Thursday, December 25, 2014

// याद है ‘परकार’? जानिए ‘परकार’//

पिद्दी से दिनों में अपना स्कूल और बस्ता जितना नामुराद लगता था, उतना ही लुभाता था बड़े भाई-बहनों का स्कूल और उनका बस्ता। खास तौर पर कम्पास-बॉक्स के लिए बेहद कशिश थी। टीन का चपटा डिब्बा जिसमें अजीबोग़रीब आकार की चीज़ें और रबर-पैंसिल होती थीं। सोचते थे कब हम बड़े हों जाएँ और कब ये तिलस्माती बक्सा हमारे बस्ते में भी आ जाए। कुछ बच्चे अनुकरण के आधार पर कम्पाक्स-बॉक्स भी कहते थे। इस करिश्माती डब्बे में टिड्डे की टाँग जैसी दो नुकीली टाँगे होतीं- एक नुकीली होती। दोनों को घुमाने से कागज पर घेरा बन जाता। ये करतब हमें लुभाता था। बहरहाल, अब तक आप समझ चुके हैं कि हम ‘परकार’ की बात कर रहे हैं जो लगता हिन्दी का है पर आया फ़ारसी से है। ‘परकार’ का सही उच्चार ‘परगार’ है। बात थोड़ी अजीब लग सकती है कि यह ज्यामितीय उपकरण दरअसल हल जैसे कृषि उपकरण का विकसित रूप है। इस मिसाल से यह फिर साबित होता है कि हमारी आज की तरक्की दरअसल कृषि संस्कृति के लगातार विकसित होते जाने का परिणाम ही है।

‘परगार’ या ‘परकार’ में मूल आशय ऐसे उपकरण से है जो घेरा बनाता हो। ध्यान से देखें तो इस परकार में हमें भारोपीय भाषा परिवार का विस्तार नज़र आता है। गौरतलब है कि भारोपीय भाषा परिवार में 'पर' per / peri जैसी धातुएँ उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होती हैं। इसमें चारों ओर, आस-पास, इर्दगिर्द, घेरा जैसे भाव हैं। संस्कृत का ‘परि’ उपसर्ग इसी से व्युत्पन्न है जिससे बने दर्जनों शब्द हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं जैसे परिवहन, परिस्थिति, परिधान आदि। 'परि' इसका ही अवेस्ता रूप पइरी होता है। अवेस्ता के दाएज़ा यानि दीवार से जुड़ कर बने पइरीदाएज़ा (pairidaeza) में ऐसे स्थान का आशय है जिसके चारों ओर सुरक्षित परकोटा है। इसका अर्थ हुआ सुरम्य वाटिका, आरामग़ाह। प्रसंगवश पइरीदाएज़ा का कायान्तरण ग्रीक में paradeisos, लैटिन में पैराडिसस तो पुरानी फ्रैंच में यह पैरादिस में ढल गया। अंग्रेजी में इसका रूप पैराडाइज़ हुआ। इन तमाम रूपान्तरों में स्वर्ग, बहिश्त, वैकुण्ठ, जन्नत, ईडेनगार्डन जैसे अर्थ स्थिर हुए। बाद में अवेस्ता के पइरीदाएज़ा का बरास्ता पहलवी होते हुए फ़ारसी रूप बना फ़िर्दौस (हिन्दी में फिरदौस)।

तो बात चल रही थी भारोपीय धातु per / peri की जिसे उपसर्ग की तरह बरता जाता है। हिन्दी, अंग्रेजी, स्पैनिश, फ्रैंच, फ़ारसी आदि कई प्रमुख भाषाओं में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं। अंग्रेजी में पेरीनियल, पर्सेप्शन, पर्सिव जैसे शब्दों में यही per / परि है। इसी तरह हिन्दी में परिधि, परिपक्व, परिप्रेक्ष्य, परिभाषा, परिवार आदि शब्दों में यह भलीभाँति अपनी अर्थछटाओं के साथ मौजूद है।

हम जानते हैं कि जिस तरह हिन्दी, संस्कृत से स्वतन्त्र भाषा है, उसी तरह फ़ारसी भी अवेस्ता से स्वतन्त्र भाषा है। अलबत्ता इन दोनों की रिश्तेदारियाँ सघन है। विकासक्रम में हिन्दी, संस्कृत के बाद आती है उसी तरह अवेस्ता के बाद फ़ारसी। अवेस्ता और संस्कृत में बहनापा रहा है। संस्कृत या वैदिकी का ‘परि’ उपसर्ग अवेस्ता में ‘पइरी’ हो जाता है। परकार का पहला पद 'पर' अवेस्ता के ‘पइरी’ से आ रहा है जो संस्कृत ‘परि’ का समतुल्य है। ‘परकार’ के अगले पद ‘कार’ में मूलतः करने का भाव है, ऐसा अनेक भाषाविदों का मानना है। यह ‘कार’ वैदिकी या संस्कृत के ‘कर’ का समतुल्य है जिसमें ‘कर्म’ करने का भाव है। अर्थात संस्कृत के ‘परिकर’ का समतुल्य है अवेस्ता का ‘पइरी-कार’। अर्थ हुआ जिससे परिधि बनाई जाए।

दरहकीकत ऐसा नहीं है। कार का मूल 'कृष' है। ‘कृषि’ शब्द बना है ‘कृष्’ धातु से जिसका अर्थ है खींचना, धकेलना, उखाड़ना और हल चलाना। ध्यान दीजिए कि हल चलाने में ये सभी क्रियाएं पूरी हो रही हैं और हल चलाने का काम कौन करता है? हल खींचे बिना खेती मुमकिन नहीं सो कृष् से बना ‘कृषि’ जो संस्कृत-हिन्दी में समान रूप से है। कृष् से ही संस्कृत का एक अन्य शब्द जन्मा ‘कर्ष’ जिसका अर्थ भी खींचना, घसीटना, हल चलाना ही है। इसमें ‘आ’ उपसर्ग लगने से बना ‘आकर्षण’ जिसका मतलब है खिंचाव,रूझान या लगाव। अवेस्ता ने कृष् के स्थान पर ‘कर्ष’ को अपनाया। ‘र’ का लोप होते हुए ‘कश’ बाकी रहा। खींचने के अर्थ में फ़ारसी, उर्दू में यह ‘कश’ आज तक कई रूपों में नज़र आता है। धुएँ का कश, दिल के खिंचाव वाली ‘कशिश’, तनाव वाला खिंचाव यानी ‘कशमकश’, ‘रस्साकशी’ जैसे शब्दों में भी यह मौजूद है। ‘कशीदाकारी’ में यानी बेलबूटे बनाना जिसमें सूई में धागा पिरोने से लेकर टाँका लगाने तक में खींचने की क्रियाएँ शामिल है।

‘पइरी-कार’ में दरअसल ‘कर्ष’ से ही ‘कार’ बन रहा है। इसी ‘कर्ष’ से मध्यकालीन फ़ारसी में ‘काश्तन’ भी बनता है और फारसी रूप ‘कारीदन’ जिसमें बोने, जोतने, कुरेदने का भाव है। ‘कृष्’ से ‘कृषि’ और ‘कर्ष’ से ‘कश’ फिर ‘काश्तन’ और फिर ‘काश्तकारी’ जो हिन्दी में भी है। ‘परकार’ पर गौर करें तो इसकी दोनों नुकीली भुजाएँ दरअसल प्राचीनकाल में हल का जोड़ा ही है। पुराने ज़माने में हल के ज़रिये न सिर्फ़ जुताई होती बल्कि सीमांकन के लिए भी यही तरकीब आज़माई जाती थी। संस्कृत ‘परिकर’ की अर्थछटाओं को देखें तो उसमें से एक भी परकार में निहित भाव से मेल नहीं खाती। इससे ही साबित होता है कि ‘परिकर’ और ‘परकार’ का विकास अलग अलग ढंग से हुआ है। ‘परिकर’ में आसपास घूमना, अनुचर, परिचर जैसे भाव हैं या इसे कमरबंद, करधनी जैसा आभूषण बताया गया है। इसके विपरीत ‘परकार’ दरअसल प्राचीन सीमांकन तकनीक से विकसित हुआ शब्द है। पुराने ज़माने में ज़मीन में खूँटा गाड़ कर उसके इर्दगिर्द एक बड़ी रस्सी के छोर पर बैलों के गले में जुआ पहनाकर हल जोत दिया जाता था। वे दायरे में गोल चक्कर लगाते और इस तरह सीमांकन हो जाता। ‘परकार’ में कर्म वाला कर न होकर ‘कर्ष’ से विकसित ‘कार’ है जिसमें ‘श’ का लोप हो गया।

फ़ारसी में ‘क’ का रूपान्तर ‘ग’ में होना आम बात है। परकार का ‘परगार’ बना। अरबी में इसका एक रूप ‘बिरकार’ है तो दूसरा ज्यादा प्रचलित रूप ‘फरजार’ है। गौरतलब है कि अरबी में ‘ज’ और ‘ग’ में भी रूपान्तर होता है जैसे अरबी में ‘जमाल’ को ‘गमाल’ भी कहा जाता है।
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14 कमेंट्स:

प्रतिभा सक्सेना said...

शब्दों की खोज-बीन भी ज्ञानवर्धक होने के साथ ही कितनी सरस (साहित्यिक),चित्रात्मक और आनन्दप्रद हो सकती है - कोई आपसे सीखे :
हम तो,आपकी बदौलत परकार और 'कंपाक्स' ('डी' भी वहीं थी) के दिनों में घूम आए- धन्यवाद !

अजित वडनेरकर said...

बहुत शुक्रिया प्रतिभाजी|

Baljit Basi said...

बहुत बढ़िया लगा.कम्पास बॉक्स को हम पंजाबी में जमैट्री बकस कहते हैं , protrctor को चाँद की शकल जैसा होने के कारन चांदा और divider को सूआ.protractor में tractor का अर्थ भी परकार में कार की तरह खींचना ही है . कुछ संदेह हैं. हमारी भाषाओँ में परकार शब्द क्या फारसी परगार का बदला रूप है या फारसी से ही ऐसा आया है? क्योंकि फारसी में परकार भी है.हालाँकि ज़्यादा परचलत परगार ही लगता है.फिर खेत तो चौरस होते हैं उनका गोल गोल सीमांकन करने की क्या ज़रुरत है?

गुलाब चंद जैसल said...

बच्चे का बस्ता बच्चे से भारी।
बच्चे को कर दी बढ़ाने की तैयारी॥

prembahadursnd said...

आप जिस प्रकार एक छोटे से शब्द पर बैठाकर पूरी दुनिया की सैर कराते है, बहुत लाजवाब है। आपके "शब्दों का सफर" सचमुच ज्ञान का सागर है।

कुमार अंकुर said...

सर जी कृपया विवाह से एक दिन पहले होने वाले मंढ़ा शब्द एवं नास्ता शब्द के बारे में बताएं ?

Unknown said...

सुबह शब्द का क्या इतिहास है? क्या सबा (बाद ए सबा), या शीबा से इसका सम्बन्ध है? हैदराबाद, अहमदाबाद और बरबाद का सम्बन्ध बाद (वात) से है?

सार-सूत्र said...

कम्पाक्स बाक्स.... बतौर ईनाम मैंने कक्षा 3 में जीता था....उसपर फौज़ी वर्दी वाले सरदार जी के हाथ की बंदूक और उसके अंदर रखे नाना "परकार" के मेरे हथियार....कितना गर्व महसूस किया था उस रोज़..तालियों से गूंजते हॉल में नीली हॉफ पैंट और सफ़ेद कमीज पहने , जब मैंने प्राचार्या जी से वो इनाम लिया था...!!
आपकी लेखनी ने यादों के केनवास में आज बचपन की यादों के चित्र उकेर दिए.....!!
शुक्रिया...प्रेम और प्रणाम..!

कहकशां खान said...

बहुत ही ह्रदयस्‍पर्शी रचना।

कमल said...

बहुत ही शानदार
http://puraneebastee.blogspot.in/
@PuraneeBastee

Abhishek Ojha said...

जै जै ! :)

Unknown said...

I just couldn’t leave your website before saying that I really enjoyed the quality information you offer to your visitors… Will be back often to check up on new stuff you post!

Chandrakishore Prasad said...

यह आपका बहुत ही सराहनीय कर्म है, दैनिक उपयोग में आनेवाले शब्दों से प्रेरणा लेकर साहित्याकाश में कुलांचे मारकर उड़नेवाले आप श्री अजित वडनेकर जी को सहस्र साधुवाद.

चन्द्रकिशोर प्रसाद
मुम्बई

Megha said...

बहुत खूब |
आज कल हिंदी ब्लॉग बहुत कम देखने को मिलते हैं |हमने भी एक हिंदी ब्लॉग बना कर हिंदी के प्रचार और प्रसार में अपना भी योगदान देना चाहा है | आप सभी आमंत्रित हैं -
http://arogyasanjeevani.blogspot.in/

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