अब देखिए कि अश्व प्रजाति का होने के बावजूद जहाँ घोड़ा आभिजात्य का प्रतीक है वहीं गधा, घोड़े की सभी खूबियों से हीन है। अमरकोश के हवाले से बगुला, समुद्री बाज़, कौवा आदि भी खर की श्रेणी में ही आते हैं। अब ये सब तो परिंदे हैं तब एक चौपाए और इनके बीच कौन सा समानता बिन्दु हो सकता है? इन सबकी आवाज़ बेहद ऊँचे सुर में निकलती है। अब ऊँचा सुर अपनी निरन्तरता में तीक्ष्ण और कटु अनुभव देता है। गधे की आवाज़ तो ख़ैर कर्णभेदी है ही। असम सतह को खरदरा / खुरदुरा कहते हैं। कण्ठ के खुरदुरेपन या भर्रायी आवाज़ के लिए खरखराना शब्द भी प्रचलित है। गौर करें इन परिंदों के लिए खर अभिव्यक्ति इतनी लोकप्रिय नहीं हो पायी और गधा ही खर होकर रह गया। हालाँकि गधे की मूल पहचान उससे जुड़ा मूढ़ता का लक्षण है।
गौर करें मूढ़ता में एक किस्म की जड़ता, स्थिरता, अपरिवर्तनीयता होती है इन्हीं लक्षणों के चलते जड़ को अड़ियल या मूर्ख मान लिया जाता है। बुद्ध प्रतिमा के लिए बुत शब्द चल पड़ा और बुद्धमुद्रा से बुद्धू चल पड़ा। जड़ता पर गौर करें। सो खर में निहित जड़, अनघड़ और ठोस जैसे लक्षणों से गधे की मूल पहचान की पुष्टि भी होती है। खर शब्द फ़ारसी में भी चला आया। मगर यहाँ खरगोश में यह खर लक्षण के तौर पर मौजूद है। फ़ारसी में ‘गोश’ का अर्थ कान होता है। खर यानी गदहा इस तरह खरगोश का अर्थ हुआ गधे जैसे कान वाला पशु। मूर्ख व्यक्ति को खरदिमाग़ कहते हैं, यह फ़ारसी मुहावरा है। इसी तरह खर- का अर्थ है कामातुर, खिलंदड़ा, लट्ठ। एक और पद है खरवार यानी खर पर लादा गया भार।
अब बात करते हैं खर से बने खरा की जिससे हिन्दी में कई तरह की अभिव्यक्तियाँ शामिल हुई हैं जैसे खरी-खोटी सुनाना, खरी-खरी कहना, खरा माल, खरा सिक्का, खरा उतरना आदि। खरा का अर्थ उत्तम, सही, सच्चा, शुद्ध, बिना मिलावट का, ठोस, तेज़, तीक्ष्ण, कटु आदि ही है। गौर करें अपने मूल रूप में कोई भी वस्तु अनघड़ ही होती है। करेला या नीम कड़ुवेपन की वजह से खरे हैं। अगर नीम में कटुता न हो तो उसकी ओषधीय गुणता संदिग्ध होगी। खर से ही बना एक और बहुप्रयुक्त शब्द है प्रखर जिसमें तप्तता, तीक्ष्णता, प्रचंडता, तेज, तीखापन जैसे भाव हैं। मिसाल के तौर पर दोपहर में सूर्य सबसे प्रखर होता है। यहाँ एक साथ सूर्य के ताप, उग्रता, प्रचंडता, तीक्ष्णता से आशय है।
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