Wednesday, November 5, 2008

कैसी कैसी गांठें ....[जेब-6]

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न में किसी बात का घर कर जाना भी गांठ पड़ना कहलाता। इसे ही मनोग्रन्थि या ग्रन्थि पालना भी कहते हैं।
न हमेशा संभालकर ही रखा जाता है। जहां रखा जाता है आमतौर पर तो उसे ख़ज़ाना कहते हैं मगर इसके कुछ ठिकाने और भी हैं। जैसे टकसाल या कोषालय। इसके अलावा अगर धन कहीं होता है तो वह जगह वस्त्रों में ही होती है जहां इसके रखने के स्थानो के अलग अलग नाम हैं मसलन जेब, पर्स, अंटी, गांठ, टेंट या बटुआ आदि।
हावत है आंख का अंधा , गांठ का पूरा । अर्थात् धनी मगर मूर्ख , जिसे आसानी से ठगा जा सके। यहां गांठ शब्द का प्रयोग जेब के अर्थ में ही किया जा रहा है। गांठ खुलना, गांठ खाली होना जैसे मुहावरे भी माली हालत ठीक न होने या जेब खाली होने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। गांठ शब्द बना है संस्कृत की ग्रथ् धातु से जिसमें एक जगह जमा होने, एकत्र होने, समेटने अथवा समुच्चय के भाव हैं। इससे ही बना है ग्रन्थः जिसमें यही सारे भाव समाए हैं जो पुस्तक में साकार हो रहे हैं इसीलिए पुस्तक को ग्रन्थ कहते है क्योंकि वह विभिन्न पृष्ठों का समुच्चय होती है। ज्ञान का आगार-भंडार होती है। जाहिर है भंडार-आगार में ही चीज़े एकत्र होती हैं। ग्रन्थिः भी इसी मूल का शब्द है जिसमें बन्धन, जोड़ , जमाव आदि का भाव है । इसने ही हिन्दी में गठान या गांठ शब्द का रूप लिया। ग्रन्थि का एक रूप गूंथना शब्द में भी नज़र आता है जैसे चोटी गूंथना। बालों को गूंथना दरअसल उनके एकत्रिकरण की ही प्रक्रिया है। पुराने ज़माने में स्त्री-पुरुष दोनो ही धोती पहनते थे। देहात में आज भी यह परिपाटी है। धन को आमतौर पर इस धोती के ही एक पल्ले में अथवा कमर में गठान बांध कर रखा जाता था। इसीलिए जेब के अर्थ में गांठ शब्द प्रचलित हो गया। गांठ शब्द का प्रयोग एक अन्य मुहावरे में भी होता है –रोब गांठना जिसका मतलब होता है अनावश्यक शान दिखाना, प्रभावित करने की चेष्टा करना। इसी तरह गांठना का एक अर्थ पटाना भी होता है।

... तन से अधिक मन की गांठें दुखदायी होती हैं...

नमुटाव, दुराव या द्वेष पालने के अर्थ में भी गांठ पड़ना शब्द इस्तेमाल होता है। जैसे शरीर के किसी हिस्से का उभार या विकार गांठ कहलता है और कष्टदायी रहता है वैसे ही न में किसी बात का घर कर जाना भी गांठ पड़ना कहलाता। इसे ही मनोग्रन्थि या ग्रन्थि पालना भी कहते हैं। जब मनमुटाव मिट जाता है तो कहा जाता है गांठ खुल गई। मगर जब गांठ न खुले तो यह मनोरोग का लक्षण है। गठान के साथ गुठली भी इसी मूल का शब्द है। मालवा में बेहद ठिंगने और अच्छे जोड़-उभार वाले व्यक्ति को गुठली भी कहा जाता है। यूं कसरती बदन वाले व्यक्ति को गठीला कहने का प्रचलन हिन्दी क्षेत्रों में आम है। इसी तरह पोटली के अर्थ में गठरी शब्द भी हिन्दी में रोज़मर्रा में बोला जाता है जो इसी मूल से आया है। गट्ठर, गट्ठड़, गठड़ी, गठड़िया,गट्ठी आदि इसके अनेक रूप हैं जो अलग अलग बोलियों में प्रचलित हैं।
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10 कमेंट्स:

Anonymous said...

अजित भाई आपकी ये सारी बातें हमने गाँठ बांध ली हैं ।

Udan Tashtari said...

गांठ तो हमने भी बांध ली...बहुत बेहतरीन!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

गांठ से ही बनता है गठजोड़ और हाड़ौती मालवा में तो गठजोड़ा का अलग ही महत्व है। है न?

विष्णु बैरागी said...

आपने कई गांठें खोल दीं ।
'टकसाल' का अर्थ अब तक यही समझता रहा - 'जहां मुद्रा ढाली जाती हैं ।' यह 'कोषालय' का समानार्थी भी है, आज जान पडा ।

Abhishek Ojha said...

आपने आज गांठ की गठरी खोली और हमने भी इन बातों की गांठ बाँध ली !

रंजना said...

हमेशा की तरह लाजवाब प्रभावपूर्ण आलेख.
परन्तु यह बात सीधे मन में उतर गई....... " तन से अधिक मन की गांठें दुखदायी होती हैं... "

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

"आओ मन की गाँठेँ खोलेँ "लतादी का गाया गीत अटल जी का लिखा गीत याद आ गया-
हर पोस्ट कितना कुछ सीखाती है -
बहुत अच्छा प्रयास है
जारी रखियेगा अजित भाई
- लावण्या

समीर यादव said...

अजित जी, आपके ये श्रृंखलाबद्ध पोस्ट तो हमारे लिए वैसे भी आम के आम "गुठली" के दाम जैसे ही हैं.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

कितनी गांठें खुल जाती हैं मन की
सफ़र में शरीक होने से !
===================
शुक्रिया अजित जी
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

pallavi trivedi said...

हमने भी sari jaankari गाँठ बाँध ली है....

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