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Thursday, October 29, 2009
गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
छो टी बसाहटों के संदर्भ में हिन्दुस्तान में खुर्द, कलां की तरह गंज नामधारी आबादियां भी बहुतायत में मिलती हैं मसलन-गैरतगंज, पटपड़गंज, पहाड़गंज, सादतगंज, हज़रतगंज, नसरुल्लागंज वगैरह वगैरह। किन्हीं शहरों में एक से अधिक गंज भी होते हैं जिनका रुतबा मोहल्ले का होता है और किसी शख्सियत के नाम पर उनका नामकरण किया जाता है जैसे शिवपालगंज। श्रीलाल शुक्ल के मशहूर उपन्यास रागदरबारी के इस गांव के लोगों की पहचान ही गंजहा या गंजहे के तौर पर की जाती है। इस गंज का फैलाव न सिर्फ भारत बल्कि समूचे दक्षिण-पश्चिमी एशिया में देखने को मिलता है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, अज़रबैजान जैसे सुदूर इलाकों में भी ऐसी अनेक बसाहटें मिलेंगी जिनके साथ गंज शब्द जुड़ा हुआ है। गंज शब्द की आमद हिन्दी में फारसी से बताई जाती है। खासतौर पर बस्तियों के संदर्भ में गंज शब्द का फैलाव मुस्लिम शासनकाल में ज्यादा हुआ होगा क्योंकि ज्यादातर गंज नामधारी बस्तियों के आगे अरबी-फारसी की संज्ञाएं नज़र आती हैं। यूं गंज इंडो-ईरानी मूल का शब्द है और संस्कृत-अवेस्ता में इसकी जड़ें समायी हैं। मूलतः समूहवाची अर्थवत्ता वाले इस शब्द का संस्कृत रूप है गञ्ज जिसका मतलब होता है खान, खदान, घर, निवास, झोपड़ी, कुटिया। समूह के अर्थ में भी इसमें बाजार या मण्डी का भी भाव है। याद रखें कि गंज नामधारी ज्यादातर बस्तियां किसी ज़माने में बड़ा बाजार ही हुआ करती थीं। इसके अलावा गंज का मतलब होता है खजाना, भण्डार, आगार आदि। ज्यादातर बाजार वस्तुओं का भण्डार ही होता है सो गंज की पहचान खजाना और भण्डार के तौर पर सही है।
गञ्ज शब्द की मूल धातु है गंज्। इसमें निहित गन् ध्वनि पर गौर करें। संस्कृत की एक धातु है खन्। क वर्ग में ख के बाद आता है ग। ध्यान रहे कि प्राचीनकाल में मनुष्य या तो कन्दराओं में रहता था या पर्णकुटीरों में। छप्पर से कुटिया बनाने के लिए भूमि में शहतीर गाड़ने पड़ते हैं जिसके लिए ज़मीन को कुरेदना, छेदना पड़ता है। यहा खुदाई का भाव है। खन् में यही खुदाई का भाव प्रमुख है। गञ्ज के खाना, खान या खजाना वाला अर्थ महत्वपूर्ण है। खाना khana शब्द इंडो-ईरानी परिवार और इंडो-यूरोपीय परिवार का है जिसमें आवास, निवास, आश्रय का भाव है। संस्कृत की खन् धातु से इसकी रिश्तेदारी है जिसमें खनन का भाव शामिल है। खनन के जरिये ही प्राचीन काल में पहाड़ो में आश्रय के रूप में प्रकोष्ठ बनाए। हिन्दी, उर्दू, तुर्की का खाना इसी से बना है। खाना शब्द का प्रयोग अब कोना, दफ्तर, भवन, प्रकोष्ठ, खेमा आदि कई अर्थों में होता है मगर भाव आश्रय का ही है।
गञ्ज में इसी खन् की ध्वनि झांक रही है। ध्यान रहे कि पृथ्वी को रत्नगर्भा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी नानाविध पदार्थो, वस्तुओं का भण्डार है। मनुष्य के लिए सृष्टि का सबसे बड़ा उपलब्ध खजाना यही है। खजाना हमेशा गुप्त रहता है। इस रूप में खन् , गन् धातु ओं में खुदाई के अर्थ में दरअसल आश्रय, सुरक्षा का भाव प्रमुख है साथ ही पहले से सुरक्षित वस्तु की तलाश भी इसमें शामिल है। इसीलिए खान या खदान जैसे शब्द इससे बने हैं। धातु की खान दरअसल भण्डार ही है। सोने की खान को सोने का खजाना भी कहा जा सकता है। स्पष्ट है कि गञ्ज में शामिल खजाना और निवास का भाव इसके पूर्व रूप खन् में निहित खुदाई के भाव से आ रहा है। गञ्ज का फारसी रूप गंज हुआ। कुछ भाषाविज्ञानी फारसी गंज का मूल तुर्की के गेन से मानते है जिसका अर्थ है विस्तार, फैलाव। यह भी संस्कृत खन् से ही जुड़ती है। कुरेदना, खरोचना, खोदना दरअसल धरती की परत के भीतर फैलाव और विस्तार करना ही है। प्रारम्भिक बस्तियां छप्परोंवाले आवास ही थीं। उसके बाद एक समूचे इलाके को शहतीरों से घेर कर गांव या मण्डल बनाए गए। खानाबदोशों, घूमंतुओं के डेरे ऐसे ही होते हैं। खानाबदोश शब्द भी इसी मूल का है। खाना यानी तम्बू, खेमा। दोश यानी कंधा। आशय उस समुदाय से है जो अपना घर हमेशा कंधों पर लिए घूमता है।
मुस्लिम शासनकाल में देश की कई बस्तियों के साथ खुर्द अर्था छोटी आबादी और कलां यानी बड़ी आबादी जैसे विशेषण जुड़े। मुस्लिम शासनतंत्र की राजस्व व्यवस्था के तहत हुआ। गंज नामधारी बस्तियां भी इसी तरह बसती रही क्योंकि जहां जहां खास किस्म की व्यापारिक गतिविधियां होती थीं, वे स्थान अपने आप मण्डी, बाजार, पत्तन, पाटण आदि का रुतबा पा लेते थे। बाद में सरकारी अधिकारी भी तैनात हो जाता था ताकि करवसूली हो सके। गल्लामण्डी को भी गंज ही कहते हैं। ज्यादातर आबादियां बाजार का विस्तार ही होती हैं। गंज शब्द भी इसका अपवाद नहीं है। इसकी समूहवाची अर्थवत्ता से भी यही साबित होता है। खजाना, कोश, ढेर, अम्बार जैसे अर्थ इससे जुड़े बाजार के भाव को उजागर करते हैं। मुग़लकाल में कई नई आबादियां भी सिर्फ कारोबारी गतिविधियों के लिए बसाई गईं थीं उन्हें भी गंज नाम से जाना जाता था।
इस श्रंखला की पिछली कड़ियां-1.किले की कलई खुल गई.2.कोठी में समाएगा कुटुम्ब!3.कक्षा, कोख और मुसाफिरखाना.4.किलेबंदी से खेमेबंदी तक.5.उत्तराखण्ड से समरकंद तक.6.बस्ती थी बाजार हो गई.7.किस्सा चावड़ी बाजार का.8.मुंबईया चाल का जायज़ा.9.अंडरवर्ल्ड की धर्मशाला बनी चाल [आश्रय-9].10.चाल, शालीनता और नर्क [आश्रय-10]
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9 कमेंट्स:
आदरणीय अजित भैया.... सादर ... नमस्कार.....
यह जानकारी बहुत अच्छी लगी..... हमारे लखनऊ का हज़रतगंज तो बहुत फेमस है.... पर आज यह लेख पढने के बाद के बाद पूरा गंज ध्यान में आ गया..... अब तो हजरतगंज घूमने को लोग गंजिंग (Ganjing) कहने लग गए हैं..... जो फोटो आपने लगायी है.... आजसे १२५ साल पहले हज़रत गंज भी ऐसा ही था....
बहुत अच्छा लगा यह लेख......
आपका
छोटा भाई....
सादर
महफूज़
बहुत खूब अजीत जी आपने "गंज़" शब्द् से अवगत कराया अपने इस विश्लेषण मे. कुछ शब्द आपके साथ अब नई उंचाईया छूने लगे है.. धन्यवाद
बहुत जानकारी पूर्ण आलेख रहा दादा.
एक सूफी संत को गंज-शकर भी कहा गया है.किन्हें ये याद नहीं.
हम तो शीर्षक पढ़ कर समझे थे कि आप ने यह पूरा मामला हमारी गंज पर लिखा है। पर पोस्ट खोलने पर माजरा कुछ और था।
गंज शब्द का आकार विस्तार समझा कर आपने बडा नेक काम किया है । पर दिनेश राय जी की बात पर भी गौर किया जाये । साथ ही मराठी में गंज कहते हैं एक सिलिंडरनुमा पतीली को उसका उद्गम भी क्या यही खन् है ?
द्विवेदी जी की गंज की तरह अपनी गंज होगी एक दिन .
गंज के बारे में जाना . पुर का क्या चक्कर है समझाए . रामपुर ,रायपुर ,बाजपुर गदरपुर आदि आदि
@संजय व्यास
गंजशकर बाबा फरीद को कहते थे। हमने पुस्तक चर्चा-5 में इसका उल्लेख किया था। देखें-http://shabdavali.blogspot.com/2009/04/5.html
कभी किसी शब्द पर अटकें तो अनुरोध है कि ऊपर लगाए सर्च गैजट का उपयोग कर लें। संभव है कुछ जानकारी मिल जाए, अगर सफर उधर से गुजरा है:)
@धीरूसिंह
भाई,
पुर पर पोस्ट लिखी जा चुकी है। दाईं ओर के वर्टिकल कालम में सर्च गैजेट का प्रयोग करें। वहां पुलिस, पुर, मेट्रोपोलिस या इंडियाना पोलिस जैसे की वर्ड लिख कर देखिये। नतीजा मिलेगा। यहां देखे-http://shabdavali.blogspot.com/2009/05/7_16.html
टिप्पणी के लिए शुक्रिया।
यानी गंजे गंज से नहीं आये?
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