डायरी की शक्ल में शुरु हुए ब्लागजगत में जब वैचारिक आदान-प्रदान का सिलसिला परवान चढ़ा तो बड़ा खुशनुमा माहोल नज़र आता था। ब्लागजगत एक गोष्टी सा था। बाद में विचार-विमर्श ने बहसबाजी का रूप ले ले लिया और फिर बहसबाजी उगालदान बन गई। उगली चीज़ और उगालदान का क्या रुतबा है ये आप जानते ही होंगे। बहरहाल , इस बहाने शब्दों के सफर में उन शब्दों की चर्चा कर ली जाए जिनके बहाने सुबुद्ध ब्लागजन अपनी बातें कहते हैं।
बहस
बहस ,बहस और बहस । सब तरफ आजकल बहस का हल्ला है। हिन्दुस्तानी आदमी आमतौर पर काफी कुछ फुरसतिया किस्म का होता है। बहस के बिना न खाना पचता है न हाजत होती है। सबसे ज़रूरी चीज़ है बहस। जिस बहस की हम बात करने जा रहे हैं उस बहस का सही मायना तो था देखना, परखना, समीक्षा करना मगर देखते ही देखते हिन्दुस्तान में बहस ने शक्ल बदली और यह गाली-गलौज से होती हुई अब तो झगड़े और फौजदारी के पर्याय तक पहुंच गई है।
मुस्लिम शासन के पहले तक इस मुल्क में शास्त्रार्थ होता था, तर्क वितर्क होता था और विचार विमर्श होता था। मगर जैसे ही फारसी का बहस शब्द हिन्दुस्तानियों के पल्ले पड़ा , उन्होंने शास्त्रार्थ करना छोड़ , बहस करनी शुरु कर दी। देखते हैं ये बहस कहां से शुरू हुई?
हिन्दी में जिसे हम बहस कहते हैं दरअसल फारसी में उसका रूप है बह्स । तर्क वितर्क करना, गर्मा गर्म बातचीत होना, या फिर अदालत में वकीलों द्वारा जिरह करना जैसी बातें बहस के दायरे में आती हैं। मूल रूप से तो बहस शब्द फारसी का भी नहीं है । यह सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी ज़बान से उपजा हुआ माना जाता है जिसका रूप है बहथ या बहाथ। इसकी मूल अरबी धातु है ब-ह्ह-थ जिसका मतलब होता है देखना। इससे बने बहथ शब्द का मतलब था शोध, तर्क-वितर्क,समीक्षा,आलोचना, बहस आदि हुआ। तुर्की, फारसी और उर्दू में बहथ हुआ बह्स जिसमें वाद-विवाद, सवाल-जवाब, खंडन-मंडन आदि अर्थ समाहित हैं। बहस के अन्य अर्थों में झगड़ा भी बाद में शामिल हो गया। बहस शब्द का एक रूप बहश हिब्रू में भी मिलता है । फारसी में वादविवाद के लिए बहसमुबाहसः जैसा शब्द भी चलता है और बहस करदन जैसा मुहावरा भी प्रचलित है। हिन्दी मे भी यह उर्दू के प्रभाव में मुबाहसा के रूप में चला आया है। दरअसल मुबाहसा शब्द बहस का बहुवचन है। दिलचस्प ये कि मुबाहसः अरबी में मुबाहथा है।
बरास्ता फारसी, उर्दू होते हुए बहस बड़े मज़े में हिन्दी के साथ साथ भोजपुरी में भी जम गई जहां इसका रूप बहँस नज़र आता है और हिन्दी में तो बह्स हो गई बहस और फिर बहसना, बहसियाना जैसे क्रिया रूप भी बन गए। हम हिन्दुस्तानी इसी लिए तो किसी भी बहस का रूप बदल देने में माहिर हैं। बहस किस तरह से गाली-गलौज से लेकर फौजदारी तक पर आ जाती है ये सब हमें बताने की ज़रूरत नहीं है।
(अगले पड़ाव पर इसी कड़ी में एक और नया शब्द)
आपकी चिट्ठियां-
शब्दों के सफर के पिछले तीन पड़ावों पर उड़नतश्तरी, आशीष , ममता, अनूप शुक्ल, प्रमोदसिंह, डॉचंद्रकुमार जैन, दिनेशराय द्विवेदी, संजीत त्रिपाठी, सुजाता , जोशिम, मीनाक्षी, आभा, लावण्या, अजय यादव, संजय, नीरज रोहिल्ला, दिलीप मंडल की प्रतिक्रियाएं मिलीं । आपका शुक्रिया।
@सुजाता / आभा-
आप दोनों का कहना सही है। मैं कुट् के घड़े वाले अर्थ को दोनों दफा बिसर गया। घड़ा भी तो अंततः आश्रय ही है न ! जल का । दर्शनशास्त्र में दो घड़ा समूचे जीवन का ही प्रतीक बन जाता है। आप दोनों का आभार। ऐसे सजग सहयात्री होंगे तभी इस सफर में आनंद आता रहेगा।
@अनूप शुक्ल/प्रमोदसिंह -
लीजिए , अनूप जी का सात महिने पुराना आदेश और आपका ताजा आदेश कि अनूप जी का कहा तत्काल पूरा हो -मान लिया। जय हो आप दोनों की।
@नीरज रोहिल्ला
भाई, चख-चख तो चलती रहेगी, मगर आप इस घाट पर आना न छोड़ियेगा। आपका साथ हमें भी अच्छा लगता है। शुक्रिया बहुत बहुत।
Tuesday, March 4, 2008
[बहस 1]...और गाली में बदल गई बहस
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:18 AM
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15 कमेंट्स:
बड़े मौके से आये बहस शब्द का सफर लेकर. आभार :)
इस आलेख में एक शब्द आया है "जिरह" इसे अक्सर ही बहस का पर्याय मान लिया जाता है। बहस तो तर्क-वितर्क का समुच्चय है, लेकिन "जिरह" बिलकुल भिन्न। "जिरह करना" का अर्थ है गवाह से विपक्षी वकील द्वारा सवालों का पूछना। और पूछे गए सवालों का समुच्चय "जिरह" है। "जिरह" के रिश्तेदारों को तलाश आप करिए।
शुक्रिया कह रहे हैं कि हमारा पुराना उधार चुकाया। अंदर की बात यह भी है कि हम अपने वकील से सलाह कर रहे हैं कि कहीं हमारी मान हानि तो नहीं हुई इस बात से हिन्दुस्तानी आदमी आमतौर पर काफी कुछ फुरसतिया किस्म का होता है। लेकिन वकील बता नहीं रहा है। कह रहा है मान हानि होने के लिये मान होना जरूरी है। ये तो मान लाभ का केस है! :)
शुक्र है आपने आम आदमी को फुरसतिया किस्म का बताया निठल्ला नही ;) लेकिन बहस का अच्छा ज्ञान दिया आपने। आज से बहस बंद सिर्फ और सिर्फ तर्क वितर्क करेंगे इसलिये कह दे रहे हैं हमको भी चेंज चाहिये
बहुत खूब अजित जी । अब तो हम डिमांड किया करेंगे कि फलाँ शब्द के बारे मे बताइये :-)
AJIT JI,
TATVA-BODH KE LIYE
BAHAS JAROOREE HAI.
KAHA GAYAA HAI NA...
VADE-VADE JAAYTE TATVA-BOHDAH.
ISLIYE BAHAS MEIN
DURAGRAH DOOR RAHEGA
TO TATVA/SATYA KE UDGHATAN KI
RAAH BHI AASAAN HOGI.
BAHAS PAR BESHKEEMTI
JANKAREE KE LIYE SHUKRIYA.
बहुत सही ,बहस ही जरुरी खलिहर कहे या फुरसतिया,के लिए बकिया बाद मे देखा जाएगा .
बहुत शुक्रिया अजित जी ! हमारा शब्द भंडार बहुत दुरुस्त कर रहे हैं आप !
सामयिक!
मुझे लगता है बहस करने वालों में अहं की अधिकता के कारण ही यह बहस गर्मा-गर्मी से होती हुई गाली-गलौज़ तक पहुंचकर झगड़े का रूप धारण कर लेती है!
चर्चा में था ये शब्द व्याख्या ,व्युत्पति के लिये धन्यवाद।
आप वकील की बातें काहे मान रहे हैं अनूप जी, आप अपनी बात पर डटे रहिये , बहस यहाँ भी शुरु हो जायेगी..
बहस शब्द का सफर करना अच्छा लगा।
फोटो भी जबरदस्त है।
बहस में से ह निकाल दें तो हो जाए बस।
ज्यादातर केसों में बहस का अंत फौजदारी पर जाकर दम लेता है। इसीलिए बडे-बुजुर्गों ने कहा है कि किसी बहस का सबसे अच्छा परिणाम यह है कि बहस की ही न जाए।
भाई हम किसी बहस में नही पडते । वैसे लेख बढिया था ।
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