यह आलेख अहा जिंदगी के ताजे अंक में प्रकाशित हुआ है। दीवाली के मौके पर हमारी जुए पर लिखने की तैयारी थी। कुछ दिनों पहले संपादक जी का आदेश हुआ कि जुआ पर कुछ लिखना है। बस, हमारी तैयारी की दिशा बदल गई। अपने ब्लाग के पाठकों के लिए प्रस्तुत है वही लेख।
आज के जितने भी पर्व-त्योहार हैं उनकी शुरूआत प्राचीनकाल में लोकोत्सवों के रूप में ही हुई। लोकोत्सवों में सामूहिकता का भाव महत्वपूर्ण है । ये पर्व ही सदियों से समाज को समरस बनाते रहे और लम्बे समय के लिए समता-सौमनस्य उत्पन्न करते रहे । ये अलग बात है कि भिन्न – भिन्न अवसरों पर इनके अंदाज भी अलग रहते हैं अर्थात भदेस या नकारात्मक रूप अथवा मांगलिक और कल्याणकारी स्वरूप। दिवाली – होली पर जुए का प्रचलन संभव है इसी रूप में सामने आया हो। केशवदास की रामचंद्रिका में होली पर मस्ती( निर्लज्जता ) और दीवाली पर जुए का जिक्र कुछ यूं किया है – फागुहिं निलज लोग देखिये। जुआ दिवारी को लेखिये।।
प्राचीन ग्रंथों में जुआ सबसे पुराने दुर्गुण के तौर पर वर्णित है। मनु, याज्ञवल्क्य आदि ने राजाओं के लिए दिशा निर्देश लिखे है जिनके मुताबिक जुआ राज्य के लिए वर्जित होना चाहिए। उन्होने इस खुलेआम चोरी कहा है। ऋग्वेद में एक जुआरी के रूदन का उल्लेख है। अथर्ववेद में भी इस खेल के प्रकार , दांव लगाने , और पांसों एवं ग्लह् का उल्लेख है। शास्त्रों में तो राजाओं के लिए जूआ पूरी तरह वर्जित कहा गया है क्योंकि इससे वे पथभ्रष्ट हो सकते हैं। महाभारत के उद्योगपर्व में कहा गया है- अक्षद्यूतं महाप्राज्ञ सतां मति विनाशनम् । असतां तत्र जायन्ते भेदाश्च व्यसनानि च ।। द्यूत समान पाप कोई नहीं। यह समझदार की बुद्धि फेर सकता है। अच्छा व्यक्ति बुरा बन सकता है।
महज़ रस्मो-रिवाज़ नहीं
दिवाली के साथ जुआ का उल्लेख महज़ परम्परा या रस्मो-रिवाज़ नही है बल्कि इन दोनों में बहन - भाई का रिश्ता है। दरअसल ये दोनों शब्द एक ही कोख से जन्में है इसलिए सहोदर संबंध तो स्थापित हुआ न ! दीपावली या दिवाली शब्द की व्युत्पत्ति
संस्कृत धातु दिव् से हुई है। द्यूतक्रीड़ा , जिसे हिन्दी में जुआ कहा जाता है ,जन्म भी इसी दिव् से हुआ है। दिव से द्यूत और फिर जूआ यह रहा इसका विकास क्रम। दिव् का मतलब होता है दांव पर लगाना, चमकना, फेंकना, पांसे चलना, हंसी-मज़ाक , परिहास करना , प्रकाश, उजाला, आदि। दिया ,प्रदीप, दीपक और दिव्य जैसे शब्द भी इसी श्रंखला से बंधे हैं।
दीपावली अपने पारम्परिक रूप में देश भर में पांच दिनों तक मनाई जाती है जिनमें से एक दिन होता है बलिप्रतिपदा (वीरप्रतिपदा) का । इसे ही वामनपुराण में द्यूतप्रतिपदा भी कहा गया है। उल्लेख है कि इस दिन देवी पार्वती ने द्यूतक्रीड़ा में भगवान शंकर के हराया था। मान्यता है कि इस दिन की जीत से वर्षभर जीत का सिलसिला चलता रहता है और हार पर वर्षभर हानि होती है। यानी दीवाली पर जुआ खेलने का औचित्य तो धर्मशास्त्र में भी बताया गया है। ........ क्रमशः
Monday, November 12, 2007
चुनरी का सबसे पुराना दाग - 1
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:31 AM
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4 कमेंट्स:
जुआ पुराण की अगली कड़ी का इंतजार है। सेंसेक्स और कौन बनेगा करोड़पति तक पहुंचेगा ना
बहुत खूब ! मेरे लिए यह नई जानकारी है..धन्यवाद
बढ़िया जानकारी!!
आप सबका बहुत बहुत आभार।
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