेरी ख्वाहिश को सम्मान दिया , बहुत ही आभार . बहुत ही ज्ञानप्रद .

Unknown said...

सही बात है वैसे भी कई काम भारत में जुगाड़ से ही होते हैं ...जुगाड़ के बिना तो चल ही नहीं सकता.... नौकरी के लिए जुगाड़ जरुरी है...तो लड़की के लिए भी जुगाड़ जरुरी है...जुगाड़ की जुगत के बिना जमाना ही अधुरा है सो जुगाड़ में लगे रहो कहीं न कहीं जुड़ ही जाएंगे ...

Ashish Maharishi said...

वाह मजा आ गया। इतना डिटेल में जानकार

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