Wednesday, January 6, 2010

ज़ाइक़ा, ऊंट और मज़ाक़ [चटकारा-1]

... शब्दों का सफर  पर पेश यह श्रंखला रेडियो प्रसारण के लिए लिखी गई है। जोधपुर आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी महेन्द्रसिंह लालस  इन दिनों स्वाद का सफरनामा पर एक रेडियो-डाक्यूमेट्री बना रहे हैं। उनकी इच्छा थी कि शब्दों का सफर जैसी शैली में इसकी शुरुआत हो। हमने वह काम तो कह दिया है, मगर अपने पाठकों को इसके प्रसारण होने तक इससे वंचित नहीं रखेंगे। वैसे भी रेडियो पर इसका कुछ रूपांतर ही होगा। बीते महीने यूनुस भाई के सौजन्य से सफर के एक आलेख का विविधभारती के मुंबई केंद्र से प्रसारण हुआ था। शब्दों का सफर की राह अखबार, टीवी के बाद अब रेडियों से भी गुजर रही है...
rajthaliसंबंधित कड़ी-रेगिस्तानी हुस्नो-जमाल
हि न्दुस्तानी खान-पान संस्कृति का चर्चा दुनियाभर में है। सुस्वादु भोजन की जितनी किस्में भारत में हैं उतनी कहीं और नहीं। हमारे वैविध्यपूर्ण आचार-व्यवहार का असर खान-पान पर भी नजर आता है। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में एक पाक-शास्त्र भी है। विभिन्न खाद्य पदार्थों की निर्माण विधियों के अलावा ऋतु परिवर्तन के साथ अलग-अलग तरह के आहारों का इसमें ब्योरा है। न सिर्फ पकाने की विधियों बल्कि परोसने और गृहण करने के बारीक विवरण भी हैं जिनका पालन संस्कारी परिवारों में आज भी आचार-संहिता की तरह होता है। भारत में आहार सिर्फ उदर-पूर्ति की औपचारिक रस्म न होकर एक समूची संस्कृति है। हालांकि दुनियाभर में मसालों का स्वर्ग होने की वजह से हिन्दुस्तानी भोजन की शोहरत के पीछे इन्हीं मसालों का चटकारा भी है जो नमकीन तीते पदार्थों में भी पड़ते हैं और रसीले मिष्टान्नों में भी। ध्यान रहे चटखारा तभी लिया जाता है जब भोजन में ज़ायका (ज़ाइका) और लज्जतदारी हो। स्वाद और चटकारे के सफर में सबसे पहले करते है ज़ायक़े की बात।

स्वाद के लिए हिन्दी-उर्दू में जायका (zayqa) शब्द खूब प्रचलित है। इसकी दो व्युत्पत्तियाँ मिलती हैं। इसका फारसी रूप ज़ाइक़ा (zaiqa) है। इसे आमतौर पर अरबी का माना जाता है। पहले इसके भारोपीय मूल वाली बात करते हैं। जायका का मूल अर्थ है स्वाद, आनंद, रोशनी, सारतत्व वगैरह। मनुष्य के जीवन का आधार ही भोजन-पानी है। सिर्फ पानी पर भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। अत्यधिक श्रम के बाद जब भोजन न मिले तो चेहरा निस्तेज और शरीर निढाल हो जाता है। जीवन की पहचान है उल्लास और चमक। लम्बी प्रतीक्षा के बाद जब खाना नसीब होता है, तब अक्सर कहा जाता है-जिस्म में जान आई। भाषा विज्ञानियों ने प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की एक धातु खोजी है जीवै (gweie) जिसमें जीवित रहना, उत्साह, उल्लास आदि भाव हैं। गौरतलब है कि भारोपीय भाषाओं में 82497129 खासतौर पर लैटिन और ग्रीक में G यानी का उच्चारण बहुधा की तरह भी होता है। इसी तरह का उच्चारण की तरह भी होता है। खासतौर पर सेमिटिक परिवार का शब्द जब यूरोपीय परिवार में दाखिल हो तब।  संस्कृत में इससे मिलता जुलता शब्द है जीव(कः) जिसका अर्थ भी जीवन, जीवित रहना आदि है। याद रहे जीवन का अर्थ ही उत्साह, उल्लास, हलचल है। इससे मिलते-जुलते शब्द इंडो-यूरोपीय भाषाओं में हैं जैसे- लिथुआनी में जव्वास। फारसी के पुराने रुप में यह zhiwak झीवक है तो मध्यकालीन फारसी में इसका रूप jivaka जीवका हुआ और फिर फारसी रूप हुआ ज़ाइका। भाषाविज्ञान में गणीतीय समीकरण लागू करें तो परिणाम आता है- स्वाद ही जीवन है। किन्तु ये तमाम आधार पुख़्ता नहीं हैं। मेरा मानना है कि यह मूलतः सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी से फ़ारसी में दाखिल हुआ।
रबी में जाइका का रूप है Zauq ज़ौक़, जिसमें आनंद-मगल, स्वाद, शोभा, रसानुभव, लुत्फ आना जैसे अर्थ समाए हैं। हिन्दी के हास्य या परिहास के अर्थ में बहु प्रयुक्त अरबी मूल का शब्द मज़ाक दरअसल इसी ज़ौक़ में अरबी का उपसर्ग लगने से आ रहा है। इससे बने मजाकिया, मजाकपसंद जैसे शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। जाइका या ज़ौक़ शब्द के अरबी मूल का होने का सबसे सशक्त प्रमाण हमें इसी मुकाम पर मिलता है। गौरतलब है कि सभी प्राचीन समाजों की तरह प्राचीन अरबी समाज भी पशुपालक था। पैगम्बर हजरत मोहम्मद द्वारा संगठित और शिक्षित किए जाने के वक्त तक अरब में चरवाहे (बेदुइन) बहुसंख्य थे। किसी भी समाज की शब्द-संपदा उसके दैनंदिन क्रियाकलापों से जन्म लेती है। जमाल, जमील जैसे खूबसूरती के पर्याय शब्द भी इसी पशुपालन जीवन शैली की देन हैं। अरबी का जमाल, इजिप्शियाई में गमाल है। सेमिटिक भाषा में गमाल या जमाल का अर्थ ऊंट होता है जो बरास्ता इजिप्ट फ्रांस पहुंच कर कैमल हुआ। प्राचीन अरबी समाज की अर्थव्यवस्था का आधार ही ऊंट था। अरबों के लिए अपने जीवन के आधार से बढ़कर प्यारी और सुंदर दूसरी कोई और चीज़ नहीं हो सकती थी, सो ऊंट यानी जमाल का एक अर्थ हुआ सौन्दर्य। आज हिन्दुस्तानी, उर्दू और फारसी में यह इसी अर्थ में इस्तेमाल होता है। हिन्दी फिल्मी गीतों और शायरी में हमेशा नायिका के हुस्नो-जमाल के चर्चे रहते हैं।
हरहाल, इसी तरह बेदुइन तपते रेगिस्तान में ऊंटों या घोड़ो की सुस्त-चाल को तेज करने के लिए उनकी लगाम लगातार कसते रहते थे। इस क्रिया को अरबी में ज़ौ कहा जाता है। ज़ौ अपने आप में सेमिटिक धातु भी है जिसमें मूलतः स्फुर्ति, आभा, चमक जैसे अर्थ निहित हैं। भाव यही है कि लगातार भागते ऊंट या घोड़े की सुस्ती, उसकी कम होती जीवनी शक्ति का प्रतीक है। रेगिस्तान में अक्सर गर्मी से पशुओं की इस तरह मौत हो जाती थी। सो इस अवस्था में ऊंटों को हिलाया जाता था। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें दाना-रातिब दिया जाता था और फिर लगाम कस दी जाती  ताकि वे फिर तेज गति से चल सकें। तेज गति यानी जीवन का पर्याय। जीवित होने का अहसास। लक्ष्य को प्राप्त करने का आनंद तभी मिलता है जब गति निरंतर बनी रहे। यही भाव है ज़ौ से बने ज़ौक़ में। आनंद, उल्लास, स्वाद के लिए हिन्दी-उर्दू में एक और शब्द खूब इस्तेमाल होता है वह है मज़ा। यह इसी ज़ौ में उपसर्ग लगने से बना है। अरबी में मज़ा के मायने हैं लुत्फ, आनंद, उल्लास आदि मगर साथ ही दण्ड, सजा जैसे अर्थ भी इससे जुड़े हैं। जाहिर है कि ज़ौ मूलतः पशुपालक समाज से आया शब्द है। ऊंटों की सुस्त रफ्तार के लिए लगाम कसने में दण्ड का भाव भी स्पष्ट है और चमक, प्रकाश, स्फुर्ति जैसे अर्थों में दाना-रातिब खाकर जीवनीशक्ति से परिपूर्ण होने का भाव भी। ज़ौक, ज़ाइक़ा और मज़ा जैसे शब्द मूल रूप से सेमिटिक भाषा परिवार के ही नज़र आते हैं।  -जारी
पिछली कड़ियां- 1.टाईमपास मूंगफली 2.पूनम का परांठा और पूरणपोली 3.पकौडियां, पठान और कुकर.4शराबी की शामत, कबाबी की नहीं.5.गुपचुप गोलगप्पा और पानी बताशा ...6.जड़ में मट्ठा डालिये…[खानपान-4]7.लस्सी दा जवाब नहीं…[खानपान-3]7पूरी में समायी कचौरी [खान पान-9].8.आटा-दाल का भाव…[खान पान-6]9.गधे पंजीरी खा रहे है...[ खानपान-2]10.पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा.[खानपान-1].
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17 कमेंट्स:

अविनाश वाचस्पति said...

जाइका यानी
जाकर खा
स्‍वाद यानी जायका बता
ऊंट पर या बेऊंटी ही जा
मजाक नहीं है यह
उपयोगी है जानकारी।

अजित वडनेरकर said...

@अविनाश वाचस्पति
आप बेसाख्ता और मज़ेदार लिखते हैं। ज़ायकेदार।
शुक्रिया।

Udan Tashtari said...

जायका ले लिया इस पोस्ट का भी.

’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सुबह सुबह जायका लिया .भोजन थाल वह भी व्यन्जन से भरपुर ,आज का दिन अच्छा वीतेगा

sanjay vyas said...

कल ही महेंद्र जी से आपके बारे में यानी इस प्रोजेक्ट को लेकर बात हो रही थी और आज यहाँ भी चर्चे कुछ वैसे ही हैं.मज़ा और बढ़ गया.आगे का इंतजार रहेगा.

Himanshu Pandey said...

बेहतरीन ! शेष प्रतीक्षित !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

पसंद आया।

ताऊ रामपुरिया said...

लाजवाब जायका मिला आज तो सुबह ही सुबह.

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुबह सुबह मुहँ में पानी आ गया।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढियां और प्रतीक्षित .

श्रद्धा जैन said...

ज़ायका के हर भाषा के रूप और और इसकी व्युत्पति भी पढ़ी
जानकारी बढ़ाने के लिए शुक्रिया अजित जी

Baljit Basi said...

कबी कबी आप की बातों में स्वै-विरोध आ जाता है जिसको आप ठीक तरह से सुलझाते नहीं. आप को 'जायका' के फारसी मूल होने पर संदेह है फिर भी आप इसके भारोपीय मूल वाली बात करने लगे और प्रोटो इंडो-यूरोपीय मूल 'जीवै' से जोड़ते हुए पूरी तार्किक व्याख्या कर डाली. क्या तर्क ऐसा नाक है जिसको जिधर मर्जी मोड़ लो? आखिर अरबी जौक से जोड़ते हुए उतने ही तर्क से इसको अरबी ज़ौ से मिला दिया.

निर्मला कपिला said...

ज़ायकेदार पोस्ट धन्यवाद्

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
बलजीत भाई,
मैने तो साफ लिखा है कि व्युत्पत्ति के आधार पर भारोपीय सूत्र तो मिलता है पर अरेबिक सूत्र नहीं। उसे भी तार्किक मानते हुए मैंने सेमिटिक आधार खोजने का प्रयास किया है। विभिन्न कड़ियों को जोड़ते हुए मैं जिस नतीजे पर पहुंचा हूं उसे सामने रखा है। ये तमाम शब्द इसी धातु आधार से जुड़े हैं यह सूत्र मुझे कहीं नहीं मिला। सेमिटिक आधार भी मजबूत लग रहा है और भारोपीय भी, मगर मेरा मत सेमिटिक आधार के पक्ष में है। यही कहना चाहता हूं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

ज़ायका सुधर गया जी!

Baljit Basi said...

नहीं, मैं आप से सहमत नहीं हूँ. मुझे पूरा अंदाजा है कि किसी शब्द के मूल को जानना बहुत ही कठन काम है., खास तौर पर एक आदमी के लिए. आप तो पता नहीं इतना बोझ कैसे उठा रहे हैं. ऐसे में एक बात की आप से उमीद करता हूँ, और यह नैतिक ईमानदारी की मांग भी है, कि जिस बात पर आपको शक हो पुरे जोर से बताओ कि यह मेरा अंदाजा है, अगर यह बात सही है तो शायद इस की व्याख्या ऐसे हो सकती है वगैरा वगैरा. शक्की बात पर आप कल्पना के पुरे घोड़े दौड़ाने लगते हैं और यहाँ तक स्पष्टवादी बियान दे देते हैं, "स्पष्ट है कि जीवन के उल्लास, जिंदगी की खुशबू ने ही ज़ाइक़ा के रूप में अर्थविस्तार पाया।"

Asha Joglekar said...

अच्छा लगा जायके का सफर ।

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