Thursday, December 24, 2009

लंगर में लंगूर की छलांग

anchor…लंगर चाहे खुद हिलता-डुलता हो, पर जिससे वह बंधा रहता है, उसे ज़रूर स्थिरता प्रदान करता है…लंगर के दीगर मायने खूंटा, बिल्ला, चिह्न भी हैं…

हि न्दी में लंगर शब्द का दो तरह से प्रयोग होता है। बड़े जहाजों या नावों को पानी में एक ही स्थान पर स्थिर रखने के काम आने वाले लोहे के एक भारी उपकरण को लंगर कहते हैं, ताकि समुद्री लहरें जहाज को बहा न ले जाएं। इसमें दो या तीन कांटेनुमा फलक होते हैं। यह सिरा सबसे भारी होता है और लोहे की मोटी जंजीर से बंधा रहता है। जहाज जब किसी बंदरगाह पर रुकता है तो सबसे पहले इसी उपकरण को पानी में गिराया जाता है। पानी में जाकर यह रेत में धंस कर अपनी पकड़ मजबूत बना लेता है। किसी स्थान पर डेरा डालने या अस्थाई मुकाम करने को भी अब लंगर डालना कहा जाता है। इसी तरह कही कूच करने, यात्रा पर निकलने के संदर्भ में लंगर उठाना का इस्तेमाल होता है। ये दोनो वाक्य मुहावरा बन चुके हैं। सूफियों के डेरों और आश्रमों में अक्सर सदाव्रत चलते रहते हैं, ऐसे ठिकानों को भी लंगर कहा जाता है। आमतौर पर जिस स्थान पर सामूहिक रसोई बनती है उसे लंगर कहते हैं। सेना के जवानों की रसोई  भी लंगर ही होती है।
लंगर दरअसल इंडो-ईरानी आधार से उपजा शब्द है जो हिन्दी, उर्दू और फारसी में एक समान उच्चारण और अर्थवत्ता के साथ मौजूद है। यह बना है संस्कृत की लङ्ग धातु से जिसमें झूलने, हिलने, डोलने का भाव है। इसके अलावा इसमें पहचान चिह्न, खूंटा, बिल्ला आदि भाव भी हैं। खूंटे के अर्थ में ही इसका एक अन्य अर्थ है हल की शक्ल का एक शहतीर। इसके अलावा बहुत वजनी चीज को भी लंगर कहते हैं। इससे बना है संस्कृत का लङ्घ जिसका अर्थ है उछलना, कूदना, दूर जाना, झपट्टा, आक्रमण करना, अतिक्रमण करना आदि। जब ये तमाम बातें होंगी तो रुष्ट या नाराज होना स्वाभाविक हैं, सो ये भाव भी इसमें समाहित हैं। सीमा पार करने के लिए हिन्दी में उल्लंघन शब्द का प्रयोग आमतौर पर होता है, जो इसी मूल से आ रहा है। लांघना यानी उछल कर पार जाना भी इसी मूल से आ रहा है। उछलने के अर्थ में हिन्दी में कूदना शब्द भी है और छलांग भी, मगर छलांग में जो बात है, वह कूद में नहीं। हिन्दी शब्द सागर के मुताबिक छलांग देशज शब्द है और इसकी व्युत्पत्ति उछल+अंग से बताई गई है

... गुरु की ओर से प्रसाद के बतौर लंगर यानी सदाव्रत चलता है।...pic14 Guru Langarkanhaiya3

जिसके मुताबिक पैरों को एकबारगी दूर तक आगे फेंक कर कूद कर वेग से आगे बढ़ने की क्रिया है, जबकि जॉन प्लैट्स के मुताबिक छलांग बना है उद्+शल्+ लङ्घ=छलांग होता है। संस्कृत मे उद् धातु का अर्थ है ऊपर उठना, शल् का अर्थ है गति, हिलाना, हरकत करना आदि और लङ्घ का अर्थ है सीमा पार करना। अर्थात छलांग में सिर्फ कूदने की क्रिया नहीं है बल्कि सीमोल्लंघन का भाव भी है। सामान्य से ऊंची कूद को छलांग कहा जा सकता है। छलांग में सामान्य तौर पर क्षैतिज गति का भाव है मगर मुहावरे में ऊंची छलांग भी होती है। फलांग भी इसी कतार में खड़ा नजर आता है।
गौर करें बंदर के लिए संस्कृत में लांगुलिन् शब्द है। लँगूर इसका ही देशी रूप है। लांगुल का अर्थ पूंछ भी है। पूंछ का लटकने, डोलने का भाव स्वतः ही स्पष्ट है। वैसे लँगूर की एक परिभाषा लम्बी पूंछ वाला बंदर भी है। समझा जा सकता है कि शरारती स्वभाव के चलते इसे यह नाम मिला है। शरारतों में किसी न किसी सीमा का उल्लंघन शामिल है।  अपंग अपाहिज जिसे पगबाधा हो, उसे लंगड़ या लंगड़ा कहा जाता है जो इसी मूल से उपजा शब्द है। लंगड़ा व्यक्ति एक पैर झुलाते हुए और खुद भी हिलते-डुलते चलता है। वृहत् प्रामाणिक कोश के अनुसार नटखट गाय के गले में बंधा लकड़ी का कुंदा भी लंगर कहलाता है जिसकी चोट से उसकी चंचलता काबू में रहती है। लंगर में किसी भी लटकती हुई वस्तु का भी बोध है। लँगर या लाँगर शब्द भी इसी मूल के है जिसका अर्थ पाजी, नटखट, शरारती या बदमाश होता है। कृष्णलीला के एक प्रसंग में राधा तंग आकर नटखट कन्हाई से कहती हैं-छाँड़ौं लंगर मोरी बैंयां धरो ना। नटखट बच्चों की तुलना लँगूर से भी की जाती है। लंगर के रसोई भंडार या सदाव्रत वाले अर्थ पर गौर करें। दरअसल संस्कृत मूल से फारसी में प्रवेश के बाद ही लंगर शब्द का इस अर्थ में प्रयोग शुरू हुआ होगा, ऐसा अनुमान है। खाना, कैम्प, क़ला, डेरा, तम्बू, खेमा, पड़ाव, लश्कर और ठाठ जैसी शब्दावली के अंतर्गत ही लंगर शब्द भी आता है। इन तमाम शब्दों का प्रयोग अस्थाई फौजी रिहाइश के संदर्भ में शुरु हुआ। लंगर में खूंटा गाड़ने के भाव पर ध्यान दें तो स्पष्ट होता है कि लंगर बांधना, लंगर लगाना, लंगर उखाड़ना जैसे वाक्य जो हम साहित्य में और बोलचाल में सुनते आए हैं, वे दरअसल कहीं मुकाम करने का अर्थबोध ही कराते हैं। पुराने जमाने में फौज लगातार गतिशील रहती थी। आज यहां, कल वहां। पड़ाव के अर्थ में ही हिन्दी उर्दू में लंगर शब्द का चलन शुरू हुआ अर्थ था खूंटा गाड़ कर डेरा लगाना।
वाल उठता है सदाव्रत या भोजनशाला के तौर पर लंगर शब्द कैसे रूढ़ हुआ। आसान सी बात है। लंगर का मूल अर्थ चार खूंटे गाड़ कर छप्पर तानना है जबकि रहने-सोने की रिहाइश की सुब्हो-रात की व्यवस्था अलग होती है जिसके लिए उपरोक्त तमाम शब्द पहले से मौजूद थे। भोजन बनाना एक तात्कालिक आवश्यकता है जिसमें बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगता और सिर्फ धूप, बारिश से बचाव के लिए छत की जरूरत होती है। इसीलिए जब कहीं फौजी पड़ाव होता था तो सबसे पहले आनन-फानन में लंगर तान दिया जाता था ताकि रसोइये फौरन अपने काम में जुट सकें। सिख पंथ मूलतः फौजी अनुशासन वाला पंथ रहा है। इस पंथ के गुरु महानतम योद्धा रहे हैं। इसीलिए लंगर शब्द यहां खास मायने रखता है। अब गुरु की ओर से प्रसाद के बतौर लंगर यानी सदाव्रत चलता है। लंगर का अर्थ  मुफ्त का खाना भी हो गया है। मुख्य बंदरगाह से दूर वह स्थान जहां जहाजों को लंगर डालना होता है, लंगरगाह कहलाता है। इसी तरह कंगलो-गरीबों के लिए सदाव्रत की जगह भी लंगरखाना कहलाती है। स्पष्ट है कि लङ्ग में चाहे हिलने डुलने का भाव हो, मगर यह इससे बांधी जानेवाली संज्ञा को जरूर एकाग्र करता है। भूखों-असहायों के लिए चलनेवाला लंगर भी उन्हें जीने का आधार देता है।

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19 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

आभार ज्ञानवर्धन का.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बढ़िया पोस्ट

विवेक रस्तोगी said...

इतना सब कुछ लंगर के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

Himanshu Pandey said...

"भूखों-असहायों के लिए चलनेवाला लंगर भी उन्हें जीव का एक आधार देता है। "- सोच रहा हूँ किस प्रकार अर्थ-प्रतीतियों को धारण कर सकते शब्द एक नया संदर्भ धारण कर लेते हैं - लंगर डालना और लंगर चलाना ।

Baljit Basi said...

सिख धर्म के कई विद्वानों का विचार है कि लंगर शब्द संस्कृत अनलग्रह से आया है लेकिन आम तौर पर इसको फारसी मूल का शब्द ही माना जाता है. सिख धर्म के प्रसंग में इसको 'गुरु का लंगर' कहा गया है. बेशक सिख पंथ मूलतः फौजी अनुशासन वाला है लेकिन इसका सेनिक चरित्र बाद में धीरे धीरे विकसत हुआ, जैसे जैसे शासन के साथ विचारक टक्कर बड्ती गई सिख शास्त्र उठाते गए. लंगर की प्रथा १२ वीं १३ वीं सदी में सुफिओं के डेरों में आम थी, और यहाँ से ही सिख धर्म में आई . गुरु नानक ने इसको शुरू किया और दुसरे गुरु अंगद देव ने पूरी तरह विव्स्थात किया. उनकी पतनी बीबी खीवी लंगर की पूरी देख भाल करती थी. दो भांड कवी सत्ता और बलवंड पहले पांचों गुरुओं के काल में गुरु घर की सेवा करते रहे. उनकी एक वार ग्रन्थ साहिब में दर्ज है जिस में उन्हों ने अंगद देव के समय से चली इस प्रथा का वर्णन किया है:

लंगरि दउलति वंडीऐ रसु अम्रितु खीरि घिआली
और :
बलवंड खीवी नेक जन जिसु बहुती छाउ पत्राली

सिख धर्म में लंगर की प्रथा का मूल मकसद जाती आदि किसी भी भिन भेद को ख़त्म करना था . उस जमाने में सभी जातों का एक साथ बैठ कर भोजन करना बहुत बड़ी बात थी .गुरु के लंगर में संगत और पंगत का बहुत महत्व है.
इस लेख ने मेरे दिमाग से बहुत धुंद हटाई है. फिर भी मैं कहूँगा कि आप ने कुछ ज्यादा खिलारा डाल दिया . लिंग की बात आप इतनी अच्छी तरह नहीं जोड़ सके. अच्छा होता इसको किसी और पोस्ट पर छोड़ देते.

डॉ टी एस दराल said...

पुराने ज़माने में पहलवान कुश्ती लड़ने के लिए जो वस्त्र धारण करते थे, उसे भी लंगर या लंगोट कहते थे.
अब ये पता नहीं की ये सिर्फ हरियाणा में ही कहा जाता था या सब जगह.

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
अब तो आपके शब्दों के सफ़र का लंगर पकड़ लिया है...बस आपके साथ लंगर छकने की तमन्ना है...

जय हिंद...

abcd said...

अजित भिय्या की जय हो!! शानदार पोस्ट .....

निर्मला कपिला said...

ये भी पोस्ट अच्छी लगी धन्यवाद। अब उठ कर लंगर बनायें

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर व्याख्या।

दिनेशराय द्विवेदी said...

विनोद जी को जन्मदिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
मैने फिर पढ़ा तो आपकी बात सही लगी कि थाली में खिलारा ज्यादा परोसा गया था। एक हिस्सा कच्चा भी था। लिंगम् को फिलहाल हटा दिया है

Anonymous said...

Sir,

Mai apki har safar me hissa leta hu.
Bhut achhi safar hai.

Kya apke pass koi mudran (Printing) se judi koi safar hai?
Agar hai to please muje bhejia.
is visay se judi koi link, koi kitab Or koi refarance ho to muje jarur Batayega.

apki maherbani hogi.

Aabhar ke sath

Ketan Rajyaguru

कमलकांत said...

हरिद्वार के पण्‍डा समाज में लांगर या लांगरिया का अर्थ उस व्‍यक्ति से है जो पएडाजी कह भारी भरकम बही अपने कंधे पर उठाकर उनके पीछे पीछे जजमान पास जाता है।

अजित वडनेरकर said...

@Ketan Rajyaguru
आपकी बात समझ नहीं पा रहा हूं-Kya apke pass koi mudran (Printing) se judi koi safar hai? कृपया स्पष्ट करें।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bahut Sundar.


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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

Asha Joglekar said...

वाह जी वाह एक लंगर उसके हज़ार रूप . गुरु के लंगर में
विभिन्न लोगों को बांध कर रखने की शक्ति की वजह से ही उसे लंगर कहते हों शायद. और अब मुजे उस गेट का मतलब समाज में आया जो अक्का गाती थी. लंगर तुरक जिन छुओ , मोरी गगरिया भारी .......
ज्ञानवर्धक पोस्ट.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जानकारीपरक अच्छा लेख!

क्रिसमस की बधाई!

Abhishek Ojha said...

लांगुलिन् तो पहली बार ही सुना !

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