देशभर के लगभग सभी हिस्सों में हर समूदाय में पगड़ी पहननें का रिवाज है और खास मौकों पर इसे पहनना शान की बात समझी जाती है। देहातों में तो पुरुषों के रोज़मर्रा के पहनावे का ये आम हिस्सा है। दुनियाभर में सिर ढकने का चलन दरअसल मौसम की मार से बचने के लिए ही शुरू हुआ और साफा, टोपी , पगड़ी जैसी चीजें सामने आइ। बाद में पहनावे का जरूरी हिस्सा बनने के साथ-साथ मान-सम्मान, इज्जत जैसी भावनाओं से भी इनका रिश्ता जुड़ गया। पगड़ी शब्द का जन्म कुछ विद्वान पगरी से मानते हैं। उनके मुताबिक पहले सिर पर बांधा जाने वाला साफा पैर तक झूलता था इस लिए उसे पगरी कहा गया जो बाद में पगड़ी हुआ। कुछ का मानना है कि इसकी उत्पत्ति पट्टम् से हुई है। संस्कृत में इसका अर्थ हुआ रेशमी कपड़ा। पट्टम् से हिन्दी के पटका शब्द की उत्पत्ति को समझना ज्यादा आसान है बजाय पगड़ी के। भाषा विज्ञान के नजरिये से पगड़ी की उत्पत्ति का आधार संस्कृत शब्द परिकरः या परिकरोति में नजर आता है। परिकर का मतलब है स्वयं को सज्जित करना या तैयार करना।
गौर करें कि हिन्दी और संस्कृत के परि उपसर्ग का मतलब होता है चारों और, इधर-उधर या इर्दगिर्द। करोति का मतलब है करना बनाना आदि। जाहिर है तैय्यार होने के अर्थ में सिर को चारों और से किसी कपड़े से सज्जित करने की क्रिया को ही परिकरः या परिकरोति कहा गया और इसी से बनी हिन्दी की पगड़ी। गौरतलब बात ये कि पगड़ी अब अमेरिकन अंग्रेजी में भी paggree के रूप में मौजूद है जिसका अर्थ भी टोपी turban या ही होता है। यही नहीं इस शब्द से एक नई क्रिया भी बना ली गई है-paggreed, जिसका मतलब है कुंडली या घुमावदार।
Wednesday, November 28, 2007
आन-बान-शान की पगड़ी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:25 PM
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7 कमेंट्स:
बहुत बढ़िया
रोचक और हमेशा की तरह ग्यानवर्धक।
रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी..
रोचक,ज्ञानवर्द्धक और बढ़िया.
बेहद रोचक और इन्फर्मेटिव
पगड़ी का पग से जरूर लेना देना लगता है।
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