इस शीर्षक में प्रयुक्त तीनों शब्दों में अर्थसाम्य चाहे न हो मगर वर्णसाम्य है। तीनों शब्दों में चौ वर्ण समान रूप से आया है। जाहिर है इनका उद्गम एक है और इनमें रिश्तेदारी भी है। इन सभी शब्दों के मूल में संस्कृत शब्द चतुर् है। चतुर् का अर्थ है – चार की संख्या। इसी से बना है चतुष्क, जिसका मतलब है चार कोनों वाला, चार का समूह या चौकोर वस्तु। चतुष्क से चौकी का विकासक्रम यूं रहा चतुष्कम् > चऊक्खअं > चउक्कअं > चउक्का > चउका या ( चौकी ) । हिन्दी के चौकी, चौक, चौकोर या चौकोन जैसे शब्द इसी श्रंखला से बंधे हैं।
लकड़ी या पत्थर के चार पायों या कोनों वाले तख्त या आसन को चौकी कहा जाता है। चार पायों वाली शय्या के लिए चारपायी शब्द भी प्रचलित है। पुराने ज़माने में पहरेदारी के लिए लकड़ी का एक चौकोर तख्त होता था जिसे आमतौर पर चौराहे के बीचों बीच इसलिए रखा जाता था ताकि चारों दिशाओं में निगरानी रखी जा सके। इस तख्त को चौकी की संज्ञा मिली। जो प्रहरी इन चौकियों पर खड़े होकर निगरानी का काम संभालते उन्हें चौकीदार के नाम से नई पहचान मिल गई। चौकी पर कर्त्तव्यपालन यूं तो निगरानी ही था मगर इसे एक नया नाम और मिल गया- चौकसी। अब चौकीदार का काम अगर चौकसी बरतना है तो उसमें चौकन्नापन तो बेहद ज़रूरी है सो चौकन्ना जैसा शब्द भी इसी श्रंखला से जन्मा है। आमतौर सावधानी, निगरानी, सजग और होशियार रहने के भावार्थ वाले इन शब्दो को यह अर्थ भी इनमें निहित चार के अंक की वजह से मिला। चौकन्ना यानी जो चारों और से सावधान हो । जिसे अपने आस-पास की चीज़ों का भान हो। यही बात चौकस या चौकसी से भी जुड़ती है। चतुर् नाम की मूल धातु यहां अपने शब्दार्थ का स्थायी आधार प्राप्त करती है।
वर्षाकाल के चार महिनों के लिए चौमासा शब्द का प्रयोग होता रहा है। यूं यह शब्द बना है चातुर्मास से । ग्रीष्म, वर्षा और शीत ऋतुओं की अवधि चार-चार मास की होती है इस तरह चातुर्मास शब्द दरअसल प्राचीनकाल में प्रत्येक ऋतु के आरंभ में होने वाले वैदिक यज्ञों – अनुष्ठानों और व्रत-उत्सवों के लिए प्रयोग होता था मगर बाद में सिर्फ वर्षाकाल के चार महिनों के लिए रूढ हो गया। चातुर्मास का अर्थ हुआ वर्षाकाल में होने वाले विशिष्ट धार्मिक कृत्य। साधु संत भी आमतौर पर वर्षाऋतु में यात्राएं स्थगित रखते हैं और एक ही स्थान पर विश्राम करते हैं । उनकी यह अवकाश अवधि भी चातुर्मास कहलाती है। चौमासा का एक अर्थ वर्षा ऋतु से जुड़ा काव्य भी है।
हिन्दू परिवारों में रसोई बनाने के स्थान को भी चौका कहा जाता है। यह भी चतुष्क से ही बना है। गौरतलब है कि प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति में पाक कर्म एक बेहद पवित्र कार्य माना जाता रहा है और इसी के चलते भोजन बनाने के स्थान को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। चूंकि भारतीय समाज में ईश्वर को भोग लगाए बिना भोजन ग्रहण न करने की प्रथा रही है इसलिए स्वाभाविक है कि पाकशाला में भोजन दरअसल बनता ही ईश्वर के लिए है , मनुश्य तो सिर्फ उसका प्रसाद पाता है। ऐसे उच्च चिंतन वाले समाज में स्वच्छता और पवित्रता के भाव चलते भोज्य सामग्री को पकाने का कम सतह से कुछ ऊंचे आसने या चबूतरे पर किया जाता था, इसी लिए इस स्थान के लिए चौका शब्द प्रचलित हो गया। पाक-कर्म के लिए चौका-बासन एक आम शब्द है। बासन शब्द बना है वास् से जिसमें गंध और बसने का भाव शामिल है। -जारी
कृपया सफर की यह कड़ी भी ज़रूर देखें- दोपहर की पहरेदारी और प्रहार
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली तीन कड़ियों - [जाति , वंश परंपरा का शब्द विलास, गोत्र यानी गायों का समूह, चिडिया चुग गई खेत ] पर सफर के सहयात्रियों में सर्वश्रीसंजय, दिनेशराय द्विवेदी, चंद्रभूषण, प्रत्यक्षा, डॉ चंद्रकुमार जैन, लावण्या शाह, अनिताकुमार, आशा जोगलेकर , मिलिंद काऴे, संजय तिवारी, आशीष , जोशिम मनीष, तरुण, संजीत त्रिपाठी, घोस्टबस्टर और मीनाक्षी की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभार ।
@दिनेश राय द्विवेदी- सचमुच हिन्दी की वेबसाइटों की संख्या भी अंग्रेजी के मुकाबले कम है और उसमें शोधपरक, मौलिक और स्तरीय सामग्री का अभाव भी है। विभिन्न विषयों से संबंधित अंग्रेजी में उपलब्ध मानक सामग्री का प्रतिनिधि हिन्दी अनुवाद हिन्दी में आना बहुत ज़रूरी लगता है। पर यह काम कौन करेगा ? अंग्रेजी हमारा हाथ शुरू से तंग रहा है वर्ना अभी तक इस दिशा में मैं कुछ सहयोग देने की स्थिति में रहता।
फिर भी मुझे लगता है कि एक ऐसा फोरम ज़रूर हम लोग बना सकते हैं जिसमें अपने अपने दायरे से बाहर निकल कर हिन्दी विकिपीडिया प्रोजेक्ट में हम सभी को सहयोग देना चाहिए। जितने भी संदर्भों के बारे में हम हिन्दी में लिख सकें , लिखना चाहिए तभी इंटरनेट पर हिन्दी अन्य भाषाओं के सामने खड़ी नज़र आएगी। हेनरी मोर्गन की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद सचमुच पढ़ने की आपने ललक जगा दी है।
@डॉ चंद्रकुमार जैन-आपने और चंदूभाई ने अपनी टिप्पणियों में गोठ का हवाला दिया था । इस बारे में सफर के पिछले किसी पड़ाव पर लिखा जा चुका था, इसीलिए प्रसंगवश उसका संदर्भ भी डाल दिया। एक अन्य पोस्ट भी गोसंस्कृति से जुड़े शब्द पर थी- ग्वालों की बस्ती में घोषणा ( कृपया ज़रूर देखे )
आप यूं ही सार्थक हस्तक्षेप करते रहें। आपके ज्ञान, अनुभव और चिन्तन-मनन का लाभ सभी ले रहे हैं।
Sunday, April 6, 2008
चौमासे में चौकन्ना चौकीदार [ चौक 1]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:27 AM
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6 कमेंट्स:
बहुत चउचक लिखा है जी।
आलेख की अंतिम पंक्ति में गड़बड़ हो गई। बासन शब्द बरतन का पर्याय है। चौका-बासन करना अर्थात भोजन निर्माण के लिए तैयारी संम्पूर्ण है। यह शब्द-युग्म भोजनोपरांत चूल्हे को ठंडा करके उसे मिट्टी या गोबर लीप कर, तथा बरतनों को धो-माँज कर अगले भोजन निर्माण के लिए तैयार रख छोड़ने की क्रिया के लिए है। विवाह के पूर्व कुम्हार के घर से मिट्टी के बरतन लाना एक परंपरा है जिसे बासन लाना कहते हैं। इस बासन का वास शब्द से दूर का भी संबंध दिखाई नहीं पड़ता। हाँ गर्म चूल्हे पर मिट्टी का लीपना लगने पर जो गंध (वास) उड़ती है उस का जवाब नहीं। आप की बात पढ़ कर लगा जैसे अभी तक बचपन में उस पुराने चूल्हे से निकली वह गंध अभी तक मेरे नथुनों में बसी है।
शुक्रिया!!
कबीरपंथ का अध्ययन करने के दौरान मैं परिचित हुआ "चौका-आरती" शब्द से, अब इस आरती के साथ चौका का संयोग कैसे हुआ यह समझ में नही आया!! क्या यहां पर चौका से तात्पर्य रंगोली जैसे किसी आकृति बनाने से है।
अगर शंका निवारण हो सके तो अति-उत्तम!!
चउ-कस [ अरबी में चार को अरबा कहते हैं - और अरबाब big boss की तरह प्रयुक्त होता है!! ]
अजित जी ,
बहुत सुंदर-सधा हुआ पोस्ट.
चौमासे में हमारे यहाँ साधक
आत्मा के चौकस चौकीदार बन जाते हैं.
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साधु-संत चौकी पर बैठकर
चौकन्ना रहकर जीने का
चारू -उपदेश देते हैं.
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और हाँ ! चौका-बासन पर विचार करते हुए
निदा फ़ाज़ली साहब की पंक्तियाँ याद आ गईं -
बेसन की सौंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा, फुंकनी जैसी माँ .
मातृ-शक्ति की आराधना के पर्व की
मंगल-कामनाओं सहित
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
@दिनेशराय द्विवेदी- एकदम सही कहा आपने, चूक हुई। जल्दबाजी में मुख्य बात रह गई, सहायक संदर्भ स्थान पा गया। ध्यान दिलाने के लिए आभारी हूं। चौका-बासन के साथ साथ चौका-बरतन भी खूब चलता है। चौका-बरतन समेटना जैसा प्रयोग भी किया जाता है। बासन भी वस् धातु से बना है जिसका अर्थ बर्तन, धोने की जगह, रसोई-उपकरण आदि ही होता है सो जिस अर्थ में हमने चौका-बासन का प्रयोग किया है अर्थात भोजनोपरांत चौका बुहारना, वह भी सही है।
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