Sunday, March 29, 2009

अकड़ू, अक्खड़, बदमिजाज …

rude011 दम्भी व्यक्ति कभी सीधी चाल नहीं चलता। वह हाथ-पैरों को कुछ अधिक हिलाता हुआ, फैंकता हुआ, तना हुआ सा चलता है। इसे ही वक्र चाल कहते हैं। यह दूसरों से अलग दिखने का तरीका है
ज्ञा नी कहते हैं कि सीधी राह भली। आड़ा-टेढ़ापन ठीक नहीं। सच्चाई की राह भी सीधी होती है, इसके बावजूद लोग टेढ़ी चाल ही चलना ज्यादा पसंद करते हैं और अकड़ दिखाने से बाज नहीं आते। अकड़ना शब्द पर गौर करें। पदार्थ के संदर्भ में अकड़ना शब्द का अर्थ है तनाव, झुकाव, कठोर होना, दोहरा होना, मुड़ जाना आदि। इसी तरह मनुष्य के संदर्भ में अकड़ या अकड़ना शब्द के मायने हैं झूठी शान दिखाना, दंभ करना, ऐंठ दिखाना, घमंड करना आदि।
संस्कृत के अङ्क (अंक) शब्द में मूलतः वक्रता अर्थात टेढ़ा-पन, उकेरना, कोण, शरीर के अवयवों में घुमाव आदि भाव शामिल हैं। शरीर के अवयवों के लिए अंग शब्द प्रचलित है जो अंक का ही अगला रूप है। अंग किसी वस्तु का प्रभाग या अवयव, अंश, खंड। घुटना, कोहनी, ऐड़ी आदि अवयवों में यह मोड़ या झुकाव साफ नज़र आ रहा है। मगर मूलतः अंग ही से पूरे शरीर का संचालन होता है। अर्थात अंग ही कार्यशील इकाइयां हैं। अकड़ बना है अङ्क में करण लगने से। जब अंग वक्र होने लगें, उसे अकड़, अकड़ना कहते हैं। अच्छी भली वस्तुओं का उपयोग न किया जाए तो उसके कलपुर्जे काम करना बंद कर देते हैं। लकड़ी सूख कर मुड़ने लगती है, इसे ही अकड़ना कहते हैं।
नुष्य के संदर्भ में इसे देखें तो दम्भी व्यक्ति कभी सीधी चाल नहीं चलता। वह हाथ-पैरों को कुछ अधिक हिलाता हुआ, फैंकता हुआ, तना हुआ सा चलता है। इसे ही वक्र चाल कहते हैं। यह दूसरों से अलग दिखने का तरीका है। चाल के इसी अनोखेपन को बांकापन कहते हैं। हालांकि बांकापन में समाया तिरछापन जहां मनोहारी अदा के तौर पर देखा जाता है वहीं अकड़ में स्वभाव का तिरछापन अर्थात कुटिलता समायी है। दिलचस्प यह कि बांका शब्द भी वङ्क से ही बना है। हिन्दी का वक्र शब्द जिसका मतलब भी एंठन और टेढ़ापन ही है, से भी अकड़ का गहरा रिश्ता है क्योंकि इसका मूल भी वङ्क ही है। घमंडी व्यक्ति न सिर्फ अकड़ कर चलता है बल्कि उसके स्वभाव में भी ऐंठन आ जाती है इसी लिए उसे अकड़ू भी कहा जाता है। गौर करें ऐंठना अपने आप में एक किस्म की वक्रता है। अकड़ में अंगों के काम न करने का भाव है। अकड़ू व्यक्ति अपने अंगों से खुद ही सामान्य काम न लेते हुए वक्रता प्रस्तुत करता है। मस्तिष्क का सही प्रयोग न करते हुए वह शातिर चालें चलता है इसीलिए टेढ़े व्यक्ति को वक्रबुद्धि भी कहा जाता है। यह वक्रता जब मूर्खता सिद्ध होने लगती है तब ऐसे लोगों को डेढ़ अक्ल की उपाधि से भी नवाज़ा जाता है।
मंडी के लिए कुछ इन्हीं अर्थो में अक्खड़ शब्द का भी प्रयोग होता है। यूं अक्खड़ शब्द रूखे, कठोर, ठेठ स्वभाव के व्यक्तियों के लिए ज्यादा प्रचलित है मगर इसके दायरे में असभ्य, जंगली, असंस्कृत, घटिया और जाहिल जैसे भाव भी शामिल हैं। अक्खड़ बना है अ+कृत्त से

... सभी जीवों में मानव को श्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसे दया, करुणा, क्षमा, शील जैसे गुण ईश्वर ने दिये हैं। ...

जिसका मतलब हुआ अनिर्मित या अनगढ़। अधबना। मनुष्य के संदर्भ में इसकी व्याख्या आसान है। सभी जीवों में मानव को श्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसे दया, करुणा, क्षमा, शील जैसे गुण ईश्वर ने दिये हैं। ये गुण मानवता के लिए आनंद की सृष्टि करते हैं। कठोरता, रुखापन या तो जड़ पदार्थों का स्वभाव है या पशुओं का। ऐसे में जिस मनुष्य में ये दुर्गुण हैं उसे अकृत्त ही कहा जाएगा अर्थात जो अभी बना नहीं है। अकृत्त का ही अपभ्रंश रूप अक्खड़ हुआ। अक्खड़ शब्द के मूल में मानवीय स्वभाव का अभाव ही परिलक्षित होता है। समाज में अक्सर अक्खड़ लोगों से सावधान रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि उनमें परिपक्वता नहीं होती, सहज सद्गुणों का विकास नहीं होता जो कि ज़रूरी हैं। इसीलिए अक्खड़ और अकड़ू लोग दुनियादारी में सफल नहीं होते क्योंकि वे बदमिजाज होते हैं।
कुछ विद्वान अक्खड़ शब्द की व्युत्पत्ति अक्षर से बताते हैं। अक्षर का मतलब होता है अ+क्षर अर्थात अनश्वर। अक्षर को ब्रह्म इसीलिए कहा जाता है क्योंकि सृष्टि में यह हमेशा विद्यमान है। अक्खड़ व्यक्ति खुद को बदलना नहीं चाहता इसलिए उसकी व्युत्पत्ति अक्षर से मानी जाती है। मगर यह व्युत्पत्ति बहुत तार्किक नहीं है।

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15 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वडनेकर जी!
अकड़ू, अक्खड़, बदमिजाज की व्युत्पत्ति का आपने अच्छा विवेचन किया है।
साथ ही चित्र भी इस मिजाज के अनुकूल ही लगाया है।
लेखालेख पसन्द आया।
धन्यवाद।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अकड़ू, अक्खड़, बदमिजाज ,घमंडी यह मुझे कहते मेरे चाहने वाले

Arun Arora said...

आपका विवेचन हर पोस्ट मे सुभान अल्लाह

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप शब्दों के रिश्ते बताते हैं। कभी कभी इन के अंतर भी बताते चलें तो अच्छा लगेगा। बाँका और अकड़ू का रिश्ता तो आपने बताया लेकिन दोनों में जबर्दस्त फर्क भी है। बाँकपन में अहंकार नहीं है जबकि अकड़ उस से सराबोर। बाँकपन में जो आकर्षण है जब कि अकड़ में विकर्षण।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अजित जी,
आपने बदमिजाजी पर भी
इतने सधे हुए मिजाज़ से
बड़ा ही बांका विमर्श किया है.
*******************************+
अब हम खुद अकड़ने से तो बाज़ आयेंगे ही,
कोई अकड़ कर चलता दिख गया तो
आपकी ये पोस्ट बरबस याद आ जायेगी.
....आप शब्द चर्चा के साथ-साथ
लोक व्यवहार के सूत्र भी दे जाते हैं.

साभार आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

अफ़लातून said...

एक उदाहरण

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
बांकपन पर एक पोस्ट हाल ही में लिख चुका हूं। बांकी चितवन... इस पोस्ट में विस्तार से बांकपन पर चर्चा की गई है।

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छी फोटो लगाई है तुर्रमखान की!

निर्मला कपिला said...

bahut badia isse bhi badia jo vakiy likh hai ki sabhi jeevon me manav ko is liye sarvshreshth kaha jata hai ki usmedaya karuna kshama sheel jese gun ishvar ne diye hain sunder post badhai

Ashok Pande said...

वाह साहेब!

ताऊ रामपुरिया said...

जानकारी तो बहुत लाजवाब है पर आपकी तुर्रमखां वाली फ़ोटो के क्या कहने.:)

रामराम.

Riya Sharma said...

... सभी जीवों में मानव को श्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसे दया, करुणा, क्षमा, शील जैसे गुण ईश्वर ने दिये हैं। ...

बहुत सुन्दर , अर्थपूर्ण गद्य

सादर !!!

Girish Kumar Billore said...

वाह जनाब क्या बात है

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

हमेशा की तरह अच्छा विश्लेषण किया आपने। साधुवाद।

Anil Pusadkar said...

अजीत भाऊ आपकी पोस्ट की हेडिंग देखकर तो यही लगा कंही आपने मुझपर तो खबर नही लिख दी है। शानदार पोस्ट हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक्।

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