Sunday, March 30, 2008

हां, हमने ब्रायन को सहर्ष स्वीकार किया...[बकलमखुद-11]

साथियों , बकलमखुद जैसी पहल का आप सबने जो स्वागत किया है उसका मैं आभारी हूं। ये सिर्फ और सिर्फ ब्लागजगत में सभी ब्लागर साथियों में हेलमेल, एक दूसरे के कृतित्व के प्रति समझदारीभरी ललक और आभासी परिचय को एक स्थायी आधार देने के लिए किया जा रहा प्रयास है। लावण्याजी ने अस्वस्थता के चलते अपने बकलमखुद को दो किस्तों में कह कर अस्थायी विराम दे दिया। उन्होने आखिरी कड़ी के समापन में जो बातें कहीं थी उस पर अमल करते हुए अपनी टिप्पणी भेजी है जिसे स्वतंत्र पोस्ट की तरह से ही यहां जस का तस दे रहा हूं। सुजाता ने सवाल किया था कि अपने अमरीकी दामाद ब्रायन को क्या उन्होंने एकबारगी ही बिटिया के उचित वर के रूप में स्वीकार लिया था ?
वैसे हमें आज खला , खलासी के अन्य हिन्दी-संस्कृत संदर्भों के बारें में पोस्ट लिखनी थी, मगर अब वो अगले पड़ाव पर। पढ़ते हैं लावण्या जी की टिप्पणी -


सबसे पहले-

ज्ञान भाई साहब,
अनूप भाई, ( सुकुल जी :),
दिनेश भाई साहब,
सुजाता जी,
हर्षवर्धन भाई साहब,
डा. चंद्र कुमार जी,
अशोक भाई साहब,
काकेश भाई साहब,
संजीत जी,
विजय भाई साहब,

आप सभी का बहुत बहुत आभार !
जो आपने मेरे लिखे को ध्यान से पढा
व अपने विचार भी रखे ..
Thank you so much !

अजित भाई को सच्चे मन से आभार कहती हूँ, जो उनहोंने एक नयी विधा आरंभ कर के
" हिन्दी ब्लॉग - जगत " के लिए
नए प्रयोगों के द्वार प्रशस्त किए हैं

.."शब्दों का सफर " भी एक " कालजयी " जाल घर है और रहेगा ..
भविष्य के लिए, इसी से बहुत प्राप्त होगा ..
और "बकालम ख़ुद " से तो अजित भाई ने ,
भारतीय संस्कारों को , ब्लॉग विधा से जोड़ते हुए, " भारतीयम ब्लोग्म " बना डाला है !

...आगे भी , इस कड़ी में , अन्य ब्लॉग साथियों के बारे में पढ़कर, मुझे खुशी होगी.

और अब सवाल जिसे पूछा है सुजाता बहन ने (संजीत भाई के लिए भी ) जो मुझे बहुत अच्छा लगा।

बिटिया के ब्रायन से विवाह को पहली ही बार में मन से स्वीकार किया था आपने ,निर्द्वन्द्व !

उत्तर : पहले जब भारत में थी तब , विदेशीयों के प्रति कौतूहल - सा रहता था !
जैसे यवनों का देश जैसे भाव , इत्यादी ...

अब यहाँ इत्ते बरस गुजारने पे जान पाई हूँ कि, व्यक्ति, अच्छा या बुरा अपने अपने ख़ुद के
जीवन से बनता है !
संस्कार मूलत: ठोस हों तब, उसी पे मकान खडा हो सकता है !
मेरी बिटिया ( मुझसे ज्यादह :-)
" एक आज की , २१ वीं सदी में पैर रखे हुए,
स्वतंत्र , परिपक्व दीमाग लिए नारी है "
१७ साल से , अपने खर्च का निर्वाह कर रही है .. जो मैं न कर पाई वह उसने किया है जैसे ८० फीट समुद्र में गोताखोरी ..और हमारे बच्चे हमारे कन्धों पे खड़े होकर आनेवाले समयाकाषा को देखते हैं ...बच्चों को अनुशाशन के साथ सह्रदयता व प्रेम देना , उनकी बातों को समझना ये भी हमारा फ़र्ज़ बनता है
उसने जब हमें ब्रायन से मिलवाया तो हम , ब्रायन के, इस बच्चे के, खुले मन से भी परिचित हो पाये ..
उस के माता , पिता के ब्याह को ४४ साल हुए हैं ..२ बहनें भी हैं शादी शुदा ..भरा पूरा कुनबा है सभी अलग तो अवश्य हैं परन्तु , काफी भले भी हैं , इसी कारण , सोचा कि अगर भारत में ही बसते तो शायद उसे भारतीय लड़का पसंद आता ..अब यहाँ हैं तो अमरीकी लड़का पसंद आया है !!
..इस खुले विचारों की नींव पडी थी मेरे ननिहाल से जहाँ , १ मामी जी मराठी हैं ,
१ सारस्वत , मौसाजी मारवाडी हैं, तो अम्मा यू. पी की बहुरानी बनीं !!
मेरे पति दीपक जी जैन हैं :)
...लोग अलग अलग कॉम से हैं पर,
सभी अच्छे हैं ..

तो एक वाक्य में कहूं तो ..ब्रायन की पसंदगी हमने आशीर्वाद देकर सहर्ष स्वीकार ली थी-


फ़िर कभी, और ज्यादा विस्तार से ...
लिखती रहूँगी ...
अभी , आज , इतना ही ..

आप सब को बहुत स्नेह सहित, नमस्कार !

डा. चन्द्र कुमार जी , कवि श्री नीरज जी की पंक्तियों के लिए पुन: आभार --

आपकी हमसफर ,

- लावण्या

आपकी चिट्ठियां

सफर की पिछली तीन कड़ियों पर 29 साथियों की 52 चिट्ठियां मिली। सर्वश्री अनिल रघुराज(बेनामी) , संजय, घोस्टबस्टर, राजीव जैन, मीनाक्षी,उड़नतश्तरी, अनामदास, संजीत त्रिपाठी, दिनेशराय द्विवेदी,विमल वर्मा, आशीष, अनूप शुक्ल, यूनुस, अन्नपूर्णा, अफ़लातून, ममता , पारूल, जोशिम(मनीश),लावण्या शाह, ज्ञानदत्त पांडेय, अनिताकुमार, रजनी भार्गव, नीरज रोहिल्ला, सुजाता हर्षवर्धन, अशोक पांडे, काकेश और विजय गौर इनमें हैं। आप सबका बहुत बहुत आभार।

@नीरज रोहिल्ला-
वाह नीरज भाई, रूहेलखंड और रोहिल्ला शब्द के बारे में जो कुछ भी आपने अपनी टिप्पणी में लिखा मज़ा आ गया पढ़ कर । सचमुच मेरी पोस्ट को समृद्ध करने वाली जानकारी थी। शुक्रिया। आगे भी इसी दिलचस्पी और सक्रियता के साथ उपस्थित रहेंगे यही उम्मीद है।

@अनामदास,मीनाक्षी-
सही और कीमती जानकारी दी है आपने । अपनी पोस्ट के संशोधित स्वरूप में मैं इन तथ्यों को ज़रूर जोड़ दूंगा। नीरजजी और आप जैसे साथियों के साथ सफर में हूं, इसका गर्व है मुझे।

10 कमेंट्स:

Sanjay Karere said...

मजहब... कौम .... ये सब तो हमारे अपने रचे अंतरविरोध हैं. मूलत: तो सब इंसान ही हैं. गारे हों या काले... भारत के हों या अमेरिका वाले. जिस विविधता का उल्‍लेख यहां किया गया है वहीं तो हमारे देश की असल पहचान है. अच्‍छी स्‍वीकारोक्ति.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

लावन्या बहन,
आपने बिटिया के जीवट कर्म कौशल
और अपनी जीवन-यात्रा के निमित्त
नई सदी और नये युग के मद्देनज़र
माता-पिता के उदार दायित्व-बोध पर
बहुत सहज व सुलझा हुआ उद्गार व्यक्त किया है.
मैं समझता हूँ कि इससे इस सफ़र के
बहुतेरे सहयात्रियों की जिज्ञासा शांत हुई है.
आपके कुछ फ़ैसलों ने स्पष्ट कर दिया कि
कोई भी बात हठ से नहीं हट कर सोचने से बनती है.
ज़िंदगी से कुछ माँगने से बड़ी बात है
ज़िंदगी की माँग को सही सन्दर्भ में समझना.

अजित जी की यह शब्द-यात्रा अब
शब्द-भाव-बोध व शोध की यात्रा भी बन गई है .
इसमें आपके संस्मरण का योगदान स्मरणीय रहेगा.

शुभ-भावनाओं सहित
डा. चंद्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस पोस्ट ने लावण्या जी के 'बकलम खुद' की कमी को कुछ हद तक पूरा कर दिया है। आप तो पुरानी पोस्टों के नवीनीकरण में सिद्ध हस्त हैं। उन्हें कहें कि वे इन दो पोस्टों को कम से कम दुगना विस्तार दें अधिक दे सकें तो और अच्छा। वे फुरसत में लिखें और हम जो एक भारतीय के अनुभव जो अमरीकन समाज से तालमेल बिठाने के बारे में हों बताएं वहाँ के समाज के बारे में भी बताएं।
मेरी मान्यता है कि आज अमेरिकन समाज सब से विकसित समाज होना चाहिए। हमें उस का अध्ययन करना चाहिए। भारतीय समाज को भविष्य की दिशा निर्धारित करने में वह बहुत लाभकारी होगा।

सुजाता said...

लवण्या जी मेरी जिज्ञासा का शमन कर्ने के लिए आभार !आपके विचार और परिवार के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा मुझे । एक छोटा संसार तो यह परिवार खुद में है ही ।
एक ऐसा देश जहाँ आज भी अंतर्जातीय विवाह शादी कर लेने पर गाँव वाले लड़के लड़की के खून के प्यासे बन जाते हों वहाँ ऐसे उदाहरण सामने आने पर बहुत खुशी होती है और आश्वासन मिलता है ।
आप सभी के बीच स्नेह व समझदारी बनी रहे यही कामना है !

Anita kumar said...

लावण्या जी, आप के परिवार के बारे में और जान कर अच्छा लगा। सच है आज कल बच्चे उतने संकुचित वातावरण में नहीं रह रहे जिसमें पल कर हम और आप बड़े हुए। वो अपना भला बुरा सोचने में सक्षम हैं।
वैसे मेरा परिवार भी इसी प्रकार पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करता है जैसे आप का परिवार, और मुझे लगता है ये अच्छा भी है।

मीनाक्षी said...

लावण्या जी,रंग-बिरंगी क्यारी जैसे परिवार की महक ने हमें मोह लिया. खिली क्यारी महकती रहे,यही कामना करते हैं.

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया लावण्या जी!!
जानकर खुशी हुई!!!
शुभकामनाएं

Udan Tashtari said...

यह वाद संवाद स्थापित कराने की परंपरा भी खूब भाई!! आपको साधुवाद.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अजित भाई ,
"शब्दों का सफर " अब से मेरा अपना घर प्रतीत हो रहा है, यात्रा में, फ़िर मिलते रहे ये सुखद रहेगा ...
सुजाता जी के सवाल के फलस्वरूप , जवाब लंबा हो गया ...और दिनेश भाई साहब ने कहा है कि, विस्तार से और भी बातों पर लिखूं ..जिसे समयावधि के बाद, लिखने का वादा करते हुए, सभी से ,
स स्नेह,
आज्ञा लेते हुए,
पुन: पुन; धन्यवाद !
...आवजो ..see you , soon !
स स्नेह,
सादर ,
साभार --
आप सबकी ब्लॉग साथी ,
-- लावण्या

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