ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। इस सिलसिले की शुरुआत कर रही हैं कुछ हम कहें जैसा खिलंदड़ा ब्लाग चलाने वाली अनिता जी । बकलमखुद में अब तक आप इस सिलसिले की दो कड़ियां पढ़ चुके हैं। देखते हैं आगे का हाल-
अगड़म-बगड़म करते जाओ, अगड़म-बगड़म करते घर लौटो
आलोक जी के ब्लॉग पर ही लोगों की टिप्पणियां पढ़ीं जो काफ़ी रोचक हुआ करती थीं। हमारी खुशी दुगुनी हो गयी जब हमें इस बात का एहसास हुआ कि टिप्पणियों में जो नाम दिखते हैं उन पर क्लिक करने से आप उनके ब्लोग पर पहुंच सकते हैं। अब हमने ब्लोग की दुनिया में घूमना शुरु किया ,कभी इस ब्लॉग पर कभी उस ब्लॉग पर पर हमेशा आलोक जी के ब्लॉग के जरिए जैसे जहाज का पंछी सारी दुनिया घूम कर फ़िर लौट कर जहाज पर। टेकनिकल ज्ञान शून्य था । हमें यही रास्ता पता था कि पहले अपनी स्क्रेप बुक से आलोक जी के ब्लॉग पर जाओ फिर वहां से ब्लॉग की दुनिया का विचरण करो और फ़िर उसी रास्ते से अपने घर वापस आ जाओ…:)
शेयर मार्केट का मनोविज्ञान और फिर ...
धीरे-धीरे आलोक जी से बात करने का मौका मिला। वैसे तो वो बहुत व्यस्त रहते हैं पर कभी कभी चैट पर नजर आ जाते थे। बातों-बातों में पता चला कि एक और क्षेत्र है जहां हम दोनों की समान रुचि है और वो है शेयर मार्केट। शेयर्स के बारे में बातें करते-करते ये बात सामने आई कि निवेशक मनोविज्ञान के ऊपर अभी तक नेट पर चर्चा नहीं हुई है और हमारे पास उसकी कुछ जानकारी थी। आलोक जी ने हमें अपने ब्लॉग पर इस विषय पर लिखने के लिए निमंत्रित किया, हमने बात आयी गयी समझ कर छोड़ दिया। हमने कभी स्वतंत्र रूप से ऐसा कुछ लिखा नहीं था।
और वो पहली पोस्ट , वो टिप्पणियों की मिठाई
कविता ही हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम रहा था, इस लिए कलम ही नहीं उठ रही थी। कहने को हम कोर्स की कई किताबें लिख चुके थे। आलोक जी प्रोत्साहित करते रहे और फ़िर एक दिन उनकी ही गाइडेंस लेते हुए हमने उन्हें अपना एक लेख लिख कर भेज दिया। उन्हों ने उसे मेरे नाम और फ़ोटो के साथ अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया। खुद को पहली बार वहां देख कर हम कितने खुश हुए आप अंदाजा नहीं लगा सकते। हमारे लेख पर कई टिप्पणियां आई, कुछ सवाल भी पूछे गये पर जवाब कैसे दें हम नहीं जानते थे। इस बात का एहसास नहीं था कि टिप्पणी के रूप में ही अपना जवाब दिया जा सकता है।
पहचान तो बता भाई आवारा बंजारा
अब हमने भी अपना ब्लॉग बनाने की सोची, थोड़ी बहुत जानकारी इधर-उधर से ले कर ब्लॉगस्पॉट पर अपना ब्लॉग भी बना दिया, एकदम बेसिक सा। उस पर अपनी कुछ कविताएं भी डालीं। शायर परिवार पर जब हम अपनी कविता डालते थे तो बाद में जाकर टिप्पणी कैसे देखनी हैं ये हमने श्रद्धा से सीख लिया था। वहां वैसे तो बहुत वाह-वाही मिली और हमारा आत्मविश्वास दिन दूनी और रात चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ने लगा। पर एक बंदा था जिसकी टिप्पणी बड़े सुंदर शब्दों में बड़े मार्मिक ढंग से की होती थी, जो सीधा मन को छुए। लेकिन नाम की जगह हमेशा आवारा बंजारा लिखा होता था। हमें बड़ा अटपटा सा लगता, हमने वहां धन्यवाद के साथ इस अवारा बंजारा को प्राथना की कि वो अपनी सही पहचान बताएं , जवाब नदारद था। फ़िर दूसरी कविता के साथ भी ऐसे ही हुआ, हमने फ़िर पूछा कि इतनी अच्छी टिप्पणी लिखने वाला अवारा तो नहीं हो सकता, कौन है? जवाब आया कि शायर परिवार पर ही परिचय देख लो।
...और यूं सँवरता चला गया हमारा ब्लाग
परिचय में एक लंबी सी बड़ी कठिन शब्दों वाली एक कविता थी। दो तीन बार पढ़ने पर पता चला कि ये संजीत हैं। पता यूं चला कि ये हमारे ब्लॉग पर भी टिप्पणी कर गये, तब इनके ब्लोग पर जा कर देखा। धीरे धीरे इनसे परिचय बढ़ा। हमने अपनी ब्लोगिंग की तकलीफ़ों के बारे में बात की। संजीत जी ने न सिर्फ़ हमारा ब्लॉग संवारने में हमारी मदद की बल्कि देवनागरी में कैसे लिखा जाए उसका भी आसान तरीका बताया। वो तो ऐसा ही था मानो हमारे पंख लग गये। संजीत ने ही हमें सारे एग्रिगेटर्स के बारे में बताया और वहां पंजीकृत करने में हमारी मदद की। शुरुआती दिनों में इतना सताया मैने उन्हें कि कोई और होता तो कब का पल्ला झाड़ लेता लेकिन वो बिचारे हमारी हर छोटी बड़ी ब्लोगिंग की तकलीफ़ को दूर करते रहे।
( मुझे अंदाज़ नहीं था कि अभी इस पोस्ट से भी डेढ़ गुनी सामग्री बाकी है। दरअसल अनिताजी बातूनी ही नहीं, लिक्खाड़ भी हैं। मगर हमें तो मज़ा आ रहा है। अगली कड़ी में कुछ और ब्लागर साथियों के दिलचस्प उल्लेख के साथ समापन )
Thursday, March 13, 2008
ब्लॉगबंदे और मनोविज्ञान की प्रोफेसर [बकलमखुद - 3]
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17 कमेंट्स:
रंग जमने लगा है। अब ब्लाग जगत सही मायने मे एक परिवार के रुप मे स्थापित होगा। धन्यवाद के सबसे बडे पात्र आप है अजीत जी।
सही है.
अनीता जी ने कई बार चैटियाने के लिये आमंत्रित किया लेकिन समयाभाव के कारण उनसे चैटिया ना सके. अब लगता है चैटियाना ही पड़ेगा. :-)
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.
बहुत अच्छा लिखा हुआ है खासकर हर पैराग्राफ के ऊपर जिस तरह से हैडिंग दी है बिल्कुल अलग तरीका।
अनिता जी ने इस नयी श्रंखला को जमा दिया।
यह श्रृंख्ला भी खूब जमीं...जारी रखें..थोड़ा होली टच भी ले आयें..नजदीक ही है. :)
ISE KAHTE HAIN BLOG KA
SAHBHAGI-SAHKARI UPAKRAM.
IS JANDAR,SAF SUTHRI PAHAL SE
AJIT JI AAP BLOGGING KE
ITIHAS SARJAK BAN GAYE HAIN.
KYONKI YAHAN CHITTHE KI DUNIYA NE NAE KARVAT LI HAI.
HAR FIELD MEIN BAHUT KUCH NAYA KIYA JA SAKTA HAI.
JAROORAT HAI TO SIRF RACHNATMAK SOCH,KALPANA SHAKTI,KALATMAK PRASTUTI KE SAATH LAGANSHEEL AUR UDAAR KADAM UTHANE KI. PROCRATINATION KO DARKINAAR KAR
CHEEJON KO PAHUNCH KE BHITAR LANE KI.AAPNE YAH KAR DIKHAYA.
AAPKI IS ANOOTHI PESHKASH NE
EK ZUMBISH SI PAIDAA DI HAI.
...LIJIYE SHUBHKAMNAYEN AAPKE AUR ANITA JI KE LIYE...
AADMI CHAHE TO
ITIHAS BADAL SAKTA HAI ,
YE GHATAA AUR YE
AAKASH BADAL SAKTA HAI .
AADMI HI YAHAN
ITIHAS LIKHA KARTA HAI,
AADMI CHAHE TO ITIHAS
BADAL SAKTA HAI .
pls.read first two lines of poem as follows :-
AADMI CHAHE TO
VISHVAAS BADAL SAKTA HAI
THANKS.
काकेश जी हमें इंतजार रहेगा आप से चैटियाने का…धन्यवाद
जी अजीत भाई अब मुझे भी लग रहा है कि बक बक कुछ ज्यादा ही करती हूँ लेकिन अब जो बक बक कर ली वो प्रस्तुत कर ही देते हैं, मैं सच में आप की बहुत आभारी हूँ, लिखते समय अंदाजा नहीं था कि मैं किसी ब्लोग जगत के इतिहास के महत्त्वपूर्ण मोड़ का हिस्सा बनने जा रही हूँ,मुझे ये अवसर देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अनीता जी बातू्नी होने के साथ लिक्खाड़ भी हैं पर यह एक ध्यान देने वाली बात है कि न तो सामने वाला न तो उनकी बातों से बोर होता है न ही उनका लिखा पढ़कर, दर-असल उनकी शैली ही ऐसी है।
अनीता जी ने हमरी तारीफ की है लेकिन हमको अटपटा लग रहा है क्योंकि तारीफ पाने की आदत है नही अपन को!!
शुक्रिया उन्हें
बहुत रोचक लगा इसको पढ़ना ..नए तरह से लिखा हुआ है :)
एक जानदार शानदार ब्यौरा । अनीता जी और आप..दोनों बधाई के पात्र हैं । बहुत वेरी गुड लगा भाई
तीसरी कड़ी भी बढ़िया रही, अगली कड़ी का इन्तजार है।
आदरणीय अजीत जी,
नमस्कार,
कई बार ऎसा लगता है, कि कल तक मैंने जिसे पाला-पोसा, वह बड़ी हो गई। श्यानी हो गई, पत्नी ने आकर झकझोरा, अजी क्या सोचते हो!, लड़की को ब्याह्ना नहीं है, क्या? तब जाकर होश में आया कि मेरी लड़की भी बड़ी हो गई। रोज खिड़कियों से ताक-झांक करते-करते वक्त ऎसे गुजर जायेगा, कि खुद के बच्चे बड़े हो जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता। बकलमखुद में अनीता जी कि जीवनी का राज कुछ ऎसा ही लगा। वास्तव में जब हम खुद को तराजू में तौलते हैं तब अपनी सही स्थिति का एहसास हमें होता है। जो लोग सिर्फ प्रकाश का अर्थ ही दिन समझते हैं,उनकी सोच को थोड़ा विराम मिल जाता है अनीता जी के बकलमखुद से। यह एक बहुत ही सरल भाषा में लिखा एक ऎसा ग्रंन्थ है, जो लोगों को बहुत कुछ सोचने के लिय विवश कर देता है। मेरी बधाई - शम्भु चौधरी, कोलकाता।
सर
बहुत ही रोचक रही यह श्रंखला कई लोग जिनके नाम सुने थे। कौन किसका कैसा दोस्त है, सारे राज खुल रहे हैं। एक एक करके।
तरुण जी
यही है दैनिक भास्कर का स्टाइल
खबर को छोटी छोटी सबहैडिग्स निकालकर
रोचक बनाओ
भाई दैनिक भास्कर में तो बीते कुछ बरसों से हूं। सब हेड लगाने की मेरी आदत बरसों पुरानी है और इसे पत्रकारिता में आने से पहले छात्रजीवन में जो लिखता था निबंध आदि तब से आज़माता आ रहा हूं। एक मजे की बात ये कि परीक्षा की उत्तर पुस्तिका में भी मैं सबहेडिग हर प्रश्न के उत्तर में दिया करता था :) मेरी नितांत व्यक्तिगत पहचान को मैं अपने व्यवसाय के नाम कुरबान नहीं कर सकता भाई :)
i read all four chain of ur life-history.it seems u r new for me.i keep on reading.u have written very well.u r my guru onwards.help me in blogging.looking forward ur reply.
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