सचिन का मूलार्थ दरअसल इन्द्र है। यह शचीन्द्र का ही घिसा हुआ तृतीय रूप है। द्वितीय रूप है सचिन्द्र। इसकी पृथक अर्थवत्ता नहीं है। बांग्ला-मराठी के स्वरतन्त्र में अन्त्य व्यंजनलोप की प्रवृत्ति है जैसे मिलिन्द > मिलिन, देवेन्द्र > देवेन या सचिन्द्र > सचिन। मराठी और बांग्ला में "न्द्र" का लोप होकर सिर्फ 'न' ध्वनि रह जाती है।
शची या शचि और कहीं कहीं सची का उल्लेख पुराणों में इंद्र की पत्नी के तौर पर है। इसे भी इंद्राणी कहते हैं। शचि दानवराज पुलोमा की कन्या थी। इसी लिए इन्द्र को शचीपति भी कहा जाता है। इसकी कई अर्थछटाएँ हैं। जैसे- सारतत्व। वाग्मिता। प्रज्ञा। शक्ति। भक्ति। प्रीति। पवित्रता।
प्रसंगवश रक्षाबंधन से भी इसका रिश्ता है। भविष्य पुराण के अनुसार देवासुर-संग्राम में असुरों से दुःखी और पराजित इन्द्र को विजयश्रीवरण की युक्ति उनकी पत्नी शची ने जो स्वयं असुर पुत्री थीं, सुझाई थी। जिसके मुताबिक़ श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणों के विशिष्ट विधान से तैयार रक्षासूत्र खुद उन्होंने इन्द्र की कलाई पर बांधा। यह भी उल्लेख है की शची के कहने पर ब्राह्मणों ने उसे इंद्र की कलाई पर बांधा| जो भी हो, कहते हैं इसी के प्रभाव से देवताओं की विजय हुई। रक्षाबंधन तभी से मूलतः ब्राह्मणों के पर्व के तौर पर प्रचलित हो गया। धीरे धीरे प्रतिज्ञा रक्षा, क्षात्रधर्म, ब्रह्मरक्षा से होते होते इसकी भावना विश्वबंधुत्व तक पहुंची। लेकिन बहन-भाई के बीच स्नेह-रक्षा सूत्र के रूढ़ अर्थ में यह सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ।
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2 कमेंट्स:
अच्छा लगा सचिन/शचीन्द्र का रूपांतरण जानना!
बहुत अच्छी जानकारी है अजित जी.
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