ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
Friday, February 20, 2009
इसलिए पाहुन है दामाद…
अ तिथि को भारतीय संस्कृति मे देवता समान माना जाता है। अगर अतिथि से रिश्तेदारी स्थापित करनेवाला एक खास शब्द हिन्दी समेत कई भारतीय भाषाओं में प्रचलित है-पाहुन या पाहुना। आमतौर पर इसका मतलब भी मेहमान या अतिथि ही होता है मगर लोक संस्कृति में पाहुन का अर्थ जमाई या दामाद के तौर पर ज्यादा प्रचलित है। उप्र, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मालवांचल में यह इसी रूप में प्रचलित है।
प्राचीनकाल में, जब आवागमन के साधन सुलभ नहीं थे, देश-दुनिया को जानने-समझने की चाह में लोगों ने चरणों का ही सहारा लिया। चरणों के बल पर हमारे पुरखों ने विश्व परिक्रमा कर डाली और ज्ञान की ऐसी थाती ग्रंथो में छोड़ गए जिसका अध्ययन आज तक चल रहा है। देशाटन या पर्यटन की अभिलाषा में पदयात्री बनना पहली शर्त थी। एक निश्चित दूरी तय करने के बाद यात्री किसी ठिकाने पर विश्राम करते थे। इसे भी चरण ही कहा जाता था। ऐसे कई चरणों अर्थात पड़ावों से गुजरती हुई यात्रा सम्पूर्ण होती थी। गौर करें चरणों से तय की गई दूरी को विश्राम के अर्थ में भी चरण नाम ही मिला। बाद में चरण शब्द का प्रयोग और व्यापक हुआ तथा ठहराव के अर्थ में ग्रंथ के अध्याय, मुहिम के हिस्से या योजना के भाग, हिस्से या खंड के रूप में भी चरण शब्द का प्रयोग चलता रहा।
प्राचीनकाल मे आतिथ्य परंपरा के अनुसार कई चरणों में घुमक्कड़ी करनेवाले यात्रियों को विश्राम के लिए ग्राम या नगरवासी अपने पलक-पावड़े बिछा देते थे। प्रायः गांव के हर घर मे कोई न कोई पाहुना होता ही था। इसके मूल में घुमक्कड़ी ही थी। संस्कृत में घूर्ण शब्द का अर्थ होता है चक्कर लगाना, चलना, निरंतरता आदि। इसमें प्रा उपसर्ग लगने से बना प्राघूर्णः जिसका अपभ्रंश रूप पाहुण्णअ हुआ जो पाहुना में बदला। मराठी में इसे पाहुणा, राजस्थानी में पावणा कहते हैं। भाव यही है कि जो लगातार घूमता रहे वह पाहुना। घूर्ण में घूमने अर्थात चक्रगति के साथ पर्यटन का भी भाव है। पाहुना को दामाद या जमाई समझने के पीछे भी लोक संस्कृति ही है। यह दिलचस्प है कि दामाद के माता-पिता तो समधी कहलाते हैं अर्थात वे वधु पक्षवालों के संबंधी बन जाते हैं मगर उनका पुत्र पाहुना अर्थात मेहमान ही कहलाता है....ऐसा क्यों ? अतिथि देवो भवः की संस्कृति वाले समाज ने दामाद को पाहुना इसी लिए कहा ताकि उसका विशिष्ट आतिथ्य बरकरार रहे। यूं भी वर पक्ष के यहां दामाद का आगमन कन्या की विदाई के लिए ही होता है, सो कुछ दिनों की खातिरदारी वधुपक्ष को गवारा थी मगर दामाद का लगातार कई दिनों तक ससुराल में टिकना यूं भी पितृसत्तात्मक समाज मे अच्छा नहीं माना जाता। अलबत्ता पूर्वी और दक्षिण भारत के कुछ समाजों में जहां मातृसत्तात्मक समाज व्यवस्था थी वहां घर जमाई की ही परंपरा थी वहां दामाद पाहुना नहीं रहता था। घूर्णः से ही हिन्दी का घूमना शब्द भी बना है, क्रम कुछ यूं रहा घूर्णः > घूर्णनीयं > घुम्मणअं > घुम्मना > घूमना। घुमक्कड़, घूमंतु शब्द भी इसी मूल के हैं। चकरी के अर्थ में घिरनी शब्द इसी मूल का है। बांग्ला में घुमाने को घुरानो और सिंधी में फेरी लगाने को घोरानो कहते हैं। सावन के मौसम में घटाओं का घुमड़ना, मन में विचारों का घुमड़ना दरअसल एक किस्म का मंथन है, जो अस्थिरता का सूचक है। यह घूर्णः से ही आ रहा है। घूर्ण की तर्ज पर संस्कृत में घूर्म भी है जिसमें भी चक्रगति, भ्रमण, घूमने का भाव है। राजस्थानी लोकनृत्य घूमर के मूल में यही है।
...दामाद को अगर ज्यादा दिन घर में टिका लिया तो वह घर भर को चकरघिन्नी बनाकर रख देगा...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:33 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
14 कमेंट्स:
ओह! घर जमाई पाहुना नहीं कहलाता, यह ज्ञात न था. बहुत आभार जानकारी का महाराज!
सच कह रहा हूं, बहुत सोचता रहता हूं शब्दों की अथ-इति के बारे में पर अपने इस बहु-प्रचलित शब्द ’पाहुना’ पर ध्यान ही नहीं गया था. मन खिल-सा गया इस जानकारी से.
मै तो ’पाहुना ही रहता हूँ सुसराल मे , १५ साल मे आज तक एक दिन ज्यादा नही रुका .
और चारण का अर्थ ?
'चकरघिन्नी' बना देने की इस 'अद्भुत क्षमता' के कारण ही मालवा में 'जम जमाई बराबर' जैसी कहावत बनी होगी। 'जम' अर्थात् 'यमराज'।
"पाहुन" को मैँने
वर्षा के साथ जोडकर कविता लिखी है
जहाँ बादल भी घुमककड होकर आकाश मेँ घुमते रहते हैँ
अच्छा लगा ये सफर भी ...
- लावण्या
भाई, हम तो पिछले तीन दिनों से पाहुन ही थे ससुराल में। और जमाई ही ऐसा पाहुन है जिसे मनुहार कर के रोका जाता है। जिस से बेटी कुछ दिन और घर बनी रहे।
बहुत बढिया जानकारी है जी. और लोग भी अपने पहुने और जंवाई होने का आनंद ले रहे हैं भले ही सामने वाला झेल ही रहा हो.:)
रामराम.
पाहुन का है अर्थ घुमक्कड़,
यम का दूत कहाता है।
सास-ससुर की छाती पर,
बैठा रहता जामाता है।।
खाता भी, गुर्राता भी है,
सुनता नही सुनाता है।
बेटी को दुख देता है तो,
सीना फटता जाता है।।
खुद तो घूम रहा है अविरल,
ठहर नही ये पाता है।
धूर्त भले हो किन्तु मुझे,
दामाद बहुत ही भाता है।।
बहुत बढिया जानकारी है
पढकर अच्छा लगा और खराब भी,खराब, पोस्ट को लेकर नही लगा,बल्की इसलिए लगा कि अपन चाहे जो बन जाए पाहुन नही बन सकते।शानदार पोस्ट हमेशा की तरह्।
वाह ! वाह ! एक कहावत है भोजपुरी में: 'एक दिन पहुना, दुसर दिन ठेहुना... तीसर दिन केहुना.' मतलब एक दिन रहो तभी तक पहुना वाली इज्जत मिलती है.
सचमुच बहुत दिलचस्प पोस्ट
पर आपने दामाद की तस्वीर भी
बहुत जोरदार लगी है.
====================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भिवानी (हरियाणा) में कुछ वक़्त रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि लोग एक सड़क को बटेऊ रोड बोलते हैं. दरअसल उस रोड पर चौधरी बंसीलाल (पूर्व सीएम) के दामाद सोमवीर सिंह (एमएलए) का मकान है और बटेऊ का मतलब है दामाद. अब इस शब्द के पीछे क्या है, पता नहीं
Post a Comment