सिर्फ कुछ नहीं , अभी बहुत कुछ कहना है आपको
ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसकी कई वजह हो सकती हैं, उसकी विवेचना में हम नहीं जाना चाहते। पर जो ब्लाग पसंद किए जा रहे हैं और चिट्ठाकार खुद भी गुमनाम नहीं हैं ऐसे में ब्लाग से जुड़े लोग उनकी शख्सियत के बारे में भी जानना चाहेंगे। खासतौर पर तब , जब हम सभी संवाद के एकाधिक माध्यमों के ज़रिये एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं।
इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। सफर तो लंबा चलेगा और सफर की बोरियत से बचने का एक तरीका यह भी है कि हम सिर्फ शब्दों के सफर की चर्चा न करें बल्कि कुछ अपनी भी कह-सुन लें। इस सिलसिले की शुरुआत कर रही हैं कुछ हम कहें जैसा खिलंदड़ा ब्लाग चलाने वाली अनिता जी । बकलमखुद । उन्होंने तो मेरे इस विचार को पसंद किया और खूब उत्साह से लिखा भी, अब बारी आपकी है , क्या कहते हैं आप।
प्रिय अजीत ,
आप का आग्रह मैने सहर्ष स्वीकार कर लिया था ये सोच कर कि अपने बारे में बोलना कौन कठिन काम है, पर जब लिखने बैठी तो दो दिन से ऐसा हो रहा है कि घंटों पीसी के सामने बैठी रही पर समझ ही नहीं आ रहा कि कहां से करुँ शुरुआत । चलिए शुरू से ही शुरु करती हूँ । आज तक बायोडेटा लिखा है, पर अपने जीवन पर लिखने का पहला मौका है ।
अलीगढ़ में मिले गुलशन नंदा
18 मार्च 1955 को गाजियाबाद में हमारी पैदाइश हुई और नाम मिला अनिता खरबंदा । पिता एक कॉलेज में अध्यापक थे और माता ग्रहिणी। अभी स्कूल में ही थे कि पिताजी ने नौकरी बदल ली और हम अलीगढ़ आ गये। कह सकते हैं कि प्रांरभिक शिक्षा (आठवीं तक) अलीगढ़ में ही हुई। लेकिन गुलशन नंदा के उपन्यास हमने अलीगढ़ में ही पढ़ना शुरु कर दिया था। 1960 के दशक में एक बार फ़िर पिता ने नौकरी बदली और कॉलेज की चाकरी छोड़ बम्बई में एक फ़ार्मा कंपनी में बतौर ट्रेनिंग मैनेजर जॉइन कर लिया और हम बम्बई आ गए और बाकी शिक्षा यहीं करते हुए बम्बई विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एम ए
(1977) किया ।
अनिता खरबंदा बनीं मैनेजर
1978 में मैनेजमेंट की डिग्री ली और एक कंपनी में बतौर प्रबंधक काम करना शुरु किया। सुबह आठ बजे जाते थे और रात को आठ बजे आते थे। 1980 में बेटे के आगमन के बाद इतने लंबे वक्त तक घर से बाहर रहने के कारण बच्चे के लालन पालन के अनुभव से वंचित रहना खलने लगा। आज की हर नारी की तरह हमारे भी व्यक्तित्व के दो रूप थे, एक तरफ़ जहां अच्छी मां और अच्छी ग्रहिणी होने की लालसा जोर मारती थी वहीं दूसरी ओर अपने कैरियर के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। नौकरी की वजह से बच्चे को बढ़ता देखने का सुख हम तीन साल तक न भोग सके, इसका मलाल आज भी है। ये सुख दोबारा भोगा मेरी मां ने।
दो नावों की सवारी-मैनेजरी भी और टीचरी भी
जब बच्चा तीन साल का हुआ और उसके स्कूल जाने का समय आया तब हमने कॉलेज की नौकरी पकड़ ली। तन्ख्वाह ऑफ़िस की नौकरी से कम थी, पर मन में सकून था कि हम अपने बच्चे की जिन्दगी में शामिल हो गए हैं। कॉलेज की नौकरी शुरु में इतनी आसान न थी हमारे लिए, एक तो एमए करने के बाद पांच साल बाद फ़िर से मनोविज्ञान की किताबों को हाथ लगा रहे थे, इन पांच सालों में सब भूलभाल गए थे और दूसरा पहले एक साल हमने कॉलेज की नौकरी ( जो पहले पॉर्ट टाइम मिली थी और अस्थायी थी ) के साथ अपनी दफ़्तर की नौकरी
भी निभाई। एक साल सुबह 7।30 से 9।30 तक क्लास ले कर फ़िर भागते हुए लोकल ट्रेन पकड़ कर चैंबूर से वीटी जाते थे, फ़िर स्टेशन से 15 मिनिट चल कर दफ़तर पहुंचते थे, 6 बजे तक ऑफ़िस और फ़िर वही ट्रेन, ऑटो के सफ़र करते शाम साढ़े सात/आठ बजे घर, बेटा पास ही में मां के घर छोड़ा होता था। घर आ कर थोड़ी देर बच्चे के साथ बतिया कर फ़िर देर रात तक बैठ दूसरे दिन के लेक्चर तैयार करते थे। ऐसे में हमारे परिवार ने हमारा बड़ा साथ दिया। दूसरे साल से हमें स्थायी कर दिया गया और नौकरी भी फ़ुल टाइम हो गयी तब हमने ऑफ़िस की नौकरी छोड़ दी और एमफ़िल किया।
टीचिंग ज़िंदाबाद ...
कॉलेज की जिन्दगी में हम ऐसे रमे जैसे मछ्ली पानी में। आज भी पछ्तावा होता है कि बेकार में अपनी गलत सोच की वजह से पाच साल बर्बाद कर दिए पहले ही से टीचिंग में आ जाना चाहिए था। बाहर से टेप रिकॉर्डर जैसी दिखने वाली नौकरी दरअसल अपने अंदर इतनी संभावनाएं छुपाए होती है और हर नये विद्धार्थी की सोच संवारना अपने आप में एक अलग ही आंनद देता है। कॉलेज में आकर हमारे व्यक्तित्व को भी कई नये आयाम मिले । लगा मेरे अपने कॉलेज के दिन वापस आ गये हों।
गुज़रा हुआ ज़माना...
कॉलेज के जमाने से ही हमें किताबों से बहुत प्यार था, लायब्रेरी हमारे लिए दूसरे घर जैसी होती थी। ऑफ़िस की नौकरी में हम किताबों से दूर हो गये थे, अब वो दिन फ़िर से लौट आए और हमें ऐसा लगा कि हम जैसे बहुत सालों बाद अपने घर लौट आये हों। वैसे तो कॉलेज के दिनों में हम हिन्दी मंच पर काफ़ी सक्रिय रहे, कभी कविता तो कभी इप्टा द्वारा आयोजित इंटरकोलिजिएट नाटक प्रतियोगिता में पुरुस्कृत होते रहते थे। पर धीरे धीरे हिन्दी का साथ छूटता चला गया और मनोविज्ञान की अंग्रेजी किताबें ज्यादा हाथ में रहने लगीं।
डायरी , कविता और ‘वो’ खास दोस्त
बचपन से ही हम अति संवेदनशील रहे हैं, मतलब खाल कभी मोटी नहीं रही, जरूरी बात है कि खरोंचे/ चोटें दिल पर अक्सर खाया करते थे और उससे होने वाला दर्द डायरी के पन्नों पर उतार दिया करते थे। खाल अब भी मोटी नहीं हुई तो आज भी शब्द कविता के रुप में फ़ूटते रहते हैं। पर हमारी डायरी सिर्फ़ हम तक ही सीमित थी, किसको दिखाते? ले दे कर एक ही तो अतरंग मित्र हैं हमारे पति पर वो तो दक्षिण भारतीय हैं (जी हां प्रेम विवाह) बम्बई की चालू हिन्दी ही समझते हैं। जिन्दगी यूं ही गुजर रही थी।
...और फिर कम्प्यूटर से जुड़ाव
बदलते वक्त के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की पूरी कोशिश कर रहे थे, कंम्प्यूटर की सिर्फ़ बेसिक जानकारी थी, जब भी अपने लड़के को (जो अब 27 साल का हो गया है) घेर घार कर सीखने की कोशिश करते, लड़का हमारी सीखने की चीटीं जैसी रफ़्तार से चिढ़ जाता और काम का बहाना कर चला जाता, और सीखना वहीं का वहीं रह जाता। हम बेसिक से काम चला रहे थे। टीवी की बहुत लत थी हमें उन दिनों।
[ बाकी हाल अगली कड़ी में । ये सिलसिला आपको कैसा लगा ज़रूर बताएं ]
Monday, March 10, 2008
बकलमखुद [1] - सफर के सहयात्री
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46 कमेंट्स:
निश्चित ही सराहनीय प्रयास है। शास्त्री जी और ज्ञान जी की अचानक याद आ गयी।
शानदार पहल। हमारी शुभकामनाएं।
अजित भाई ,
अनिता जी को आपने निमंत्रित किया और लाभ ,हम सभी को मिला !
एक साहसी , विदुषी और साफ दिल की आज के समय की मिसाल सी नारी से, मुलाक़ात का
सु- अवसर मिला
जारी रखिये ...सद्भावना सहित,
-- लावण्या
अजित भाई। आप को इस नई शुरुआत के लिए बधाई। इस की जरुरत थी। इस से ब्लॉगरों का उन के पाठकों के साथ नजदीकी बनेगी।
बहुत अच्छा प्रयास है। चिट्ठाकारों के साथ-साथ उनके चिट्ठों के बारे में भी कुछ विवेचना करें। - आनंद
अजित जी, अच्छा लगा ये पढ़कर धन्यवाद
ajit ji,
meel ka patthar hai aapki yah nai pahal.shubhkamnain.sahyatiyon ko janna kitna sukhad hai...
yah bhi ki...
SAFAR KI HAD HAI VAHAN TAK
KI KUCH NISHAAN RAHE
CHALE CHALO KI JAHAN TAH
YE AASMAAN RAHE.
बहुत अच्छा व अनोखा प्रयास…शुभकामनाएं, अनिता जी के बारे मे जानना सुखद रहा……जारी रक्खें
अनिताजी काफ़ी विदुषी महिला हैं और उनके अनुभव का दायरा काफ़ी व्यापक है. जिसका मैं ही नही अधिकतर लोग कायल हैं.
aapakaa praayaas behad saraahaniy hai. Anitaji ke baare me jaankar achchaa laga
बहुत बढ़िया..उम्दा प्रयास..अनेकों शुभकामनायें..जारी रखें.
जारी रखें इससे औरों को भी प्रेरणा मिलेगी और दूसरों के बारे में जानने का मौका मिलेगा । चलिये एक बात तो आपकी और मेरी और भी मिलती है कि मेरी तरह आप भी गुलशन नंदा के पाठक रहे हैं ।
क्या क्रिएटिव दिमाग है आपका।
रोजाना की पोस्ट के इतर भी ब्लॉग पर"इस तरह की पोस्ट" डाली जा सकती है जो सिर्फ़ पोस्ट ही न हो , धांसू आईडिया भाई साहब।
एक तो यह कि इससे आपके पाठकों का आपसे जुड़ाव और भी बढ़ेगा ही। साथ ही आपके पाठक और बढ़ेंगे।शुभकामनाएं
अनीता जी से तो माशाअल्लाह बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उनके लिए शुभकामनाएं
अजीत जी मैं आप की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ कि आप ने मुझे इतनी ईज्जत दी और इस नये प्रयोग का श्रीगणेश मुझसे किया। मैं आप के सब पाठकों की भी शुक्रगुजार हूँ जिन्हों ने मुझे स्नेह से झेल लिया।
पकंज जी ने कहा कि शास्त्री जी और ज्ञान जी की याद आ गयी, तो अब मुझे इंतजार है कि उन दोनों वरिष्ठजन की क्या प्रतिक्रिया रहती है…।:)
हूँ तो मैं एक बड़ी साधारण सी नारी पर आप की ईज्जत अफ़जाई ने कुछ खास होने की खुशफ़हमी पैदा कर दी है, डरती हूँ कहीं औंधे मुंह न गिरूं।
एक बार फ़िर से आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस सम्मान और स्नेह के लिए।
ओह, कैसी भोली तस्वीर?.. हमारी शुभकामनाएं!..
अजीतजी ने बड़ी शानदार प्रस्तुति की अनीताजी का आत्मकथ्य बड़ा धांसू च फ़ांसू है। जो खिलंदड़ापन उनके लेखन में हैं उससे ये उनकी पहली वाली तस्वीर मेल खाती है। सुझाव है वे इसे अपने ब्लाग में लगायें । औंधें मुंह गिरने से डरें न ,सरपट लिखतीं रहें। गिरेंगी तो टिप्पणियों की एम्बुलेंस है न प्राथमिक उपचार के लिये। अगली कड़ी का इंतजार है।
इसे कहते हैं ब्लॉग का सकारात्मक प्रयोग। ब्लॉगरों को अजीत जी से कुछ सीखना चाहिए
सो नाइस ओफ़ यू अनूप जी, ऐसी टिप्पणियों की एम्बुलेंस तैयार मिले तो सौ बार रपटने को तैयार हैं…।:)
अनिताजी के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा और आपकी यह नई पहल भी!
धन्यवाद।
बहुत अच्छा लगा आपका यह नया प्रयोग
AUNDHE MUH GIRNE KI BAAT PAR,anita ji BARBAS KHYAL AAYA KI KALAM SE SYAAHI BHI TO AUNDHE MUH GIRTI HAI,LEKIN NATIZA YAH SAMNE AATA HAI KI SUNDAR AKSHAR
UBHAR AATE HAIN.BADAL SE PANI AUNDHE MUH NA GIRE TO DHARTI PAR PAUDHE KAISE UGENGE ?
...TO PHALSAFA YAH HAI KI CREATIVITY MEIN IS TARAH GIRNA BHI HAREK KO NASEEB NAHIN HOTA.
AAPKO HAMARI MANGAL KAMNAYEN... AAPKI LAGAN AUR ADIG SANKALP SARAHNIYA HAI...
डॉक्टर साहब , आपकी बात पसंद आई।
अजीत जी आपकी पहल पसन्द आई। अनिता जी को इस तरह से जानना-समझना अच्छा लगा।
डाक्टर साहब आप की बात गांठ बांध रही हूँ ये मेरे आत्मविश्वास को बढ़ा रही है,धन्यवाद्।
DHANYABVAD AJIT JI AUR SUNITA JI AAPKE SHUBH-SANKALP KO ASHESH SHUBHKAMNAYEN.
I REGRET FOR THE TYPING MISTAKE...
PLS.CORRECT IT...ANITA JI...
बहुत अच्छी पहल। इस आत्मकथ्य से अनिता जी के व्यक्तित्व के कुछ अनजाने पहलुओं से परिचित होने का मौका मिला।
बहुत बढिया !ये आत्मकथ्य अच्छे दस्तावेज़ हैं ।
अच्छी शुरुआत के लिए बधाई !
सफर के आप सभी सहयात्रियों का आभार कि मेरे इस प्रयास, पहल को आप सबने पसंद किया। आप सभी सहयात्री है तो जाहिर है कि सभी अपने अपने आत्मकथ्य के साथ बारी-बारी से यहां होंगे और अपने दिलचस्प , प्रेरणादायी अनुभवों को शब्दों के सफर में मिल-बांटने का लाभ हम सब ले सकेंगे।
आमीन।
यकीन मानिये , ये आत्मकथ्य हिन्दी ब्लागजगत की स्थाई पूंजी होंगे। एक बार फिर आप सभी का शुक्रिया।
अजीत जी ,
सबसे पहले आपको इस पहल के लिये धन्यवाद. आजकल मेरी टिप्पणीयाँ आप कम ही देखते होंगे कारण मेरी व्यस्तता. आजकल में गूगल रीडर के जरिये अपनी पसंद के ब्लॉग पढ़ता हूँ और इसमें आपका ब्लॉग भी शामिल है.वहाँ से टिप्पणी देना संभव नहीं हो पाता. इससे पहले भी आपने टिप्पणी ना पाने के बारे में लिखा था तो मैं यह कहना चाहुंगा कि आपके बहुत से पाठक मेरे जैसे भी होंगे जो आपको सब्स्क्राइब करके पढ़ते होंगे.
खैर यह तो रही मेरी बात...
अनीता जी के बारे में जानना बहुत सुखद रहा.अनीता जी को भी मेरे बारे में यही शिकायत है कि मैं टिपियाता नहीं लेकिन उनसे भी वही कहना है जो आपसे कहा है. अनीता जी अपने अनुभवों से हम रस-सिक्त करते रहें यही कामना है.
आपकी इस पहल के लिये पुन: धन्यवाद.
प्रिय अजित
यह एक बहुत अच्छी पहल है! इसके द्वारा हमें एक दूसरे को जानने का अवसर मिलेगा.
यह अच्छा किया कि आपने अनीताजी से शुरू किया. चिट्ठाजगत के नारी रत्नोंं के बारे में इस तरह की जानकारी हरेक को प्रेरणा देगी.
इस लेख को तो मैं एक बार में (नहीं, एक सांस में) पढ गया.
अजीत भाई । एक शानदार शुरूआत । अनीता जी और विनोद जी दोनों से मुलाक़ात है । लेकिन अनीता की कलम से निकला ये आत्मकथ्य और आपका ये क्रियेटिव आयडिया कमाल है । वैसे आपको बता दें कि अनीता जी को पढ़ने की तरह उन्हें सुनना भी मजेदार है । हमारे एक रेडियो कार्यक्रम में दोनों पति पत्नी बढि़या बोले थे । अनीता जी जब बोलती हैं तो रिफरेन्स झरते हैं । और मुंबई की पुरानी तस्वीरें सामने खड़ी हो जाती हैं । हां पुरानी तस्वीरों को देखने का अनुभव भी बेहतरीन है ।
युनुस जी आप की आत्मियता मुझे आत्मा तक सराबोर कर गयी, आभारी हूँ आप के स्नेह की…:)
Dear Mr. Ajitji,
I am not linked in any way with the BLOG WORLD so you may have a surprise. But I am a regular reader of the articles put on "Kuchh Hum Kahen" and "Hindi Yugm" and as such I know Anitaji thru her articles and I am a big fan of her write-ups. Though I am a post graduate with Hindi, since I do not have any facility to write in Hindi, I have written this message in English so kindly dont take otherwise.
The starting of "Shabdon ka Safar" is going to be a big MILESTONE for the Hindi Blog and your initiative in this line is highly appreciable. Like Anitaji, as you have rightly said, the other Bloggers will also come out with their own AUTOBIOGRAPHY. And last but not the least, Congratulations Anitaji you too, for being the 1st Milestone of the "Shabdon ka Safar". I wish you all a very best.
Arre Rajesh ji aap yahaan, bhai yeh toh kamaal hii ho gayaa, what a pleasant surprise, dhanyawaad. Shabdon ka Safar nayaa blog nahii hai, bahut puraanaa aur prathistit blog hai bhai, mein dhany ho gayi ki mujhe yahaan itna maan milaa. Aaiye Hindi blog ki duniyaa mein vicharan karne ke liye nimantrit hain aap
apne bloge ke jariye apne ehsaaso ka bebaak lekhan shuru se hee anita jee kee visheshta rahee hai us per saleeke se unke dwara likha gaya atma kathya aur jeevan kram yakeenan ek khusboo ka jhaunka hai jise lambe samay tak yaad rakha jayega. ab ganga ko namaskaar to bhageerath ko bhee namaskaar. ajit jee is shaandaar tohfe ke liye sadhubaad
अरे हरि जी आप भी यहां पर आये, धन्यवाद, आप की जर्रानवाजी है जो इतनी तारिफ़ कर रहे हैं , धन्यवाद
Anitaji, ab hum ne nischay kar liya hai ki jahan Anitaji jayengi wahin ho sake to hum bhi pahoonch hi jayenge, kyon ki aapki itni pyari pyari likhavat jo padhni hai. Shabdon ka Safar purana aur pratisthit blog hi hoga tabhi to itne bade bade gyani log yahan per dikhai diye hai. Mera kahna yah tha ki yah mere liye naya tha. Hindi blog ki duniya mein vicharan ke aapke nimantran ka main saharsh sweekar karta hoon aur aap ka dhanyavaad bhi karta hoon.....
सफर के सहयात्री -- वैस तो मै अनिता जी कहता हू पर मेरी तो ये प्यारी ई-मोम है! अनिता जी आपके जीवन की ये प्यारी यादें कुछ मीठी पल जो आपने सबके साथ बाटे एक बार फीर दिल को छु लिया ! हमे बहोत खुशी हुई इस ब्लोग को पढ़ कर ! और ये यादो के पल यू ही चलते रहे आपके साथ हमारी शुभकामनाये हमेशा आपके साथ है !
शानदार शुरुआत,बेसब्री से इन्तेज़ार है अगली कडी का.जल्दी भेजें प्लीज़.
सबसे कठिन काम दे दिया अजीत भाई आपने.बहुत ईमानदार होना पड़ेगा इस काम में....चलिये अल्लाताल के सामने नज़रें तो नहीं झुकेंगी...ये सवाब भी आपने लूट लिया जानेजिगर.
Sorry for writing in English. I live in USA and sometimes I surf the internet to read good Hindi articles and improve my Hindi. I am a Hindi teacher(?) teaching American born Indian kids after school or on weekends. Over the years (34+) my Hindi has gone downhill. Anitaji's autobiography and following comments brought a smile on my face. I thoroughly enjoyed it and will be visiting this site often. Keep up the good work.
आपके बारे में पढ़ रहा हूँ , अच्छा लगा !
आहा..आप तो लगता है शुरुआत से ही इतनी खुशमिजाज हैं? बहुत शुभकामनाएं.
dhanybad
माननीय भाई अजित जी,नमस्कार.
आपका नया प्रयोग बहुत ही पसंद आया साथ ही अनीता जी का बेवाक आत्म कथ्य भी. दोनों को बधाई. सफ़र जारी रखे.समुद्र से मोती निकालने का काम कर रहे है आप.
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