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Saturday, June 6, 2009
ममी की रिश्तेदारी भी केरोसिन से…
दु नियाभर के जिन वीरानों में बीती एक सदी से पेट्रोलियम निकला जा रहा है वहां कभी समृद्ध जैव विविधता रही होगी। लाखो-करोड़ों वर्षों के दौरान होने वाली भूगर्भीय हलचल से पृथ्वी की सतह का जीवन भीतरी गर्तों में समाता रहा और भारी दाब और ताप की प्रतिक्रियास्वरूप जीवन की हलचल ने जीवाश्म ईंधन का रूप ले लिया। आज ये इलाके रेगिस्तान कहलाते है। प्रायः सभी महाद्वीपों पर ऐसे इलाके हैं और सभी स्थानों पर पेट्रोलियम भंडार हैं। आज से सोलह सौ साल पहले से चीनी लोग भी पेट्रोलियम पदार्थ से घासलेट के तेल से परिचित थे। चीनियों ने बांस के पोले पाइपों के जरिये तेल निकालने की तरकीब ईजाद की थी।
प्राचीनकाल में अरब के विशाल रेगिस्तानों में खुदाई के दौरान इस आश्चर्यजनक भूगर्भीय पदार्थ के अस्तित्व से लोग परिचित हुए। इस चिपचिपे पदार्थ को लोगों ने तेल की तरह ही समझा। धीरे-धीरे इसके गुण पता चलते गए। इसे त्वचा पर भी लगाया जाने लगा। प्रज्वलनशीलता की वजह से इसे प्रकाश के लिए जलानेवाले ईंधन की तरह काम में लिया जाने लगा। तब इस कच्चे तेल का रूप गाढ़ा, चिकना, काला तरल था। अरबी में इसे नफ्त कहा गया। कुरआन में भी इसी रूप में इसका उल्लेख है। अरब में अब्बासी ख़लीफाओं के दौर में करीब नवीं सदी में कच्चे तेल के परिशोधन की एक तकनीक खोजी गई और मिट्टी के तेल का वह रूप सामने आया जिसे आज केरोसिन कहते हैं। इसे तब नफ्त-अबयाद naft abyad यानी श्वेत तेल कहा गया। कच्चे तेल को आज दुनियाभर में नेफ्था कहा जाता है दरअसल वह मूल रूप से अरबी का नफ्त ही है जिसका मतलब होता है मिट्टी का तेल यानी ज़मीन से निकलनेवाला तेल या उड़नेवाला पदार्थ(वाष्पीकरण के गुण की वजह से यह अर्थ प्रचलित हुआ होगा)। यह शब्द फारसी उर्दू में भी चला आया। मूलतः यह प्राचीन सेमिटिक संस्कृति की अक्कादी भाषा का शब्द नपत्तू है जो अरबी में नफ्त बना। शायद नपत्तू का ही दूसरा रूप ग्रीक में नेफ्था naphtha या Naphthalene बनकर सामने आया। जिसे दुनियाभर में कच्चे तेल के तौर पर जाना गया।
केरोसिन शब्द मिट्टी के तेल के लिए सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। खनिज तेल के तौर पर कैरोसिन का सबसे पहले प्रयोग कनाडाई वैज्ञानिक अब्राहम गैसनर ने किया जिन्होंने ग्रीक कैरॉस से यह बनाया। गैसनर ने ही कोयले से परिशोधित कैरोसिन बनाने की तरकीब खोजी थी। अरबी में इसके लिए क़ीर शब्द है। दोनों ही भाषाओं में इसका अर्थ होता है चिपचिपा, गाढ़ा पदार्थ, राल, मोम आदि। पेट्रोलियम पदार्थों में मिट्टी का तेल शब्द भी खूब चलता है जिसका मतलब है मिट्टी यानी ज़मीन से निकाला गया। इसके लिए खनिज तेल शब्द भी है क्योंकि इसे भूमि से खनन कर निकाला जाता है। खनन बना है संस्कृत की खन् धातु से जिसमें खुदाई का भाव है। इसे फॉसिल फ्यूल भी कहा जाता है अर्थात जीवाश्म ईंधन। अंग्रेजी का फॉसिल शब्द जीवाश्म यानी भूमि के भीतर जमकर पत्थर हो चुकी जीवों की प्राचीन मृत देह के लिए इस्तेमाल होता है। यह बना है लैटिन के फासिलिस fossilis से जिसका अर्थ होता है खुदाई करना।
प्राकृतिक परिवर्तनों के तहत भूमि के भीतर दफ्न हो गई जीवधारियों की देह तो फॉसिल अथवा जीवाश्म कहलाईं। मगर पुनर्जन्म की कल्पना के चलते दुनियाभर की संस्कृतियों में मृतदेह को इस आशा में संरक्षित करने की परंपरा रही है कि पुनर्जन्म के वक्त आत्मा को फिर पुराना शरीर मिल जाए। इसके लिए प्रचलित शब्द है ममी। यह शब्द मिस्र की संस्कृति से आया है मगर मूल रूप से है अरबी का। अरबी में ममियाह mumiyah शब्द से अभिप्राय धरती के भीतर से निकलनेवाले उसी गाढ़े काले, चिकने-चिपचिपे तरल से था जो पेट्रोलियम पदार्थ ही था जिसे आज बिटुमिन, डामर या तारकोल कहा जाता है। अनुमान लगाया जाता है कि फारसी के मम शब्द का अरबीकरण हुआ है। फारसी मम का अर्थ होता है वेक्स। हिन्दी उर्दू का मोम शब्द इससे ही बना है। मोमजामा, मोमबत्ती, मोमिया जैसे शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। अरबी के ममियाह शब्द का लैटिन रूप हुआ ममिया जो बिटुमिन या डामर के अर्थ में ही रहा। समझा जाता है कि प्राचीन प्राचीन मिस्र में इसी भूगर्भीय काले पदार्थ, जो गोंद, टार, वैक्स या राल से मिलता जुलता था, मृत देह के परिरक्षण के लिए इसका शरीर पर लेपन किया जाता था। इस देह के लिए ही ममी शब्द प्रचलित हुआ ।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:02 AM
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16 कमेंट्स:
कहाँ- कहाँ से ढूँढ लाते हैं इन शब्दों की रिश्तेदारी...! ये शब्द तो यायावर लगते हैं। इनके साधक को क्या कहें...?
नेफ्था केरोस और ममी तीनों प्रायः सूर्य की तरह सनातन सत्य शब्द ! न कोई पूछे न बूझे !! इन अनपूछे और अनबूझे शब्दों पर तह से तराशा ज्ञान ओत - प्रोत कर गया | केमिस्ट्री के शिक्षकों के लिए जिज्ञासा बढाने में योगदान देने वाला आलेख आपकी असीम साधना सामर्थ्य का परिचायक है | पुनः साधुवाद |
बहुत ही रोचक !
घुघूती बासूती
बहुत ही सुंदर जानकारी पुरा लेख कल सुबह पढूगा अभी तो यहां रात का एक बजा है, लेकिन लेख बहुत अच्छा लगा. राम राम जी की
कुछ सालो बाद हमरे यहाँ भी खूब तेल निकलेगा क्योकि प्राकर्तिक संपदा खत्म हो रही है खेत रेगिस्तान बन जायेंगे और हम जीवाश्म .
हमेशा की भाँति यह लेख भी जानकारियों से परिपूर्ण रहा।
आप तो 'तेल' के पीछे हाथ नहीं कम्प्यूटर धो कर पड़ गए ! :)
आप का ब्लॉग तो हमारे लिए अब 'अमल' हो गया है। देहात में अमल कहते हैं 'लत' को जैसे बीड़ी, गुटका . . आदि। इसका संस्कृत अमल से कोई सम्बन्ध मुझे तो नहीं समझ में आता, आप को लगे तो बताइए।
शब्द कैसी रिश्तेदारियाँ बुनते हैं? इन्हें तलाशो तो इतिहास सामने नज़र आने लगता है। कच्चा तेल भी तो हजारों बरस पहले धरती के भीतर ढकेल दिए गए जीवों की ममी ही तो हैं।
बहुत जानकारीपूर्ण आलेख, धन्यवाद!
aapke paas lagta hai shabdo ki khan or unke artho ke kuaa(well) hai jisme se har post nikalti rahti hai.
अजित भाई...कमाल है कहाँ से ढूंढ लाते हैं ऐसी जानकारियाँ...मुझे तो लगता है की जरूर आप पाताल से ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं...शब्दों का इतिहास खूब लगा....
@राजीव टण्डन
राजीव भाई,
आज दिन भर नेट नहीं चल सका। मैने मिट्टी के तेल का अर्थ ज़मीन से निकलने वाला तेल के रूप में ही दिया है। इसके वाष्पीकरण वाले गुण की वजह से अरब लोग इसे उड़नेवाला पदार्थ भी कहते थे।। संभवतः पोस्ट में यह स्पष्ट नहीं हो पाया।
अच्छी जानकारी , आपने अच्छा तेल का तेल निकला
bahut hi rochak jaankari.
रोचक रही ये पोस्ट भी. ममी के उद्भव के बारे में जानना सुखद.
मतलब यह मिट्टी अरब की मिट्टी है जिसका यह तेल है यह तेल का ही कमाल है जो कुवैत पर अमेरिका ने आक्रमण किया अगर वहाँ तेल के बदले आलू निकलता तो अमेरिका कदापि आक्रमण नहीं करता.रही हमारी बात तो हमारी मिट्टी में तो 'हमारा" ही तेल निकलता है
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