Thursday, November 6, 2008
थैली न सही, थाली तो दे...[जेब-7]
ध न अथवा मालमत्ता रखने के कुछ और ठिकानों में एक ठिकाना थैली भी है। थैली यूं तो बहुत साधारण सा शब्द है और बोलचाल की हिन्दी और अन्य कई भाषाओं में इस्तेमाल होता है जिसका अर्थ है झोला, बोरा, खरीता, पैकेट या खासतौर पर बना लिफाफा आदि। थैली या थैला दोनो ही शब्द हिन्दी में समान रूप से चलते हैं। छोटा बैग थैली कहलाता है और बड़ा बैग थैला।
यूं तो इसमें कुछ भी सामान भरा जा सकता है, ले जाया जा सकता है और ढोया जा सकता है। मगर थैले का महत्व तब बढ़ जाता है जब इसमें भरी हुई सामग्री भी कीमती हो। कीमती वस्तु से भी ज्यादा कीमती क्या हो सकता है ? जाहिर है मुद्रा अथवा धन ही अगर थैले में भरा हो तो थैला महत्वपूर्ण हो जाता है। इसीलिए पर्स, टेंट, बटुआ, गांठ आदि का संबंध जिस तरह धन के आश्रय से जुड़ता है वही रिश्ता थैले के साथ भी है। थैली में चाहे जो रखा हो मगर मुहावरे में जब थैली खुलना कहा जाता है तो बात सीधे धन के प्रवाह या कमी न रहने से ही जुड़ती है।
थैली शब्द बना है संस्कृत की स्थ धातु से जिसमें रुकना, मौजूदगी अथवा विद्यमानता का भाव है। स्थ से स्थली बना है जिसका अर्थ है शुष्क जगह। थैली इसी का अपभ्रंश रूप है जो वस्तुओं को रखने के झोले के अर्थ में विकसित होता चला गया। थैली का रिश्ता धन से कितना अभिन्न है यह बताता है थैलीशाह जैसा शब्द । थैली के साथ शाह जुड़ने से जो तस्वीर उभरती है वह किसी राजा की नहीं बल्कि सेठ, श्रीमंत, धनवान, साहूकार,सामंत की है जिसके पास अकूत संपदा है। मुग़लों के ज़माने में थैलीदार शब्द चल पड़ा जिसका मतलब होता है खजाने में रोकड़ा उठानेवाला, गिन्नियों को ठिकाने रखने वाला। यह शब्द उर्दू या फ़ारसी में नहीं है क्योंकि वहां थ वर्ण का प्रसार नहीं के बराबर है।
स्थ से ही बना स्थालिका । प्राचीनकाल में यह रोजमर्रा के इस्तेमाल का बर्तन होता था जो मिट्टी की बटलोई या तवे के आकार का होता था जिसमें अन्न पकाया जाता था या रखा जाता था। आज हम स्टील, पीतल, कांच या चीनीमिट्टी की जिन प्लेटों में खाना खाते हैं उसे हिन्दी में थाली कहते हैं, वह इसी स्थालिका की वारिस है। बड़ी थाली के लिए थाल शब्द प्रचलित है। दिलचस्प यह कि सम्पदा का रिश्ता थैली से ही नहीं थाली से भी है। अन्न वैसे भी समृद्धि अर्थात लक्ष्मी का प्रतीक है। प्राचीनकाल से ही थाली को भारत में सर्विंग-ट्रे का दर्जा मिला हुआ है। राजाओं-श्रीमंतों के यहां थाली या थालों में विशिष्ट मेहमानों के लिए भेंट आभूषण प्रस्तुत किए जाते थे। इनाम-इकराम के लिए मुग़लों के ज़माने में भी थालियां चलती थीं। आज भी शादी ब्याह में नेग और पूजा की सामग्री थाली में ही सजाई जाती है। थाली का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि यह मेहमाननवाजी का ऐसा पर्याय बनी कि एक थाली में खाना जैसा मुहावरा अटूट लगाव का प्रतीक बना वहीं विश्वासघात के प्रतीक के तौर पर जिस थाली में खाना , उसी में छेद करना जैसा मुहावरा भी बरसों से उलाहना के तौर पर जनमानस में पैठा हुआ है।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:47 AM लेबल: business money
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18 कमेंट्स:
स्थल,थाली,थैली,थैलीशाह,भई वाह!
स्थल और स्थाली ?
ये भी जानकारी बढिया रही :)
थाली स्थालिका का वारिस- एकदम गजब जानकारी. बहुत आभार.
वाह!जमा करने को थैली, थैले और परसने को थाली और थाल।
अच्छी जानकारी
स्थालिका, वाह बहुत खूब ये जानकारी भी बढ़िया रही
थाली पर बढ़िया जानकारी.
एक शुक्र पर पोस्ट लिखिए कल किसी ने शुक्रगुजार शब्द इस्तेमाल किया तो मैं सोचने लगा की ये शुक्रगुजार और शुक्रिया वाला शुक्र कहीं शुक्राचार्य वाले शुक्र से तो नहीं मिलता?
शुक्र, शुक्ल, में भी कुछ समानता हो सकती है. शंकर भगवान् के बारे में भी एक लाइन है 'शुक्र शुक्र पथ बहन कीन्हा !' शुक्राचार्य की विद्वता से भी कुछ शब्द निकले होंगे जो विद्वता को दर्शाते होंगे.
बाकी आप लिखियेगा. वैसे ही उत्सुकता हुई.
*बाहर कीन्हा ! (पिछली टिपण्णी में गलती)
सही कहा पण्डित जी। जहां थैली न चले, वहां थाली (भोजन) से पटाने का यत्न करते हैं गुणी जन।
सही कहा ,
स्थल से थाली तक का रूपान्तरण रोचक है । थैली से थाली मिलती है तो थाली से थैली भरने की शक्ति जुटाई जाती है ।
थैली और थाली में
ऐसा गहरा नाता है !
......जानकर सुखद आश्चर्य हुआ !!
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
न जाने कितने दिनों बाद आपके चिट्ठे पर आया. मन राजी हो गया.नया रूप बड़ा सुहावन लगा.जैसे नये गेहूँ से घर में पहली बार रोटी बनी हो,दीवाली पर पुताई हुई हो या बहुत दिनों बाद कोई सुरीला गाना सुन लिया हो.....वाह ! क्या बात है अजित भाई.
रोचक, ज्ञानबर्द्धक, और शानदार...। और क्या कहें। बस यह अलख जगाए रहिए। साधुवाद।
वाह दादा बहुत अच्छा लगा आपका यह शोध बधाई .
आपकी इस शब्दों की 'थाली' से हम वैसे ही 'थैलीशाह' होते जा रहे हैं..फिक्र किस बात की.
बढ़िया जानकारी अजीत भाई !
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