पिछली कड़ीः पुरुष की घबराहट का प्रतीक है महिला
जननि के रूप में नारी पूरी कायनात में सबसे ऊंचे स्थान पर नजर आती है
त माम पूर्वग्रहों के बावजूद भारतीय संस्कृति में नारी के जो विभिन्न नाम मिलते हैं वे मातृसत्तात्मक समाज में उसके महिमामय रूप को प्रदर्शित करते हैं। इन नामों के देशज भाषाओं में बदले हुए रूपों में भी अतीत की नारी के गौरव के अवशेष नजर आते हैं। उदाहरण के लिए महिला शब्द मही में इलच् प्रत्यय से मिलकर बना है। कुछ विद्वान इसे मही+लास्य से मिलकर बना शब्द मानते हैं।
मही शब्द मह् धातु से बना है जिसमें गुरुता का भाव है। मही पृथ्वी को भी कहते हैं जिसे समस्त प्राणिजगत की जननि माना जाता है। मही का अर्थ राज्य, देश, साम्राज्य, भी है। मही नदीवाची शब्द भी है। अरावली पर्वत से एक नदी निकलती है जिसका नाम माही है, मूलतः मही से ही बना है। यह खम्भात की खाड़ी में समुद्र से मिलती है। नारी अपने सबसे गौरवमयी रूप मां बनकर ही प्रकट होती है क्योंकि यही रूप उसे सृष्टि सृजन का प्रमुख भागीदार बनाता है। जननि के रूप में नारी पूरी कायनात में सबसे ऊंचे स्थान पर नजर आती है। क्योंकि वह उर्वरा है। वह सर्जक है। वह जीवनदायिनी है इसीलिए सर्वश्रेष्ठ है। मां के रूप में पृथ्वी के बाद सर्वाधिक सम्मानित गाय को भी महा कहा जाता है। मही से बने महिला शब्द में नारी की महत्ता ही झलक रही है।
पुरुषाधीन होने के बाद गृहिणी के तौर पर चाहरदीवारी की सत्ता तक सीमित कर दी गई महिला से महिरारु, मिहरारू, महरारू, या मेहरारू जैसे अनेक रूप बने। हिन्दी की पूर्वी बोलियों में इसका अर्थ होता है पत्नी, घरवाली, भार्या आदि। महादेवी वर्मा के संस्मरण में एक निम्नवर्गीय स्त्री, दबंगों को झिड़कती है-हम सिंह के मेहरारू होत सियारन के जाब ? पत्नी की भूमिका जब जरूरत से ज्यादा घरेलू हो जाती है तो घरवाली भी होम मिनिस्टर की तथाकथित झूठी उपाधि की हकीकत समझ जाती है। अब उसकी सहायक के तौर पर कोई न कोई परिचारिका घर के कामकाज में हाथ बंटाती है। दिलचस्प यह है कि पत्नी को नौकरानी के रूप में देखनेवाले समाज ने सचमुच गृहसाम्राज्ञी की सहायिका के लिए मेहरारू से ही शब्द गढ़ लिया और महिला का एक नया रूप महरी या महिरी सामने आया जिसमें कामवाली बाई की अर्थवत्ता समायी है। नौकरानी शब्द हिन्दी में आम है मगर यह हमने फारसी से लिया है। नौकर में आनि प्रत्यय लगा कर हमने नौकरानी शब्द बना लिया। नौकरी शब्द भी इसी मूल का है।
मह् धातु की अवनति का एक अन्य उदाहरण
मेहतर में सामने आता है। इसे पूरे देश में सफाईकर्मियों के लिए प्रयोग किया जाता है। शुद्ध रूप में यह है
महत्तर यानी विशिष्ट, गुरुतर और बड़े काम करनेवाला। इस गुरुता का बोध रत्ती
महाराज्ञी से जुड़ी आन-बान-शान की कल्पना करते हुए लोगों मे अपनी लाड़ली के नाम के साथ रानी शब्द लगाना शुरू कर दिया।
भर भी मेहतर में नजर नहीं आता। ऐसा माना जाता है कि विदेशी आक्रमणों के वक्त पराजय की स्थिति में दासता और दंड से बचने के लिए विभिन्न सवर्ण वर्गों के लोग समय-समय पर अपने मूल स्थान से अन्यत्र स्थानों को पलायन करते रहे और आजीविका के लिए श्रमजीवी बने और महत्तर कहलाए। हर तरह की दुश्वारियां झेलते हुए इन्हीं में से कुछ समूह पनप गए और कुछ इस हद तक बदहाल हुए कि उन्हें जातीय गौरव की स्मृतियां तक छिन गईं क्योंकि ताकतवर वर्ग द्वारा उन्हें निकृष्ट कर्म अपनाने पर विवश किया गया। संभवतः मेहतर के मूल में यही हालात रहे हों। मेहतर से ही हमने
मेहतरानी शब्द भी बना लिया।
कन्या के नाम के साथ रानी शब्द लगाने की भारत में परम्परा रही है। कई लड़कियों का नाम ही रानी होता है। सुधारानी, देविकारानी आदि ऐसे ही नाम हैं। रानी शब्द दरअसल राज्ञी से बना है जिसका अर्थ होता है राजमहिषी, मलिका, साम्राज्ञी आदि। आपटे कोश के मुताबिक यह राजन में ङीप् प्रत्यय लगने से बना है। संस्कृत के ज्ञ व्यंजन को हिन्दी में ग+य अर्थात ग्य की तरह से उच्चारा जाता है मगर इसमें ज+न अथवा ग+न की ध्वनि है। ङीप् प्रत्यय में ई का स्वर होता है जिसके लगने ले ज+न की ध्वनियां ज्ञ में बदल गई और बन गया राज्ञी शब्द जिसका अर्थ हुआ राजा की पत्नी, राजरानी। अपने तद्भव रूप में राज्ञी से फिर ज+न जैसी ध्वनियों का लोप हुआ और रानी शब्द जन्मा। साफ है कि रानी के पीछे राजा खड़ा हुआ है। महाराज्ञी से जुड़ी आन-बान-शान की कल्पना करते हुए लोगों मे अपनी लाड़ली के नाम के साथ रानी शब्द लगाना शुरू कर दिया। मह् धातु की महत्ता महाराज्ञी, महारानी, राजरानी, रानी में कायम रही। मगर फिर इसी रानी से कुछ स्त्रीवाची प्रत्ययों जैसे आनी, अनी, इन, आईन का निर्माण हुआ जिनसे क्रमशः नौकरानी(आनी), ज़मींदारनी, तहसीलदारनी(अनी), महाराजिन(इन), चौधराईन, ठकुराईन(आईन) जैसे शब्द भी बने। -जारी
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25 कमेंट्स:
अत्यन्त ही सारगर्भित और महनीय आलेख । केवल मुग्ध हृदय इतना ही कह सकता हूं - लाजवाब ।
बढिया है -मेहरा शब्द का भी विवेचन सम्मिलित कर लें जिसका अर्थ है स्त्रैण -"अरे उस की बात कर रहे हैं वह तो पूरा मेहरा है ! "
शब्दों की गहराई नापी,
उत्पत्ति और अर्थ निकाला।
महिला क्यों कहलाती नारी,
साधक धुन का मतवाला।।
महिला से रानी तक का यह सफर अच्छा लगा। एक चित्र सा खिंच रहा है आदिम जीवन से आज तक परिवार और समाज में किस तरह बदली होगी?
बहुत सही कहा आपने....महत्तम कार्य करने वाले को मेहतर कह समाज ने निकृष्ट तम् स्थान दे दिया.इसी तरह माहि सी महिला भी अपने पूर्ण अर्थ में कहाँ अपना स्थान बना और बचा पायी....
बहुत बहुत सुन्दर सारगर्भित विवेचना की है आपने.कोटिशः आभार...
गजब की यात्रा और लाजवाब जानकारी. रामराम.
महती जानकारियों से परिपूर्ण अति महत्वपूर्ण आलेख। क्रमश: की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत ज्ञान वर्धक जानकारी.आपने बताया की हिंदी में ज्ञ का उच्चारण ग्य की तरह होता है.चूंकि हिंदी वालों की आदत में ही ऐसा है इसलिए पहले एक बार जब कुछ गुजराती परिचितों को किसी सन्दर्भ में विज्ञान को विग्नान बोलते सुना तो काफी अटपटा लगा.
बहुत ही सुन्दर व्याख्या हुई है इस पोस्ट में तो अजीत जी। भाषा के सवाल पर आपके विशलेषण वैसे भी तार्किक हैं।
अजित जी,
आज रंग पंचमी मनाने मेरे ब्लॉग http://www.cartattack.blogspot.com/ पर जरूर पधारें
बढिया ,रोचक जानकारी . अब तो मास्टरनी ,डाक्टरनी जैसे शब्द चल रहे है
ज्ञानवर्धक जानकारी.
अरविंदजी,
आपने अच्छा याद दिलाया
यह भी इसी कतार में आता है और इसी मूल का है। पंजाब में तो ढाबों पर रोटियां बनानेवाले और काफी हद तक जिस रूप में हिन्दी क्षेत्रों में रसोइये को महाराज कहा जाता है उसी तरह महरा कहा जाता रहा है। इस रूप में यह शब्द अब प्रचलित है या नहीं, कह नहीं सकता, पर यशपालके कालजयी उपन्यास झूठासच में खाना बनाने वाले के तौर पर ही महरा का उल्लेख आया है। जाहिर सी बात है कि भोजन बनाना भी स्त्रियोचित कर्म समझा जाता रहा है। इसीलिए रसोइया भी महरा हो गया। पूर्वी उत्तरप्रदेश में इसका अर्थ सही मायने में व्यापक है और महिलाओं जैसे स्वभाव, हाव-भाव वाले व्यक्ति को सहजता से महरा नाम मिल गया अर्थात महरियों जैसा....
्ज्ञानवर्धक लेख। आभार॥
अजित जी,
लीजिये कुछ हमारी और से भी....
नारी वह जो न अरि है, न आरी है !
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महिला वह जो जीवन में महिमा लाए !
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बहन वह जो बहना सिखाए
कहे... बह न...बह न !
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दुहिता वह जो दो हितों को साधे !
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आपकी पोस्ट ने नारी विषयक चिंतन का
अवसर सुलभ करा दिया...आभार.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
@डा चंद्रकुमार जैन
बहुत बढ़िया...डाक्टसाब...खूब शब्द विलास है...
यूं, 'माँ' की 'महिमा' कौन नहीं जानता लेकिन 'मही' की शाब्दिक महत्ता आपसे जानी |
सच लिखा आपने कि जननि के रूप में नारी पूरी कायनात में सबसे ऊंचे स्थान पर नजर आती है क्योंकि वह उर्वरा है सर्जक है जीवनदायिनी है और सर्वश्रेष्ठ है। माँ सिर्फ सर्जक ही नहीं कुम्भकार भी है जो अपनी संतान के व्यक्तित्व को घडती है | व्यक्ति के जीवन की समूची पूंजी उसी घडे से आती जाती है |
माँ वरदायिनी है, सर्वदा 'दायिनी' !! जो सहेज सके, वो सहेज ले | मेरे लिए तो देवत्व का इससे अधिक पूज्य और जीवंत स्वरुप कोई हो ही नहीं सकता |
इधर मेहतरानी शब्द से अपने गाँव की 'मेहतरानी माँ' का भी स्मरण हो आया जो उस वक़्त अछूत होते हुए भी सुख दुःख के समय परिवार की अभिन्न सहभागिनी थी और अतीव आदरणीया भी |
मही को नमन मही की महिमा को नमन आपकी लेखनी को नमन | श्रेष्ठ विषय चयन के लिए अनंत साधुवाद !
यह सफर मेरे लिए बहुत सार्थक रहा। ज्ञ का उच्चारण ग्+य, न्+य, ज्+ न, ग्+न व ज् +ञ के बीच उलझा रहा है। मैं अपना उच्चारण सही करने में तो असमर्थ हूँ किन्तु सही क्या है व क्यों है यह जानना तो आवश्यक था। आज आपने भाषा के वैज्ञानिक पहलू के अन्तर्गत यह बात समझाई। एक संशय दूर हुआ।
मैं हिन्दी लेखन के लिए तख्ती नामक सॉफ्टवेअर का उपयोग करती हूँ। इसमें ज्ञ लिखने के लिए ज् +ञ का उपयोग किया जाता है। जो कारण आपने बताया वह तर्कपूर्ण है। फिर तख्ती में ज् +ञ का उपयोग क्या ञ के च वर्ग के अन्तिम अक्षर होने के कारण है, कुछ कुछ अनुस्वार वाले नियम की भाँति, जैसे पंच=पञ्च ? यदि हो सके तो यह भी बताइए कि प वर्ग तक तो यह नियम समझ आता है फिर य र ल व और उससे आगे क्या नियम उपयोग होगा ?
कभी उच्चारण के नियम और मराठी के ळ, अतिरिक्त च आदि के बारे में भी बताइए। ऐसे ही दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी अतिरिक्त च, र आदि होते हैं।
घुघूती बासूती
Mired Mirage
शुक्रिया घुघूती जी,
दरअसल ज्ञ वर्ण मूल रूप से कीज+ञ ध्वनियों का संगम ही है। सरली करण के लिए ञ में निहित अनुनासिकता को न ध्वनि से समझाया जाता है। क्योंकि आम हिन्दी भाषी को यही समझ मे आता है। देवनागरी के ज्ञ वर्ण ने अपने उच्चारण का महत्व खो दिया है। अपभ्रंशों से विकसित भारत की अलग अलग भाषाओं में इस युग्म ध्वनियों वाले अक्षर का अलग अलग उच्चारण होता है। मराठी में यह ग+न+य का योग हो कर ग्न्य सुनाई पड़ती है तो महाराष्ट्र के ही कई हिस्सों में इसका उच्चारण द+न+य अर्थात् द्न्य भी है। गुजराती में ग+न यानी ग्न है तो संस्कृत में ज+ञ के मेल से बनने वाली ध्वनि है। दरअसल इसी ध्वनि के लिए मनीषियों ने देवनागरी लिपि में ज्ञ संकेताक्षर बनाया मगर सही उच्चारण बिना समूचे हिन्दी क्षेत्र में इसे ग+य अर्थात ग्य के रूप में बोला जाता है। शुद्धता के पैरोकार ग्न्य, ग्न , द्न्य को अपने अपने स्तर पर चलाते रहे हैं। विस्तार से इसी विषय पर लिखी यह पोस्ट ज़रूर पढ़ेःज्ञ की महिमा-ज्ञान जानकारी और नालेज
काफी ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई
बहुत सुँदर शब्द यात्रा करवायी आपने -
- लावण्या
आपकी पूरी श्रृंखला पढ़ने के लिए मन आतुर है। काफी बड़ा खजाना है आपके ब्लॉग पर। प्रथम दर्शन में ही हम आपके मुरीद हो लिए।
शुक्रिया।
मैं इस श्रृंखला के पहले भाग नहीं पढ़ पाई..अब पढूंगी..बहुत ही रोचक जानकारी है..यकीनन बहुतों को यह जानकारी नहीं होगी..'रानी 'शब्द का अक्सर लड़कियां के नाम के साथ और 'कुमार 'लड़कों के नाम के साथ प्रयोग क्यूँ किया जाता रहा ही कभी जानने की कोशिश नहीं की..आज पता चल गया .धन्यवाद.
महिला शब्द की बड़ी ही सुन्दर विवेचना की हे आपने .शब्दों के अर्थ से लेकर उसकी व्याख्या तक सभी कुछ रोचक .इसका पहला भाग नहीं पढ़ा हे अब जरुर पढूंगी.नए शब्द की जानकारी के इन्तजार में .
सुंदर विवेचना
जयचन्द प्रजापति कक्कूजी इलाहाबाद
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