Saturday, November 17, 2007

डाकिया डाक लाया....समीर भाई...

यह पोस्ट श्रीयुत समीरलाल जी को समर्पित है क्यों कि सबसे पहले उन्होंने ही इस शब्द के बारे में लिखने का आग्रह किया था। यह पोस्ट भी उस सामग्री का हिस्सा है जो कम्प्यूटर सुधारक महोदयजी की फुर्तीली कार्रवाई की भेंट चढ़ गई । इसे दोबारा लिखा गया है। अभी ऐसी मेहनत कई बार करनी होगी। कम्प्यूटर अभी भी ठीक नहीं हुआ है। छोटे भाई पल्लव बुधकरजी द्वारा बताई गई प्रॉक्सी व्यवस्थाओं से फिलहाल किसी तरह काम चला रहा हूं। ब्लागस्पाट अभी भी नज़र नहीं आ रहा है। यही वजह है कि मेरी सक्रियता में इन दिनों कमी आई है। इन परेशानियों के मद्देनज़र उम्मीद है आप स्नेह बनाए रखेंगे।

...कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में

डाक आमफहम हिन्दोस्तानी ज़बान का एक ऐसा लफ्ज है जिसके साथ समाज के हर वर्ग की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। डाक एक संवाद है अपनों से जो दूर बसे हैं। सुख,दुख के संवाद का जरिया। डा यानी चिट्ठी-पत्री, पोस्ट। कहां से आया ये लफ्ज ? दरअसल यह शब्द संचार माध्यम की अत्यंत प्राचीन सरकारी व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है।

चिट्ठी-पत्री यानी डाक शब्द के साथ जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह है इसे पाने की भी जल्दी रहती है और भेजने की भी। एक शायर लिखते हैं - आती है बात बात मुझे याद बार बार / कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में । और दूसरी तरफ - दे भी जवाबे ख़त कि न दे , क्या ख़बर मुझे / क्यों अपने साथ ले न गया , नामाबर मुझे । मतलब यही कि शीघ्रता का जो भाव डाक के साथ जुड़ा है उसी में है इसके जन्म का मूल भी।

संस्कृत का एक शब्द है द्रा जिसके मायने हैं दौड़ना, शीघ्रता करना , उड़ना आदि। इसी से बना है द्राक् जिसका मतलब होता है जल्दी से , शीघ्रता से , तुरन्त, तत्काल, उसी समय वगैरह वगैरह। इसे ही डाक का उद्गम माना गया है। गौर करें कि प्राचीनकाल की संचारप्रणाली में जो अच्छे धावकों को ही संदेशवाहक का काम सौंपा जाता था। ये रिले धावकों की तरह निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश पहुंचाने तक भागते रहते थे। थोड़ी थोड़ी दूरी पर इन्हें बदल दिया जाता था। ये प्रणाली बड़ी कारगर थी और दुनिया के हर हिस्से में यही तरीका था संदेश पहुंचाने का।

अंग्रेजी दौर में फली-फूली

अंग्रेजी शासन व्यवस्था में यह शब्द खूब इस्तेमाल हुआ है। इसका रिश्ता जहाज के ठहरने के स्थान से भी जोड़ा जाता है जिसे डॉक कहते हैं। लंदन से राजशाही के कामकाज की चिट्ठियां भारतीय गवर्नर के नाम जहाजों से ही आती थीं। डॉक शब्द बना है पोस्टजर्मनिक के डोको से जिसका मतलब बंडल भी होता है।

भारत के लंबे चौडे शासनतंत्र को सुचारू रूप से चलाने में अंग्रेजों की चाक चौबंद डाक प्रणाली का बड़ा योगदान रहा। डाकखाना, डाकबंगला, डाकिया, डाकघर जैसे शब्द यही ज़ाहिर करते हैं। पुराने ज़माने के धावकों की जगह कालांतर में घुड़सवार संदेशवाहकों ने ले ली। अंग्रेजों ने बाकायदा इसके लिए घोड़ागाड़ियां चलवाईं जिन्हें डाकगाड़ी कहा जाता था। आज इन्हीं डाकगाड़ियों की जगह लालरंग की मोटरों ने ले ली है जिन्हें डाक विभाग चलाता है। .......क्रमशः

11 कमेंट्स:

काकेश said...

हमेशा की तरह अच्छी जानकारी.

mamta said...

रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी।

ALOK PURANIK said...

गालिब के यहां कासिद बहुत आते हैं। बल्कि गालिब तो यह तक क्लेम करते हैं कि जो खत कासिद लायेगा, उसका मजमून उन्हे पहले से ही पता है। एक दौर था, जब डाक पोस्ट का फिल्मी गानों में भी जलवा था। राजेश खन्ना अभिनीत गाना डाकिया डाक लाया, तो विकट धांसू गीत है, पर उस गीत का क्या कहना, उस लिखने वाले का क्या कहना जिसने पंद्रह पैसे के पोस्ट कार्ड को अपने गीत में अमर कर दिया, वो गीत था -तन मन दे डाला सैंया सोलह साल वाला, पर तूने तो खत भी ना डाला पंद्रह पैसे वाला।
तुस्सी ग्रेट हो जी। रिसर्च ऐसी धांसू च फांसू और रोज। कमाल है जी।
सरजी आदरणीय कमलकांत बुधकर जी का कांटेक्ट नंबर दें,मुझे हरिद्वार जाना है अगले हफ्ते, उनसे मिलने का मन है।

Sanjeet Tripathi said...

रोचक जानकारी!!

@पुराणिक जी, हरिद्वार में डूबकी लगा कर पुराने पाप धोने और नए पाप करने का पास लेने जा रहे है, यह सही है ;)

मीनाक्षी said...

इतनी रोचक जानकारी पढ़ कर मन कुछ भारी हो गया कि अब हम न लिखते हैं न पाते हैं... क्यों न हम वापिस लौट चलें और शुरु कर दें एक कोने में बैठ कर अपने हाथों से लिखें खत अपने प्रियजनों को.... काश कि अनपढ़ हो जाएँ और गा उठे...."खत लिख दे सावँरिया के नाम बाबू ......."

नारायण प्रसाद said...

आपकी शब्दावली में शब्दों की व्युत्पत्ति जहाँ एक ओर ईषद्धास उत्पन्न करती है, वहीं पाणिनि धातुपाठ का पुनरावलोकन भी करा देती है ।
आपका शोध-कार्यक्रम अविच्छिन्न रूप से सतत ऐसे ही चलता रहे, यह मेरी शुभकामना है ।
--- नारायण प्रसाद
(hindix@gmail.com; http://groups.google.com/group/technical-hindi/; http://magahi-sahitya.blogspot.com)

चंद्रभूषण said...

मुझे आपकी इस खोज में लंतरानी ज्यादा नजर आती है। मेरे ख्याल से पोस्ट ऑफिस का अनुवाद 'डाकघर' गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का किया हुआ है, जिनकी एक कविता की पंक्ति है- 'जोदि तोमार डाक शुने केऊ ना आशे तोबे ऐक्ला चालो ऐक्ला चालो ऐक्ला चालो रे...।' यहां डाक का सपाट अर्थ 'पुकार' है और डाकघर, डाकिया आदि शब्द इसी के व्युत्पन्न हैं। डाकिए या संदेशवाहक के लिए संस्कृत और पुरानी हिंदी का शब्द पायक है, जिसका द्रा धातु से कोई संबंध नहीं है।

अनामदास said...

बहुत अच्छा है.
डाक का बांग्ला संदर्भ चंद्रभूषण जी ने बता दिया, बांग्ला में पुकारने के लिए सबसे आम शब्द यही है--दादा के डाको या दादा डाकछेन..मतलब भइया को बुलाओ या भइया बुला रहे हैं.

अब ये बताइए कि डाक का डाकू, डाकिनी से कोई संबंध है या नहीं.

Ashish Maharishi said...

अच्छी जानकारी

अजित वडनेरकर said...

काकेशजी , ममता जी, आलोक जी, संजीत भाई, मीनाक्षी जी, आशीषभाई, चंद्रभूषण जी और अनामबंधु
आप सपकी उत्साहवर्धक और ज्ञान बढ़ाऊ टिप्पणियों के लिए आभार । डाक की अगली कड़ी ज़रूर देखें।

www.dakbabu.blogspot.com said...

अजित जी, डाक/ डाकिया पर आपकी यह सीरिज काफी ज्ञानवर्धक है, इसे हम "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग पर साभार दे रहे हैं.
www.dakbabu.blogspot.com

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