भारतीय समाज में गो अर्थात गाय की महत्ता जगजाहिर है। खास बात ये कि तीज-त्योहारों, व्रत-पूजन और धार्मिक अनुष्ठानों के चलते हमारे जन-जीवन में गोवंश के प्रति आदरभाव उजागर होता ही है मगर भाषा भी एक जरिया है जिससे वैदिक काल से आजतक गो अर्थात गाय के महत्व की जानकारी मिलती है। हिन्दी में एक शब्द है गुसैयॉं, जिसका मतलब है ईश्वर या भगवान। इसी तरह गुसॉंईं और गोसॉंईं शब्द भी हैं ।
ये सभी शब्द बने हैं संस्कृत के गोस्वामिन् से जिसका अर्थ हुआ गऊओं का मालिक अथवा गायें रखनेवाला। वैदिक काल में गाय पालना प्रतिष्ठा व पुण्य का काम समझा जाता था। जिसके पास जितनी गायें, उसकी उतनी ही प्रतिष्ठा। यह इस बात का भी प्रतीक था कि व्यक्ति सम्पन्न है। कालांतर में गोस्वामिन् शब्द गोस्वामी और बाद में गोसॉंईं के रूप में समाज के धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए प्रचलित हो गया। इसी आधार पर साधु-संतों के मठों और आश्रमों का भी आकलन होने लगा। साधु-संतों के नाम के आगे गोसॉंईं लगाना आम बात हो गई। मराठी में गोस्वामी हो जाता है गोसावी।
गो का एक अर्थ इन्द्रिय भी होता है। इस तरह गोस्वामी का मतलब हुआ जिसने अपनी इन्द्रियों पर काबू पा लिया हो। शैव और वैष्णव सम्प्रदाय में गोसॉंईं शब्द की व्याख्या इसी अर्थ में की जाती है।
शैव गोस्वामी शंकराचार्य के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाते हैं। ये मठवासी भी होते हैं और घरबारी भी। इसी तरह वैष्णवों में भी होता है। ये लोग मठों –अखाड़ों में रहते हैं और पर्वों पर तीर्थ स्थलों पर एकत्रित होते हैं। वल्लभकुल, निम्बार्क और मध्व सम्प्रदायों के आचार्य भी यह पदवी लगाते है। उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में अंग्रेजों के शासनकाल में शैव गोसाइयों ने शस्त्र धारण कर लिए थे। ये लोग मराठों की फौज में भी भर्ती हुए थे।
वैराग्य धारण करने के बाद साधु हो जाने के बावजूद जो लोग पुनः ग्रहस्थाश्रम में लौट आते हैं उनके वंशजों को भी गोसॉंईं या गुसॉंईं कहा जाता है। ( कृपया इसे भी ज़रूर पढ़ें- ग्वालों की बस्ती में घोषणा )
Friday, November 30, 2007
गोस्वामी-गोसॉंईं-गुसैयॉं
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:50 AM
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7 कमेंट्स:
सही है जी, गौ आर्धरित अर्थव्यवस्था में गोस्वामी होते थे/हैं। भविष्य मे पाउच का दूध बेचने वाले ज्यादा होगे और सरनेम लगायेन्गे - डेरीवाला!
अच्छी जानकारी भई!
बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने.
यह लेख मेरे लिये एकदम नई जानकारी लेकर आया !
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी
झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत
वेद नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल
में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
है...
Here is my homepage ; हिंदी
बहुत ही बडीया जानकारी
गो और गौ मे अंतर होगा कुछ, गोस्वामी अर्थात इन्द्रियों को जीतने बाला यहां गो का अर्थ इंद्री से है ना की गौ माता से.
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