Thursday, June 28, 2012

मंगोल नौकर, तुर्की चाकर [1]


नौ कर-चाकर या “नौकरी-चाकरी” हिन्दी के बहुप्रयुक्त शब्दयुग्म है । आमतौर पर इसे विदेशज और देशज शब्दों के मेल से बना संकर युग्म माना जाता है । कई शब्द विदेशी मूल के होते हुए भी दूसरी भाषाओं में इतने समरस हो जाते हैं कि रूप-संरचना के आधार पर उनमें भिन्नता नज़र नहीं आती । ‘चाकरी’ भी हिन्दी का अपना तद्भव या देशज शब्द ही जान पड़ता है । ‘नौकर’ शब्द तो पहली नज़र में ही अरबी-फ़ारसी मूल का नज़र आता है जबकि ‘चाकर’ शब्द को देशज समझा जाता है । दरअसल इस शब्दयुग्म के में भिन्न-भिन्न भाषाएँ हैं । ‘नौकर-चाकर’ का पहला सर्ग मंगोलियाई भाषा का है और इसका मूल ‘नुकुर’ है तो दूसरा सर्ग ‘चाकर’ तुर्किश ज़बान का शब्द है जिसका मूल ‘चाकुर’ है । फ़ारसी में आकर दोनों शब्दों का रूप ‘नौकर’, ‘चाकर’ हुआ । हिन्दी में ये दोनों ही शब्द बरास्ता फ़ारसी आए । इसीलिए हिन्दी, अंग्रेजी, सिन्धी, मराठी आदि अधिकांश शब्दकोशों में इन्हें फ़ारसी का बताया गया है । मेरी स्पष्ट मान्यता है कि नौकर और चाकर मंगोल और तुर्क कबीलों की सैन्य शब्दावली से अर्थान्तरित शब्द है ।

ई लोग ‘चाकर’ को भारतीय मूल का समझते हैं और ऐसा समझने के पीछे ‘चाकर’ की ‘चक्र’ से सादृश्यता है । ‘चक्र’ से बने ‘चाक्रिक’, ‘चक्कर’, ‘चकरी’, ‘चाकोर’, ‘चाकर’ जैसे शब्द संस्कृत, हिन्दी, मराठी, बलूच या फ़ारसी मं मौजूद हैं जिनमें कुम्हार, घेरा, घुमाव, फिरकनी, गोलाकार, जैसे भाव हैं । सेवक अपने स्वामी द्वारा सौपे गए कामों को अंजाम देने के लिए उसके इर्द-गिर्द चक्करघिन्नी बना रहता है इस भाव को लक्ष्य कर चक्र से ‘चाकर’ ( सेवक ) का रिश्ता जोड़ा जाता है, जबकि ‘चाकर’ ( सेवक ) की अर्थवत्ता इससे अलहदा है । अपने मूल रूप में ‘चाकुर’ यानी ‘चाकर’, सेवक नहीं बल्कि मित्र, सखा और स्वयंसेवक है । तुर्की ‘चाकुर’ दरअसल मंगोलियाई ज़बान के ‘नुकुर’ की तर्ज़ पर बना है । ‘चाकर’ को समझने के लिए मंगोल शब्द ‘नुकुर’ यानी ‘नौकर’ को जान लेना ज़रूरी है ।
विभिन्न संदर्भ बताते हैं कि मंगोलियाई ‘नुकुर /नोकोर’ की तर्ज़ पर ही तुर्की के ‘चाकुर / चाकर’ का जन्म हुआ है । कहीं कहीं इसका उच्चारण ‘चाकोर’ भी है । मंगोल भाषा के ‘नुकुर [ nukur / nokor- प्रोटो मंगोलियन रूप । Nuokur- औपनिवेशिक इंग्लिश ] में बंधु, सखा, मित्र का भाव है । संस्थागत रूप में इसका बहुवचन नोकोद ( nokod ) होता है । प्राचीन मंगोल कबीलों के सैन्य ढाँचे में ‘नूकुर’ का अर्थ विस्तार हुआ और इसमें मित्र-योद्धा का भाव समाहित हुआ । बाद में इसमें अंगरक्षक या निजी सहायक का आशय समाहित हुआ और धीरे-धीरे इस शब्द (नुकुर) ने एक ऐसी संस्था का रूप ले लिया जो मंगोल कबीलों के सामाजिक ढाँचे का महत्वपूर्ण हिस्सा थी । ये लोग मूलतः स्वतंत्र योद्धा होते थे खुद को खाकान की सेवा में समर्पित करते थे । मंगोल कबीलों के सरदार को खाकान कहा जाता । प्रत्येक ख़ाक़ान के साथ अनुयायियों का जमावड़ा लाज़मी था जिसमें पारम्परिक तौर पर उसकी माँ और पत्नी के पक्ष के रिश्तेदार खास होते थे । मगर कुछ समर्थक कुटुम्बी न होकर सामान्य जन होते थे । सरदार के प्रति निजी आस्था के चलते वे उसके नज़दीकी दायरे में आ जाते थे । ऐसे लोगों को ‘नुकुर’ या ‘नोकोर’ कहा जाता था । अमेरिकी अध्येता लुईस एम.जे. शर्म “ द मंगर्स ऑफ द कान्सु-तिब्बतन फ़्रन्टियर ” में लिखते हैं कि इस वर्ग के लोग स्वेच्छा से खाकान को अपनी सेवाएँ समर्पित करते थे । इनमें गुलाम भी हो सकते थे और युद्बबंदी भी । वैसे आमतौर पर ये स्वयंसेवक होते थे और युद्ध के दौरान हरावल दस्ते की तरह सबसे आगे चलते थे । चंगेज़ खान के दौर तक नुकुर / नोकोर परिपाटी ने संस्थागत रूप ले लिया था और नोकोर वर्ग के लोग राज्य में उच्चपदों पर तैनात थे । कई नुकुर /नोकोर तो सूबेदार का ओहदा तक पा लेते थे ।
नुकुर /नोकोर शब्द की व्याप्ति समूचे आल्ताइक भाषा परिवार में है और सभी में इसका आशय सखा, बंधु या अंगरक्षक का है जैसे तातार भाषा में यह नुगर है । उज्बेकी में यह नागार है जहाँ इसका अर्थ या तो खाकान का निजी सहायक है अथवा अथवा विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन का बन्नायक या बेस्टमैन । तुर्किक भाषा में यह नावकर या नुकुर है जिसमें सेवक का भाव है । रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी के एटिमोलॉजिकल डेटाबेस में संग्रहित तुर्की भाषा विज्ञानी बत्तल अप्तुल्लाह के तुर्की और मंगोल व्युत्पत्ति कोश “इब्नु मुहेन्ना लुगाती” के मुताबिक समूचे मंगोल क्षेत्र की विभिन्न भाषाओं मसलन-खाल्खा, बुरिअत, कल्मुक, ओर्दोस, दोम्खियन,बओअन, दागुर, शारी-योघुर और मंगर आदि प्रमुख भाषाओं में नुकुर /नोकोर की व्याप्ति है । गौरतलब है कि मंगोल प्रभावित क्षेत्र एशिया के सुदूर दक्षिण साइबेरिया, उत्तरी चीन से लेकर मध्यएशिया और पूर्वी यूरोप के हंगरी तक फैला है ।
पनिवेशिक काल के एंग्लो-इंडियन समाज और कंपनीराज में जो शब्द प्रचलित थे उनका उनका संग्रह हेनरी यूल के कोश ‘हॉब्सन-जॉब्सन’ में है । इसके मुताबिक ‘नौकर’ शब्द तुर्की मूल का है । हेनरी यूल जर्मन भाषाविद् इसाक जेकब श्मिट (1779 –1847) के हवाले से बताते हैं कि ‘नौकर’ शब्द मंगोल मूल के ‘नुकुर’ से निकला है जिसका अर्थ स्वयंसेवक, मित्र या आश्रित है । मंगोल-तुर्क क्षेत्र से लगते सोग्दियाना जैसे उत्तर-पूर्वी ईरान के लोग इससे पहले से ही परिचित थे ।इसका सर्वाधिक प्रसार चंगेज़ खान के सामरिक अभियानों के दौरान ही हुआ । चंगेज की अधीनता स्वीकारने वाले सरदारों को ‘नुकुर’ का दर्जा मिला । यह लगभग अरबी के गुलाम और माम्लुकों जैसा मामला था जो अधीनस्थ होते हुए भी ऊँचे ओहदे पर थे । भारतीय ‘दास’ शब्द को भी इसी कड़ी में देख सकते हैं । रामदास, रामसेवक, रामगुलाम जैसे नामों से ज़ाहिर है कि ये नाम सर्वशक्तिमान की अधीनता की महिमा बतलाने के लिए बनाए गए । मेरे विचार में उच्चवर्ग के इस शब्द का उपहासात्मक प्रयोग आम लोगों में शुरु हुआ । बाद में मित्रयोद्धा, सहकारी, अंगरक्षक, सहचर की अर्थवत्ता वाला यह शब्द सिर्फ़ सेवक के अर्थ में रूढ़ हो गया । ‘नौकर’ से बने ‘नौकरी’ शब्द में असम्मान का वह भाव नहीं है जो ‘नौकर’ में समझा जाता है । ‘नौकरी’ आज आजीविका-कर्म का पर्याय है जबकि ‘नौकर’ को सिर्फ़ सेवाकर्मी समझा जाता है । अलबत्ता ‘नौकरशाह’ या ‘नौकरपेशा’ शब्दों में इस शब्द का महत्व सुरक्षित है । 

मंगोल नौकर, तुर्की चाकर [2]
[अगली कड़ी में समाप्त]
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2 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

सखा भी घट कर नौकर हो गये..

Asha Joglekar said...

सखा, संरक्षक से अधीनस्त (मांडलिक) से निकल कर आजके प्रचलित अर्थ वाले नोकर तक शब्द के अर्थ किस तरह बदलते हैं अदभुत है । आप का आभार किआपके इस अथक शोध कार्य को आप हमे कितनी आसानी से उपलब्ध करा रहे हैं ।

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