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Wednesday, June 3, 2009
ज़बान को लगाम या मुंह पर ताला!!!
ताली के लिए हिन्दी, उर्दू, पंजाबी समेत मराठी में भी किल्ली शब्द है। कांशीराम अक्सर बहुजन समाज के हितों के लिए सत्ता को गुरुकिल्ली कहते थे जिसका मतलब था सत्ता वह चाबी है जिसके जरिये ही दलितों का भला हो सकता है। किल्ली शब्द बना है संस्कृत के कील् से जिसमें नत्थी करना, बांधना, जोड़ना जैसे भाव है।
बे लगाम, अनर्गल लगातार बोलते जाने, फिजूल बातें कहने या बकवास करने को शुद्ध हिन्दी में अनर्गल बोलना भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है अनियंत्रित, बेलगाम सम्भाषण जो अक्सर निरर्थक होता है। वाचाल व्यक्ति हमेशा अनर्गल ही बोलता है इसी लिए मुंह पर ताला लगाना या ज़बान को लगाम देने जैसा मुहावरा जन्मा है।
पुरानी हवेलियों, महलों के दरवाजों में भीतर की ओर द्वार के दोनों पल्लों को जोड़नेवाली लकड़ी का एक मज़बूत दण्ड होता है जो एक पल्ले से घूमनेवाली कीलिका से जुड़ता है तथा दूसरे पल्ले में जाकर एक हुक में अटकता है। ताला नाम के यंत्र का यह सबसे प्राचीन रूप है और देहात में आज भी इस तकनीक का प्रयोग देखा जा सकता है। संस्कृत में इस ताला-यंत्र के लिए अर्गला शब्द है जिसका मतलब होता है द्वार खुलने से बाधित करने का यंत्र। जाहिर है यह अर्गला द्वार के दोनों संयुक्त पल्लो पर नियंत्रण करती है। अर्गला धातु की सांकल भी होती थी और धातु की छड़ भी जिसने बाद में सिटकनी का रूप लिया। देशी जबान में इसे अगड़ी, आगल आदि भी कहते हैं। ध्वनि परिवर्तन से भी कई देशज शब्द जन्म लेते हैं। रोकने, थामने, बाधा डालने के अर्थ में रोजमर्रा की हिन्दी में अड़ंगा, अड़, अड़ना, अड़काना, अड़ियल जैसे शब्द प्रचलित हैं। अनुमान है कि ये सभी शब्द कहीं न कहीं अर्गला से जुड़े हैं। गौरतलब है कि ताला शब्द के जितने भी समानार्थी शब्द हैं सभी में संयुक्त होने, जुड़ने, रोकने, बांधने या नियंत्रित करने का ही भाव है।
पूर्वी की कई बोलियों में र का उच्चार ड़ की तरह किया जाता है। अर्गला से ही अड़क होते हुए अड़काना क्रिया बनी हो सकती है। आमतौर पर द्वार के दोनों पल्लों को किसी चीज़ से रोकने के लिए अड़काना शब्द ही प्रयोग में लाया जाता है। जाहिर सी बात है कि अगर ज़बान पर नियंत्रण न किया जाए तो वहां से वाणी का धारा-प्रवाह उच्चार होता रहेगा। हालांकि वाणी पर नियंत्रण मस्तिष्क का मामला है, मगर दिमाग भी बेकाबू हो तो उस वाणी को अनर्गल प्रलाप ही कहा जाएगा। मुंह पर ताला लगाना ही इसका उपाय होगा इस तरह यह मुहावरा जन्मा। अर्गला का अर्थ लगाम भी होता है जिसे हिन्दी में रास या बाग भी कहते हैं। नियंत्रण सूत्र के संदर्भ में बागडोर इससे ही बनता है। लगाम हिन्दी में फारसी से आया पर यह मूलतः अरबी शब्द है जिसका उच्चारण होता है लजाम lijam-lajam अर्थात घोड़े की रास। फारसी में इसका रूप हुआ लगाम जो उर्दू-हिन्दी में जस का तस चला आया। इसमें बे उपसर्ग लगाने से बनता है बेलगाम अर्थात अनियंत्रित, बेकाबू, स्वेच्छाचारी, निरंकुश आदि। वाचाल की वाणी पर नियंत्रण के लिए ज़बान को लगाम देने की कल्पना की गई और यूं एक लोकप्रिय मुहावरे ने जन्म लिया है।
ताले के लिए मराठी में कुलुप शब्द का इस्तेमाल होता है। भारत की फारसी शब्दावली के प्रभाव वाली भाषाओं में मराठी भी प्रमुख है। कुलुप दरअसल वर्ण-विपर्यय के जरिये अरबी के कुफ्ल से बना शब्द है जिसका मतलब होता है ताला। ज्ञानमंडल हिन्दी कोश में इसका कुलुफ रूप मिलता है। अरबी धातु क़-फ-ल से यह बना है जिसमें भी संयुक्त होने, जुड़ने-जोड़ने के साथ लौटने, वापसी, पुनरागमन जैसे भाव भी शामिल हैं। यात्रादल, मंडली या कारवाँ मूलतः जन-जमाव होता है। हिन्दी में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला काफिला शब्द के मूल में अरबी क्रिया कफ़ाला है। गौर करें की काफिला यात्रियों के समूह को कहते हैं। संयुक्त होने, जुड़ने का भाव यहा स्पष्ट हो रहा है। क-फ-ल में शामिल दूसरे भाव अर्थात पुनरागमन के भाव पर गौर करें तो ताले में उसकी भी तार्किकता नजर आती है। दरअसल आश्रय की सुरक्षा इसीलिए की जाती है क्योंकि उसे निर्जन छोड़ने की परिस्थिति बनती है। लौटने पर हर चीज़ सुरक्षित मिले इसी सोच के तहत ताला लगाया जाता है। अर्थात ताले के साथ लौटने या वापसी का भाव जुड़ा हुआ है। इसके अन्य भावों पर गौर करें तो एक और महत्वपूर्ण हिन्दी शब्द की व्युत्पत्ति का रिश्ता भी समझ आता है। आइस्क्रीम के लिए कुल्फी या कुलफी शब्द बेहद आम है। ख़ासतौर पर कैंडी के अंदाज़ वाली आइसक्रीम के लिए। कुल्फ़ी भी इसी कफल से आ रहा है जिसमें जुड़ने, संयुक्त होने या जमने का भाव है। दूध अगर फट सकता है तो जम भी सकता है। सो कुफ्ल से ही बना कुफ़ल या कुफ़ली जिसका अर्थ था जमाना या जिसमें दूध को ठण्डा कर जमाया जाए। वर्णविपर्यय के चलते हिन्दी में कुफली का कुल्फी हो गया।
ताली के लिए हिन्दी, उर्दू, पंजाबी समेत मराठी में भी किल्ली शब्द है। कांशीराम अक्सर बहुजन समाज के हितों के लिए सत्ता को गुरुकिल्ली कहते थे जिसका मतलब था सत्ता वह चाबी है जिसके जरिये ही दलितों का भला हो सकता है। किल्ली शब्द बना है संस्कृत के कील् से जिसमें नत्थी करना, बांधना, जोड़ना जैसे भाव है। इससे बना है कीलकः जिसका अर्थ खूंटी, खम्भा आदि होता है। कीलिका शब्द में पतला सरिया, पेंच, शलाका अथवा चाबी का भाव है। हिन्दी के कील, कीला, जैसे शब्द इससे ही बने हैं। कीलित शब्द में बांधना, जकड़ना, स्थिर करना, जड़ना जैसे भाव हैं जो ताले के उद्धेश्य से जुड़ते हैं। कीलिका से ही बना है किल्ली शब्द। ताली या चाबी के लिए हिन्दी में कुंजी शब्द भी प्रचलित है जो बना है कुंजी बना है संस्कृत के कुञ्चिका से। यह बना है कञ्च् धातु से जिसमें बंधन का भाव है। कंचुकी, कांचली जो ब्लाऊज़ के देशी संस्करण हैं, इससे ही बने हैं जिनमें भी बांधने, जकड़ने का भाव साफ है।
हिन्दी में ताली के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय शब्द है चाबी। यह भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है। ताला-चाभी शब्द युग्म सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। चाभी या चाबी दरअसल हिन्दी को पुर्तगाली भाषा की देन है जिसमे इसे चैवी कहा जाता है जाहिर है यह शब्द अंग्रेजी से भी पहले हिन्दुस्तान आ चुका था। पुर्तगाली के चैव बना लैटिन के क्लेविस से जिसका मतलब होता है चाबी या ताली। बंद, ढके हुए, संकुचित या घिरे हुए स्थान के अर्थ में अंग्रेजी का क्लोज़ शब्द हिन्दी परिवेश में भी खूब जाना पहचाना है जो लैटिन के क्लासस से बना है जिसके मूल में है इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की धातु क्लॉ अथवा klau जिसका मतलब होता है हुक, आंकड़ा। इस क्लॉ की संस्कृत के कील से समानता पर गौर करें। किसी स्थान को बंद करने या घेरने के अर्थ में इससे ही लैटिन में क्लेविस शब्द बना जिसका मतलब हुआ चाबी। कील के अर्थ में पेंच का भाव भी इसमें शामिल है। किसी घिरे हुए स्थान को अंग्रेजी में एनक्लोजर कहते हैं। आजकल रिहायशी परिसरों को एन्क्लेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ भी घिरा हुआ स्थान ही हुआ। इसी तरह सम्मेलन, गोष्ठी के लिए आजकल कॉन्क्लेव शब्द भी खूब प्रचलित है जिसका मतलब होता है ऐसी जगह जिसे सब तरफ से बंद किया गया है। प्राचीन रोम में कार्डिनल जब चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ बैठक करते थे तो उसे कॉन्क्लेव कहा जाता था। जाहिर है वह गोपनीय बैठक होती थी और किसी बंद परिसर में ही होती थी।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:35 AM
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22 कमेंट्स:
ताला, कुलूप, लगाम, चाभी, किल्ली सबका उगम पता चला गया । पर इस उमर में याद रखना थोडा मुश्किल है, किताब कब छपवा रहे हैं ।
शुभकामनाएँ और बधाई लेखों की इस निरंतर माला के लिये ।
शुक्रिया आशाताई....किताब जल्दी ही आएगी। फुर्सत नहीं है उसके लिए अभी :) सफर चलता रहेगा मुसलसल...
हमेशा की तरह जानकारी से भरपूर आलेख। भाई वाह। आप बहुत मेहनत करते हैं। मेरी शुभकामना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मुंह पर ताला लगाना या ज़बान को लगाम देने जैसे मुहावरों की तह में जाकर अच्छी जानकारी दी है।
बधाई।
हाड़ौती में बहुत से शब्द ऐसे हैं जो सीधे संस्कृत से संबंध रखते हैं जिस में आगळ एक शब्द है जो सीधे अर्गला से बना है।
आपके इस शब्दों के सफ़र का साथी बन कर गर्व महसूश होता है..मुझे खुशी है की आप हिंदी शब्दावली के इतने अनोखे शब्दों का उद्गम ..उनका अर्थ ..उपयोग पर इतने विस्तार से बता रहे हैं.....धन्यवाद.
इसका मतलब कीलित शब्द संस्कृत से फारसी मे गया है...क्योंकि अक्सर चाबी के लिए यही शब्द रश्त मे इस्तेमाल होता है ...
Ajeetji,
Reallly u r making a great way to understand a language.
Accept heartiest wishes!
कुछ न बोला तो ''शुजा'' अन्दर से तू मर जाएगा ,
और कुछ बोला तो फिर बाहर से मारा जाएगा.
अब ''बे-लगाम '' हुआ भी तो कैसे जाए?
एक शहर [बेलगाम] एसा हुआ भी तो दो-दो राज्य उस पर लगाम कसना चाहते है !
एम्.एच.
bhut badhiya post.
shahro or gavo ke namo ke peeche bhi ek itihas hota.kya unki uttpatti ke bare me padhne ko milega.
हमेशा की तरह शानदार जानकारी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हमारे यहां राजस्थान में दरवाजे बंद कर उपर बताये हुए लकड़ी के अटकाने वाले डंडे के लिये कहते हैं "आगळो लगा दीजो" यानि यह आगला भी अर्गला शब्द से बना हुआ प्रतीत होता है।
हां ज्यादा बोलने वालों के लिये यह नहीं कहते कि मुंडा(मुंह) को आगळो लगा।
:)
@सागर नाहर
सागर जी राजस्थानी में जो आगळ या आगळा है उसका मूल इसी अर्गला से है। यहा वर्णविपर्यय हुआहै।
ताला चाभी की रोचक ज्ञानवर्धक उत्पत्ति व्याख्या....
आभार.
ताला की सम्पूर्ण जन्मकुंडली से ज्ञान वर्धन हुआ .
क्षेत्र परिवर्तन के साथ भाषा का उचारण बदल जाते है मजेदार तथ्य यह है की बिहारी लोग घोड़ा सरपट दौड़ रहा है को कहेंगे घोरा सरपर दौर रहा है . इस पर भी कभी प्रकाश डाले
बेहद सुन्दर लगा ये ताले चाभी का आलेख
बेहद सुन्दर लगा ये ताले चाभी का आलेख
अच्छी जानकारी .
हमारे महाराष्ट्र में कहते हैं.."दारा ला कुलूप लावून किल्ली खिश्यात ठेवून घे "
इसी बात को
हमारे मध्य प्रदेश में कहते हैं .." दरवाज्याला ताला लाऊन चाबी जेबात ठेऊन घे"
भाषा की शुद्धता को छोडिए कौन कहता है मराठी और हिन्दी सगी बहने नहीं हैं.
har baar aapko padhta hoon .........jahan kahin bhi aapka aalekh milta hai..vah khud-ba-khud khud ko padhwa leta hai.........
bahut hi achha aur saarthak kaam kar rahe hain aap
AJITJI AAPKO HARDIK BADHAI !
बोहोत ही अच्छा शोध, आपका लेख पढ़ कर अच्छा लगा| ज्ञानवर्धक!!
शायद वर्णविपर्यय नहीं, केवल रेफ का लोप हुआ है।
बहुत ही बढिया लेख है आपका, बधाई हो !
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